"पलाश वृक्ष": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
(''''पलाश वृक्ष''' अथवा 'पलास', 'परसा', 'ढाक', 'टेसू' भारत के स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''पलाश वृक्ष''' अथवा 'पलास', 'परसा', 'ढाक', 'टेसू' [[भारत]] के सुंदर फूलों वाले प्रमुख वृक्षों में से एक है। प्राचीन काल से ही इस वृक्ष के फूलों से '[[होली]]' के [[रंग]] तैयार किये जाते रहे हैं। [[ऋग्वेद]] में 'सोम', 'अश्वत्‍थ' तथा 'पलाश' वृक्षों की विशेष महिमा वर्णित है। कहा जाता है कि पलाश के वृक्ष में सृष्टि के प्रमुख [[देवता]]- [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[महेश]] का निवास है। अत: पलाश का उपयोग [[ग्रह|ग्रहों]] की शांति हेतु भी किया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में ग्रहों के दोष निवारण हेतु पलाश के वृक्ष का भी महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। [[हिन्दू धर्म]] में इस वृक्ष का धार्मिक अनुष्ठानों में बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है। [[आयुर्वेद]] में पलाश के अनेक गुण बताए गए हैं और इसके पाँचों अंगों- तना, जड़, [[फल]], [[फूल]] और बीज से दवाएँ बनाने की विधियाँ दी गयी हैं।
'''पलाश वृक्ष''' अथवा 'पलास', 'परसा', 'ढाक', 'टेसू' [[भारत]] के सुंदर फूलों वाले प्रमुख वृक्षों में से एक है। प्राचीन काल से ही इस वृक्ष के फूलों से '[[होली]]' के [[रंग]] तैयार किये जाते रहे हैं। [[ऋग्वेद]] में 'सोम', 'अश्वत्‍थ' तथा 'पलाश' वृक्षों की विशेष महिमा वर्णित है। कहा जाता है कि पलाश के वृक्ष में सृष्टि के प्रमुख [[देवता]]- [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[महेश]] का निवास है। अत: पलाश का उपयोग [[ग्रह|ग्रहों]] की शांति हेतु भी किया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में ग्रहों के दोष निवारण हेतु पलाश के वृक्ष का भी महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। [[हिन्दू धर्म]] में इस वृक्ष का धार्मिक अनुष्ठानों में बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है। [[आयुर्वेद]] में पलाश के अनेक गुण बताए गए हैं और इसके पाँचों अंगों- तना, जड़, [[फल]], [[फूल]] और बीज से दवाएँ बनाने की विधियाँ दी गयी हैं।
==परिचय==
पलाश का पेड़ मध्यम आकार का, करीब 12 से 15 मीटर लंबा होता है। इसका तना सीधा, अनियमित शाखाओं और खुरदुरे तने वाला होता है। इसके पल्लव धूसर या भूरे रंग के रेशमी और रोयेंदार होते हैं। छाल का [[रंग]] राख की तरह होता है। इसकी विकास दर बहुत धीमी होती है। छोटा पलाश का पेड़ प्रति वर्ष लगभग एक फुट तक बढ़ जाता है। पूरी तरह खिलने के बाद जब यह अपने सारे पत्ते गिरा देता है, तब ये चटक फूल प्रकृति की अनूठी रचना बनकर इस प्रकार खिल उठते हैं, मानो बेरंग मौसम में रंग भर रहे हों। पलाश का वृक्ष [[भारत]] और दक्षिण पूर्वी [[एशिया]] के [[बांग्लादेश]], [[नेपाल]], [[पाकिस्तान]], [[थाईलैंड]], [[कम्बोडिया]], [[मलेशिया]], [[श्रीलंका]] और पश्चिम इंडोनेशिया में बहुतायत में देखा जा सकता है। [[इतिहास]] और [[साहित्य]] में [[गंगा]]-[[यमुना]] के [[दोआब]] से लेकर [[मध्य प्रदेश]] तक पलाश वृक्ष के जंगल होने की पुष्टि होती है, लेकिन 19वीं शती के प्रारंभ में इनकी तेजी से कटाई होने के कारण अब ये कहीं-कहीं ही दिखाई देते हैं।<ref name="ab">{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/prakriti/2001/palash.htm|title=पेड़ पलाश का|accessmonthday=31 मई|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==नाम तथा अर्थ==
