"नरी सेमरी": अवतरणों में अंतर

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इसका शुद्ध एवं पूर्व नाम किन्नरी '''श्यामरी''' है। [[छाता]] से चार मील दक्षिण-पूर्व में सेमरी गाँव स्थित हैं। '''सेमरी''' के पास ही दक्षिण दिशा में एक मील दूर '''नरी''' गाँव है। सेमरी गाँव में यूथेश्वरी श्यामला सखी का निवास था।  
'''नरी सेमरी''' [[छाता]], [[मथुरा]] से चार मील दक्षिण-पूर्व में 'सेमरी गाँव' में स्थित हैं। इसका शुद्ध एवं पूर्व नाम किन्नरी 'श्यामरी' है। 'सेमरी' के पास ही दक्षिण दिशा में एक मील दूर 'नरी' गाँव है। सेमरी गाँव में 'यूथेश्वरी श्यामला सखी' का निवास था।


'''प्रसंग-'''  
;प्रसंग
किसी समय मानिनी श्री [[राधा|राधिका]] का मान भंग नहीं हो रहा था। [[ललिता]], [[विशाखा]] आदि सखियों ने भी बहुत चेष्टाएँ कीं, किन्तु मान और भी अधिक बढ़ता गया। अन्त में सखियों के परामर्श से श्री [[कृष्ण]] श्यामरी सखी बनकर [[वीणा]] बजाते हुए यहाँ आये। राधिका श्यामरी सखी का अद्भुत रूप तथा वीणा की स्वर लहरियों पर उतराव और चढ़ाव के साथ मूर्छना आदि रागों से अलंकृत [[संगीत]] को सुनकर ठगी-सी रह गई। उन्होंने पूछा-सखि! तुम्हारा नाम क्या है? और तुम्हारा निवास-स्थान कहाँ है? सखी बने हुए कृष्ण ने उत्तर दिया- 'मेरा नाम श्यामरी है। मैं स्वर्ग की किन्नरी हूँ।' राधिका श्यामरी किन्नरी का वीणा वाद्य एवं सुललित संगीत सुनकर अत्यन्त विह्वल हो गईं और अपने गले से रत्नों का हार श्यामरी किन्नरी के गले में अर्पण करने के लिए प्रस्तुत हुई, किन्तु श्यामरी किन्नरी ने हाथ जोड़कर उनके श्री चरणों में निवदेन किया कि आप कृपा कर अपना मान रूपी रत्न मुझे प्रदान करें। इतना सुनते ही राधिका जी समझ गईं कि ये मेरे प्रियतम ही मुझसे मान रत्न मांग रहे हैं। फिर तो प्रसन्न होकर उनसे मिलीं। सखियाँ भी उनका परस्पर मिलन कराकर अत्यन्त प्रसन्न हुईं। इस मधुर लीला के कारण ही इस स्थान का नाम 'किन्नरी' से 'नरी' तथा 'श्यामरी' से 'सेमरी' हो गया है।
*वृन्दावनलीलामृत के अनुसार 'हरि' शब्द के अपभ्रंश के रूप में इस गाँव का नाम 'नरी' हुआ है।


किसी समय मानिनी श्री [[राधा|राधिका]] का मान भंग नहीं हो रहा था । [[ललिता]], [[विशाखा]] आदि सखियों ने भी बहुत चेष्टाएँ कीं, किन्तु मान और भी अधिक बढ़ता गया । अन्त में सखियों के परामर्श से श्री [[कृष्ण]] श्यामरी सखी बनकर वीणा बजाते हुए यहाँ आये। राधिका श्यामरी सखी का अद्भुत रूप तथा वीणा की स्वर लहरियों पर उतराव और चढ़ाव के साथ मूर्छना आदि रागों से अलंकृत संगीत को सुनकर ठगी-सी रह गई । उन्होंने पूछा-सखि ! तुम्हारा नाम क्या है ? और तुम्हारा निवास-स्थान कहाँ हैं । ? सखी बने हुए कृष्ण ने उत्तर दिया- मेरा नाम श्यामरी है । मैं स्वर्ग की किन्नरी हूँ । राधिका श्यामरी किन्नरी का वीणा वाद्य एवचं सुललित संगीत सुनकर अत्यन्त विह्वल हो गईं और अपने गले से रत्नों का हार श्यामरी किन्नरी के गले अर्पण करने के लिए प्रस्तुत हुई, किन्तु श्यामरी किन्नरी ने हाथ जोड़कर उनके श्री चरणों में निवदेन किया कि आप कृपा कर अपना मान रूपी रत्न मुझे प्रदान करें । इतना सुनते ही राधिकाजी समझ गई कि ये मेरे प्रियतम ही मुझसे मान रत्न मांग रहे हैं । फिर तो प्रसन्न होकर उनसे मिलीं । सखियाँ भी उनका परस्पर मिलन कराकर अत्यन्त प्रसन्न हुई । इस मधुर लीला के कारण ही इस स्थान का नाम किन्नरी से नरी तथा श्यामरी से सेमरी हो गया है ।
;दूसरा प्रसंग
*वृन्दावनलीलमृत के अनुसार हरि शब्द के अपभ्रंश क रूप में इस गाँव का नाम नरी हुआ है ।
जिस समय [[कृष्ण]]-[[बलराम]] [[ब्रज]] छोड़कर [[मथुरा]] के लिए प्रस्थान करने लगे, [[अक्रूर]] ने उन दोनों को रथ पर चढ़ाकर बड़ी शीघ्रता से मथुरा की ओर रथ को हाँक दिया। गोपियाँ खड़ी हो गईं और एकटक से रथ की ओर देखने लगीं। किन्तु धीरे-धीरे रथ आँखों से ओझल हो गया। धीरे-धीरे उड़ती हुई धूल भी शान्त हो गई। तब वे हा हरि! हा हरि! कहती हुईं पछाड़ खाकर धरती पर गिर पड़ीं। इस लीला की स्मृति की रक्षा के लिए महाराज [[वज्रनाभ]] ने वहाँ जो गाँव बसाया, वह गाँव [[ब्रज]] में हरि नाम से प्रसिद्ध हुआ। धीरे-धीरे हरि शब्द का ही अपभ्रंश नरी हो गया। नरी गाँव में किशोरी कुण्ड, संकर्षण कुण्ड और श्री बलदेव जी का दर्शन है।<ref> {{cite web |url=http://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%80 |title=नरीसेमरी |accessmonthday=30 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=ब्रजडिस्कवरी |language= हिन्दी}}</ref>


