"भारत का संविधान- संसद": अवतरणों में अंतर
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संघ के लिए एक [[संसद]] होगी, जो [[राष्ट्रपति]] और दो सदनों से मिलकर बनेगी, जिनके नाम [[राज्य सभा]] और [[लोक सभा]] होंगे। | संघ के लिए एक [[संसद]] होगी, जो [[राष्ट्रपति]] और दो सदनों से मिलकर बनेगी, जिनके नाम [[राज्य सभा]] और [[लोक सभा]] होंगे। | ||
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(1)<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 35वाँ|पैंतीसवां संशोधन]]) अधिनियम, 1974 की धारा 3 द्वारा (1-3-1975 से) राज्य सभा पर प्रतिस्थापित।</ref>[<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 36वाँ|छत्तीसवां संशोधन]]) अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) दसवीं अनुसूची के पैरा 4 के उपबंधों के अधीन रहते हुए शब्दों का लोप किया गया।</ref>*** राज्य सभा]- | (1)<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 35वाँ|पैंतीसवां संशोधन]]) अधिनियम, 1974 की धारा 3 द्वारा (1-3-1975 से) राज्य सभा पर प्रतिस्थापित।</ref>[<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 36वाँ|छत्तीसवां संशोधन]]) अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) दसवीं अनुसूची के पैरा 4 के उपबंधों के अधीन रहते हुए शब्दों का लोप किया गया।</ref>*** राज्य सभा]- | ||
*(क) राष्ट्रपति द्वारा खंड (3) के उपबंधों के अनुसार नाम निर्देशित किए जाने वाले बारह सदस्यों, और | *(क) राष्ट्रपति द्वारा खंड (3) के उपबंधों के अनुसार नाम निर्देशित किए जाने वाले बारह सदस्यों, और | ||
*(ख) राज्यों के<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- सातवाँ|सातवां संशोधन]]) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा जोड़ा गया।</ref>[और संघ राज्यक्षेत्रों के] दो सौ अड़तीस से अनधिक प्रतिनिधियों, से मिलकर बनेगी। | *(ख) राज्यों के<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- सातवाँ|सातवां संशोधन]]) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा जोड़ा गया।</ref>[और संघ राज्यक्षेत्रों के] दो सौ अड़तीस से अनधिक प्रतिनिधियों, से मिलकर बनेगी। | ||
(2) राज्य सभा में राज्यों के<ref>संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा जोड़ा गया।</ref>[और संघ राज्यक्षेत्रों के] प्रतिनिधियों द्वारा भरे जाने वाले स्थानों का आबंटन चौथी अनुसूची में इस निमित्त अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार होगा। | (2) राज्य सभा में राज्यों के<ref>संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा जोड़ा गया।</ref>[और संघ राज्यक्षेत्रों के] प्रतिनिधियों द्वारा भरे जाने वाले स्थानों का आबंटन चौथी अनुसूची में इस निमित्त अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार होगा। | ||
(3) राष्ट्रपति द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) के अधीन नामनिर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे | (3) राष्ट्रपति द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) के अधीन नामनिर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें निम्नलिखित विषयों के | ||
संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थात् [[साहित्य]], [[विज्ञान]], [[कला]] और समाज सेवा। | संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थात् [[साहित्य]], [[विज्ञान]], [[कला]] और समाज सेवा। | ||
(4) राज्य सभा में प्रत्येक<ref>संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया।</ref>*** राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा। | (4) राज्य सभा में प्रत्येक<ref>संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया।</ref>*** राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा। | ||
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**(i)राज्यों को लोक सभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित स्थानों के आबंटन का; और | **(i)राज्यों को लोक सभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित स्थानों के आबंटन का; और | ||
**(ii)प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का, जो <ref>संविधान (सतासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित।</ref>2001 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित किए जाएं, पुन: समायोजन आवश्यक नहीं होगा। | **(ii)प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का, जो <ref>संविधान (सतासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित।</ref>2001 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित किए जाएं, पुन: समायोजन आवश्यक नहीं होगा। | ||
;83. संसद के सदनों का अवधि- | |||
*(1) [[राज्य सभा]] का विघटन नहीं होगा, किन्तु उसके सदस्यों में से यथा संभव निकटतम एक-तिहाई सदस्य, [[संसद]] द्वारा विधि द्वारा इस निमित्त किए गए उपबंधों के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवृत्त हो जाएंगे। | |||
*(2) [[लोक सभा]], यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से र्पांच वर्ष<ref>संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 13 द्वारा (20-6-1979 से) छह वर्ष शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान ([[संविधान संशोधन- 42वाँ|बयालीसवां संशोधन]]) अधिनियम, 1976 की धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) पांच वर्ष मूल शब्दों के स्थान पर छह वर्ष शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।</ref> तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं और र्पांच वर्ष<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 44वाँ|चवालीसवां संशोधन]]) अधिनियम, 1978 की धारा 13 द्वारा (20-6-1979 से) छह वर्ष शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) पांच वर्ष मूल शब्दों के स्थान पर छह वर्ष शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।</ref> की उक्त अवधि की समाप्ति का परिणाम लोक सभा का विघटन होगा, परन्तु उक्त अवधि को, जब आपात की उदघोषणा प्रवर्तन में है तब, संसद विधि द्वारा, ऐसी अवधि के लिए बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उदघोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात उसका विस्तार किसी भी दशा में छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा। | |||
;84. संसद की सदस्यता के लिए अर्हता- | |||
कोई व्यक्ति संसद के किसी स्थान को भरने के लिए चुने जाने के लिए अर्हित तभी होगा जब- | |||
*(क) वह [[भारत]] का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूंप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है।<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 16वाँ|सोलहवां संशोधन]]) अधिनियम, 1963 की धारा 3 द्वारा खंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref> | |||
*(ख) वह राज्य सभा में स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का और लोक सभा में स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का है। | |||
*(ग) उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएं हैं, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस निमित्त विहित की जाएं। | |||
;85. संसद के सत्र, सत्रावसान और विघटन- | |||
*(1) राष्ट्रपति समय-समय पर, संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किन्तु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा।<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- पहला|पहला संशोधन]]) अधिनियम, 1951 की धारा 6 द्वारा अनुच्छेद 85 के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref> | |||
*(2) राष्ट्रपति, समय-समय पर- | |||
**(क) सदनों का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा। | |||
**(ख) लोक सभा का विघटन कर सकेगा। | |||
;86. सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्ट्रपति का अधिकार- | |||
*(1) [[राष्ट्रपति]], [[संसद]] के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा। | |||
*(2) राष्ट्रपति, संसद में उस समय लंबित किसी विधेयक के संबंध में संदेश या कोई अन्य संदेश, संसद के किसी सदन को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिए अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा। | |||
;87. राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण- | |||
*(1) राष्ट्रपति, लोक सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र<ref>संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा प्रत्येक सत्र के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref> के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में<ref>संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा प्रत्येक सत्र के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref> एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और संसद को उसके आह्वान के कारण बताएगा। | |||
*(2) प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए (***)<ref>संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा और सदन के अन्य कार्य पर इस चर्चा को अग्रता देने के लिए शब्दों का लोप किया गया।</ref> उपबंध किया जाएगा। | |||
;88. सदनों के बारे में मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार- | |||
प्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवादी को यह अधिकार होगा कि वह किसी भी सदन में, सदनों की किसी संयुक्त बैठक में और संसद की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूंप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा। | |||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''संसद के अधिकारी'''</div> | |||
;89. राज्य सभा का सभापति और उपसभापति- | |||
*(1) [[भारत]] का [[उपराष्ट्रपति]] राज्य सभा का पदेन सभापति होगा। | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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भारत का संविधान भाग-5 अध्याय 2 संसद साधारण
- 79. संसद का गठन-
संघ के लिए एक संसद होगी, जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी, जिनके नाम राज्य सभा और लोक सभा होंगे।
- 80. राज्य सभा की संरचना-
- (क) राष्ट्रपति द्वारा खंड (3) के उपबंधों के अनुसार नाम निर्देशित किए जाने वाले बारह सदस्यों, और
- (ख) राज्यों के[3][और संघ राज्यक्षेत्रों के] दो सौ अड़तीस से अनधिक प्रतिनिधियों, से मिलकर बनेगी।
(2) राज्य सभा में राज्यों के[4][और संघ राज्यक्षेत्रों के] प्रतिनिधियों द्वारा भरे जाने वाले स्थानों का आबंटन चौथी अनुसूची में इस निमित्त अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार होगा।
