"मसूरी यात्रा -काका हाथरसी": अवतरणों में अंतर
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Kaka-Hathrasi.jpg ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
पंक्ति 38: | पंक्ति 38: | ||
मानचित्र भारत का लाकर उन्हें दिखाया | मानचित्र भारत का लाकर उन्हें दिखाया | ||
देखो इसमें ध्यान से, हल हो गया सवाल | देखो इसमें ध्यान से, हल हो गया सवाल | ||
यह शिमला, यह मसूरी, यह है नैनीताल | यह शिमला, यह मसूरी, यह है नैनीताल | ||
यह है नैनीताल, कहो घर बैठे-बैठे- | यह है नैनीताल, कहो घर बैठे-बैठे- | ||
दिखला दिए पहाड़, बहादुर हैं हम कैसे ? | दिखला दिए पहाड़, बहादुर हैं हम कैसे ? | ||
कहँ ‘काका’ कवि, चाय पिओ औ’ बिस्कुट कुतरो | कहँ ‘काका’ कवि, चाय पिओ औ’ बिस्कुट कुतरो | ||
पहाड़ क्या हैं, उतरो, चढ़ो, चढ़ो, फिर उतरो | पहाड़ क्या हैं, उतरो, चढ़ो, चढ़ो, फिर उतरो | ||
यह सुनकर वे हो गईं लड़ने को तैयार | यह सुनकर वे हो गईं लड़ने को तैयार | ||
पंक्ति 52: | पंक्ति 52: | ||
अपराधी हो कोतवाल के सम्मुख जैसे | अपराधी हो कोतवाल के सम्मुख जैसे | ||
आगा-पीछा देखकर करके सोच-विचार | आगा-पीछा देखकर करके सोच-विचार | ||
हमने उनके सामने डाल दिए हथियार | हमने उनके सामने डाल दिए हथियार | ||
डाल दिए हथियार, आज्ञा सिर पर धारी | डाल दिए हथियार, आज्ञा सिर पर धारी | ||
चले मसूरी, रात्रि देहरादून गुजारी | चले मसूरी, रात्रि देहरादून गुजारी | ||
कहँ ‘काका’, कविराय, रात-भर पड़ी नहीं कल | कहँ ‘काका’, कविराय, रात-भर पड़ी नहीं कल | ||
चूस गए सब ख़ून देहरादूनी खटमल | चूस गए सब ख़ून देहरादूनी खटमल | ||
सुबह मसूरी के लिए बस में हुए सवार | सुबह मसूरी के लिए बस में हुए सवार | ||
पंक्ति 66: | पंक्ति 66: | ||
हमने कहा कि पति से लड़ने का यह फल है | हमने कहा कि पति से लड़ने का यह फल है | ||
उनका ‘मूड’ खराब था, चित्त हमारा खिन्न | उनका ‘मूड’ खराब था, चित्त हमारा खिन्न | ||
नगरपालिका का तभी आया सीमा-चिह्न | नगरपालिका का तभी आया सीमा-चिह्न | ||
आया सीमा-चिह्न, रुका मोटर का पहिया | आया सीमा-चिह्न, रुका मोटर का पहिया | ||
लाओ टैक्स, प्रत्येक सवारी डेढ़ रुपैया | लाओ टैक्स, प्रत्येक सवारी डेढ़ रुपैया | ||
कहँ ‘काका’ कवि, हम दोनों हैं एक सवारी | कहँ ‘काका’ कवि, हम दोनों हैं एक सवारी | ||
आधे हम हैं, आधी अर्धांगिनी हमारी | आधे हम हैं, आधी अर्धांगिनी हमारी | ||
बस के अड्डे पर खड़े कुली पहनकर पैंट | बस के अड्डे पर खड़े कुली पहनकर पैंट | ||
पंक्ति 80: | पंक्ति 80: | ||
दूजा बोला, मेरे यहाँ ‘फ्लैश-सिस्टम’ है | दूजा बोला, मेरे यहाँ ‘फ्लैश-सिस्टम’ है | ||
हे भगवान ! बचाइए, करो कृपा की छाँह | हे भगवान ! बचाइए, करो कृपा की छाँह | ||
ये उखाड़ ले जाएँगे, आज हमारी बाँह | ये उखाड़ ले जाएँगे, आज हमारी बाँह | ||
आज हमारी बाँह, दौड़कर आओ ऐसे | आज हमारी बाँह, दौड़कर आओ ऐसे | ||
तुमने रक्षा करी ग्राह से गज की जैसे | तुमने रक्षा करी ग्राह से गज की जैसे | ||
कहँ ‘काका’ कवि, पुलिस-रूप धरके प्रभु आए | कहँ ‘काका’ कवि, पुलिस-रूप धरके प्रभु आए | ||
चक्र-सुदर्शन छोड़, हाथ में हंटर लाए | चक्र-सुदर्शन छोड़, हाथ में हंटर लाए | ||
रख दाढ़ी पर हाथ हम, देख रहे मजदूर | रख दाढ़ी पर हाथ हम, देख रहे मजदूर | ||
पंक्ति 94: | पंक्ति 94: | ||
सभी मियाँ समझे हैं तुमने दाढ़ी वाले ? | सभी मियाँ समझे हैं तुमने दाढ़ी वाले ? | ||
चले गए अँगरेज पर, छोड़ गए निज छाप | चले गए अँगरेज पर, छोड़ गए निज छाप | ||
भारतीय संस्कृति यहाँ सिसक रही चुपचाप | भारतीय संस्कृति यहाँ सिसक रही चुपचाप | ||
