"भारत का संविधान- राज्य विधानमंडल": अवतरणों में अंतर
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*(2) खंड (1) में विनिर्दिष्ट किसी विधि में इस संविधान के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे, जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध भी अंतर्विष्ट हो सकेंगे, जिन्हें संसद आवश्यक समझे। | *(2) खंड (1) में विनिर्दिष्ट किसी विधि में इस संविधान के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे, जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध भी अंतर्विष्ट हो सकेंगे, जिन्हें संसद आवश्यक समझे। | ||
*(3) पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी। | *(3) पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी। | ||
;170. विधान सभाओं की संरचना- | |||
*(1) अनुच्छेद 333 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक राज्य की विधान सभा उस राज्य में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए पांच सौ से अनधिक और साठ से अन्यून सदस्यों से मिलकर बनेगी। | |||
*(2) खंड (1) के प्रयोजनों के लिए, प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो।<ref>संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 9 द्वारा अनुच्छेद 170 के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref> | |||
;स्पष्टीकरण<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 42वाँ|बयालीसवाँ संशोधन]]) अधिनियम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) स्पष्टीकरण के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref>- | |||
इस खंड में "जनसंख्या" पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं, परंतु इस स्पष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन 2026<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 84वाँ|चौरासीवाँ संशोधन]]) अधिनियम, 2001 की धारा 5 द्वारा प्रतिस्थापित।</ref> के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह 2001<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 84वाँ|चौरासीवाँ संशोधन]]) अधिनियम, 2001 की धारा 5 द्वारा प्रतिस्थापित।</ref> <ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 87वाँ|सतासीवाँ संशोधन]]) अधिनियम, 2003 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित।</ref> की जनगणना के प्रतिनिर्देश है। | |||
*(3) प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर प्रत्येक राज्य की विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुन:समायोजन किया जाएगा जो [[संसद]] विधि द्वारा अवधारित करे, परंतु ऐसे पुन: समायोजन से विधान सभा में प्रतिनिधित्व पद पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जब तक उस समय विद्यमान विधान सभा का विघटन नहीं हो जाता है, <ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 42वाँ|बयालीसवाँ संशोधन]]) अधिनियम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित।</ref>परंतु यह और कि ऐसा पुन: समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा, जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे और ऐसे पुन: समायोजन के प्रभावी होने तक विधान सभा के लिए कोई निर्वाचन उन प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा, जो ऐसे पुन: समायोजन के पहले विद्यमान हैं, परंतु यह और भी कि जब तक सन 2026<ref>संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम 2001 की धारा 5 द्वारा क्रमश: अंकों और शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref> के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, तब तक इस खंड के अधीन,- | |||
(i) प्रत्येक राज्य की विधान सभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित स्थानों की कुल संख्या का, और | |||
(ii) ऐसे राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का, जो 2001<ref>संविधान (सतासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित।</ref> की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित किए जाएं, पुन: समायोजन आवश्यक नहीं होगा।<ref>संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम 2001 की धारा 5 द्वारा क्रमश: अंकों और शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref> | |||
;171. विधान परिषदों की संरचना- | |||
*(1) विधान परिषद वाले राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक-तिहाई<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- सातवाँ|सातवाँ संशोधन]]) अधिनियम, 1956 की धारा 10 द्वारा "एक चौथाई" के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref> से अधिक नहीं होगी, परंतु किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या किसी भी दशा में चालीस से कम नहीं होगी। | |||
*(2) जब तक [[संसद]] विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे, तब तक किसी राज्य की विधान परिषद की संरचना खंड (3) में उपबंधित रीति से होगी। | |||
*(3) किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या का- | |||
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13:34, 7 मई 2012 का अवतरण
साधारण
- 168. राज्यों के विधान-मंडलों का गठन-
- (1) प्रत्येक राज्य के लिए एक विधान-मंडल होगा, जो राज्यपाल और-
- (2) जहाँ किसी राज्य के विधान-मंडल के दो सदन हैं, वहाँ एक का नाम विधान परिषद और दूसरे का नाम विधान सभा होगा और जहाँ केवल एक सदन है, वहाँ उसका नाम विधान सभा होगा।
- 169. राज्यों में विधान परिषदों का उत्सादन या सृजन-
