"चील (1) -कुलदीप शर्मा": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 32: पंक्ति 32:
गहरे अनन्त आकाश में
गहरे अनन्त आकाश में
गोल गोल घूमती हुई
गोल गोल घूमती हुई
जैसे विषाल नीली झील में
जैसे विशाल नीली झील में
डूबती उतराती काली गेंद
डूबती उतराती काली गेंद
क्या ढूंढ रही है चील
क्या ढूंढ रही है चील

13:31, 2 जनवरी 2012 का अवतरण

चील (1) -कुलदीप शर्मा
कवि कुलदीप शर्मा
जन्म स्थान (ऊना, हिमाचल प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कुलदीप शर्मा की रचनाएँ

बहुत दिनों बाद दिखी
एक चील
गहरे अनन्त आकाश में
गोल गोल घूमती हुई
जैसे विशाल नीली झील में
डूबती उतराती काली गेंद
क्या ढूंढ रही है चील
इतनी ऊँचाई से आकाश में
पृथ्वी को निशाने में रखकर
जबकि इतने मृत पशु हैं
असंख्य लाशें
चील अपने भोजन की
प्रचुरता से डरी हुई
घूम रही है गोल गोल
भूगोल की थाह लेती हुई
कई बरस पहले
जब बहुत थी चीलें
बहुत कम मरते थे पशु
चीलों के झुण्ड के झुण्ड
मंडराते थे आकाश में
क्रोध से काला पड़ जाता था आसमान
हवा को गोली की तरह चीरती
साँ की आवाज़ से
झपटती थीं चीलें मृत पशु पर
असंभव था उन्हें शिकार से दूर रखना
माँ बताती थी
कि चिड़िया नहीं
चील अकेला ऐसा पक्षी है
जो उड़ते उड़ते सशरीर
चला जाता है स्वर्ग तक
मैं चीलों को मृत पशु के पास
कुत्तों से लड़ते देखता था
तो झूठ लगती थी माँ की बात
यह गंदा मांसाहारी पक्षी
कैसे जा सकता है स्वर्ग तक
जबकि स्वर्ग में नहीं होता मांस
पर अब जबकि सारी चीलें
लुप्त हो गई हैं हमारे आकाश से
तो लगता है
कहीं सचमुच खो गया है हमारा स्वर्ग
और जाने कहां से
इतनी सड़ांध उतर आई है धरती पर
जहां ढेर सा जमा हो गया है
चीलों का भोजन
और चीलें हैं कि कहीं दिख नहीं रहीं
अब एक अकेली चील
जो शायद पृथ्वी की चिन्ता में
भूल गई है स्वर्ग का रास्ता
हमें याद दिला रही है
कि जब नहीं रहते
नरक उठाने वाले हाथ
तब भी खो जाता है स्वर्ग़


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख