"तिरंगा": अवतरणों में अंतर
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09:09, 12 अगस्त 2013 का अवतरण
तिरंगा
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नाम | तिरंगा |
प्रयोग | राष्ट्रीय ध्वज |
अनुपात | 2:3 |
अंगीकृत | 22 जुलाई, 1947 |
रूपरेखा | तिरंगे में सबसे ऊपर गहरा केसरिया, बीच में सफ़ेद और सबसे नीचे गहरा हरा रंग बराबर अनुपात में है। सफ़ेद पट्टी के केंद्र में गहरा नीले रंग का चक्र है। चक्र की परिधि लगभग सफ़ेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर है। चक्र में 24 तीलियाँ हैं। |
अभिकल्पनाकर्ता | पिंगलि वेंकय्या |
संबंधित लेख | वन्दे मातरम्, राष्ट्रगान, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस |
विशेष | सन् 1904 में स्वामी विवेकानन्द की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने पहली बार एक ध्वज बनाया था, जिसे बाद में 'सिस्टर निवेदिता' ध्वज के नाम से जाना गया। |
अन्य जानकारी | हर 'स्वतंत्रता दिवस' और 'गणतंत्र दिवस' पर लाल क़िले की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज को बड़े ही आदर और सम्मान के साथ फहराया जाता है। |
तिरंगा भारत का राष्ट्रीय ध्वज है, जो तीन रंगों से बना है, इसलिए इसे 'तिरंगा' कहते हैं। तिरंगे में सबसे ऊपर गहरा केसरिया, बीच में सफ़ेद और सबसे नीचे गहरा हरा रंग बराबर अनुपात में है। ध्वज को साधारण भाषा में झंडा भी कहा जाता है। झंडे की चौड़ाई और लम्बाई का अनुपात 2:3 है। सफ़ेद पट्टी के केंद्र में गहरा नीले रंग का चक्र है, जिसका प्रारूप अशोक की राजधानी सारनाथ में स्थापित सिंह के शीर्षफलक के चक्र में दिखने वाले चक्र की भांति है। चक्र की परिधि लगभग सफ़ेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर है। चक्र में 24 तीलियाँ हैं। राष्ट्रीय ध्वज 22 जुलाई, 1947 को भारत के संविधान द्वारा अपनाया गया था।
रंगों का महत्त्व
तिरंगे में रंगो का क्या महत्त्व है, यह इस प्रकार है-
- 'केसरिया' यानी 'भगवा रंग' वैराग्य का रंग है। हमारे आज़ादी के दीवानों ने इस रंग को सबसे पहले अपने ध्वज में इसलिए सम्मिलित किया, जिससे आने वाले दिनों में देश के नेता अपना लाभ छोड़ कर देश के विकास में खुद को समर्पित कर दें। जैसे भक्ति में साधु वैराग लेकर मोह-माया से हट भक्ति का मार्ग अपनाते हैं।
- 'श्वेत रंग' प्रकाश और शांति के प्रतीक के रूप में लिया गया है।
- 'हरा रंग' प्रकृति से संबंध और संपन्नता को दर्शाता है।
- ध्वज के केंद्र में स्थित अशोक चक्र धर्म के 24 नियमों की याद दिलाता है।
तिरंगे का निर्माण
हमारे राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास भी बहुत रोचक है। 20वीं सदी में जब देश ब्रिटिश सरकार की ग़ुलामी से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब स्वतंत्रता सेनानियों को एक ध्वज की ज़रूरत महसूस हुई, क्योंकि ध्वज स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का प्रतीक रहा है। सन् 1904 में विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने पहली बार एक ध्वज बनाया, जिसे बाद में सिस्टर निवेदिता ध्वज के नाम से जाना गया। यह ध्वज लाल और पीले रंग से बना था। पहली बार तीन रंग वाला ध्वज सन् 1906 में बंगाल के बँटवारे के विरोध में निकाले गए जलूस में शचीन्द्र कुमार बोस लाए। इस ध्वज में सबसे उपर केसरिया रंग, बीच में पीला और सबसे नीचे हरे रंग का उपयोग किया गया था। केसरिया रंग पर 8 अधखिले कमल के फूल सफ़ेद रंग में थे। नीचे हरे रंग पर एक सूर्य और चंद्रमा बना था। बीच में पीले रंग पर हिन्दी में वंदे मातरम् लिखा था।
