"सआदत अली": अवतरणों में अंतर
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'''सआदत अली''' [[अवध]] के नवाब आसफ़उद्दौला का ज्येष्ठ भाई था। | '''सआदत अली''' [[अवध]] के नवाब आसफ़उद्दौला का ज्येष्ठ भाई था। सन् 1797 ई. में आसफ़उद्दौला की मृत्यु पर उसका बेटा वज़ीर अली नवाब बना। बाद में [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] के अधिकारियों को उसके नवाब का बेटा होने में संदेह हुआ और [[गवर्नर-जनरल]] [[सर जॉन शोर]] ने जनवरी, 1798 ई. में सआदत अली से एक संधि करके उसे अवध के सिंहासन पर बिठला दिया। इसके बदले में उसने कंपनी को बारह लाख रुपया दिया। वज़ीर अली नवाब को डेढ़ लाख रुपया वार्षिक पेंशन देकर [[बनारस]] भेज दिया गया। उपर्युक्त संधि के अनुसार नवाब ने सामरिक महत्व वाले [[इलाहाबाद]] के दुर्ग को कंपनी को दे दिया तथा उसकी मरम्मत के लिए आठ लाख रुपया भी दिया। | ||
==जॉन शोर का हस्तक्षेप== | ==जॉन शोर का हस्तक्षेप== | ||
[[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के अतिरिक्त अन्य यूरोपीयों को अपने राज्य में प्रविष्ट न होने देने का उसने वचन दिया तथा अंग्रेज़ों को 76 लाख रुपया वार्षिक देना स्वीकार किया। किसी बाह्य शक्ति से संधि करने का उसे कोई अधिकार नहीं रह गया। नवाब वज़ीर अली ने अपनी सेना कम करके 35 हज़ार कर दी। सर जॉन शोर सआदत अली के साथ मनमाना व्यवहार करता था, तथा अवध के शासन मे भी हस्तक्षेप करने लगा था। इस प्रकार का हस्तक्षेप अवध के साथ की गई पुरानी संधियों के सर्वथा विपरीत था। सर जॉन शोर ने अवध में [[अंग्रेज़]] सेना काफ़ी बढ़ा दी, क्योंकि उस समय अवध पर जमानशाह के आक्रमण का भय था। जमानशाह, अहमदशाह दुर्रानी का पौत्र था। [[भारत]] पर आक्रमण करके वह [[लाहौर]] तक पहुँच गया था। अवध में अंग्रेज़ी सेना बढ़कर नवाब वज़ीर अली को ख़र्च उठाने के लिए दबाया। | [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के अतिरिक्त अन्य यूरोपीयों को अपने राज्य में प्रविष्ट न होने देने का उसने वचन दिया तथा अंग्रेज़ों को 76 लाख रुपया वार्षिक देना स्वीकार किया। किसी बाह्य शक्ति से संधि करने का उसे कोई अधिकार नहीं रह गया। नवाब वज़ीर अली ने अपनी सेना कम करके 35 हज़ार कर दी। सर जॉन शोर सआदत अली के साथ मनमाना व्यवहार करता था, तथा अवध के शासन मे भी हस्तक्षेप करने लगा था। इस प्रकार का हस्तक्षेप अवध के साथ की गई पुरानी संधियों के सर्वथा विपरीत था। सर जॉन शोर ने अवध में [[अंग्रेज़]] सेना काफ़ी बढ़ा दी, क्योंकि उस समय अवध पर जमानशाह के आक्रमण का भय था। जमानशाह, अहमदशाह दुर्रानी का पौत्र था। [[भारत]] पर आक्रमण करके वह [[लाहौर]] तक पहुँच गया था। अवध में अंग्रेज़ी सेना बढ़कर नवाब वज़ीर अली को ख़र्च उठाने के लिए दबाया। | ||
==कम्पनी से सन्धि== | ==कम्पनी से सन्धि== | ||
जॉन शोर के बाद [[लॉर्ड वेलेज़ली]] भारत का गवर्नर-जनरल हुआ। कई कारणों से उसने यह राय बनाई कि कंपनी को [[अवध]] पर अधिकार कर लेना चाहिए। | जॉन शोर के बाद [[लॉर्ड वेलेज़ली]] भारत का गवर्नर-जनरल हुआ। कई कारणों से उसने यह राय बनाई कि कंपनी को [[अवध]] पर अधिकार कर लेना चाहिए। सन् 1799 ई. में वेलेज़ली ने सआदत अली को अपनी सेना तोड़ देने की आज्ञा भेजी। बिना सआदत अली की अनुमति के अवध में अंग्रेज़ी सेना बढ़ा दी गई और उससे सेना का ख़र्च देने को कहा गया। जनवरी, 1801 ई. में उसने सआदत अली को लिखा कि या तो वह अभी तक का अंग्रेज़ी सेना का ख़र्च दे या भविष्य के लिए अपना आधा राज्य कंपनी को सौंप दे या पेंशन लेकर राजकार्य से अवकाश ग्रहण कर लें। मजबूर होकर नवंबर, 1801 ई. में सआदत अली ने कंपनी से संधि कर ली। इस संधि के द्वारा नवाब की सेना घटा दी गई तथा अवध की सीमा पर स्थित चुने हुए ज़िले कंपनी ने ले लिए। बचे हुए राज्य पर नवाब ने अंग्रेज़ों की सलाह से शासन करना स्वीकार कर लिया। अब अवध के चारों ओर अंग्रेज़ों का आधिपत्य हो गया। | ||
==मृत्यु== | ==मृत्यु== | ||
