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Ankit Saroj (वार्ता | योगदान) छो ('''प्रतापगढ़ '''प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण जनपद है यह जनपद इलाहबाद मंडल के अंतर्गत आ) |
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हेमवती नंदन बहुगुणा पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री कालेज, लालगंज | हेमवती नंदन बहुगुणा पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री कालेज, लालगंज | ||
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03:33, 12 फ़रवरी 2014 का अवतरण
प्रतापगढ़ प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण जनपद है यह जनपद इलाहबाद मंडल के अंतर्गत आता है साँचा:Infobox Indian Jurisdiction
प्रतापगढ़ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है , इसे लोग बेल्हा भी कहते हैं, क्योंकि यहां बेल्हा देवी मंदिर है जो कि सई नहीं के किनारे बना है। इस जिले को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से काफी अहम माना जाता है। यहां के विधानसभा क्षेत्र पट्टी से ही देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने पदयात्रा के माध्यम से अपना राजनैतिक करियर शुरू किया था। इस धरती को रीतिकाल के श्रेष्ठ कवी आचार्य भिखारीदास और राष्ट्रीय कवि हरिवंश राय बच्चन की जन्मस्थली के नाम से भी जाना जाता है।यह जिला धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी कि जन्मभूमि और महात्मा बुद्ध की तपोस्थली है।
इतिहास
ये जिला फैजाबाद डिवीजन का एक हिस्सा है जिसका नाम इसके मुख्यालय शहर बेल्हा-प्रतापगढ़ के नाम पर रखा गया है। एक स्थानीय राजा, राजा प्रताप बहादुर, जिनका कार्यकाल सन् १६२८ से लेकर १६८२ के मध्य था, उन्होने अपना मुख्यालय रामपुर के निकट एक पुराने कस्बे अरोर में स्थापित किया। जहाँ उन्होने एक किले का निर्माण कराया और अपने नाम पर ही उसका नाम प्रतापगढ़ (प्रताप का किला) रखा।धीरे-धीरे उस किले के आसपास का स्थान भी उस किले के नाम से ही जाना जाने लगा यानि प्रतापगढ़ के नाम से। जब 1858 मे जिले का पुनर्गठन किया गया तब इसका मुख्यालय बेल्हा में स्थापित किया गया जो अब बेल्हा प्रतापगढ़ के नाम से विख्यात है। बेल्हा नाम वस्तुतः बेल्हा देवी मन्दिर अथवा बेला पासी नामक राजा के नाम पर पडा
पौराणिक महत्व
रामायण
रामायण
तीर्थराज प्रयाग के निकट पतित पावनी गंगा नदी के किनारे बसा प्रतापगढ़ जिला एतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से काफी महत्तवपूर्ण माना जाता है।उत्तर प्रदेश का यह जिला रामायण तथ महाभारत के कई महत्तवपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है।मान्यता है कि बेल्हा की पौराणिक नदी सई के तट से होकर प्रभु श्रीराम वनगमन के समय आयोध्या से दक्षिण की ओर गए थे।उनके चरणो से यहा की नदियों के तट पवित्र हुए है। भगवान श्रीराम के वनवास यात्रा मे उत्तर प्रदेश के जिन पाँच प्रभुख नदियो का जिक्र रामचरित्रमानस मे है,उनमे से एक प्रतापगढ़ की सई नदी है।जिसका जिक्र इस प्रकार है।
- सई उत्तर गोमती नहाये।,
- चैथे दिवस अवधपुर आये।।
ऐसी भी किवदंती है कि लालगंज तहसील स्थित घुइसरनाथ धाम मे भगवान राम ने पूजन पाठ कर दुर्लभ त्रेतायुगी करील वृक्ष की छाया मे विश्राम किए थे।जिसका उल्लेख रामायण मे कुछ इस तरह है,
- नव रसाल वन विहरन शीला।,
- सोह कि कोकिल विपिन करीला।।