विभिन्न भाषाओं में पलाश को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे [[हिन्दी]] में 'टेसू', 'केसू', 'ढाक' या 'पलाश', [[गुजराती भाषा|गुजराती]] में 'खाखरी' या 'केसुदो', [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] में 'केशु', [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] में 'पलाश' या 'पोलाशी', [[तमिल भाषा|तमिल]] में 'परसु' या 'पिलासू', [[उड़िया भाषा|उड़िया]] में 'पोरासू', [[मलयालम भाषा|मलयालम]] में 'मुरक्कच्यूम' या 'पलसु', [[तेलुगु भाषा|तेलुगु]] में 'मोदूगु', [[मणिपुरी भाषा|मणिपुरी]] में 'पांगोंग', [[मराठी भाषा|मराठी]] में 'पलस' और [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] में 'किंशुक' नाम से जाना जाता है। संस्कृत भाषा का शब्द 'पलाश' दो शब्दों से मिलकर बना है- 'पल' और 'आश'। पल का अर्थ है- 'मांस' और अश का अर्थ है- 'खाना', अर्थात 'पलाश' का अर्थ हुआ- 'ऐसा पेड़ जिसने माँस खाया हुआ है'। खिले हुए लाल फूलों से लदे हुए पलाश की उपमा संस्कृत लेखकों ने युद्ध भूमि से दी है। इसका 'ब्यूटिया' नाम 18वीं सदी के वर्गिकी के एक संरक्षक ब्यूट के अर्ल जोहन की स्मृति में रखा गया था। मोनोस्पर्मा ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- 'एक बीज वाला'।
====लता पलाश====
एक 'लता पलाश' भी होता है, जिसके दो प्रकार होते हैं। एक में [[लाल रंग]] के तथा दूसरे में [[सफ़ेद रंग]] के [[फूल]] खिलते हैं। सफेद पुष्पों वाले लता पलाश को औषधीय दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी माना जाता है। वैज्ञानिक दस्तावेजों मे दोनों ही प्रकार के लता पलाश का वर्णन मिलता है। एक पीले पुष्पों वाला पलाश भी पाया जाता है। पलाश का वैज्ञानिक नाम 'ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा' है। 'ब्यूटिया सुपरबा' और 'ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा' नाम से इसकी कुछ अन्य जतियाँ भी पाई जाती हैं।<ref name="ab"/>
==वृक्ष के अंग==
पलाश वृक्ष के प्रमुख अंग हैं-
====पत्तियाँ====
इसके पत्ते बड़े और तीन की संख्या में एक ही वृंत पर निकलते हैं। माना जाता है कि [[हिन्दी]] का प्रसिद्ध मुहावरा "ढाक के तीन पात" इसी से निकला है। इसका वृंत लगभग दस से पन्द्रह से.मी. लंबा होता है। ये पत्ते सामने से गोल, ऊपर की ओर रोम रहित, पतले चिकने, मजबूत और त्रिकोणाकार होते हैं। नीचे की ओर इनमें नसें देखी जा सकती हैं। इनका आकार लगभग बारह से पन्द्रह से.मी. होता है। [[दिसम्बर]] से [[जनवरी]] इसके पतझड़ का समय होता है। इस समय इसकी भूरी टेढ़ी-मेड़ी डालों को बिना पत्तों के देखा जा सकता है।
====फूल====
पलाश की कलियाँ [[काला रंग|काले]]-[[भूरा रंग|भूरे रंग]] की घनी और मखमली होती हैं। इनके बाह्यसंपुट का [[रंग]] जैतून की तरह [[हरा रंग|हरे रंग]] से लेकर भूरे रंग तक अनेक छवियों में दिखाई देता है। इनकी त्वचा मखमली होती है। पूरी तरह से खिलने के बाद [[लाल रंग|लाल]]-[[नारंगी रंग]] का छत्र पूरे पेड़ को ढँक लेता है। इस समय यह पेड़ अपनी संपूर्ण सुंदरता के साथ दिखाई देता है। ये गंधहीन [[फूल]], 15 सेमी लंबी लंबे हरे वृंतों के सिरे पर गहरे हरे मखमली प्यालेनुमा कठोर पुटकों पर घने लाल गुच्छों में खिलते हैं और दो गहरे विपरीत रंगों की आकर्षक छटा बिखेरते हैं। इनका रंग लाल नारंगी या पीला तथा आकार लगभग 2 इंच का होता है। प्रत्येक फूल में पाँच पंखुरियाँ होती हैं। दो सामान्य पंखुरियाँ, जो जोड़कर बनी एक चौड़ी पंखुरी, दो छोटी पंखुरियाँ और एक तोते की चोंच जैसी लंबी घूमी हुई पंखुरी, जिसके कारण इसे [[संस्कृत]] में 'किंशुक'<ref>हिंदी में अर्थ- 'क्या यह तोता है?'</ref> कहा जाता है। फूल [[फ़रवरी]] से आना शुरू हो जाते हैं और [[अप्रैल]] तक बने रहते हैं। पत्रविहीन डालों पर लाल-नारंगी रंग के समूह में खिले हुए इनके घने गुच्छे दूर से देखने पर ऐसे दिखाई देते हैं, मानो जंगल में आग लगी हो।<ref name="ab"/>
;पुष्पदल
फूल का पुष्पदल, लाल-नारंगी रंग का, आकार में लंबा, बाहरी ओर रेशमी रजत रोम वाला होता हैं। दो पुंकेसर आपस में जुड़े होते हैं और पराग कोश एक समान होते हैं। पुंकेसर की इस खास संरचना को 'द्विसंघी पुंकेसर' कहा जाता है। इस विशेष गुण के कारण 'ब्यूटिया' या 'पलाश' को फली के परिवार में रखा गया है। अंडाशय में दो अंडाणु वाले, वर्तिका सूत्राकार गोल जुड़ी होती है और वर्तिकाग्र आकर्षक होता है।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}

