"पहाड़ पर धूप -अनूप सेठी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Jagat_men_mela....' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
|}
|}
<div style="height: 250px; overflow:auto; overflow-x: hidden; width:99%">
<div style="height: 250px; overflow:auto; overflow-x: hidden; width:99%">
{{अनूप सेठी की रचनाएँ}}
{{जगत में मेला}}
{{जगत में मेला}}
</div></div>
</div></div>

13:31, 7 जनवरी 2012 का अवतरण

पहाड़ पर धूप -अनूप सेठी
जगत में मेला' का आवरण चित्र
जगत में मेला' का आवरण चित्र
कवि अनूप सेठी
मूल शीर्षक जगत में मेला
प्रकाशक आधार प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड,एस. सी. एफ. 267, सेक्‍टर 16,पंचकूला - 134113 (हरियाणा)
प्रकाशन तिथि 2002
देश भारत
पृष्ठ: 131
भाषा हिन्दी
विषय कविता
प्रकार काव्य संग्रह
अनूप सेठी की रचनाएँ

सीढ़ियाँ चढ़ के आती हुई सी धूप
दोपहर शायद इन दिनों भी अच्छी होगी वहाँ
शाम तक बैठी रहे साथ साथ

रूह का गुनगुना स्पर्श।

तमस को हवा उलीच के ले जाए
पहाड़िन चांदी के बर्क बांटे सुबह सुबह।

बाबू! जब भीड़ में चुंधिया जाओ
तो देखना अक्स

रूह का गुनगुना स्पर्श।

रातरानियों की खुशबू अगले मौसम दूँगी
धौलाधारी चांदनी में लपेट लपेट
निर्गले मोसम देवदार डूबे रोम ले जाना
आज दोपहर भर बैठ के खोलो पोर पोर।

धूप कहे यह मेरी तुम्हारी अपनी झिंझोटी है
शहर में खुले आम हांक लगाओगे डूब जाएगी।
रूह का गुनगुना स्पर्श।
                                   (1984)

_______________________________
1. अगले से अगले
2. हिमाचली लोकगीत का एक प्रकार


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख