"करवीर": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=करवीर |लेख का नाम=करवीर (बहुविकल्पी)}} | {{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=करवीर |लेख का नाम=करवीर (बहुविकल्पी)}} | ||
करवीर | '''करवीर''' [[कोल्हापुर]] ([[महाराष्ट्र]]) का प्राचीन पौराणिक नाम था। इसे काराष्ट्र के अंतर्गत माना गया है। करवीर क्षेत्र को [[पुराण|पुराणों]] तथा [[महाभारत]] में पुण्यस्थली कहा है- | ||
<poem>' | <poem>'क्षेत्रं वै करवीराख्यं क्षेत्रं लक्ष्मीविनिर्मितम्' [[स्कंद पुराण]],<ref>सह्यादि. उत्तरार्ध 2,25</ref> | ||
करवीरपुरे स्नात्वा विशालायां कृतोदक: देवहृदमुपस्पृश्य ब्रह्मभूतो विराजते।'<ref>[[अनुशासन पर्व महाभारत]] 25,44</ref></poem> | |||
==पौराणिक संदर्भ== | |||
'करवीर क्षेत्र माहात्म्य' तथा 'लक्ष्मी विजय' के अनुसार कौलासुर दैत्य को वर प्राप्त था कि वह स्त्री द्वारा ही मारा जा सकेगा, अतः [[विष्णु]] स्वयं [[महालक्ष्मी]] रूप में प्रकटे और सिंहारूढ़ होकर करवीर में ही उसको युद्ध में परास्त कर संहार किया। मृत्युपूर्व उसने देवी से वर याचना की कि उस क्षेत्र को उसका नाम मिले। देवी ने वर दे दिया और वहीं स्वयं भी स्थित हो गईं, तब इसे 'करवीर क्षेत्र' कहा जाने लगा, जो कालांतर में 'कोल्हापुर' हो गया। माँ को कोलासुरा मर्दिनी कहा जाने लगा। पद्मपुराणानुसार यह क्षेत्र 108 कल्प प्राचीन है एवं इसे महामातृका कहा गया है, क्योंकि यह आद्याशक्ति का मुख्य पीठस्थान है। | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
पंक्ति 11: | पंक्ति 12: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{ | {{महाराष्ट्र के ऐतिहासिक स्थान}} | ||
[[Category: | [[Category:महाभारत]] | ||
[[Category: | [[Category:महाराष्ट्र]] | ||
[[Category:महाराष्ट्र के ऐतिहासिक स्थान]] | |||
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]] | [[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]] | ||
[[Category: | [[Category:पौराणिक कोश]] | ||
[[Category:पौराणिक स्थान]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
09:48, 17 अप्रैल 2012 का अवतरण
करवीर | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- करवीर (बहुविकल्पी) |
करवीर कोल्हापुर (महाराष्ट्र) का प्राचीन पौराणिक नाम था। इसे काराष्ट्र के अंतर्गत माना गया है। करवीर क्षेत्र को पुराणों तथा महाभारत में पुण्यस्थली कहा है-
'क्षेत्रं वै करवीराख्यं क्षेत्रं लक्ष्मीविनिर्मितम्' स्कंद पुराण,[1]
करवीरपुरे स्नात्वा विशालायां कृतोदक: देवहृदमुपस्पृश्य ब्रह्मभूतो विराजते।'[2]
पौराणिक संदर्भ
'करवीर क्षेत्र माहात्म्य' तथा 'लक्ष्मी विजय' के अनुसार कौलासुर दैत्य को वर प्राप्त था कि वह स्त्री द्वारा ही मारा जा सकेगा, अतः विष्णु स्वयं महालक्ष्मी रूप में प्रकटे और सिंहारूढ़ होकर करवीर में ही उसको युद्ध में परास्त कर संहार किया। मृत्युपूर्व उसने देवी से वर याचना की कि उस क्षेत्र को उसका नाम मिले। देवी ने वर दे दिया और वहीं स्वयं भी स्थित हो गईं, तब इसे 'करवीर क्षेत्र' कहा जाने लगा, जो कालांतर में 'कोल्हापुर' हो गया। माँ को कोलासुरा मर्दिनी कहा जाने लगा। पद्मपुराणानुसार यह क्षेत्र 108 कल्प प्राचीन है एवं इसे महामातृका कहा गया है, क्योंकि यह आद्याशक्ति का मुख्य पीठस्थान है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सह्यादि. उत्तरार्ध 2,25
- ↑ अनुशासन पर्व महाभारत 25,44
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख