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कोई व्यक्ति किसी राज्य में विधान-मंडल के किसी स्थान को भरने के लिए चुने जाने के लिए अर्हित तभी होगा जब-
कोई व्यक्ति किसी राज्य में विधान-मंडल के किसी स्थान को भरने के लिए चुने जाने के लिए अर्हित तभी होगा जब-
*(क) वह भारत का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है।<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 16वाँ|सोलहवाँ संशोधन]]) अधिनियम, 1963 की धारा 4 द्वारा खंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref>
*(क) वह भारत का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है।<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 16वाँ|सोलहवाँ संशोधन]]) अधिनियम, 1963 की धारा 4 द्वारा खंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref>
*(ख) वह विधान सभा के स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का और विधान परिषद के स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का है और  
*(ख) वह विधान सभा के स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का और विधान परिषद के स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का है।
 
*(ग) उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएँ हैं, जो इस निमित्त संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाएँ।
;174. राज्य के विधान-मंडल के सत्र, सत्रावसान और विघटन<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- पहला|पहला संशोधन]]) अधिनियम, 1951 की धारा 8 द्वारा अनुच्छेद 174 के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref>-
*(1) [[राज्यपाल]] समय-समय पर राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किंतु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा।
*(2) राज्यपाल समय-समय पर-
**(क) सदन का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा।
**(ख) विधान सभा का विघटन कर सकेगा।
;175. सदन या सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधिकार-
*(1) राज्यपाल विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में उस राज्य के विधान-मंडल के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में, अभिभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा।
*(2) राज्यपाल, राज्य के विधान-मंडल में उस समय लंबित किसी विधेयक के संबंध में संदेश या कोई अन्य संदेश, उस राज्य के विधान-मंडल के सदन या सदनों को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है, वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिए अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा।
;176. राज्यपाल का विशेष अभिभाषण-
*(1) राज्यपाल, विधान सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में<ref>संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 9 द्वारा "प्रत्येक सत्र" के स्थान पर प्रतिस्थापित।</ref> विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और विधान-मंडल को उसके आह्वान के कारण बताएगा।
*(2) सदन या प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विष्यों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए (***)<ref>संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 9 द्वारा "तथा सदन के अन्य कार्य पर इस चर्चा को अग्रता देने के लिए" शब्दों का लोप किया गया।</ref> उपबंध किया जाएगा।
;177. सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार-
प्रत्येक मंत्री और राज्य के महाधिवक्ता को यह अधिकार होगा कि वह उस राज्य की विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में दोनों सदनों में बोले और उनकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले और विधान-मंडल की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूंप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा।
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13:27, 8 मई 2012 का अवतरण

साधारण

168. राज्यों के विधान-मंडलों का गठन-
  • (1) प्रत्येक राज्य के लिए एक विधान-मंडल होगा, जो राज्यपाल और-
    • (क) (***)[1] बिहार, (***)[2] (***)[3]-[4] महाराष्ट्र[5], कर्नाटक[6] (***)[7] और उत्तर प्रदेश[8] राज्यों में दो सदनों से।
    • (ख) अन्य राज्यों में एक सदन से मिलकर बनेगा।
  • (2) जहाँ किसी राज्य के विधान-मंडल के दो सदन हैं, वहाँ एक का नाम विधान परिषद और दूसरे का नाम विधान सभा होगा और जहाँ केवल एक सदन है, वहाँ उसका नाम विधान सभा होगा।
169. राज्यों में विधान परिषदों का उत्सादन या सृजन-
  • (1) अनुच्छेद 168 में किसी बात के होते हुए भी संसद विधि द्वारा किसी विधान परिषद वाले राज्य में विधान परिषद के उत्सादन के लिए या ऐसे राज्य में, जिसमें विधान परिषद नहीं है, विधान परिषद के सृजन के लिए उपबंध कर सकेगी, यदि उस राज्य की विधान सभा ने इस आशय का संकल्प विधान सभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया है।
  • (2) खंड (1) में विनिर्दिष्ट किसी विधि में इस संविधान के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे, जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध भी अंतर्विष्ट हो सकेंगे, जिन्हें संसद आवश्यक समझे।
  • (3) पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी।
170. विधान सभाओं की संरचना-
  • (1) अनुच्छेद 333 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक राज्य की विधान सभा उस राज्य में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए पांच सौ से अनधिक और साठ से अन्यून सदस्यों से मिलकर बनेगी।
  • (2) खंड (1) के प्रयोजनों के लिए, प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो।[9]
स्पष्टीकरण[10]-

