"तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवाक-6": अवतरणों में अंतर
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13:44, 13 अक्टूबर 2011 का अवतरण
- तैत्तिरीयोपनिषद के ब्रह्मानन्दवल्ली का यह छठा अनुवाक है।
मुख्य लेख : तैत्तिरीयोपनिषद
- इस अनुवाक में 'आनन्दमय कोश' की व्याख्या की गयी है।
- ब्रह्म को 'सत्य' स्वीकार करने वाले सन्त कहलाते हैं।
- विज्ञानमय शरीर का 'आत्मा' ही आनन्दमय शरीर का भी 'आत्मा' है।
- परमात्मा अनेक रूपों में अपने आपको प्रकट करता है।
- उसने जगत की रचना की और उसी में प्रविष्ट हो गया।
- वह वर्ण्य और अवर्ण्य से परे हो गया।
- किसी ने उसे 'निराकार' रूप माना, तो किसी ने 'साकार' रूप। अपनी-अपनी कल्पनाएं होने लगीं।
- वह आश्रय-रूप और आश्रयविहीन हो गया, चैतन्य और जड़ हो गया। वह सत्य रूप होते हुए भी मिथ्या-रूप हो गया। परन्तु विद्वानों का कहना है कि जो कुछ भी अनुभव में आता है, वही 'सत्य' है, परब्रह्म है, परमेश्वर है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली |
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तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली |
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तैत्तिरीयोपनिषद शिक्षावल्ली |
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