"मालवा (आज़ादी से पूर्व)": अवतरणों में अंतर

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हुशंगशाह ने अपनी राजधानी को धार से [[मांडू]] को स्थानान्तरित की। धर्मनिरपेक्ष नीति का पालन करते हुए उसने प्रशासन में अनेक [[राजपूत|राजपूतों]] को शामिल किया| नरदेव सोनी ([[जैन धर्म|जैन]]) हुसंगशाह के प्रशासन में ख़ज़ांची था। उसके समय में ‘ललितपुर मंदिर’ का निर्माण किया। हुशंगशाह महान विद्वान और रहस्यवादी सूफ़ी सन्त शेख़ बुरहानुद्दीन का शिष्य था। 1435 ई. में अलप ख़ाँ की मृत्यु के बाद उरका पुत्र गजनी ख़ाँ मुहम्मदशाह की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा। उसकी अयोग्यता के कारण इसके वज़ीर महमूद ख़ाँ ने उसे अपदस्थ कर ‘महमूदशाह’ की उपाधि धारण कर और गद्दी पर बैठा।
हुशंगशाह ने अपनी राजधानी को धार से [[मांडू]] को स्थानान्तरित की। धर्मनिरपेक्ष नीति का पालन करते हुए उसने प्रशासन में अनेक [[राजपूत|राजपूतों]] को शामिल किया| नरदेव सोनी ([[जैन धर्म|जैन]]) हुसंगशाह के प्रशासन में ख़ज़ांची था। उसके समय में ‘ललितपुर मंदिर’ का निर्माण किया। हुशंगशाह महान विद्वान और रहस्यवादी सूफ़ी सन्त शेख़ बुरहानुद्दीन का शिष्य था। 1435 ई. में अलप ख़ाँ की मृत्यु के बाद उरका पुत्र गजनी ख़ाँ मुहम्मदशाह की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा। उसकी अयोग्यता के कारण इसके वज़ीर महमूद ख़ाँ ने उसे अपदस्थ कर ‘महमूदशाह’ की उपाधि धारण कर और गद्दी पर बैठा।
====महमूद ख़िलजी (1436-1468 ई.)====
====महमूद ख़िलजी (1436-1468 ई.)====
महूदशाह ख़िलजी ने 1436 ई. में मालवा में [[ख़िलजी वंश]] की नींव डाली। महमूदशाह एक पराक्रामी शासक था, उसने [[मेवाड़]] के राणा कुम्भा के विरूद्ध अभियान में सफलता का दावा किया तथा मांडु में सात मंज़िला '''विजयस्तम्भ''' का निर्माण करवाया। दूसरी तरफ़ राणा कुम्भा ने अपनी विजय का दावा करते हुए विजय की स्मृति में [[चित्तौड़]] में विजयस्तम्भ का निर्माण करवाया। महमूदशाह ने मांडू में सात मंजिलो वाले महल का निर्माण करवाया। निसन्देह महमूद ख़िलजी मालवा के मुस्लिम शासको में सबसे योग्य था। [[मिस्र]] के ख़लीफ़ा ने उसका पद स्वीकार किया। महमूद ख़िलजी ने सुल्तान अबू सईद के यहाँ से आये एक दूतमंडल का स्वागत किया। [[फ़रिश्ता (यात्री)|फ़रिश्ता]] उसके गुणो की प्रशंसा करते हुए उसे न्यायी एवं प्रजाप्रिय सम्राट बताता है। कोई भी ऐसा [[वर्ष]] नहीं बीतता था, जिसमें वह युद्ध नहीं करता रहा हो। फलस्वरूप उसका ख़ैमा उसका घर बन गया तथा युद्धक्षेत्र उसका विश्राम स्थल। उसने व्यापार [[वाणिज्य]] की उन्नति के लिए जैन पूँजीपतियों को संरक्षण दिया। माण्डू में एक चिकित्सालय तथा एक आवासीय विद्यालय बनवाया। उसने अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार दक्षिड़ में [[सतपुड़ा पर्वतश्रेणी|सतपुड़ा]], पश्चिम में [[गुजरात]] की सीमाओं, पूरब में [[बुंदेलखण्ड]] और उत्तर में [[मेवाड़]] एवं [[बूँदी]] तक विस्तृत किया। 1469 में महमूदशाह की मृत्यु हो गयी।
महूदशाह ख़िलजी ने 1436 ई. में मालवा में [[ख़िलजी वंश]] की नींव डाली। महमूदशाह एक पराक्रामी शासक था, उसने [[मेवाड़]] के [[राणा कुम्भा]] के विरूद्ध अभियान में सफलता का दावा किया तथा मांडु में सात मंज़िला '''विजयस्तम्भ''' का निर्माण करवाया। दूसरी तरफ़ राणा कुम्भा ने अपनी विजय का दावा करते हुए विजय की स्मृति में [[चित्तौड़]] में विजयस्तम्भ का निर्माण करवाया। महमूदशाह ने मांडू में सात मंजिलो वाले महल का निर्माण करवाया। निसन्देह महमूद ख़िलजी मालवा के मुस्लिम शासको में सबसे योग्य था। [[मिस्र]] के ख़लीफ़ा ने उसका पद स्वीकार किया। महमूद ख़िलजी ने सुल्तान अबू सईद के यहाँ से आये एक दूतमंडल का स्वागत किया। [[फ़रिश्ता (यात्री)|फ़रिश्ता]] उसके गुणो की प्रशंसा करते हुए उसे न्यायी एवं प्रजाप्रिय सम्राट बताता है। कोई भी ऐसा [[वर्ष]] नहीं बीतता था, जिसमें वह युद्ध नहीं करता रहा हो। फलस्वरूप उसका ख़ैमा उसका घर बन गया तथा युद्धक्षेत्र उसका विश्राम स्थल। उसने व्यापार [[वाणिज्य]] की उन्नति के लिए जैन पूँजीपतियों को संरक्षण दिया। माण्डू में एक चिकित्सालय तथा एक आवासीय विद्यालय बनवाया। उसने अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार दक्षिड़ में [[सतपुड़ा पर्वतश्रेणी|सतपुड़ा]], पश्चिम में [[गुजरात]] की सीमाओं, पूरब में [[बुंदेलखण्ड]] और उत्तर में [[मेवाड़]] एवं [[बूँदी]] तक विस्तृत किया। 1469 में महमूदशाह की मृत्यु हो गयी।
====ग़यासुद्दीन (1469-1500 ई.)====
====ग़यासुद्दीन (1469-1500 ई.)====
1469 ई. में महमूदशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ग़यासुद्दीन गद्दी पर बैठा। 1500 ई. के लगभग ग़यासुद्दीन को उसके पुत्र ने ज़हर देकर मार दिया।
1469 ई. में महमूदशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ग़यासुद्दीन गद्दी पर बैठा। 1500 ई. के लगभग ग़यासुद्दीन को उसके पुत्र ने ज़हर देकर मार दिया।