रामायण के चित्रण मे प्रतापगढ़ की बकुलाही नदी का संक्षिप्त उल्लेख "बाल्कुनी" नदी के नाम से हुआ।महर्षि वाल्मिकि द्वारा रचित वाल्मिकि रामायण मे इसका वर्णन इन पंक्तियो से है।
- सो अपश्यत राम तीर्थम् च नदी बालकुनी तथा बरूठी,
- गोमती चैव भीमशालम् वनम् तथा।
महाभारत
प्रतापगढ़ के रानीगंज अजगरा मे राजा युधिष्ठिर व यक्ष संवाद हुआ था और जिले के ही भयहरणनाथ धाम मे पांडवो न बकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाई थी।बाल्कुनी नदी के तट पर ही पूजा स्नान कर शिवलिंग की स्थापना महाबली भीमसेन ने की थी।महाभारत मे हंडौर राक्षस हिडिम्ब का निवास क्षेत्र था और बांकाजलालपुर राक्षस बकासुर का क्षेत्र था।प्रतापगढ़ के चकवड़ का जिक्र महाभारत मे चक्रनगरी नाम से हुआ है।
बौद्धकाल
प्रतापगढ़ की पावन भूमी महात्मा बुद्ध की तपोस्थली रह चुकी है।जिले के कोट मे भगवान बुद्ध तीन माह तक तपस्या किए थे।प्रतापगढ़ के कई स्थानो मे बौद्धकालीन भग्नावशेष प्राप्त हुए है।
भौगोलिक विस्तार
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख जिला है। जो सन् १८५८ में अस्तित्व में आया। प्रतापगढ़-कस्बा जिले का मुख्यालय है। ये जिला इलाहाबाद मंडल का एक हिस्सा है। ये जिला २५° ३४' और २६° ११' उत्तरी अक्षांश) एवं ८१° १९' और ८२° २७' पूर्व देशान्तर रेखांओं पर स्थित है।
प्रतापगढ़ शहर में जल स्तर सन् २०१२ के अनुसार ८० फिट से लेकर १४० फिट तक है।ये जिला इलाहाबाद फैजाबाद के मुख्य सड़क पर, ६१ किलोमीटर इलाहाबाद से और ३९ किलोमीटर सुल्तानपुर से दूर पड़ता है।
समुद्र तल से इस जिले की ऊँचाई १३७ मीटर के लगभग है।ये पूर्व से पश्चिम की ओर ११० किलोमीटर फैला हुआ है।इसके दक्षिण-पश्चिम में गंगा नदी ५० किलोमीटर का घेरा बनाती है जो इसे इलाहाबाद व कौशाम्बी (फतेहपुर) से अलग करती है।गंगा,सई,बकुलाही यहाँ कि प्रमुख नदिया है|लोनी तथा सरकनी नदी जनपद में बहती है| उत्तर-पूर्व में गोमती नदी लगभग ६ किलोमीटर का घेरा बनाते हुये प्रवाहित होती हैं।
मानसून
प्रतापगढ़ में मानसून का आगमन अप्रैल के प्रथम या द्वितीय सप्ताह से शुरु हो जाता है।बारिस की हल्की-हल्की बूंदा-बादी, ठण्ड हवाओं के तेज झोंके व हर तरफ पेड़ों पर दिखने वाली हरियाली बड़ी ही मनोरम लगती है।गर्मी का मौसम यहाँ पर मार्च के आखिरी सप्ताह से शुरू हो जाता है। लेकिन कूलर चलाने की नौबत अप्रैल से ही पड़ती है।मई-जून में गर्मी का प्रकोप हर वर्ग को झेलना पड़ता है।जुलाई से बारिस की ठण्डी फुहारें आये दिन मौसम को नम करती रहती है। अक्टूबर तक बूंदा-बादी का ये सिलसिला चलता रहता है।नवम्बर से ठण्ड की सुगबुगाहट शुरु हो जाती है। घर के पंखे बंद होने लगते हैं और स्वेटर व रजाई आलमारी से बाहर आकर छतों पर धूप सेकने के लिये तैयार हो जाते हैं।मैदानी व समुद्र तल से अधिक ऊँचाई पर होने के कारण ये इलाका बाढ़ मुक्त है।
जनवरी व फरवरी में कड़ाके की ठण्ड के साथ ही भयानक कोहरा व धुंध सुबह के वक्त राजमार्गों पर वाहनों के लिये समस्या उत्पन्न कर देता है जिससे न चाहते हुये भी लोगों को वाहनों की हैड लाइट जलानी ही पड़ती है।प्रतापगढ़ जिले का गरमियों में अधिकतम तापमान लगभग ४६ डिग्री व सर्दियों में न्युनतम तापमान लगभग 3 डिग्री के आसपास होता है।
जनसांख्यिकी
भारतीय जनगणना २००१ के अनुसार प्रतापगढ़ जिले का जनसँख्या २,७२७,१५६ है।लगभग 22 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जातियों की है। मुसलमान जनसंख्या का लगभग 14 प्रतिशत हिस्सा हैं।
व्यक्ति २,७३१,१७४
पुरुष १,३६२,९४८
महिलाएँ १,३६८,२२६
बच्चे (० से ४ वर्ष) ३२९,४४५
दशकीय वृद्धि (१९९१-२००१) २३.३६%