(3) राष्ट्रपति द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) के अधीन नामनिर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें निम्नलिखित विषयों के
संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थात् साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा।
(4) राज्य सभा में प्रत्येक[5]*** राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा।
(5) राज्य सभा में[6]संघ राज्यक्षेत्रों के प्रतिनिधि ऐसी रीति से चुने जाएंगे जो संसद विधि द्वारा विहित करे।
- 81. लोक सभा की संरचना[7]-
(1) [8]अनुच्छेद 331 के उपबंधों के अधीन रहते हुए[9] लोक सभा-
- (क) राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए [10]र्पांच सौ तीस से अनधिक [11]सदस्यों, और
- (ख) संघ राज्यक्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए ऐसी रीति से, जो संसद विधि द्वारा उपबंधित करे, चुने हुए [12]बीस से अनधिक [13]सदस्यों, से मिलकर बनेगी।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजनों के लिए,-
- (क) प्रत्येक राज्य को लोक सभा में स्थानों का आबंटन ऐसी रीति से किया जाएगा कि स्थानों की संख्या से उस राज्य की जनसंख्या का अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासाध्य एक ही हो, और
- (ख) प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो, [14]परन्तु इस खंड के उपखंड (क) के उपबंध किसी राज्य को लोक सभा में स्थानों के आबंटन के प्रयोजन के लिए तब तक लागू नहीं होंगे, जब तक उस राज्य की जनसंख्या साठ लाख से अधिक नहीं हो जाती है।
(3) इस अनुच्छेद में, "जनसंख्या" पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं। [15]परन्तु इस खंड में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन [16]2026 के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, [17]यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह,-
- (i)खंड (2) के उपखंड (क) और उस खंड के परन्तुक के प्रयोजनों के लिए 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश है ; और
- (ii)खंड (2) के उपखंड (ख) के प्रयोजनों के लिए [18]2001 की जनगणना के प्रतिनिर्देश है।
- (i)खंड (2) के उपखंड (क) और उस खंड के परन्तुक के प्रयोजनों के लिए 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश है ; और
- 82. प्रत्येक जनगणना के पश्चात फिर समायोजन-
प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर राज्यों को लोक सभा में स्थानों के आबंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुन: समायोजन किया जाएगा जो संसद विधि द्वारा अवधारित करे, परन्तु ऐसे पुन: समायोजन से लोक सभा में प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उस समय विद्यमान लोक सभा का विघटन नहीं हो जाता है। [19]परन्तु यह और कि ऐसा पुन: समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे और ऐसे पुन: समायोजन के प्रभावी होने तक लोक सभा के लिए कोई निर्वाचन उन प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पुन: समायोजन के पहले विद्यमान हैं, परन्तु यह और भी कि जब तक सन [20]2026 के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं तब तक [21]इस अनुच्छेद के अधीन,-
- (i)राज्यों को लोक सभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित स्थानों के आबंटन का; और
- (ii)प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का, जो [22]2001 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित किए जाएं, पुन: समायोजन आवश्यक नहीं होगा।
- (i)राज्यों को लोक सभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित स्थानों के आबंटन का; और
- 83. संसद के सदनों का अवधि-
- (1) राज्य सभा का विघटन नहीं होगा, किन्तु उसके सदस्यों में से यथा संभव निकटतम एक-तिहाई सदस्य, संसद द्वारा विधि द्वारा इस निमित्त किए गए उपबंधों के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवृत्त हो जाएंगे।
- (2) लोक सभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से र्पांच वर्ष[23] तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं और र्पांच वर्ष[24] की उक्त अवधि की समाप्ति का परिणाम लोक सभा का विघटन होगा, परन्तु उक्त अवधि को, जब आपात की उदघोषणा प्रवर्तन में है तब, संसद विधि द्वारा, ऐसी अवधि के लिए बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उदघोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात उसका विस्तार किसी भी दशा में छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा।
- 84. संसद की सदस्यता के लिए अर्हता-
कोई व्यक्ति संसद के किसी स्थान को भरने के लिए चुने जाने के लिए अर्हित तभी होगा जब-
- (क) वह भारत का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूंप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है।[25]
- (ख) वह राज्य सभा में स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का और लोक सभा में स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का है।
- (ग) उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएं हैं, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस निमित्त विहित की जाएं।
- 85. संसद के सत्र, सत्रावसान और विघटन-
- (1) राष्ट्रपति समय-समय पर, संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किन्तु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा।[26]
- (2) राष्ट्रपति, समय-समय पर-
- (क) सदनों का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा।
- (ख) लोक सभा का विघटन कर सकेगा।
- (क) सदनों का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा।
- 86. सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्ट्रपति का अधिकार-
- (1) राष्ट्रपति, संसद के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा।
- (2) राष्ट्रपति, संसद में उस समय लंबित किसी विधेयक के संबंध में संदेश या कोई अन्य संदेश, संसद के किसी सदन को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिए अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा।
- 87. राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण-
- (1) राष्ट्रपति, लोक सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र[27] के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में[28] एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और संसद को उसके आह्वान के कारण बताएगा।
- (2) प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए (***)[29] उपबंध किया जाएगा।
- 88. सदनों के बारे में मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार-
प्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवादी को यह अधिकार होगा कि वह किसी भी सदन में, सदनों की किसी संयुक्त बैठक में और संसद की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूंप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा।
- 89. राज्य सभा का सभापति और उपसभापति-
- (1) भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संविधान (पैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 3 द्वारा (1-3-1975 से) राज्य सभा पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) दसवीं अनुसूची के पैरा 4 के उपबंधों के अधीन रहते हुए शब्दों का लोप किया गया।
- ↑ संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा जोड़ा गया।
- ↑ संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा जोड़ा गया।
- ↑ संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया।
- ↑ संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा पहली अनुसूची के भाग ग में विनिर्दिष्ट राज्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 4 द्वारा अनुच्छेद 81 और 82 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (पैंतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 4 द्वारा (1-3-1975 से) "अनुच्छेद 331 के उपबंधों के अधीन रहते हुए" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) "और दसवीं अनुसूची के पैरा 4" शब्दों और अक्षरों का लोप किया जाएगा
- ↑ गोवा, दमन एवं दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) "पांच सौ पच्चीस" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ गोवा, दमन एवं दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) "पांच सौ पच्चीस" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (इकतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 2 द्वारा "पच्चीस सदस्यों" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (इकतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 2 द्वारा "पच्चीस सदस्यों" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (इकतीसवां संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित।
- ↑ संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 15 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित।
- ↑ संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 3 द्वारा (21-2-2002 से) प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (सतासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 16 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित।
- ↑ संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 4 द्वारा कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 4 द्वारा कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 16 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित।
- ↑ संविधान (सतासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 13 द्वारा (20-6-1979 से) छह वर्ष शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) पांच वर्ष मूल शब्दों के स्थान पर छह वर्ष शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।
- ↑ संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 13 द्वारा (20-6-1979 से) छह वर्ष शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) पांच वर्ष मूल शब्दों के स्थान पर छह वर्ष शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।
- ↑ संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 3 द्वारा खंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 6 द्वारा अनुच्छेद 85 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा प्रत्येक सत्र के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा प्रत्येक सत्र के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा और सदन के अन्य कार्य पर इस चर्चा को अग्रता देने के लिए शब्दों का लोप किया गया।
बाहरी कड़ियाँ
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