"गुप्त नवरात्र": अवतरणों में अंतर

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सामान्यत: लोग [[वर्ष]] में पड़ने वाले केवल दो नवरात्रों के बारे में ही जानते हैं- 'चैत्र' या 'वासंतिक नवरात्र' व 'आश्विन' या 'शारदीय नवरात्र', जबकि इसके अतिरिक्त दो और [[नवरात्र]] भी होते हैं, जिनमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। कम लोगों को इसका ज्ञान होने के कारण या इसके छिपे हुए होने के कारण ही इसको "गुप्त नवरात्र" कहते हैं। वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र आते हैं- [[माघ मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] व [[आषाढ़ मास]] के शुक्ल पक्ष में। इस प्रकार कुल मिला कर वर्ष में चार नवरात्र होते हैं। यह चारों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय मनाये जाते हैं। इस विशेष अवसर पर अपनी विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजा-पाठ आदि किये जाते हैं।
सामान्यत: लोग [[वर्ष]] में पड़ने वाले केवल दो नवरात्रों के बारे में ही जानते हैं- 'चैत्र' या 'वासंतिक नवरात्र' व 'आश्विन' या 'शारदीय नवरात्र', जबकि इसके अतिरिक्त दो और [[नवरात्र]] भी होते हैं, जिनमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। कम लोगों को इसका ज्ञान होने के कारण या इसके छिपे हुए होने के कारण ही इसको "गुप्त नवरात्र" कहते हैं। वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र आते हैं- [[माघ मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] व [[आषाढ़ मास]] के शुक्ल पक्ष में। इस प्रकार कुल मिला कर वर्ष में चार नवरात्र होते हैं। यह चारों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय मनाये जाते हैं। इस विशेष अवसर पर अपनी विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजा-पाठ आदि किये जाते हैं।
==महत्त्व==
==महत्त्व==
गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधना काल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऎश्वर्य की प्राप्ति होती है। "दुर्गावरिवस्या" नामक [[ग्रंथ]] में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में भी माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता [[दुर्गा]] की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं। "शिवसंहिता" के अनुसार ये नवरात्र भगवान [[शंकर]] और आदिशक्ति [[पार्वती|माँ पार्वती]] की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.patrika.com/article.aspx?id=40352|title=सिद्धिदायक हैं- गुप्त नवरात्र|accessmonthday=06 जून|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> गुप्त नवरात्रों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने से कई बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं, जैसे-
गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधना काल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऎश्वर्य की प्राप्ति होती है। "दुर्गावरिवस्या" नामक [[ग्रंथ]] में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में भी माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता [[दुर्गा]] की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं। "शिवसंहिता" के अनुसार ये नवरात्र भगवान [[शंकर]] और आदिशक्ति [[पार्वती|माँ पार्वती]] की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं।<ref name="aa">{{cite web |url=http://www.patrika.com/article.aspx?id=40352|title=सिद्धिदायक हैं- गुप्त नवरात्र|accessmonthday=06 जून|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> गुप्त नवरात्रों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने से कई बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं, जैसे-
====विवाह बाधा====
====विवाह बाधा====
वे कुमारी कन्याएँ जिनके [[विवाह]] में बाधा आ रही हो, उनके लिए गुप्त नवरात्र बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। कुमारी कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इन नौ दिनों में माता [[कात्यायनी]] की [[पूजा]]-उपासना करनी चाहिए। "दुर्गास्तवनम्" जैसे प्रामाणिक प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि इस [[मंत्र]] का 108 बार जप करने से कुमारी कन्या का विवाह शीघ्र ही योग्य वर से संपन्न हो जाता है-
वे कुमारी कन्याएँ जिनके [[विवाह]] में बाधा आ रही हो, उनके लिए गुप्त नवरात्र बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। कुमारी कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इन नौ दिनों में माता [[कात्यायनी]] की [[पूजा]]-उपासना करनी चाहिए। "दुर्गास्तवनम्" जैसे प्रामाणिक प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि इस [[मंत्र]] का 108 बार जप करने से कुमारी कन्या का विवाह शीघ्र ही योग्य वर से संपन्न हो जाता है-
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<blockquote><poem>देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
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रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।</poem></blockquote>
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।</poem></blockquote>
 