ग्रामीण २,५८६,६१९ (९४.७१%)
शहरी १४४,५५५ (५.२९%)
लिंग अनुपात (प्रति 1000 महिलाएँ) १,००४
परिवार का आकार (प्रति परिवार) ६
अनु.जा. जनसंख्या ६०१,०४३ (२२.०१%)
अनु.ज.जा. जनसंख्या १५९ (०.०१%)
साक्षरता
आंकड़े बताते हैं कि जिले की मौजूदा आबादी आठ लाख ६८ हजार २३१ है। इनमें ४३७९५० पुरुष और ४३०२८१ महिलाएं शामिल हैं। प्रतापगढ़ में पिछले साल (२०१०) में कराए गए सर्वे के अनुसार एक लाख ८४ हजार १४४ लोग निरक्षर हैं। इनमें १५ वर्ष से अधिक उम्र के युवा, महिला एवं पुरुष शामिल हैं। वर्ष २०११ के सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रतापगढ़ का साक्षरता के क्षेत्र में प्रदेश में ३१ वा स्थान है। जिले का कुल साक्षरता प्रतिशत ५६.३ है। प्रतापगढ़ से कम प्रतिशत सिर्फ सिरोही और जालौर का है। पुरुष साक्षरता में प्रतापगढ़ 32 वें तथा महिला साक्षरता में २९ वें पायदान पर है। जिले में साक्षरता वृद्धि दर के क्षेत्र में महिलाएं आगे हैं। सरकार की ओर से जारी वर्ष २०११ के आंकड़ों के अनुसार जिले में पुरुष साक्षरता दर कम है। वर्ष २००१ में पुरुष साक्षरता दर ६४.२७ प्रतिशत थी, जो ५.८६ की वृद्धि दर से बढ़कर २०११ में ७०.१३ हो गई है। महिलाओं की साक्षरता दर वर्ष २००१ में ३१.७७ प्रतिशत थी जो १०.६३ की वृद्धि के साथ वर्ष २०११ में ४२.४० प्रतिशत तक पहुंच गई। इस प्रकार पुरुषों की साक्षरता वृद्धि दर जहां ५.८६ रही वहीं महिलाओं की साक्षरता वृद्धि दर १०.६३ रही, जो पुरुषों के मुकाबले ४.७७ प्रतिशत अधिक है।
स्वतंत्रता संग्राम
क्रांति १८५७
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में प्रतापगढ़ का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है।१८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे बेल्हा के वीर सपूतो ने भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणो की आहूति देने से पीछे नही हटे।१८५७ की महान क्रांति में देश के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने वाले अमर शहीद बाबू गुलाब सिंह को इतिहास हमेशा याद रखेगा। तरौल के तालुकेदार बाबू गुलाब सिंह ने अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। जब इलाहाबाद से लखनऊ अंग्रेजी सैनिक क्रांतिकारियों के दमन के लिए जा रहे थे। तब उन्होंने अपनी निजी सेना के साथ मांधाता क्षेत्र के कटरा गुलाब सिंह के पास बकुलाही नदी पर घमासान युद्ध करके कई अंग्रेजों को मार डाला था। बकुलाही का पानी अंग्रेजों के खून से लाल हो गया था। मजबूर होकर अंग्रेजी सेना को वापस लौटना पड़ा था। हालांकि इस लड़ाई में किले पर फिरंगी सैनिकों ने उनके कई सिपाही व उनकी महारानी को गोलियों से भून डाला था। मुठभेड़ में बाबू गुलाब सिंह गंभीर रूप से घायल हुए थे। उचित इलाज के अभाव में तीसरे दिन वह अमर गति को प्राप्त हो गए। ऐसे महान क्रांतिकारी की न तो कहीं समाधि बन पाई और न ही उनकी यादगार में स्मारक ही।
सन् १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में प्रतापगढ़ के कालाकाँकर रियासत के राजा हनुमंत सिंह के पुत्र श्री लाल प्रताप सिंह चांदा के पास अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और उनके चाचा अंग्रेजी सेना से लड़ते हुए शहीद हुए।