सन 1908 में भीकाजी कामा ने जर्मनी में तिरंगा झंडा लहराया और इस तिरंगे में सबसे ऊपर हरा रंग था, बीच में केसरिया, सबसे नीचे लाल रंग था। इस झंडे में धार्मिक एकता को दर्शाते हुए; हरा रंग इस्लाम के लिए और केसरिया हिन्दू और सफ़ेद ईसाई व बौद्ध दोनों धर्मों का प्रतीक था। इस ध्वज में भी देवनागरी में वंदे मातरम् लिखा था और सबसे ऊपर 8 कमल बने थे। इस ध्वज को भीकाजी कामा, वीर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा ने मिलकर तैयार किया था। प्रथम विश्व युद्ध के समय इस ध्वज को बर्लिन कमेटी ध्वज के नाम से जाना गया, क्योंकि इसे बर्लिन कमेटी में भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा अपनाया गया था।
तिरंगे का विकास
सन 1916 में पिंगली वेंकैया ने एक ऐसे ध्वज की कल्पना की, जो सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बाँध दे। उनकी इस पहल को एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी का साथ मिला और इन तीनों ने मिल कर नेशनल फ़्लैग मिशन का गठन किया। वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से सलाह ली और गांधी जी ने उन्हें इस ध्वज के बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी, जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बाँधने का संकेत बने। पिंगली वेंकैया लाल और हरे रंग के की पृष्ठभूमि पर अशोक चक्र बना कर लाए पर गांधी जी को यह ध्वज ऐसा नहीं लगा कि जो संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता है। राष्ट्रीय ध्वज में रंग को लेकर तरह-तरह के वाद-विवाद चलते रहे। अखिल भारतीय संस्कृत कांग्रेस ने सन् 1924 में ध्वज में केसरिया रंग और बीच में गदा डालने की सलाह इस तर्क के साथ दी कि यह हिंदुओं का प्रतीक है। फिर इसी क्रम में किसी ने गेरुआ रंग डालने का विचार इस तर्क के साथ दिया कि ये हिन्दू, मुसलमान और सिख तीनों धर्म को व्यक्त करता है।
कमेटी का गठन
काफ़ी तर्क वितर्क के बाद भी जब सब एकमत नहीं हो पाए तो सन् 1931 में 'अखिल भारतीय कांग्रेस' के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई। इसी साल कराची कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार ध्वज, जिसमें केसरिया, श्वेत और हरे रंग के साथ केंद्र में अशोक चक्र स्थित था, को सहमति मिल गई। इसी ध्वज के तले आज़ादी के परवानों ने कई आंदोलन किए और 1947 में अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। आज़ादी की घोषणा से कुछ दिन पहले फिर कांग्रेस के सामने ये प्रश्न आ खड़ा हुआ कि अब राष्ट्रीय ध्वज को क्या रूप दिया जाए। इसके लिए फिर से डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई और तीन सप्ताह बाद 14 अगस्त को इस कमेटी ने 'अखिल भारतीय कांग्रेस' के ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में घोषित करने की सिफ़ारिश की। 15 अगस्त, 1947 को तिरंगा हमारी आज़ादी और हमारे देश की आज़ादी का प्रतीक बन गया।
प्रथम ध्वज
1906 में पहली बार भारत का गैर आधिकारिक ध्वज फ़हराया गया था। 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। 7 अगस्त, 1906 को 'बंगाल विभाजन' के विरोध में पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता[1] में इसे कांग्रेस के अधिवेशन ने फहराया था। प्रथम ध्वज लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। ऊपर की ओर हरी पट्टी में 8 आधे खिले हुए कमल के फूल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चाँद बनाए गए थे व बीच की पीली पट्टी पर 'वन्दे मातरम्' लिखा गया था।[2] वह तिरंगा झंडा, जिसे पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आज से 60 साल पहले संसद के केंद्रीय कक्ष में फहराया था, गायब बताया जा रहा है।
द्वितीय ध्वज