सआदत अली एक सुयोग्य शासक था। उसके समय में शासन में कई सुधार किए गए तथा प्रजा प्रसन्न थी। [[अवध]] की सीमाओं को भी उसने यथासंभव दृढ़ करने का प्रयत्न किया था तथा राज्य की आमदनी बढ़ा दी थी। उसके मरने पर सरकारी खज़ाने में बहुत सा धन था। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के उससे असंतुष्ट होने का कारण यह था कि, वह अपने राज्य में उनका बहुत हस्तक्षेप सहन न करता था। | सआदत अली एक सुयोग्य शासक था। उसके समय में शासन में कई सुधार किए गए तथा प्रजा प्रसन्न थी। [[अवध]] की सीमाओं को भी उसने यथासंभव दृढ़ करने का प्रयत्न किया था तथा राज्य की आमदनी बढ़ा दी थी। उसके मरने पर सरकारी खज़ाने में बहुत सा धन था। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के उससे असंतुष्ट होने का कारण यह था कि, वह अपने राज्य में उनका बहुत हस्तक्षेप सहन न करता था। सन् 1814 ई. में उसका देहांत हो गया। | ||
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14:09, 6 मार्च 2012 का अवतरण
सआदत अली अवध के नवाब आसफ़उद्दौला का ज्येष्ठ भाई था। सन् 1797 ई. में आसफ़उद्दौला की मृत्यु पर उसका बेटा वज़ीर अली नवाब बना। बाद में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकारियों को उसके नवाब का बेटा होने में संदेह हुआ और गवर्नर-जनरल सर जॉन शोर ने जनवरी, 1798 ई. में सआदत अली से एक संधि करके उसे अवध के सिंहासन पर बिठला दिया। इसके बदले में उसने कंपनी को बारह लाख रुपया दिया। वज़ीर अली नवाब को डेढ़ लाख रुपया वार्षिक पेंशन देकर बनारस भेज दिया गया। उपर्युक्त संधि के अनुसार नवाब ने सामरिक महत्व वाले इलाहाबाद के दुर्ग को कंपनी को दे दिया तथा उसकी मरम्मत के लिए आठ लाख रुपया भी दिया।
जॉन शोर का हस्तक्षेप
अंग्रेज़ों के अतिरिक्त अन्य यूरोपीयों को अपने राज्य में प्रविष्ट न होने देने का उसने वचन दिया तथा अंग्रेज़ों को 76 लाख रुपया वार्षिक देना स्वीकार किया। किसी बाह्य शक्ति से संधि करने का उसे कोई अधिकार नहीं रह गया। नवाब वज़ीर अली ने अपनी सेना कम करके 35 हज़ार कर दी। सर जॉन शोर सआदत अली के साथ मनमाना व्यवहार करता था, तथा अवध के शासन मे भी हस्तक्षेप करने लगा था। इस प्रकार का हस्तक्षेप अवध के साथ की गई पुरानी संधियों के सर्वथा विपरीत था। सर जॉन शोर ने अवध में अंग्रेज़ सेना काफ़ी बढ़ा दी, क्योंकि उस समय अवध पर जमानशाह के आक्रमण का भय था। जमानशाह, अहमदशाह दुर्रानी का पौत्र था। भारत पर आक्रमण करके वह लाहौर तक पहुँच गया था। अवध में अंग्रेज़ी सेना बढ़कर नवाब वज़ीर अली को ख़र्च उठाने के लिए दबाया।
कम्पनी से सन्धि
जॉन शोर के बाद लॉर्ड वेलेज़ली भारत का गवर्नर-जनरल हुआ। कई कारणों से उसने यह राय बनाई कि कंपनी को अवध पर अधिकार कर लेना चाहिए। सन् 1799 ई. में वेलेज़ली ने सआदत अली को अपनी सेना तोड़ देने की आज्ञा भेजी। बिना सआदत अली की अनुमति के अवध में अंग्रेज़ी सेना बढ़ा दी गई और उससे सेना का ख़र्च देने को कहा गया। जनवरी, 1801 ई. में उसने सआदत अली को लिखा कि या तो वह अभी तक का अंग्रेज़ी सेना का ख़र्च दे या भविष्य के लिए अपना आधा राज्य कंपनी को सौंप दे या पेंशन लेकर राजकार्य से अवकाश ग्रहण कर लें। मजबूर होकर नवंबर, 1801 ई. में सआदत अली ने कंपनी से संधि कर ली। इस संधि के द्वारा नवाब की सेना घटा दी गई तथा अवध की सीमा पर स्थित चुने हुए ज़िले कंपनी ने ले लिए। बचे हुए राज्य पर नवाब ने अंग्रेज़ों की सलाह से शासन करना स्वीकार कर लिया। अब अवध के चारों ओर अंग्रेज़ों का आधिपत्य हो गया।
मृत्यु
सआदत अली एक सुयोग्य शासक था। उसके समय में शासन में कई सुधार किए गए तथा प्रजा प्रसन्न थी। अवध की सीमाओं को भी उसने यथासंभव दृढ़ करने का प्रयत्न किया था तथा राज्य की आमदनी बढ़ा दी थी। उसके मरने पर सरकारी खज़ाने में बहुत सा धन था। अंग्रेज़ों के उससे असंतुष्ट होने का कारण यह था कि, वह अपने राज्य में उनका बहुत हस्तक्षेप सहन न करता था। सन् 1814 ई. में उसका देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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