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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14:20, 8 फ़रवरी 2012 का अवतरण

नरी सेमरी छाता, मथुरा से चार मील दक्षिण-पूर्व में 'सेमरी गाँव' में स्थित हैं। इसका शुद्ध एवं पूर्व नाम किन्नरी 'श्यामरी' है। 'सेमरी' के पास ही दक्षिण दिशा में एक मील दूर 'नरी' गाँव है। सेमरी गाँव में 'यूथेश्वरी श्यामला सखी' का निवास था।

प्रसंग

किसी समय मानिनी श्री राधिका का मान भंग नहीं हो रहा था। ललिता, विशाखा आदि सखियों ने भी बहुत चेष्टाएँ कीं, किन्तु मान और भी अधिक बढ़ता गया। अन्त में सखियों के परामर्श से श्री कृष्ण श्यामरी सखी बनकर वीणा बजाते हुए यहाँ आये। राधिका श्यामरी सखी का अद्भुत रूप तथा वीणा की स्वर लहरियों पर उतराव और चढ़ाव के साथ मूर्छना आदि रागों से अलंकृत संगीत को सुनकर ठगी-सी रह गई। उन्होंने पूछा-सखि! तुम्हारा नाम क्या है? और तुम्हारा निवास-स्थान कहाँ है? सखी बने हुए कृष्ण ने उत्तर दिया- 'मेरा नाम श्यामरी है। मैं स्वर्ग की किन्नरी हूँ।' राधिका श्यामरी किन्नरी का वीणा वाद्य एवं सुललित संगीत सुनकर अत्यन्त विह्वल हो गईं और अपने गले से रत्नों का हार श्यामरी किन्नरी के गले में अर्पण करने के लिए प्रस्तुत हुई, किन्तु श्यामरी किन्नरी ने हाथ जोड़कर उनके श्री चरणों में निवदेन किया कि आप कृपा कर अपना मान रूपी रत्न मुझे प्रदान करें। इतना सुनते ही राधिका जी समझ गईं कि ये मेरे प्रियतम ही मुझसे मान रत्न मांग रहे हैं। फिर तो प्रसन्न होकर उनसे मिलीं। सखियाँ भी उनका परस्पर मिलन कराकर अत्यन्त प्रसन्न हुईं। इस मधुर लीला के कारण ही इस स्थान का नाम 'किन्नरी' से 'नरी' तथा 'श्यामरी' से 'सेमरी' हो गया है।

  • वृन्दावनलीलामृत के अनुसार 'हरि' शब्द के अपभ्रंश के रूप में इस गाँव का नाम 'नरी' हुआ है।
दूसरा प्रसंग

जिस समय कृष्ण-बलराम ब्रज छोड़कर मथुरा के लिए प्रस्थान करने लगे, अक्रूर ने उन दोनों को रथ पर चढ़ाकर बड़ी शीघ्रता से मथुरा की ओर रथ को हाँक दिया। गोपियाँ खड़ी हो गईं और एकटक से रथ की ओर देखने लगीं। किन्तु धीरे-धीरे रथ आँखों से ओझल हो गया। धीरे-धीरे उड़ती हुई धूल भी शान्त हो गई। तब वे हा हरि! हा हरि! कहती हुईं पछाड़ खाकर धरती पर गिर पड़ीं। इस लीला की स्मृति की रक्षा के लिए महाराज वज्रनाभ ने वहाँ जो गाँव बसाया, वह गाँव ब्रज में हरि नाम से प्रसिद्ध हुआ। धीरे-धीरे हरि शब्द का ही अपभ्रंश नरी हो गया। नरी गाँव में किशोरी कुण्ड, संकर्षण कुण्ड और श्री बलदेव जी का दर्शन है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नरीसेमरी (हिन्दी) (पी.एच.पी) ब्रजडिस्कवरी। अभिगमन तिथि: 30 सितंबर, 2011।

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