द्वितीय ध्वज को पेरिस में भीकाजी कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार यह 1905 में हुआ था। ध्वजारोहण के बाद सुबह साढ़े आठ बजे इंडिया गेट पर लोगों के हुजूम की करतल ध्वनि के बीच यूनियन जैक को उतारकर भारतीय राष्ट्रीय झंडे को फहराया गया था। यह भी पहले ध्वज के समान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था, किंतु सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
तृतीय ध्वज
15 अगस्त की सुबह लाल क़िले में भी तिरंगा लहराया था। आज़ादी के साठ साल हो चुके हैं, लेकिन कोई नहीं जानता कि वे तीनों झंडे कहाँ हैं और न ही उनका पता लगाने की कोशिश की गई।
1917 में भारतीय राजनीतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियाँ एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर बने सात सितारे थे। बांयी और ऊपरी किनारे पर[3] यूनियन जैक था। एक कोने में सफ़ेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
आज़ादी की 60वीं सालगिरह और 1857 के विद्रोह के 150 साल के अवसर पर समारोहों का समन्वय कर रहे संस्कृति मंत्रालय को भी आज़ाद भारत में फहराए गए पहले झंडों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। केन्द्रीय संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी ने कहा, स्वतंत्रता दिवस समारोह रक्षा मंत्रालय आयोजित करता है। उसे इसका पता लगाना चाहिए। अगर पता लग जाए तो उन्हें हमारे संग्रहालय में रखा जा सकता है।
संस्कृति मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 1997 में आज़ादी की 50वीं सालगिरह के अवसर पर इन झंडों का पता लगाने की कोशिश हुई थी। मंत्रालय ने झंडों का पता लगाने के लिए रक्षा मंत्रालय को लिखा था। लेकिन कोई रेकॉर्ड नहीं होने से उनके बारे में कुछ पता नहीं लगा।
संसद अभिलेखागार के निदेशक फ्रैंक क्रिस्टोफर ने बताया, हमारे पास संसद से जुड़े कई स्मृतिचिह्न हैं, लेकिन 14 अगस्त की रात को फहराया गया झंडा नहीं है। अगर उसका पता लग जाए तो हम उसे अपने अभिलेखागार में रखना चाहेंगे। लोकसभा के महासचिव पी. डी. टी. आचार्य का कहना है, कोई नहीं जानता कि सेंट्रल हॉल में पंडित नेहरू द्वारा फहराया गया तिरंगा कहाँ है, क्योंकि उसका कोई रेकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
तिरंगे का उचित प्रयोग
राष्ट्रीय ध्वज हमारे देश की पहचान है। इसलिए हर भारतीय का यह कर्तव्य है कि वह भारतीय तिरंगे को पूरा सम्मान दे। कोई भी व्यक्ति तिरंगे की गरिमा को धूमिल ना करे, इसके लिए भारतीय क़ानून में कुछ धाराएँ बनाई गई है। फ्लैग कोड इंडिया- 2002 में राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ी कुछ ख़ास बातों का ज़िक्र किया गया है, जिसे हम भारतीयों को जानना ज़रूरी है। सन् 2002 के पहले आम जनता राष्ट्रीय दिवस को छोड़ किसी और दिन इसे किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं लगा सकती थी। सिर्फ़ सरकारी कार्यालयों में ही इसे लगाया जा सकता था। सन् 2002 में भारत के जाने माने उद्योगपति नवीन जिंदल ने अपने कार्यालय के ऊपर राष्ट्रीय ध्वज लगाया था, जिसके लिए उन्हें सूचित किया गया कि उन्हें ऐसा करने पर क़ानूनी कार्रवाई से गुज़राना होगा। इसके विरोध में उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका इस बाबत दायर की कि भारत की आम जनता को सम्मान के साथ राष्ट्रीय ध्वज लहराने और उसे प्यार देने का नागरिक अधिकार है। यह मामला उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय में गया और न्यायालय ने भारत सरकार को इस मामले पर विचार करने के लिए एक कमेटी बिठाने की सलाह दी। अंत में भारतीय मंत्रालय ने एक संवैधानिक संशोधन कर सभी भारतवासियों को साल के 365 दिन राष्ट्रध्वज सम्मान के साथ लगाने का अधिकार दिया।
तिरंगे का सम्मान
झंडा ऊँचा रहे हमारा...