==देवी की महिमा==
 
शास्त्र कहते हैं कि आदिशक्ति का अवतरण सृष्टि के आरंभ में हुआ था। कभी सागर की पुत्री सिंधुजा-लक्ष्मी तो कभी पर्वतराज [[हिमालय]] की कन्या अपर्णा-पार्वती। तेज, द्युति, दीप्ति, ज्योति, कांति, प्रभा और चेतना और जीवन शक्ति संसार में जहाँ कहीं भी दिखाई देती है, वहाँ देवी का ही दर्शन होता है। [[ऋषि|ऋषियों]] की विश्व-दृष्टि तो सर्वत्र विश्वरूपा देवी को ही देखती है, इसलिए माता [[दुर्गा]] ही [[महाकाली]], [[महालक्ष्मी]] और [[सरस्वती देवी|महासरस्वती]] के रूप में प्रकट होती है। 'देवीभागवत' में लिखा है कि- "देवी ही [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] तथा [[महेश]] का रूप धर संसार का पालन और संहार करती हैं। जगन्माता दुर्गा सुकृती मनुष्यों के घर संपत्ति, पापियों के घर में अलक्ष्मी, विद्वानों-वैष्णवों के [[हृदय]] में बुद्धि व विद्या, सज्जनों में श्रद्धा व [[भक्ति]] तथा कुलीन महिलाओं में लज्जा एवं मर्यादा के रूप में निवास करती है। 'मार्कण्डेयपुराण' कहता है कि- "हे देवि! तुम सारे [[वेद]]-शास्त्रों का सार हो। भगवान विष्णु के हृदय में निवास करने वाली माँ लक्ष्मी-शशिशेखर भगवान [[शंकर]] की महिमा बढ़ाने वाली माँ तुम ही हो।"<ref name="aa"/>
==सरस्वती पूजा महोत्सव==
माघी नवरात्र में [[पंचमी]] तिथि सर्वप्रमुख मानी जाती है। इसे '[[श्रीपंचमी]]', '[[वसंत पंचमी]]' और 'सरस्वती महोत्सव' के नाम से कहा जाता है। प्राचीन काल से आज तक इस दिन माता सरस्वती का पूजन-अर्चन किया जाता है। यह त्रिशक्ति में एक माता शारदा के आराधना के लिए विशिष्ट दिवस के रूप में शास्त्रों में वर्णित है। कई प्रामाणिक विद्वानों का यह भी मानना है कि जो छात्र पढ़ने में कमजोर हों या जिनकी पढ़ने में रूचि नहीं हो, ऐसे विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से माँ सरस्वती का पूजन करना चाहिए। देववाणी [[संस्कृत भाषा]] में निबद्ध शास्त्रीय ग्रंथों का दान संकल्प पूर्वक विद्वान [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को देना चाहिए।
;महानवमी को पूर्णाहुति
गुप्त नवरात्र में संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए [[अष्टमी]] और [[नवमी]] तिथि को आवश्यक रूप से देवी के पूजन का विधान शास्त्रों में वर्णित है। माता के संमुख "जोत दर्शन" एवं कन्या भोजन करवाना चाहिए।<ref name="aa"/>
==स्त्री रूप में देवी पूजा==
'[[कूर्मपुराण]]' में [[पृथ्वी]] पर देवी के बिंब के रूप में स्त्री का पूरा जीवन नवदुर्गा की मूर्ति के रूप से बताया गया है। जन्म ग्रहण करती हुई कन्या "[[शैलपुत्री]]", कौमार्य अवस्था तक "[[ब्रह्मचारिणी]]" व [[विवाह]] से पूर्व तक [[चंद्रमा]] के समान निर्मल होने से "[[चंद्रघंटा तृतीय|चंद्रघंटा]]" कहलाती है। नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने से "[[कूष्मांडा]]" व संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री "[[स्कन्दमाता पंचम|स्कन्दमाता]]" होती है। संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री "[[कात्यायनी]]" व पतिव्रता होने के कारण पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से "[[कालरात्रि सप्तम|कालरात्रि]]" कहलाती है। संसार का उपकार करने से "[[महागौरी अष्टमं|महागौरी]]" व धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार को सिद्धि का आशीर्वाद देने वाली "[[सिद्धिदात्री नवम|सिद्धिदात्री]]" मानी जाती हैं।
==घट स्थापना==
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार स्वच्छ दीवार पर सिंदूर से देवी की मुख-आकृति बना ली जाती है। सर्वशुद्धा माता [[दुर्गा]] की जो तस्वीर मिल जाए, वही चौकी पर स्थापित कर दी जाती है, परंतु देवी की असली प्रतिमा "घट" है। घट पर [[घी]]-[[सिंदूर]] से कन्या चिह्न और [[स्वस्तिक]] बनाकर उसमें देवी का आह्वान किया जाता है। देवी के दायीं ओर [[जौ]] व सामने हवनकुंड रखा जाता है। नौ दिनों तक नित्य देवी का आह्वान फिर [[स्नान]], वस्त्र व गंध आदि से षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। नैवेद्य में बताशे और [[नारियल]] तथा [[खीर]] का भोग होना चाहिए। पूजन और हवन के बाद "दुर्गास सप्तशती" का पाठ करना श्रेष्ठ है। साथ ही [[धर्म]], अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने के लिए नवदुर्गा के प्रत्येक रूप की प्रतिदिन पूजा-स्तुति करनी चाहिए।<ref name="aa"/>