यंहा के राजा राम पाल सिंह भारतीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक थे।महात्मा गाँधी का ऐतिहासिक भाषण कालाकाँकर में हुआ।महात्मा गाँधी की उपस्थिति में राजा अवधेश सिंह ने विदेशी वस्त्रों की होली जलायी। जनवरी १९२० को सुभाष चन्द्र बोस प्रतापगढ़ आये और सभी से अंग्रेजी सेना में न भर्ती होने की अपील की यंहा सुभाष जी का स्वागत ५०००० लोगों ने किया। पश्चिम अवध प्रान्त के प्रतापगढ़ का यह क्षेत्र स्वतंत्र भारत की भावना लिए हमेशा ही जनांदोलन करते हुए कालाकाँकर वीरों की वीरगति से सजा हुआ स्वाधीनता संग्राम में सबसे आगे रहा।
पंडित वचनेश त्रिपाठी द्वारा रचित पाथेय कण (हिंदी पत्रिका) में प्रतापगढ़ में १८५७ कि क्रांति कि एक और घटना इस प्रकार है, अवध के प्रतापगढ़ जिले में एक दुर्ग जो सई नदी के किनारे है, खासकर जहाँ सई नदी दिशा बदलकर मु ड़ती है। यह दुर्ग चतुर्दिक सघन अरण्य से आवेष्ठित है। यहाँ चार हजार क्रांतिकारी सैनिक एकत्र थे तथा इनके पास वही गणवेश (वर्दी) था जो इन्हें ब्रिटिश सेना में पहनना पडता था। इसी सरकारी गणवेश में वे ब्रितानी फौज से लड़े थे। यह लडाई जैसा कि च् अवध गजेटियर छ में हवाला दिया गया, बड़ी विकट हुई। इस किले में तोपें बनाने तथा उनके लिए लोहा गलाने और गोले ढ़ालने के लिए बाकायदा भट्ठियाँ बनी हुई थीं, यहाँ से सब क्रन्तिकारी सिपाही हटे तो उनके पास जो तोपें थी उन्हें बेकार करके ही गये ताकि शत्रु सेना उनका उपयोग न कर पाये।
भारतीय किसान आन्दोलन
होमरूल लीग के कार्यकताओं के प्रयास तथा गौरीशंकर मिश्र, इन्द्र नारायण द्विवेदी तथा मदन मोहन मालवीय के दिशा निर्देशन के परिणामस्वरूप फ़रवरी, १९१८ ई. में उत्तर प्रदेश में 'किसान सभा' का गठन किया गया। १९१९ ई. के अन्तिम दिनों में किसानों का संगठित विद्रोह खुलकर सामने आया। प्रतापगढ़ ज़िले की एक जागीर में 'नाई धोबी बंद' सामाजिक बहिष्कार संगठित कारवाई की पहली घटना थी। अवध की तालुकेदारी में ग्राम पंचायतों के नेतृत्व में किसान बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया। झिंगुरीपाल सिंह एवं दुर्गपाल सिंह ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन जल्द ही एक चेहरे के रूप में बाबा रामचन्द्र उभर कर सामने आए। उत्तर प्रदेश के किसान आन्दोलन को १९२० ई. के दशक में सर्वाधिक मजबूती बाबा रामचन्द्र ने प्रदान की। उनके व्यक्तिगत प्रयासों से ही १७ अक्टूबर, १९२० ई. को प्रतापगढ़ ज़िले में 'अवध किसान सभा' का गठन किया गया। प्रतापगढ़ ज़िले का 'खरगाँव' किसान सभा की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था। इस संगठन को जवाहरलाल नेहरू, गौरीशंकर मिश्र, माता बदल पांडे, केदारनाथ आदि ने अपने सहयोग से शक्ति प्रदान की।
मुख्य आकर्षण
बेल्हा देवी मंदिर
प्रतापगढ़ स्थित सई नदी के किनारे पर ऎतिहासिक बेल्हा माई का मंदिर है ।जिले के अधिकांश भू-भाग से होकर बहने वाली सई नदी के तट पर नगर की अधिष्ठात्री देवी मां बेल्हा देवी का यह मंदिर स्थित है। सई नदी के तट पर माँ बेल्हा देवी का भव्य मंदिर होने के कारण जिले को बेला अथवा बेल्हा के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर की स्थापना को लेकर पुराणों में कहा गया है कि राजा दक्ष द्वारा कराएजा रहे यज्ञ में सती बगैर बुलाए पहुंच गईं थीं। वहां शिव जी को न देखकरसती ने हवन कुंड में कूदकर जान दे दी। जब शिव जी सती का शव लेकर चले तोविष्णु जी ने चक्र चलाकर उसे खंडित कर दिया था। जहां-जहां सती के शरीर काजो अंग गिरा, वहां देवी मंदिरों की स्थापना कर दी गई। यहां सती का बेला का (कमर) भाग गिरा था। भगवान राम जब वनवास(निर्वासन) के लिए जा रहे थे तब सई नदी के किनारे पर उन्होंने मंदिर में माँ बेल्हा देवी जी का पूजन अर्चन किया था।माता रानी के समक्ष सच्चे मनसे मांगी गई हर मुराद जरूर पूरी होती है।