विश्व विजयी तिरंगा प्यारा...
उपरोक्त गीत भारत का बच्चा-बच्चा बड़ी ही शान से गुनगुनाता है। इस ध्वज में ऐसी क्या बात है, जिसने आज़ादी के परवानों में एक नया जोश भर दिया था और जो आज भी हर भारतीय को अपने गरिमामय इतिहास की याद दिलाता है और विभिन्नता में एकता वाले इस देश को एक सूत्र में बाँधे हुए है। हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर लाल क़िले की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज को बड़े ही आदर और सम्मान के साथ फहराया जाता है। देश के प्रथम नागरिक से लेकर आम नागरिक तक इसे सलामी देता है। 21 तोपों की सलामी से सेना इसका सम्मान करती है। किसी भी देश का झंडा उस देश की पहचान होता है। तिरंगा हम भारतीयों की पहचान है। राष्ट्रीय झंडे ने पहली बार आज़ादी की घोषणा के कुछ ही दिन पहले 22 जुलाई, 1947 को पहली बार अपना वो रंग रूप पाया जो आज तक क़ायम है। सबसे ऊपर केसरिया रंग फिर सफ़ेद और सबसे नीचे हरा। बीच में गहरे नीले रंग का चक्र बना है, जिसमें 24 चक्र हैं, जिसे हम 'अशोक चक्र' के नाम से जानते हैं।
तिरंगे की बनावट पर देश में काफ़ी ध्यान दिया जाता है, क्योंकि ये हमारे सम्मान से जुड़ा हुआ है। हर तिरंगे में अशोक चक्र श्वेत रंग के तीन चौथाई भाग में ही होना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज खादी के कपड़े का होना चाहिए। आज जो ध्वज हमारे देश की पहचान है, उसे इस रूप में ढालने वाले थे- पिंगली वेंकैया। इसी के साथ ध्वज के सम्मान की बात भी स्पष्ट कर दी गई कि ध्वज फहराने के समय किस आचरण संहिता का ध्यान रखा जाना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज कभी भूमि पर नहीं गिरना चाहिए और ना ही धरातल के संपर्क में आना चाहिए। सन् 2005 के पहले तक इसे वर्दियों और परिधानों में उपयोग में नहीं लाया जा सकता था, लेकिन सन् 2005 में फिर एक संशोधन के साथ भारतीय नागरिकों को इसका अधिकार दिया गया, लेकिन इसमें ध्यान रखने वाली बात ये है कि ये किसी भी वस्त्र पर कमर के नीचे नहीं होना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज कभी अधोवस्त्र के रूप में नहीं पहना जा सकता है।
ध्वज अनिवार्य
सभी राष्ट्रों के लिए एक ध्वज होना अनिवार्य है। लाखों लोगों ने इस पर अपनी जान न्यौछावर की है। यह एक प्रकार की पूजा है, जिसे नष्ट करना पाप होगा। ध्वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्व करता है। यूनियन जैक अंग्रेज़ों के मन में भावनाएँ जगाता है, जिसकी शक्ति को मापना कठिन है। अमेरिकी नागरिकों के लिए ध्वज पर बने सितारे और पट्टियों का अर्थ उनकी दुनिया है। इस्लाम धर्म में सितारे और अर्ध चन्द्र का होना सर्वोत्तम वीरता का आहवान करता है। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था- "हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय मुस्लिम, ईसाई, ज्यूस, पारसी और अन्य सभी, जिनके लिए भारत एक घर है, एक ही ध्वज को मान्यता दें और इसके लिए मर मिटें।"
भारत का झंडा कोड
समय-समय पर सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले गैर सांविधिक अनुदेशनों के अतिरिक्त राष्ट्रीय झंडे का प्रदर्शन प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोक) अधिनियम, 1950 (संख्या 1950 का 12) और राष्ट्रीय गौरव का अनादर अधिनियम, 1971 (संख्या 1971 का 69) के अध्याधीन शासित होता है। भारत का झंडा कोड, 2002 ऐसे सभी नियमों, अभिसमयों, परम्पराओं और सभी संबंधितों के मार्गदर्शन और लाभ के अनुदेशनों को एक साथ मिलाने का प्रयास है।