07:07, 18 अप्रैल 2012 का अवतरण

मालवा को 1310 ई. में अलाउद्दीन ने अपने अधिकार में कर लिया था। फ़िरोज़शाह तुग़लक़ के समय में लगभग 1390 ई. में दिलावर ख़ाँ मालवा का सूबेदार बनाया गया। 1401 ई. में मालवा को स्वतंत्र घोषित कर वह वहाँ का स्वाधीन शासक बना। उसने धार को अपनी राजधानी बनाया। उसने सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। 1405 ई. में दिलावर ख़ाँ की मृत्यु एवं तैमूर के भारत से वापस चले जाने पर दिलावर ख़ाँ का पुत्र ‘अलप ख़ाँ’ हुशंगशाह की उपाधि धारण कर 1405 ई. में मालवा का सुल्तान बना।

हुशंगशाह (1408-1468 ई.)

हुशंगशाह ने अपनी राजधानी को धार से मांडू को स्थानान्तरित की। धर्मनिरपेक्ष नीति का पालन करते हुए उसने प्रशासन में अनेक राजपूतों को शामिल किया| नरदेव सोनी (जैन) हुसंगशाह के प्रशासन में ख़ज़ांची था। उसके समय में ‘ललितपुर मंदिर’ का निर्माण किया। हुशंगशाह महान विद्वान और रहस्यवादी सूफ़ी सन्त शेख़ बुरहानुद्दीन का शिष्य था। 1435 ई. में अलप ख़ाँ की मृत्यु के बाद उरका पुत्र गजनी ख़ाँ मुहम्मदशाह की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा। उसकी अयोग्यता के कारण इसके वज़ीर महमूद ख़ाँ ने उसे अपदस्थ कर ‘महमूदशाह’ की उपाधि धारण कर और गद्दी पर बैठा।

महमूद ख़िलजी (1436-1468 ई.)