- (1) अनुच्छेद 168 में किसी बात के होते हुए भी संसद विधि द्वारा किसी विधान परिषद वाले राज्य में विधान परिषद के उत्सादन के लिए या ऐसे राज्य में, जिसमें विधान परिषद नहीं है, विधान परिषद के सृजन के लिए उपबंध कर सकेगी, यदि उस राज्य की विधान सभा ने इस आशय का संकल्प विधान सभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया है।
- (2) खंड (1) में विनिर्दिष्ट किसी विधि में इस संविधान के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे, जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध भी अंतर्विष्ट हो सकेंगे, जिन्हें संसद आवश्यक समझे।
- (3) पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी।
- 170. विधान सभाओं की संरचना-
- (1) अनुच्छेद 333 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक राज्य की विधान सभा उस राज्य में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए पांच सौ से अनधिक और साठ से अन्यून सदस्यों से मिलकर बनेगी।
- (2) खंड (1) के प्रयोजनों के लिए, प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो।[9]
- स्पष्टीकरण[10]-
इस खंड में "जनसंख्या" पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं, परंतु इस स्पष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन 2026[11] के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह 2001[12] [13] की जनगणना के प्रतिनिर्देश है।
- (3) प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर प्रत्येक राज्य की विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुन:समायोजन किया जाएगा जो संसद विधि द्वारा अवधारित करे, परंतु ऐसे पुन: समायोजन से विधान सभा में प्रतिनिधित्व पद पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जब तक उस समय विद्यमान विधान सभा का विघटन नहीं हो जाता है, [14]परंतु यह और कि ऐसा पुन: समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा, जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे और ऐसे पुन: समायोजन के प्रभावी होने तक विधान सभा के लिए कोई निर्वाचन उन प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा, जो ऐसे पुन: समायोजन के पहले विद्यमान हैं, परंतु यह और भी कि जब तक सन 2026[15] के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, तब तक इस खंड के अधीन,-
(i) प्रत्येक राज्य की विधान सभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित स्थानों की कुल संख्या का, और
(ii) ऐसे राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का, जो 2001[16] की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित किए जाएं, पुन: समायोजन आवश्यक नहीं होगा।[17]
- 171. विधान परिषदों की संरचना-
- (1) विधान परिषद वाले राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक-तिहाई[18] से अधिक नहीं होगी, परंतु किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या किसी भी दशा में चालीस से कम नहीं होगी।
- (2) जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे, तब तक किसी राज्य की विधान परिषद की संरचना खंड (3) में उपबंधित रीति से होगी।
- (3) किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या का-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ "आंध्र प्रदेश" शब्दों का आंध्र प्रदेश विधान परिषद (उत्सादन) अधिनियम, 1985 (1985 का 34) की धारा 4 द्वारा (1-6-1985 से) लोप किया गया।
- ↑ मुंबई पुनर्गठन अधिनियम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से)" मुंबई" शब्द का लोप किया गया।
- ↑ इस उपख्रंड में "मध्य प्रदेश" शब्दों के अंत:स्थापन के लिए संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 8(2) के अधीन कोई तारीख नियत नहीं की गई है।
- ↑ तमिलनाडु विधान परिषद (उत्सादन) अधिनियम, 1986 (1986 का 40) की धारा 4 द्वारा (1-11-1986 से) "तमिलनाडु" शब्द का लोप किया गया।
- ↑ मुबंई पुनर्गठन अधिनियम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से ) अंत:स्थापित।
- ↑ मैसूर राज्य (नाम-परिवर्तन) अधिनियम, 1973 (1973 का 31) की धारा 4 द्वारा (1-11-1973 से) "मैसूर" के स्थान पर प्रतिस्थापित, जिसे संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 8(1) द्वारा अंत:स्थापित किया गया था।
- ↑ पंजाब विधान परिषद (उत्सादन) अधिनियम, 1969 (1969 का 46) की धारा 4 द्वारा (7-1-1970 से) "पंजाब" शब्द का लोप किया गया।
- ↑ पश्चिमी बंगाल विधान परिषद (उत्सादन) अधिनियम, 1969 (1969 का 20) की धारा 4 द्वारा (1-8-1969 से) "उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 9 द्वारा अनुच्छेद 170 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) स्पष्टीकरण के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 5 द्वारा प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 5 द्वारा प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (सतासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित।
- ↑ संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम 2001 की धारा 5 द्वारा क्रमश: अंकों और शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (सतासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम 2001 की धारा 5 द्वारा क्रमश: अंकों और शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- ↑ संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 10 द्वारा "एक चौथाई" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
बाहरी कड़ियाँ
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