भारत का झंडा कोड 2002, 26 जनवरी 2002 से प्रवृत हुआ और जैसे ही यह अस्तित्व में आया भारत का झंडा कोड रद्द हो गया। भारत का झंडा कोड 2002 के प्रावधानों के अनुसार सामान्य जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थाओं, आदि द्वारा राष्ट्रीय झंडा का उत्तोलन करने में कोई प्रतिबंध नहीं है केवल प्रतीक एवं नाम (अनुचित उपयोग की रोक) अधिनियम 1950 और राष्ट्रीय गौरव का अनादर अधिनियम, 1971 और कोई अन्य क़ानून इस विषय पर अधिनियमित किए गए हैं में यह लागू नहीं होता है।
तिरंगे के नियम
तिरंगे को रखरखाव का नियम
हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय मुस्लिम, ईसाई, ज्यूस, पारसी और अन्य सभी, जिनके लिए भारत एक घर है, एक ही ध्वज को मान्यता दें और इसके लिए मर मिटें।
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- आज़ादी से ठीक पहले 22 जुलाई, 1947 को तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया। तिरंगे के निर्माण, उसके आकार और रंग आदि तय हैं।
- 'फ्लैग कोड ऑफ इंडिया' के तहत झंडे को कभी भी ज़मीन पर नहीं रखा जाएगा।
- उसे कभी पानी में नहीं डुबोया जाएगा और किसी भी तरह नुक़सान नहीं पहुँचाया जाएगा। यह नियम भारतीय संविधान के लिए भी लागू होता है।
- क़ानूनी जानकार डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-2 के मुताबिक, फ्लैग और संविधान की इन्सल्ट करने वालों के ख़िलाफ़ सख्त क़ानून हैं।
- अगर कोई शख़्स झंडे को किसी के आगे झुका देता हो, उसे कपड़ा बना देता हो, मूर्ति में लपेट देता हो या फिर किसी मृत व्यक्ति (शहीद हुए आर्म्ड फोर्सेज के जवानों के अतिरिक्त) के शव पर डालता हो, तो इसे तिरंगे की इन्सल्ट माना जाएगा।
- तिरंगे की यूनिफॉर्म बनाकर पहन लेना भी ग़लत है।
- अगर कोई शख़्स कमर के नीचे तिरंगा बनाकर कोई कपड़ा पहनता हो तो यह भी तिरंगे का अपमान है।
- तिरंगे को अंडरगार्मेंट्स, रुमाल या कुशन आदि बनाकर भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
तिरंगे को फहराने के नियम
- सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही तिरंगा फहराया जा सकता है।
- फ्लैग कोड में आम नागरिकों को सिर्फ़ 'स्वतंत्रता दिवस' और 'गणतंत्र दिवस' पर तिरंगा फहराने की छूट थी, लेकिन 26 जनवरी, 2002 को सरकार ने इंडियन फ्लैग कोड में संशोधन किया और कहा कि कोई भी नागरिक किसी भी दिन झंडा फहरा सकता है, लेकिन वह फ्लैग कोड का पालन करेगा।
- 2001 में इंडस्ट्रियलिस्ट नवीन जिंदल ने कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि नागरिकों को आम दिनों में भी झंडा फहराने का अधिकार मिलना चाहिए। कोर्ट ने नवीन के पक्ष में ऑर्डर दिया और सरकार से कहा कि वह इस मामले को देखे। केंद्र सरकार ने 26 जनवरी, 2002 को झंडा फहराने के नियमों में बदलाव किया और इस तरह हर नागरिक को किसी भी दिन झंडा फहराने की इजाजत मिल गई।[4]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वर्तमान कोलकाता
- ↑ भारतीय तिरंगे का इतिहास (हिन्दी) भास्कर डॉट ओ आर जी। अभिगमन तिथि: 11 अक्तूबर, 2010।
- ↑ खंभे की ओर
- ↑ चौधरी, राजेश। तिरंगा फहराने के कायदे-क़ानून (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 11 अक्तूबर, 2010।
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