"दोलोत्सव": अवतरणों में अंतर
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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है। | *[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है। | ||
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*पालने में झूलते हुए [[कृष्ण]] को दक्षिणामुख हो एक बार देख लेने से पापों के भार से मुक्ति मिल जाती है। | *पालने में झूलते हुए [[कृष्ण]] को दक्षिणामुख हो एक बार देख लेने से पापों के भार से मुक्ति मिल जाती है। | ||
*पद्मपुराण<ref>पद्मपुराण | *[[पद्मपुराण]]<ref>[[पद्मपुराण]] 6|85</ref> में [[विष्णु]] का दोलोत्सव भी वर्णित है। | ||
*[[चैत्र]] शुक्ल तृतीया पर गौरी का तथा<ref>पुरुषचिन्तामणि 85, व्रतराज 84</ref> राम का दोलोत्सव<ref>समयमयूख 35</ref> होता है। | *[[चैत्र]] शुक्ल तृतीया पर गौरी का तथा<ref>पुरुषचिन्तामणि 85, व्रतराज 84</ref> [[राम]] का दोलोत्सव<ref>समयमयूख 35</ref> होता है। | ||
*कृष्ण का दोलोत्सव चैत्र शुक्ल [[एकादशी]]<ref>पद्मपुराण 6|85</ref> पर होता है। | *कृष्ण का दोलोत्सव चैत्र शुक्ल [[एकादशी]]<ref>[[पद्मपुराण]] 6|85</ref> पर होता है। | ||
*[[गायत्री]] के समान मन्त्र यह है—'ओं दोलारूढाय विद्महे माधवाय च धीमहि। तन्नो देवः प्रचोदयात्।।' | *[[गायत्री]] के समान मन्त्र यह है—'ओं दोलारूढाय विद्महे माधवाय च धीमहि। तन्नो देवः प्रचोदयात्।।' | ||
*आज भी [[मथुरा]]-[[वृन्दावन]], [[अयोध्या]], [[द्वारका]], | *आज भी [[मथुरा]]-[[वृन्दावन]], [[अयोध्या]], [[द्वारका]], डाकोर आदि में कृष्ण का दोलोत्सव मनाया जाता है। | ||
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10:53, 14 फ़रवरी 2012 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- पद्म पुराण[1] जिसमें आया है कि कलियुग में फाल्गुन चतुर्दशी पर आठवें प्रहर में या पूर्णिमा तथा प्रथमा के योग पर दोलोत्सव 3 दिनों या 5 दिनों तक किया जाता है।
- पालने में झूलते हुए कृष्ण को दक्षिणामुख हो एक बार देख लेने से पापों के भार से मुक्ति मिल जाती है।
- पद्मपुराण[2] में विष्णु का दोलोत्सव भी वर्णित है।
- चैत्र शुक्ल तृतीया पर गौरी का तथा[3] राम का दोलोत्सव[4] होता है।
- कृष्ण का दोलोत्सव चैत्र शुक्ल एकादशी[5] पर होता है।
- गायत्री के समान मन्त्र यह है—'ओं दोलारूढाय विद्महे माधवाय च धीमहि। तन्नो देवः प्रचोदयात्।।'
- आज भी मथुरा-वृन्दावन, अयोध्या, द्वारका, डाकोर आदि में कृष्ण का दोलोत्सव मनाया जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
अन्य संबंधित लिंक
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