भयहरणनाथ धाम
प्रसिद्ध धार्मिक, ऐतिहासिक व पौराणिक स्थल भयहरणनाथ धाम जनपद प्रतापगढ़ के मुख्यालय के दक्षिण लगभग ३० किलोमीटर पर स्थित है अपनी प्राकृतिक एवं अनुपम छटा तथा बकुलाहीनदी के तट पर स्थित होने के कारण यह स्थल आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यन्तजीवन्त है। लोकमान्यता है कि महाभारत काल मेंद्युत क्रीडा में पराजित होने के बाद पाण्डवों को जब १२ वर्षो के लिए वनवासमें जाना पड़ा था उसी दौरान उनके द्वारा इसी स्थल पर बकासुर नामक राक्षसका वध करके शिवलिंग की स्थापना की गयी थी।कहा जाता है कि पाण्डवों ने अपने आत्मविश्वास को पुनर्जागृत करने के लिए इस शिवलिंग को स्थापित किया थाइसी नाते इसे "भयहरणनाथ" कि संज्ञा से संबोधित किया गया। यह धाम आसपास के क्षेत्रों के लाखो लोगों की आस्था और विश्वास का केंद्र है।
घुइसरनाथ (घुश्मेश्वरनाथ) धाम )
धार्मिक और अध्यात्मिक और पौराणिक विशिष्टता के कारण यह शिव धाम करोड़ो श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। भगवान घुश्मेश्वर जी का यह धाम बाबा घुइसरनाथ धाम नाम से मानव समाज के प्राण में बस गया है।यहाँ भगवान घुश्मेश्वरज्योतिर्लिंग का बहुत विशाल मंदिर है।अवध के उत्तरी क्षेत्र बेल्हा में घुइसरनाथ धाम में स्थित बाबा घुश्मेश्वर नाथ मंदिर भारत के जागृत १२ ज्योतिर्लिंग में अति महत्वपूर्ण है।ज्योतिर्लिंग के बारहवें ज्योतिर्लिंग के रूप में बाबा घुश्मेश्वर नाथ की प्रसिद्ध सम्पूर्ण अवध में है। जिस आस्था श्रद्धा विश्वास के साथ दिनानुदिन यहां आने वाले श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है । वह किसी तर्क वितर्क की अपेक्षा नहीं रखती अपितु आत्मा की सहज परमात्मा को उपलब्ध कराने की सनातन परंपरा का पूंजी भूत उल्लास है। बाबा घुइसरनाथ धाम में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।भगवान घुश्मेश्वर नाथ जी सबके मन प्राण आत्मा व चेतना को जागृत कर देने वाले महादेव है, उनकी आराधना पूजा साधना मनुष्य को कल्याण कारी तत्वों से भर देती है। सई नदी के पावन तट के किनारे स्थित बाबा घुश्मेश्वर नाथ मन्दिर के आस्था का जन सैलाब, एक दूसरे को सहयोग करता उमड़ता रहता है। बाबा घुश्मेश्वर नाथ का महत्व हमारे धर्म ग्रन्थों व वेदों पुराणों में भी उल्लेखित है। साधक और ज्ञानियों की चेतना के केन्द्र में शिव आदि काल से उपस्थित है। भोले बाबा का विश्लेषण वैदिक काल से अब तक लगातार किया जा रहा है फिर भी पूरा नहीं हुआ है, हो भी नहीं सकता है। भोले बाबा अनादि अनंत अविनाशी है।
भक्ति धाम
प्रतापगढ़ जिले के कुंडा तहसील मुख्यालय से २ किलोमीटर पर भगवान राधा-कृष्ण को समर्पित भक्तिधाम मंदिर है।इस मंदिर की नीवं जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने रखी है।भक्तिधाम में भगवान श्री कृष्णलीला दर्शन के लिए भक्तों का ताँता लगा रहता है।भक्ति धाममें हर ओर राधे-राधे की गूंज सुनाई पड़ती है। मंदिर की रमणीय बनावट और धाम की राधे-राधे कि गूँज से वातावरण सुंदरता देखते ही बनती है।भक्तिधाम मनगढ़ में श्रीकृष्ण भगवान के जन्मोत्सव परधामको विद्युत झालरों से बखूबी सजाया जाता है और सबसे ज्यादा रमणीय राधा-कृष्ण दरबार दिखाई पड़ता है।धाम पर श्री कृष्ण जन्मोत्सव में सबसे अधिक भीड़ होती है।लाखों की संख्या में लोग जन्मोत्सव आयोजन में ही सम्मिलित होते हैं। हजारों भक्तो का आवागमन भगवान श्री कृष्ण जी के दर्शन के लिए हमेशा बना रहता है।
शनिदेव मंदिर
