"इसका रोना -सुभद्रा कुमारी चौहान": अवतरणों में अंतर
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Subhadra-Kumari-Ch...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
{{Poemopen}} | {{Poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता | तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है। | ||
मैं कहती हूँ - इस रोने से अनुपम सुख छा जाता | मैं कहती हूँ - इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है॥ | ||
सच कहती हूँ, इस रोने की छवि को जरा | सच कहती हूँ, इस रोने की छवि को जरा निहारोगे। | ||
बड़ी-बड़ी आँसू की बूँदों पर मुक्तावली | बड़ी-बड़ी आँसू की बूँदों पर मुक्तावली वारोगे॥1॥ | ||
ये नन्हे से होंठ और यह लम्बी-सी सिसकी | ये नन्हे से होंठ और यह लम्बी-सी सिसकी देखो। | ||
यह छोटा सा गला और यह गहरी-सी हिचकी | यह छोटा सा गला और यह गहरी-सी हिचकी देखो॥ | ||
कैसी करुणा-जनक दृष्टि है, हृदय उमड़ कर आया | कैसी करुणा-जनक दृष्टि है, हृदय उमड़ कर आया है। | ||
छिपे हुए आत्मीय भाव को यह उभार कर लाया | छिपे हुए आत्मीय भाव को यह उभार कर लाया है॥2॥ | ||
हँसी बाहरी, चहल-पहल को ही बहुधा दरसाती | हँसी बाहरी, चहल-पहल को ही बहुधा दरसाती है। | ||
पर रोने में अंतर तम तक की हलचल मच जाती | पर रोने में अंतर तम तक की हलचल मच जाती है॥ | ||
जिससे सोई हुई आत्मा जागती है, अकुलाती | जिससे सोई हुई आत्मा जागती है, अकुलाती है। | ||
छूटे हुए किसी साथी को अपने पास बुलाती है॥3॥ | |||
मैं सुनती हूँ कोई मेरा मुझको अहा ! बुलाता | मैं सुनती हूँ कोई मेरा मुझको अहा ! बुलाता है। | ||
जिसकी करुणापूर्ण चीख से मेरा केवल नाता | जिसकी करुणापूर्ण चीख से मेरा केवल नाता है॥ | ||
मेरे ऊपर वह निर्भर है खाने, पीने, सोने | मेरे ऊपर वह निर्भर है खाने, पीने, सोने में। | ||
जीवन की प्रत्येक क्रिया में, हँसने में ज्यों रोने | जीवन की प्रत्येक क्रिया में, हँसने में ज्यों रोने में॥4॥ | ||
मैं हूँ उसकी प्रकृति संगिनी उसकी जन्म-प्रदाता | मैं हूँ उसकी प्रकृति संगिनी उसकी जन्म-प्रदाता हूँ। | ||
वह मेरी प्यारी बिटिया है मैं ही उसकी प्यारी माता | वह मेरी प्यारी बिटिया है, मैं ही उसकी प्यारी माता हूँ॥ | ||
तुमको सुन कर चिढ़ आती है मुझ को होता है | तुमको सुन कर चिढ़ आती है मुझ को होता है अभिमान। | ||
जैसे भक्तों की पुकार सुन गर्वित होते हैं | जैसे भक्तों की पुकार सुन गर्वित होते हैं भगवान॥5॥ | ||
</poem> | </poem> | ||
{{Poemclose}} | {{Poemclose}} |
13:14, 15 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
| ||||||||||||||||||
|
तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है। |