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12:44, 6 जून 2013 का अवतरण

गुप्त नवरात्र हिन्दू धर्म में उसी प्रकार मान्य हैं, जिस प्रकार 'शारदीय' और 'चैत्र नवरात्र'। आषाढ़ और माघ माह के नवरात्रों को "गुप्त नवरात्र" कह कर पुकारा जाता है। बहुत कम लोगों को ही इसके ज्ञान या छिपे हुए होने के कारण इसे 'गुप्त नवरात्र' कहा जाता है। गुप्त नवरात्र मनाने और इनकी साधना का विधान 'देवी भागवत' व अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। श्रृंगी ऋषि ने गुप्त नवरात्रों के महत्त्व को बतलाते हुए कहा है कि- "जिस प्रकार वासंतिक नवरात्र में भगवान विष्णु की पूजा और शारदीय नवरात्र में देवी शक्ति की नौ देवियों की पूजा की प्रधानता रहती है, उसी प्रकार गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं के होते हैं। यदि कोई इन महाविद्याओं के रूप में शक्ति की उपासना करें, तो जीवन धन-धान्य, राज्य सत्ता और ऐश्वर्य से भर जाता है।

तिथि

सामान्यत: लोग वर्ष में पड़ने वाले केवल दो नवरात्रों के बारे में ही जानते हैं- 'चैत्र' या 'वासंतिक नवरात्र' व 'आश्विन' या 'शारदीय नवरात्र', जबकि इसके अतिरिक्त दो और नवरात्र भी होते हैं, जिनमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। कम लोगों को इसका ज्ञान होने के कारण या इसके छिपे हुए होने के कारण ही इसको "गुप्त नवरात्र" कहते हैं। वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र आते हैं- माघ मास के शुक्ल पक्षआषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में। इस प्रकार कुल मिला कर वर्ष में चार नवरात्र होते हैं। यह चारों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय मनाये जाते हैं। इस विशेष अवसर पर अपनी विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजा-पाठ आदि किये जाते हैं।

महत्त्व

गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधना काल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऎश्वर्य की प्राप्ति होती है। "दुर्गावरिवस्या" नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में भी माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं। "शिवसंहिता" के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति माँ पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं।[1] गुप्त नवरात्रों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने से कई बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं, जैसे-

विवाह बाधा

वे कुमारी कन्याएँ जिनके विवाह में बाधा आ रही हो, उनके लिए गुप्त नवरात्र बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। कुमारी कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इन नौ दिनों में माता कात्यायनी की पूजा-उपासना करनी चाहिए। "दुर्गास्तवनम्" जैसे प्रामाणिक प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि इस मंत्र का 108 बार जप करने से कुमारी कन्या का विवाह शीघ्र ही योग्य वर से संपन्न हो जाता है-

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरू ते नम:।।

  • इसी प्रकार जिन पुरूषों के विवाह में विलंब हो रहा हो, उन्हें भी लाल रंग के पुष्पों की माला देवी को चढ़ाकर निम्न मंत्र का 108 बार जप पूरे नौ दिन तक करने चाहिए-