प्रतापगढ़ जिले के विश्वनाथगंज बाजार से लगभग २ किलो मीटर दूर कुशफरा के जंगल में भगवान शनि का प्राचीन पौराणिक मन्दिर लोगों के लिए श्रद्धा और आस्था के केंद्र हैं। कहते हैं कि यह ऐसा स्थान है जहां आते ही भक्त भगवान शनि जी की कृपा का पात्र बन जाता है।चमत्कारों से भरा हुआ यह स्थान लोगों को सहसा ही अपनी ओर खींच लेता है।यह धाम बाल्कुनी नदी के किनारे स्थित है। जो की अब बकुलाही नाम से भी जानी जाती है।अवध क्षेत्र के एक मात्र पौराणिक शनि धाम होने के कारण प्रतापगढ़ (बेल्हा) के साथ-साथ कई जिलों के भक्त आते हैं।
चंदिकन देवी शक्तिपीठ
सई नदी के उत्तर घने जंगल में स्थितसिद्ध पीठ मां चण्डिका देवी धामजिला मुख्यालय से लगभग 21 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर माँ चंडिका देवी को समर्पित है, माता रानी के धाम को माँ चंदिकन धाम से जाना जाता है।सिद्ध पीठ मां चण्डिका देवी धाममें मां की मूर्तिवैष्णों माता से मिलती है। वैष्णों धाम के बाद तीन पिंडी मूर्ति चण्डिका मेंही है। यहां से किसी भी भक्त को खाली हाथ नहीं लौटना पड़ा है। मां सबकी मन्नतें पूरी करती हैं। धाम में मूर्ति स्थापना केसही-सही समय का तो पता नहीं चलता, लेकिन इसकी प्राचीनता दो से ढ़ाई हजारवर्ष पूर्व होना बताई जाती है।प्रत्येक वर्ष चैत्र माह (फरवरी-मार्च) और अश्विन (सितम्बर-अक्टूबर) माह मेंचन्द्रिका देवी मेले का आयोजन किया जाता है। हजारों की संख्या में लोग इसमेले में सम्मिलित होते हैं।चंदिकन देवी मंदिर पर नवरात्र में सबसे अधिक भीड़ होती है। यहांश्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मां के दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओंका हुजूम देखने को मिलता है। वैसे आम दिनों में यहां मंगलवार को मेला लगताहै और बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। भीड़ को नियंत्रितकरने के लिए मंदिर में बैरीकेटिंग की गई जिससे श्रद्धालुओं को दिक्कत न हो।
शक्तिपीठ मां चौहर्जन धाम
प्रतापगढ़ में आदि शक्ति नव दुर्गा के पूजा स्थलों में शक्तिपीठ मां चौहर्जन धाम प्रमुख है। पौराणिक के साथ इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। लोगों का अटूट विश्वास है कि मां के दरबार में जो श्रद्धा से आया वह निराश नहीं रहा।पवित्र मंदिर की ऐतिहासिकता एवं निर्माण काल का वर्णन लोक कथाओं पुराणों एवं किवदंतियों में भी है। लोकमत है कि छठीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण कन्नौज नरेश जयचंद के दो सैनिकों आल्हा और ऊदल ने किया था।यह मंदिर रानीगंज पट्टी मार्ग पर लच्छीपुर बाजार से पश्चिम दिशा में चार किमी की दूरी पर स्थित है। चौहर्जन गांव के कारण यह चौहर्जन देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु हलवा पूड़ी का प्रसाद चढ़ाते हैं और मुंडन संस्कार कराते हैं।
हौदेश्वर नाथ धाम
प्रतापगढ़ जिले के तहसील मुख्यालय कुण्डा से बारह किलोमीटर दक्षिण दिशा में मां गंगा के पावनतट पर विराजमान बाबा हौदेश्वर नाथ धाम की महिमा अपने आप में विलक्षण है।धाम के बगल से अनवरत बहने वाली गंगा नदी का नाम यहीं से जाह्नवी पड़ा है।मलमास में भक्तों की भारी भीड़ लगती है। दूर दराज से शिव भक्त मंदिर मेंजलाभिषेक करने आतें हैं।
बाबा बेलखरनाथ धाम
जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी दूर सई नदी के किनारे स्थित बाबा बेलखरनाथ धाम बेलखरिया राजपूतों के इतिहास को समेटे हुए है। यहां आज भी सावनमें हजारों श्रद्धालु जलाभिषेक कर मन्नतें मांगते हैं। वनगमन के समयराजा बेलनृपति के शासनकाल में भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित बाबा बेलखरनाथधाम आज भी अपनी पौराणिक मान्यता के साथ ही ऐतिहासिक धरोहर को समेटे हुए है।मान्यता है कि राजा बेल के नाम से प्रसिद्ध इस शिवलिंग के समक्ष सच्चे मनसे मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है। दीवानगंज बाजार से लगभग तीन किमीदक्षिण की तरफ एक विशाल टीले पर यह पवित्र शिवधाम स्थापित है।
अन्य दर्शनीय स्थल
जिले मे डेरवा बाजार मे स्थित कचनार बीर बाबा मंदिर,देउम का बूढ़ेश्वरनाथ धाम,स्वरूपपुर (गौरा) का सूर्य मंदिर,धरमपुर का गायत्री धाम,हैंसी का खंडेश्वरनाथ धाम,शक्तीधाम,नायर देवी धाम,शाह बाबा मजार इत्यादि प्रतापगढ़ जनपद के अन्य दर्शनीय स्थलो मे प्रमुख है।
साहित्य,कला,संस्कृति
साहित्य
साहित्यिक दृष्टि से बेल्हा अत्यंत समृद्ध रहा है। रीतिकाल में इसी जनपद में सर्वाग विवेचक कवि भिखारीदास पैदा हुए जो अपने कवित्व शक्ति की बदौलत प्रसिद्धि हासिल की। उनकी कविताएं आज भी क्षेत्र में गूंजती हैं। इन्होंने कई ग्रंथों की रचना की जिसको प्रमाणिक ढंग से प्रकाशित किया गया है। इन पर शोध भी किये जा चुके हैं। आचार्य भिखारीदास ने अपने सभी ग्रंथों को राजा हिन्दूपति सिंह को समर्पित किया था। भिखारीदास का जन्म प्रतापगढ़ जनपद के टेऊंगा गांव में लगभग १६९८ ई. में हुआ था। यह स्थान उस समय नगर के रूप में था, जो आज भी राजा प्रतापगढ़ किले से लगभग तीन किलोमीटर दूर स्थित है। उनके द्वारा रचित ग्रंथों में छंदार्णव, काव्य निर्णय, श्रृंगार निर्णय, रस सारांस, विष्णुपुराण, अमरकोश शतरंज शतिका थी। हिन्दी के ख्यातिलब्ध राष्ट्रकवी हरिवंश राय बच्चन जी की जड़े प्रतापगढ़ का हिंदी साहित्य से एक घनिष्ट संबन्ध रहा है।जिले के कालाकांकर रियासत मे प्रसिद्ध छायावादी कवी सुमित्रानंदन पंत जी ने दस वर्ष रहकर कई साहित्य पुस्तको की रचना की।पंत जी की निवासस्थान "नक्षत्र" व (पंत जी की कुटी) आज भी जिले मे मौजूद है।वर्तमान मे यहाँ कई लेखक,कवी,पत्रकार व छोटे मोटे शायर साहित्य क्षेत्र मे सक्रिय है।
कला
प्रतापगढ़ मे भी प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यदि यहाँ प्रतिभाओं को भी निखारने का प्रयास किया जाय तो वें भी जिले का नाम देश मे रोशन कर सकती है। दिल मे अगर कुछ कर दिखाने का जज्बा है तो रास्ते अपने आप खुलते जाते है। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के बेल्हा की धरती इस मामले में काफी उर्वरा कही जा सकी तै जिसने हर क्षेत्र की प्रतिभाओं को जन्म दिया। राजनीति, साहित्य व कला के क्षेत्र मे यहां के लाडलों ने जिले का नाम ऊंचा किया है। वैसे तो प्रतापगढ़ की धरती का रिश्ता पहले से ही फिल्म नगरी मुम्बई से रहा है। अस्सी के दशक में जिले के राम सिंह ने जहां मुम्बई मे अपनी जगह बनाकर अपनी कला का लोहा मनवाया है, वहीं वालीबुड के महानायक के रूप मे जाने जाने वाले अमिताभ बच्चन का रिश्ता भी बेल्हा की मिट्टी से जुड़ा रहा । यहीं की मिट्टी मे उन्होंने बचपन की किलकारियां भरी है। अमिताभ बच्चन व उनकी पत्नी जया बच्चन आज भी इस रिश्ते को मानती है। इस धरती के नौनिहाल फिल्मी दुनिया से अपना रिश्ता मानते हुए अभिनय के क्षेत्र मे आगे बढ़ने का ख्वाब देखते रहते है। माया नगरी से मिलने वाला समर्थन यहां के कलाकारों को ताकत दे रहा है। इसी के चलते अभी तक बेल्हा के कई कलाकारों ने जिले का नाम रोशन करते हुए वालीबुड मे अपनी पहचान बना चुके है। वर्तमान में अभिनेता अनुपम श्याम ओझा,अमितेश सिंह,अभिनेत्री श्वेता तिवारी व गायक रवि त्रिपाठी ने अभिनय कला गायन क्षेत्र में प्रतापगढ़ का नाम रोशन किया है