इस खंड में "जनसंख्या" पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं, परंतु इस स्पष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन 2026[11] के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह 2001[12] [13] की जनगणना के प्रतिनिर्देश है।

  • (3) प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर प्रत्येक राज्य की विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुन:समायोजन किया जाएगा जो संसद विधि द्वारा अवधारित करे, परंतु ऐसे पुन: समायोजन से विधान सभा में प्रतिनिधित्व पद पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जब तक उस समय विद्यमान विधान सभा का विघटन नहीं हो जाता है, [14]परंतु यह और कि ऐसा पुन: समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा, जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे और ऐसे पुन: समायोजन के प्रभावी होने तक विधान सभा के लिए कोई निर्वाचन उन प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा, जो ऐसे पुन: समायोजन के पहले विद्यमान हैं, परंतु यह और भी कि जब तक सन 2026[15] के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, तब तक इस खंड के अधीन,-

(i) प्रत्येक राज्य की विधान सभा में 1971 की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित स्थानों की कुल संख्या का, और
(ii) ऐसे राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का, जो 2001[16] की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित किए जाएं, पुन: समायोजन आवश्यक नहीं होगा।[17]

171. विधान परिषदों की संरचना-
  • (1) विधान परिषद वाले राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक-तिहाई[18] से अधिक नहीं होगी, परंतु किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या किसी भी दशा में चालीस से कम नहीं होगी।
  • (2) जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे, तब तक किसी राज्य की विधान परिषद की संरचना खंड (3) में उपबंधित रीति से होगी।
  • (3) किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या का-
    • (क) यथाशक्य निकटतम एक-तिहाई भाग उस राज्य की नगरपालिकाओं, ज़िला बोर्डों और अन्य ऐसे स्थानीय प्राधिकारियों के, जो संसद विधि द्वारा विनिर्दिष्ट करे, सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक-मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा।
    • (ख) यथाशक्य निकटतम बारहवाँ भाग उस राज्य में निवास करने वाले ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक-मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा, जो भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विश्वविद्यालय के कम से कम तीन वर्ष से स्नातक हैं या जिनके पास कम से कम तीन वर्ष से ऐसी अर्हताएँ हैं, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि या उसके अधीन ऐसे किसी विश्वविद्यालय के स्नातक की अर्हताओं के समतुल्य विहित की गई हों।
    • (ग) यथाशक्य निकटतम बारहवाँ भाग ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक-मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा, जो राज्य के भीतर माध्यमिक पाठशालाओं से अनिम्न स्तर की ऐसी शिक्षा संस्थाओं में, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाएँ, पढ़ाने के काम में कम से कम तीन वर्ष से लगे हुए हैं।
    • (घ) यथाशक्य निकटतम एक-तिहाई भाग राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से निर्वाचित होगा, जो विधान सभा के सदस्य नहीं हैं।
    • (ङ) शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा खंड (5) के उपबंधों के अनुसार नामनिर्देशित किए जाएंगे।
  • (4) खंड (3) के उपखंड (क), उपखंड (ख) और उपखंड (ग) के अधीन निर्वाचित होने वाले सदस्य ऐसे प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में चुने जाएंगे, जो संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन विहित किए जाएँ तथा उक्त उपखंडों के और उक्त खंड के उपखंड (घ) के अधीन निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होंगे।
  • (5) राज्यपाल द्वारा खंड (3) के उपखंड (ङ) के अधीन नामनिर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे, जिन्हें निम्नलिखित विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थात साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाज सेवा।
172. राज्यों के विधान-मंडलों की अवधि-
  • (1) प्रत्येक राज्य की प्रत्येक विधान सभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से पांच वर्ष[19] तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं और पांच वर्ष[20] की उक्त अवधि की समाप्ति का परिणाम विधान सभा का विघटन होगा, परंतु उक्त अवधि को, जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, तब संसद विधि द्वारा ऐसी अवधि के लिए बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात किसी भी दशा में उसका विस्तार छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा।
  • (2) राज्य की विधान परिषद का विघटन नहीं होगा, किंतु उसके सदस्यों में से यथासंभव निकटतम एक-तिहाई सदस्य संसद द्वारा विधि द्वारा इस निमित्त बनाए गए उपबंधों के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवृत्त हो जाएंगे।
173. राज्य के विधान-मंडल की सदस्यता के लिए अर्हता-

कोई व्यक्ति किसी राज्य में विधान-मंडल के किसी स्थान को भरने के लिए चुने जाने के लिए अर्हित तभी होगा जब-

