"भेद कुल खुल जाए -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला": अवतरणों में अंतर
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और दिखलाई पड़ेगी जो गुराई तिल में है॥ | और दिखलाई पड़ेगी जो गुराई तिल में है॥ | ||
पेड़ टूटेंगे, हिलेंगे, | पेड़ टूटेंगे, हिलेंगे, ज़ोर से आँधी चली। | ||
हाथ मत डालो, हटाओ पैर, बिच्छू बिल में है॥ | हाथ मत डालो, हटाओ पैर, बिच्छू बिल में है॥ | ||
14:46, 27 मई 2012 का अवतरण
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भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है। |
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