महूदशाह ख़िलजी ने 1436 ई. में मालवा में ख़िलजी वंश की नींव डाली। महमूदशाह एक पराक्रामी शासक था, उसने मेवाड़ के राणा कुम्भा के विरूद्ध अभियान में सफलता का दावा किया तथा मांडु में सात मंज़िला विजयस्तम्भ का निर्माण करवाया। दूसरी तरफ़ राणा कुम्भा ने अपनी विजय का दावा करते हुए विजय की स्मृति में चित्तौड़ में विजयस्तम्भ का निर्माण करवाया। महमूदशाह ने मांडू में सात मंजिलो वाले महल का निर्माण करवाया। निसन्देह महमूद ख़िलजी मालवा के मुस्लिम शासको में सबसे योग्य था। मिस्र के ख़लीफ़ा ने उसका पद स्वीकार किया। महमूद ख़िलजी ने सुल्तान अबू सईद के यहाँ से आये एक दूतमंडल का स्वागत किया। फ़रिश्ता उसके गुणो की प्रशंसा करते हुए उसे न्यायी एवं प्रजाप्रिय सम्राट बताता है। कोई भी ऐसा वर्ष नहीं बीतता था, जिसमें वह युद्ध नहीं करता रहा हो। फलस्वरूप उसका ख़ैमा उसका घर बन गया तथा युद्धक्षेत्र उसका विश्राम स्थल। उसने व्यापार वाणिज्य की उन्नति के लिए जैन पूँजीपतियों को संरक्षण दिया। माण्डू में एक चिकित्सालय तथा एक आवासीय विद्यालय बनवाया। उसने अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार दक्षिड़ में सतपुड़ा, पश्चिम में गुजरात की सीमाओं, पूरब में बुंदेलखण्ड और उत्तर में मेवाड़ एवं बूँदी तक विस्तृत किया। 1469 में महमूदशाह की मृत्यु हो गयी।

ग़यासुद्दीन (1469-1500 ई.)

1469 ई. में महमूदशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ग़यासुद्दीन गद्दी पर बैठा। 1500 ई. के लगभग ग़यासुद्दीन को उसके पुत्र ने ज़हर देकर मार दिया।

अब्दुल कादिर नासिरुद्दीनशाह (1500-1510 ई.)

ग़यासुद्दीन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अब्दुल कादिर नासिरुद्दीनशाह की उपाधि धारण कर मालवा की गद्दी पर बैठा। बुख़ार के कारण 1512 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद इस वंश का अन्तिम शासक 'आजम हुमायूँ', महमूदशाह द्वितीय की उपाधि ग्रहण कर सिंहासन पर बैठा। उसने अमीरों के षडयंत्र से बचने के लिए चन्देरी के राजपूशात सक मेदनी राय को अपना वज़ीर नियुक्त किया। गुजरात के बहादुरशाह ने महमूदशाह द्वितीय को युद्ध में परास्त कर उसकी हत्या कर दी। इसी के साथ 1531 ई. में मालवा का गुजरात में विलय हो गया। अन्तिम रूप से मालवा को मुग़लों ने बाजबहादुर से जीत लिया।

स्थापत्य कला में योगदान

मालवा पर मुस्लिम शासकों के अधिकार के बाद एक महत्त्वपूर्ण स्थापत्य शैली का जन्म हुआ, जो दिल्ली वास्तुकला से प्रेरित थी। यहाँ पर निर्मित इमारतों में दिल्ली के कारीगरों का उपयोग किया गया था। मालवा वास्तुकला शैली में उनकी ढालदार दीवारें, नुकीले मेहराब, मेहराबों में लिंटर व तोड़ों का प्रयोग (तुग़लक़ परम्परा), गुम्बद व पिरामिड के आकार की छत (लोदी शैली से प्रभावित), ऊँची चौकियों पर निर्मित इमारतें एवं उनके प्रवेश द्वार तक पहुँचने के लिए बनाई गई सीढ़ियों की साज-सज्जा में विभिन्न प्रकार के रंग प्रयोग की बहुलता आदि इसकी विशेषता है। रंग-बिरंगे पत्थर, संगमरमर एवं टाइलों के प्रयोग से यहाँ की इमारतें अधिक आकर्षक बन गई हैं। मालवा शैली के अन्तर्गत निर्मित अधिकांश इमारतों का केन्द्र बिन्दु मांडू एवं धार है। मार्शल के अनुसार, ‘मांडू की इमारतें वास्तव में जानदार एवं उद्देश्यपूर्ण हैं और जिन इमारतों से उन्होंने प्रेरणा ग्रहण की है, उन्हीं की तरह रचनात्मक प्रतिभा से परिपूर्ण हैं। उनकी अपनी मौलिकता के कारण उनकी रचना और सजावट की अपनी विशेषता, उनके विभिन्न अंगो का सुन्दर अनुपात अथवा अन्य बारीक काम हैं, जिनका निरूपण करना लाट मस्जिद, दिलावर ख़ाँ मस्जिद एवं मलिक मुगीस मस्जिद आदि कुछ ऐसे निर्माण कार्य हैं। जिनका निर्माण नष्ट किये गये हिन्दू मंदिरो के अवशेषों से किया गया है और जिसमें हिन्दू प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। कमाल मौला मस्जिद का निर्माण धार में 1405 ई. में किया गया। दिलावर ख़ाँ मस्जिद का निर्माण मांडू में 1405 ई. में किया गया। मलिक मुगीस की मस्जिद का निर्माण मांडू में 1442 ई. में किया गया। 150 फुट लम्बी एवं 132 फुट चौड़ी यह मस्जिद एक ऊँचे चबूतरे पर बनाई गई है। इस मस्जिद के विषय में पर्सी ब्राउन का कहना है कि, ‘यह प्रमुख मस्जिद इस युग की भव्य एवं अपने आकार की अद्दभुत रचना है।’