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।

देवी की महिमा

शास्त्र कहते हैं कि आदिशक्ति का अवतरण सृष्टि के आरंभ में हुआ था। कभी सागर की पुत्री सिंधुजा-लक्ष्मी तो कभी पर्वतराज हिमालय की कन्या अपर्णा-पार्वती। तेज, द्युति, दीप्ति, ज्योति, कांति, प्रभा और चेतना और जीवन शक्ति संसार में जहाँ कहीं भी दिखाई देती है, वहाँ देवी का ही दर्शन होता है। ऋषियों की विश्व-दृष्टि तो सर्वत्र विश्वरूपा देवी को ही देखती है, इसलिए माता दुर्गा ही महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में प्रकट होती है। 'देवीभागवत' में लिखा है कि- "देवी ही ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का रूप धर संसार का पालन और संहार करती हैं। जगन्माता दुर्गा सुकृती मनुष्यों के घर संपत्ति, पापियों के घर में अलक्ष्मी, विद्वानों-वैष्णवों के हृदय में बुद्धि व विद्या, सज्जनों में श्रद्धा व भक्ति तथा कुलीन महिलाओं में लज्जा एवं मर्यादा के रूप में निवास करती है। 'मार्कण्डेयपुराण' कहता है कि- "हे देवि! तुम सारे वेद-शास्त्रों का सार हो। भगवान विष्णु के हृदय में निवास करने वाली माँ लक्ष्मी-शशिशेखर भगवान शंकर की महिमा बढ़ाने वाली माँ तुम ही हो।"[1]

सरस्वती पूजा महोत्सव

माघी नवरात्र में पंचमी तिथि सर्वप्रमुख मानी जाती है। इसे 'श्रीपंचमी', 'वसंत पंचमी' और 'सरस्वती महोत्सव' के नाम से कहा जाता है। प्राचीन काल से आज तक इस दिन माता सरस्वती का पूजन-अर्चन किया जाता है। यह त्रिशक्ति में एक माता शारदा के आराधना के लिए विशिष्ट दिवस के रूप में शास्त्रों में वर्णित है। कई प्रामाणिक विद्वानों का यह भी मानना है कि जो छात्र पढ़ने में कमजोर हों या जिनकी पढ़ने में रूचि नहीं हो, ऐसे विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से माँ सरस्वती का पूजन करना चाहिए। देववाणी संस्कृत भाषा में निबद्ध शास्त्रीय ग्रंथों का दान संकल्प पूर्वक विद्वान ब्राह्मणों को देना चाहिए।

महानवमी को पूर्णाहुति

गुप्त नवरात्र में संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए अष्टमी और नवमी तिथि को आवश्यक रूप से देवी के पूजन का विधान शास्त्रों में वर्णित है। माता के संमुख "जोत दर्शन" एवं कन्या भोजन करवाना चाहिए।[1]

स्त्री रूप में देवी पूजा

'कूर्मपुराण' में पृथ्वी पर देवी के बिंब के रूप में स्त्री का पूरा जीवन नवदुर्गा की मूर्ति के रूप से बताया गया है। जन्म ग्रहण करती हुई कन्या "शैलपुत्री", कौमार्य अवस्था तक "ब्रह्मचारिणी" व विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से "चंद्रघंटा" कहलाती है। नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने से "कूष्मांडा" व संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री "स्कन्दमाता" होती है। संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री "कात्यायनी" व पतिव्रता होने के कारण पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से "कालरात्रि" कहलाती है। संसार का उपकार करने से "महागौरी" व धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार को सिद्धि का आशीर्वाद देने वाली "सिद्धिदात्री" मानी जाती हैं।

घट स्थापना

शास्त्रीय मान्यता के अनुसार स्वच्छ दीवार पर सिंदूर से देवी की मुख-आकृति बना ली जाती है। सर्वशुद्धा माता दुर्गा की जो तस्वीर मिल जाए, वही चौकी पर स्थापित कर दी जाती है, परंतु देवी की असली प्रतिमा "घट" है। घट पर घी-सिंदूर से कन्या चिह्न और स्वस्तिक बनाकर उसमें देवी का आह्वान किया जाता है। देवी के दायीं ओर जौ व सामने हवनकुंड रखा जाता है। नौ दिनों तक नित्य देवी का आह्वान फिर स्नान, वस्त्र व गंध आदि से षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। नैवेद्य में बताशे और नारियल तथा खीर का भोग होना चाहिए। पूजन और हवन के बाद "दुर्गास सप्तशती" का पाठ करना श्रेष्ठ है। साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने के लिए नवदुर्गा के प्रत्येक रूप की प्रतिदिन पूजा-स्तुति करनी चाहिए।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 सिद्धिदायक हैं- गुप्त नवरात्र (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 06 जून, 2013।

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