"मन अब तो जाग -शिवदीन राम जोशी": अवतरणों में अंतर

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सांकल ज्ञान की  तौरत है गजराज यो  धूम  मचावत है।
अहिराज तुरंग कहूँ क्या कहूँ धमकावें तो मारने धावत है।
शिवदीन कहें बस क्या चलि हैं पल एक में आँख घुरावत है।
शुभ संतन का मन धन्य प्रभु नित गोविन्द का गुण गावत है।।


==शीर्षक उदाहरण 1==
मानत ना मन मेरो कह्यो समझाय थक्यो अरे बार ही बारा।
थोरी ही बात में, भोग के सुख को, पावत है दुःख अपरम्पारा।
मन चंचल है हठ ठानी रह्यो प्रभु चीन्ह नहीं निज रूप पियारा।
शिवदीन सुने न हरी चरचा फिर कैसे तिरे भव सिन्धु की धारा।।


===मन अब तो जाग / शिवदीन राम जोशी===
चेत तो चेत  चितार मना  यह काम  न  आवे  कोऊ  सुत  दारा।
 
शिवदीन फंस्यो जिनके फंद में वही आन चिता पे करे मुख कारा।
====शीर्षक उदाहरण 3====
प्रीत  नहीं  कोई  रीत  नहीं  सब  देख  के  प्रेत  कहे  परिवारा।
 
प्रीतम  तो  परमेश्वर  है,  मन  तू  जग  से करता न किनारा।।
=====शीर्षक उदाहरण 4=====
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सांकल ज्ञान की  तौरत है  गजराज यो  धूम  मचावत है |
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अहिराज तुरंग कहूँ क्या कहूँ धमकावें तो मारने धावत है |
शिवदीन कहें बस क्या चलि हैं पल एक में आँख घुरावत है |
शुभ संतन का मन धन्य प्रभु नित गोविन्द का गुण गावत है ||
 
मानत ना मन मेरो कह्यो  समझाय थक्यो अरे बार ही बारा |
थोरी ही बात में,भोग के सुख को, पावत है दुःख अपरम्पारा |
मन चंचल है हठ ठानी रह्यो प्रभु चीन्ह नहीं निज रूप पियारा |
शिवदीन सुने न हरी चरचा फिर कैसे तिरे भव सिन्धु की धारा ||
 
चेत तो चेत  चितार मना  यह काम  न  आवे  कोऊ  सुत  दारा |
शिवदीन फंस्यो जिनके फंद में वही आन चिता पे करे मुख कारा |
प्रीत  नहीं  कोई  रीत  नहीं  सब  देख  के  प्रेत  कहे  परिवारा |
प्रीतम  तो  परमेश्वर  है,  मन  तू  जग  से करता न किनारा  ||
 
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
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09:05, 7 जुलाई 2012 के समय का अवतरण

सांकल ज्ञान की तौरत है गजराज यो धूम मचावत है।
अहिराज तुरंग कहूँ क्या कहूँ धमकावें तो मारने धावत है।
शिवदीन कहें बस क्या चलि हैं पल एक में आँख घुरावत है।
शुभ संतन का मन धन्य प्रभु नित गोविन्द का गुण गावत है।।

मानत ना मन मेरो कह्यो समझाय थक्यो अरे बार ही बारा।
थोरी ही बात में, भोग के सुख को, पावत है दुःख अपरम्पारा।
मन चंचल है हठ ठानी रह्यो प्रभु चीन्ह नहीं निज रूप पियारा।
शिवदीन सुने न हरी चरचा फिर कैसे तिरे भव सिन्धु की धारा।।

चेत तो चेत चितार मना यह काम न आवे कोऊ सुत दारा।
शिवदीन फंस्यो जिनके फंद में वही आन चिता पे करे मुख कारा।
प्रीत नहीं कोई रीत नहीं सब देख के प्रेत कहे परिवारा।
प्रीतम तो परमेश्वर है, मन तू जग से करता न किनारा।।

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