  • मांडू का क़िला- हुशंगशाह द्वारा निर्मित मांडू के क़िले की सर्वाधिक आकर्षक इमारत जामी मस्जिद एवं अशरफ़ी महल है। जामी मस्जिद का निर्माण कार्य 1454 ई. में हुशंगशाह द्वारा प्रारंभ किया गया, किन्तु इसको पूरा कराने का श्रेय महमूद ख़िलजी को है। अशरफ़ी महल का निर्माण 1439-1469 ई. के मध्य महमूद ख़िलजी के द्वारा किया गया। क़िलें में प्रवेश के लिए गया द्वार मेहराबदार है, जिनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण दिल्ली दरवाज़ा है। वर्गाकार आकार में बनी मस्जिद की एक भुजा 288 फुट की है। मस्जिद के सामने निर्मित अशरफ़ी महल का निर्माण 1439-1469 ई. के मध्य महमूद ख़िलजी ने कराया था। अशरफ़ी महल में निर्मित कई इमारतों में हुशंगशाह द्वारा निर्मित एक मदरसा भी है।
  • बाज बहादुर एवं रूपमती का महल- इस इमारत का निर्माण सुल्तान नासिरुद्दीन शाह द्वारा 1508-1509 ई. में करवाया गया। यह महल पहाड़ी के ऊपर निर्मित है। इसमें कलात्मकता का अभाव है, दूसरी ओर रूपमती का महल पहाड़ी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। इस महल की छत पर बांसुरीदार गुम्बदों से युक्त खुले मण्डपों का निर्माण रानी रूपमती के निरीक्षण में हुआ था।
  • हुशंगबाद का मक़बरा- जामी मस्जिद के पीछे बने हुशंगशाह के मक़बरे का निर्माण कार्य 1440 ई. में महमूद प्रथम ने पूर्ण कराया। मक़बरे के मेहराबदार प्रवेश मार्ग के दोनो तरफ़ छोटी-छोटी जालीदार पर्देवाली खिड़कियाँ बनी हैं। मक़बरे के ऊपर भद्दा एवं निर्जीव गुम्बद बना है।
  • हिंडोला महल- ‘दरबार हाल’ के नाम से भी जाना जाने वाला यह महल 1425 ई. में ‘हुशंगशाह’ द्वारा बनवाया गया। पर्सी ब्राउन ने उसकी प्रशंसा में कहा है कि, ‘भारत की कुछ इमारतें इस आश्चर्यजनक इमारत से अधिक सुन्दर व रचना में अधिक ठोस लगती हैं। इमारत का आकार अंग्रेज़ी के अक्षर 'आई' के समान है, जिसमें नीचे के भाग में मुख्य हाल है एवं दो मंजिले कमरों की कतार उसकी ऊपर की काटने वाली रेखा है।’ अपने बारीक एवं स्वच्छ निर्माण के कारण यह महल अत्यधिक आकर्षक लगता है।
  • जहाज़ महल- ग़यासुद्दीन ख़िलजी के समय में निर्मित यह महल मांडू में स्थित है। यह महल कपूर तालाब एवं मुंजे तालाब के मध्य में स्थित है। तालाब के जल में यह महल जहाज़ की तरह दिखाई देता है। यह जहाज़ महल अपनी मेहराबी दीवारों, छाये हुए मण्डपों एवं सुन्दर तालाबों के कारण मांडू की सुन्दर इमारतों में स्थान रखता है। डॉ.. राधा कुमुद मुखर्जी ने जहाज़ महल एवं हिंडोला महल की प्रशंसा में लिखा है कि, ‘मांडू के हिंडोला महल, जहाज़ महल मध्ययुगीन भारतीय वास्तुकला के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। इनमें इस्लामी प्रभावजन्य संरचनात्मक आधार की भव्यता अति विशालता तथा हिन्दू अलंकरण की सुन्दरता, परिष्कृति व सुक्ष्मता का विवेकपूर्ण समन्वय है।’
  • कुश्क महल- महमूद ख़िलजी प्रथम द्वारा 1445 ई. में निर्मित यह महल चन्देरी के फ़तेहाबाद नामक स्थान पर स्थित है। यह महल सात मंजिलों का है। इसके अतिरिक्त चन्देरी में भी जामी मस्जिद नामक मस्जिद का निर्माण किया गया था।


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