08:22, 31 मई 2013 का अवतरण

पलाश वृक्ष अथवा 'पलास', 'परसा', 'ढाक', 'टेसू' भारत के सुंदर फूलों वाले प्रमुख वृक्षों में से एक है। प्राचीन काल से ही इस वृक्ष के फूलों से 'होली' के रंग तैयार किये जाते रहे हैं। ऋग्वेद में 'सोम', 'अश्वत्‍थ' तथा 'पलाश' वृक्षों की विशेष महिमा वर्णित है। कहा जाता है कि पलाश के वृक्ष में सृष्टि के प्रमुख देवता- ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास है। अत: पलाश का उपयोग ग्रहों की शांति हेतु भी किया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में ग्रहों के दोष निवारण हेतु पलाश के वृक्ष का भी महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। हिन्दू धर्म में इस वृक्ष का धार्मिक अनुष्ठानों में बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में पलाश के अनेक गुण बताए गए हैं और इसके पाँचों अंगों- तना, जड़, फल, फूल और बीज से दवाएँ बनाने की विधियाँ दी गयी हैं।

परिचय

पलाश का पेड़ मध्यम आकार का, करीब 12 से 15 मीटर लंबा होता है। इसका तना सीधा, अनियमित शाखाओं और खुरदुरे तने वाला होता है। इसके पल्लव धूसर या भूरे रंग के रेशमी और रोयेंदार होते हैं। छाल का रंग राख की तरह होता है। इसकी विकास दर बहुत धीमी होती है। छोटा पलाश का पेड़ प्रति वर्ष लगभग एक फुट तक बढ़ जाता है। पूरी तरह खिलने के बाद जब यह अपने सारे पत्ते गिरा देता है, तब ये चटक फूल प्रकृति की अनूठी रचना बनकर इस प्रकार खिल उठते हैं, मानो बेरंग मौसम में रंग भर रहे हों। पलाश का वृक्ष भारत और दक्षिण पूर्वी एशिया के बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैंड, कम्बोडिया, मलेशिया, श्रीलंका और पश्चिम इंडोनेशिया में बहुतायत में देखा जा सकता है। इतिहास और साहित्य में गंगा-यमुना के दोआब से लेकर मध्य प्रदेश तक पलाश वृक्ष के जंगल होने की पुष्टि होती है, लेकिन 19वीं शती के प्रारंभ में इनकी तेजी से कटाई होने के कारण अब ये कहीं-कहीं ही दिखाई देते हैं।[1]

नाम तथा अर्थ

विभिन्न भाषाओं में पलाश को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे हिन्दी में 'टेसू', 'केसू', 'ढाक' या 'पलाश', गुजराती में 'खाखरी' या 'केसुदो', पंजाबी में 'केशु', बांग्ला में 'पलाश' या 'पोलाशी', तमिल में 'परसु' या 'पिलासू', उड़िया में 'पोरासू', मलयालम में 'मुरक्कच्यूम' या 'पलसु', तेलुगु में 'मोदूगु', मणिपुरी में 'पांगोंग', मराठी में 'पलस' और संस्कृत में 'किंशुक' नाम से जाना जाता है। संस्कृत भाषा का शब्द 'पलाश' दो शब्दों से मिलकर बना है- 'पल' और 'आश'। पल का अर्थ है- 'मांस' और अश का अर्थ है- 'खाना', अर्थात 'पलाश' का अर्थ हुआ- 'ऐसा पेड़ जिसने माँस खाया हुआ है'। खिले हुए लाल फूलों से लदे हुए पलाश की उपमा संस्कृत लेखकों ने युद्ध भूमि से दी है। इसका 'ब्यूटिया' नाम 18वीं सदी के वर्गिकी के एक संरक्षक ब्यूट के अर्ल जोहन की स्मृति में रखा गया था। मोनोस्पर्मा ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- 'एक बीज वाला'।