सिसक रही चुपचाप, बीवियां घूम रही हैं | सिसक रही चुपचाप, बीवियां घूम रही हैं | ||
पैंट पहनकर ‘मालरोड’ पर झूम रही हैं | पैंट पहनकर ‘मालरोड’ पर झूम रही हैं | ||
कहँ ‘काका’, जब देखोगे लल्लू के दादा | कहँ ‘काका’, जब देखोगे लल्लू के दादा | ||
धोखे में पड़ जाओगे, नर है या मादा | धोखे में पड़ जाओगे, नर है या मादा | ||
बीवी जी पर हो गया फैसन भूत सवार | बीवी जी पर हो गया फैसन भूत सवार | ||
पंक्ति 108: | पंक्ति 108: | ||
आठ कोट, दस पैंट, अठारह जोड़ी जूते | आठ कोट, दस पैंट, अठारह जोड़ी जूते | ||
भूल गए निज सभ्यता, बदल गया परिधान | भूल गए निज सभ्यता, बदल गया परिधान | ||
पाश्चात्य रँग में रँगी, भारतीय संतान | पाश्चात्य रँग में रँगी, भारतीय संतान | ||
भारतीय संतान रो रही माता हिंदी | भारतीय संतान रो रही माता हिंदी | ||
आज सुहागिन नारि लगाना भूली बिंदी | आज सुहागिन नारि लगाना भूली बिंदी | ||
कहँ ‘काका’ कवि, बोलो बच्चो डैडी-मम्मी | कहँ ‘काका’ कवि, बोलो बच्चो डैडी-मम्मी | ||
माता और पिता कहने की प्रथा निकम्मी | माता और पिता कहने की प्रथा निकम्मी | ||
मित्र हमारे मिल गए कैप्टिन घोड़ासिंग | मित्र हमारे मिल गए कैप्टिन घोड़ासिंग | ||
पंक्ति 122: | पंक्ति 122: | ||
चाभी भरी हुई है या बिजली से चलते ? | चाभी भरी हुई है या बिजली से चलते ? | ||
हाथ जोड़ हमने कहा, लालाजी तुम धन्य | हाथ जोड़ हमने कहा, लालाजी तुम धन्य | ||
जीवन-भर करते रहो, इसी कोटि के पुन्य | जीवन-भर करते रहो, इसी कोटि के पुन्य | ||
इसी कोटि के पुन्य, नाम भारत में पाओ | इसी कोटि के पुन्य, नाम भारत में पाओ | ||
बिना टिकट, वैकुंठ-धाम को सीधे जाओ | बिना टिकट, वैकुंठ-धाम को सीधे जाओ | ||
कहँ काकी ललकार-अरे यह क्या ले आए | कहँ काकी ललकार-अरे यह क्या ले आए | ||
बुद्धू हो तुम, पानी के पैसे दे आए ? | बुद्धू हो तुम, पानी के पैसे दे आए ? | ||
हलवाई कहने लगा, फेर मूँछ पर हाथ | हलवाई कहने लगा, फेर मूँछ पर हाथ | ||
पंक्ति 136: | पंक्ति 136: | ||
पेट फूल दस-बीस यात्री नित मर जाएँ | पेट फूल दस-बीस यात्री नित मर जाएँ | ||
पानी कहती हो इसे, तुम कैसी नादान ? | पानी कहती हो इसे, तुम कैसी नादान ? | ||
यह, मंसूरी ‘मिल्क’ है, जानो अमृत समान | यह, मंसूरी ‘मिल्क’ है, जानो अमृत समान | ||
जानो अमृत समान, अगर खालिस ले आते | जानो अमृत समान, अगर खालिस ले आते | ||
आज शाम तक हम दोनों निश्चित मर जाते | आज शाम तक हम दोनों निश्चित मर जाते | ||
कहँ ‘काका’, यह सुनकर और चढ़ गया पारा | कहँ ‘काका’, यह सुनकर और चढ़ गया पारा | ||
गर्म हुईं वे, हृदय खौलने लगा हमारा | गर्म हुईं वे, हृदय खौलने लगा हमारा | ||
उनका मुखड़ा क्रोध से हुआ लाल तरबूज | उनका मुखड़ा क्रोध से हुआ लाल तरबूज | ||
पंक्ति 150: | पंक्ति 150: | ||
अथवा इस पर ‘जनमत-संग्रह’ करवाएँगे | अथवा इस पर ‘जनमत-संग्रह’ करवाएँगे | ||
शीतयुद्ध-सा छिड़ गया, बढ़ने लगा तनाव | शीतयुद्ध-सा छिड़ गया, बढ़ने लगा तनाव | ||
लालबुझक्कड़ आ गए, करने बीच-बचाव | लालबुझक्कड़ आ गए, करने बीच-बचाव | ||
करने बीच-बचाव, खोल निज मुँह का फाटक | करने बीच-बचाव, खोल निज मुँह का फाटक | ||
एक साँस में सभी दूध पी गए गटागट | एक साँस में सभी दूध पी गए गटागट | ||
कहँ ‘काका’, यह न्याय देखकर काकी बोली- | कहँ ‘काका’, यह न्याय देखकर काकी बोली- | ||
चलो हाथरस, मंसूरी को मारो गोली | चलो हाथरस, मंसूरी को मारो गोली | ||
</poem> | </poem> | ||
{{Poemclose}} | {{Poemclose}} |
09:18, 12 जून 2013 का अवतरण
| ||||||||||||||||||
|
देवी जी कहने लगीं, कर घूँघट की आड़ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख