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'''बदरी''' [[गंगा नदी]] के तट पर [[हिमालय]] की गोद में स्थित एक अत्यन्त पवित्र तीर्थस्थल है। गंगा तट पर नर और [[नारायण]] का आश्रम और [[तीर्थ स्थान|तीर्थस्थल]] होने से इसे 'बद्रिका' या '[[बद्रीनाथ|बद्रीधाम]]' भी कहा गया है।
'''बदरी''' [[गंगा नदी]] के तट पर [[हिमालय]] की गोद में स्थित एक अत्यन्त पवित्र तीर्थस्थल है। गंगा तट पर नर और [[नारायण]] का आश्रम और [[तीर्थ स्थान|तीर्थस्थल]] होने से इसे 'बद्रिका' या '[[बद्रीनाथ|बद्रीधाम]]' भी कहा गया है।
*यहाँ अमृत तुल्य शीतल [[जल]] वाली गंगा उष्ण जल वाली धारा बन जाती है और [[स्वर्ण]] बालुका बहाकर लाती है।
*यहाँ अमृत तुल्य शीतल [[जल]] वाली गंगा उष्ण जल वाली धारा बन जाती है और [[स्वर्ण]] बालुका बहाकर लाती है।
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*विशाल बेर वृक्षों से आवृत्त बदरी के दर्शन किए, जो हिमवत की गोद में स्थित हैं।
*विशाल बेर वृक्षों से आवृत्त बदरी के दर्शन किए, जो हिमवत की गोद में स्थित हैं।
*यहाँ से वे गंधमादन पर पहुँचे थे।
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13:30, 26 मार्च 2012 के समय का अवतरण

बदरी गंगा नदी के तट पर हिमालय की गोद में स्थित एक अत्यन्त पवित्र तीर्थस्थल है। गंगा तट पर नर और नारायण का आश्रम और तीर्थस्थल होने से इसे 'बद्रिका' या 'बद्रीधाम' भी कहा गया है।

  • यहाँ अमृत तुल्य शीतल जल वाली गंगा उष्ण जल वाली धारा बन जाती है और स्वर्ण बालुका बहाकर लाती है।
  • इससे आगे मेरु, कैलास और गंधमादन पर्वत हैं।
  • वनवास काल में गंगाद्वार (हरिद्वार) को पार करते हुए पांडवों ने अनेक रमणीक हिमाच्छादित शैल शिखर देखे थे।
  • विशाल बेर वृक्षों से आवृत्त बदरी के दर्शन किए, जो हिमवत की गोद में स्थित हैं।
  • यहाँ से वे गंधमादन पर पहुँचे थे।
  • स्वर्ग से अर्जुन आगमन के अनंतर गंधमादन से लौटकर यहाँ एक माह तक वास किया।[1]

इन्हें भी देखें: बद्री नाथ जी की आरती एवं बद्रीनाथ


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 525 |

  1. महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 36, वनपर्व, अध्याय 40, 47, 90, 115, 141, 156.

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