लता पलाश

एक 'लता पलाश' भी होता है, जिसके दो प्रकार होते हैं। एक में लाल रंग के तथा दूसरे में सफ़ेद रंग के फूल खिलते हैं। सफेद पुष्पों वाले लता पलाश को औषधीय दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी माना जाता है। वैज्ञानिक दस्तावेजों मे दोनों ही प्रकार के लता पलाश का वर्णन मिलता है। एक पीले पुष्पों वाला पलाश भी पाया जाता है। पलाश का वैज्ञानिक नाम 'ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा' है। 'ब्यूटिया सुपरबा' और 'ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा' नाम से इसकी कुछ अन्य जतियाँ भी पाई जाती हैं।[1]

वृक्ष के अंग

पलाश वृक्ष के प्रमुख अंग हैं-

पत्तियाँ

इसके पत्ते बड़े और तीन की संख्या में एक ही वृंत पर निकलते हैं। माना जाता है कि हिन्दी का प्रसिद्ध मुहावरा "ढाक के तीन पात" इसी से निकला है। इसका वृंत लगभग दस से पन्द्रह से.मी. लंबा होता है। ये पत्ते सामने से गोल, ऊपर की ओर रोम रहित, पतले चिकने, मजबूत और त्रिकोणाकार होते हैं। नीचे की ओर इनमें नसें देखी जा सकती हैं। इनका आकार लगभग बारह से पन्द्रह से.मी. होता है। दिसम्बर से जनवरी इसके पतझड़ का समय होता है। इस समय इसकी भूरी टेढ़ी-मेड़ी डालों को बिना पत्तों के देखा जा सकता है।

फूल

पलाश की कलियाँ काले-भूरे रंग की घनी और मखमली होती हैं। इनके बाह्यसंपुट का रंग जैतून की तरह हरे रंग से लेकर भूरे रंग तक अनेक छवियों में दिखाई देता है। इनकी त्वचा मखमली होती है। पूरी तरह से खिलने के बाद लाल-नारंगी रंग का छत्र पूरे पेड़ को ढँक लेता है। इस समय यह पेड़ अपनी संपूर्ण सुंदरता के साथ दिखाई देता है। ये गंधहीन फूल, 15 सेमी लंबी लंबे हरे वृंतों के सिरे पर गहरे हरे मखमली प्यालेनुमा कठोर पुटकों पर घने लाल गुच्छों में खिलते हैं और दो गहरे विपरीत रंगों की आकर्षक छटा बिखेरते हैं। इनका रंग लाल नारंगी या पीला तथा आकार लगभग 2 इंच का होता है। प्रत्येक फूल में पाँच पंखुरियाँ होती हैं। दो सामान्य पंखुरियाँ, जो जोड़कर बनी एक चौड़ी पंखुरी, दो छोटी पंखुरियाँ और एक तोते की चोंच जैसी लंबी घूमी हुई पंखुरी, जिसके कारण इसे संस्कृत में 'किंशुक'[2] कहा जाता है। फूल फ़रवरी से आना शुरू हो जाते हैं और अप्रैल तक बने रहते हैं। पत्रविहीन डालों पर लाल-नारंगी रंग के समूह में खिले हुए इनके घने गुच्छे दूर से देखने पर ऐसे दिखाई देते हैं, मानो जंगल में आग लगी हो।[1]

पुष्पदल

फूल का पुष्पदल, लाल-नारंगी रंग का, आकार में लंबा, बाहरी ओर रेशमी रजत रोम वाला होता हैं। दो पुंकेसर आपस में जुड़े होते हैं और पराग कोश एक समान होते हैं। पुंकेसर की इस खास संरचना को 'द्विसंघी पुंकेसर' कहा जाता है। इस विशेष गुण के कारण 'ब्यूटिया' या 'पलाश' को फली के परिवार में रखा गया है। अंडाशय में दो अंडाणु वाले, वर्तिका सूत्राकार गोल जुड़ी होती है और वर्तिकाग्र आकर्षक होता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 पेड़ पलाश का (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 31 मई, 2013।
  2. हिंदी में अर्थ- 'क्या यह तोता है?'

संबंधित लेख