  • (क) वह भारत का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है।[21]
  • (ख) वह विधान सभा के स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का और विधान परिषद के स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का है।
  • (ग) उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएँ हैं, जो इस निमित्त संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाएँ।
174. राज्य के विधान-मंडल के सत्र, सत्रावसान और विघटन[22]-
  • (1) राज्यपाल समय-समय पर राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किंतु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा।
  • (2) राज्यपाल समय-समय पर-
    • (क) सदन का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा।
    • (ख) विधान सभा का विघटन कर सकेगा।
175. सदन या सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधिकार-
  • (1) राज्यपाल विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में उस राज्य के विधान-मंडल के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में, अभिभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा।
  • (2) राज्यपाल, राज्य के विधान-मंडल में उस समय लंबित किसी विधेयक के संबंध में संदेश या कोई अन्य संदेश, उस राज्य के विधान-मंडल के सदन या सदनों को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है, वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिए अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा।
176. राज्यपाल का विशेष अभिभाषण-
  • (1) राज्यपाल, विधान सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में[23] विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और विधान-मंडल को उसके आह्वान के कारण बताएगा।
  • (2) सदन या प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विष्यों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए (***)[24] उपबंध किया जाएगा।
177. सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार-

प्रत्येक मंत्री और राज्य के महाधिवक्ता को यह अधिकार होगा कि वह उस राज्य की विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में दोनों सदनों में बोले और उनकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले और विधान-मंडल की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूंप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. "आंध्र प्रदेश" शब्दों का आंध्र प्रदेश विधान परिषद (उत्सादन) अधिनियम, 1985 (1985 का 34) की धारा 4 द्वारा (1-6-1985 से) लोप किया गया।
  2. मुंबई पुनर्गठन अधिनियम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से)" मुंबई" शब्द का लोप किया गया।
  3. इस उपख्रंड में "मध्य प्रदेश" शब्दों के अंत:स्थापन के लिए संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 8(2) के अधीन कोई तारीख नियत नहीं की गई है।
  4. तमिलनाडु विधान परिषद (उत्सादन) अधिनियम, 1986 (1986 का 40) की धारा 4 द्वारा (1-11-1986 से) "तमिलनाडु" शब्द का लोप किया गया।
  5. मुबंई पुनर्गठन अधिनियम, 1960 (1960 का 11) की धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से ) अंत:स्थापित।
  6. मैसूर राज्य (नाम-परिवर्तन) अधिनियम, 1973 (1973 का 31) की धारा 4 द्वारा (1-11-1973 से) "मैसूर" के स्थान पर प्रतिस्थापित, जिसे संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 8(1) द्वारा अंत:स्थापित किया गया था।
  7. पंजाब विधान परिषद (उत्सादन) अधिनियम, 1969 (1969 का 46) की धारा 4 द्वारा (7-1-1970 से) "पंजाब" शब्द का लोप किया गया।
  8. पश्चिमी बंगाल विधान परिषद (उत्सादन) अधिनियम, 1969 (1969 का 20) की धारा 4 द्वारा (1-8-1969 से) "उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  9. संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 9 द्वारा अनुच्छेद 170 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  10. संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) स्पष्टीकरण के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  11. संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 5 द्वारा प्रतिस्थापित।
  12. संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 5 द्वारा प्रतिस्थापित।
  13. संविधान (सतासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित।
  14. संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) अंत:स्थापित।
  15. संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम 2001 की धारा 5 द्वारा क्रमश: अंकों और शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  16. संविधान (सतासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित।
  17. संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम 2001 की धारा 5 द्वारा क्रमश: अंकों और शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  18. संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 10 द्वारा "एक चौथाई" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  19. संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 24 द्वारा (6-9-1979 से) "छह वर्ष" के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 30 द्वारा (3-1-1977 से) मूल शब्दों "पांच वर्ष" के स्थान पर "छह वर्ष" प्रतिस्थापित किए गए थे।
  20. संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 24 द्वारा (6-9-1979 से) "छह वर्ष" के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 30 द्वारा (3-1-1977 से) मूल शब्दों "पांच वर्ष" के स्थान पर "छह वर्ष" प्रतिस्थापित किए गए थे।
  21. संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 4 द्वारा खंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  22. संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 8 द्वारा अनुच्छेद 174 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  23. संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 9 द्वारा "प्रत्येक सत्र" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  24. संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 9 द्वारा "तथा सदन के अन्य कार्य पर इस चर्चा को अग्रता देने के लिए" शब्दों का लोप किया गया।

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