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07:05, 17 मार्च 2012 के समय का अवतरण

प्रेम नहीं घट में जिसके, फिर पूजन लाख विचार करे वो।
नहीं चीन परी जो दया इक मानव, तो गुण कोटिन और भरे वो।
श्री गुरु के शब्द सुने न सुने, फिर शास्त्र पुराण हृदय में धरे वो।
शिवदीन मिले कछु ज्ञान तभी, गुरु गोविन्द के शरण परे वो।


तात व मात की सेवा करें, उपकार करे वो बतावनो ना।
शिवदीन हरी गुण गान करें, कभी दिन दुखी को सतावनो ना।
सन्मार्ग सुसंगत सार गाहे, व समुद्र में कूद के न्हावनो ना।
सुख देख के फूल न फूलो अरे ! दु:ख देख घनो घबरावनो ना।


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