संस्कृति
प्रतापगढ़ में आपको हर वर्ग के लोग मिल जायेंगे।अमीर, गरीब, अनपढ़, पढ़े-लिखे, किसान इत्यादि।जातिय विविधता भी यहाँ पर आपको बहुतायत में देखने को मिल जायेगी।जैसेः- हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख व ईसाई।हिन्दुओं का वर्चस्व प्रतापगढ़ में शुरु से ही रहा है।स्लिम तबका भी बेगमवाट नामक जगह पर बहुलता में देखा जा सकता है। जहाँ करीगरों की भरमार है। लोहे की आलमारियों से लेकर बिस्कुट फैक्टरियाँ तक इस जगह पर, आपको गली के किसी न किसी छोर पर मिल जायेंगी। दूसरी तरफ पंजाबी मार्केट, पंजाबियों का गढ़ माना जाता है। कपड़ों के व्यवसाय पर इनका दबदबा आज भी है। कपड़ों की खरीद-फरोख्त के लिये पंजाबी मार्केट सबसे उपयुक्त जगह मानी जाती है।कुछ साल पहले महिलाओं को सड़कों पर उतना नहीं देखा जा सकता था लेकिन आज माहौल काफी बदल चुका है। आधुनिकता की हवा यहाँ भी तेजी से चल निकली है। लड़कियाँ और महिलायें सड़कों पर घूम-घूम कर खरिदारी करती हुई आपको नजर आ जायेंगी।परिधानों में मुख्यता साड़ी, सलवार-सूट की बहुलता देखी जा सकती है। इसके अतिरिक्त लड़कियाँ भिन्न-भिन्न लिबासों में आपको नजर आ सकती है। जिनमें जिन्स-टीशर्ट, लाँग स्कर्ट प्रमुख हैं।कुछ मुस्लिम महिलायें आज भी बुर्के में दिख जाती है।जल्द ही दिल्ली व मुम्बई की तरह यहाँ भी परिधानों में आधुनिक व्यापकता दिखाई पड़ेगी।
उद्योग
प्रतापगढ़ मुख्य रूप से एक कृषिप्रधान व एक मैदानी इलाका है। जो मुख्यता आँवले के उत्पाद के लिये विख्यात है। आँवले से सम्बंधित हर उत्पाद आपको यहाँ पर मिल जायेगा। यहाँ से आँवले की सप्लाई डाबर व पतांजलि जैसी बड़ी-बड़ी कम्पनियों में की जाती है।पूरे हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा आंवला प्रतापगढ़ में पैदा होता है। क्षेत्र में कोई भी आधारभूत उद्योग नहीं है,ट्रैक्टर और आंवले की फैक्ट्री होने के बावजूद इस शहर के लोग रोजगार के लिए तरस रहे हैं। दोनों ही फैक्ट्रियां राजनीति की शिकार होने से बंद हो चुकी हैं । जिसके कारण यह क्षेत्र पूर्ण रूप से पिछड़ा क्षेत्र है, जिसके कारण यहां के स्थानीय लोगों में बेरोजगारी बढ़ रही है और लोगों को रोजगार के लिये अन्य क्षेत्रों में पलायन करना पड़ रहा है।
राजनीति
प्रतापगढ़ के विधानसभा क्षेत्रों के नाम हैं रानीगंज, कुंडा, विश्वनाथगंज, पट्टी, वीरापुर, गढ़वारा, सदर, बाबागंज, विहार, प्रतापगढ़ और रामपुर खास है। प्रतापगढ़ की राजनीति में यहाँ के तीन मुख्य राजघरानों का नाम हमेशा रहा।इनमे से पहला नाम है विश्वसेन राजपूत राय बजरंग बहादुर सिंह का परिवार है जिनके वंशज रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) हैं, राय बजरंग बहादुर सिंह हिमांचल प्रदेश के गवर्नर थे तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। दूसरा परिवार सोमवंशी राजपूत राजा प्रताप बहादुर सिंह का है और तीसरा परिवार राजा दिनेश सिंह का है जो पूर्व में भारत के वाणिज्य मंत्री और विदेश मंत्री जैसे पदों पर सुशोभित रहे। इनकी रियासत कालाकांकर क्षेत्र है। दिनेश सिंह की पुत्री राजकुमारी रत्ना सिंह भी राजनीति में हैं तथा प्रतापगढ़ की सांसद हैं।प्रतापगढ़ राजनिति में वर्तमान समय में प्रतापगढ़ संसदीय क्षेत्र से सांसद राजकुमारी रत्ना सिंह हैं और प्रतापगढ़ सभी विधानसभा क्षेत्र से कुंडा से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह "राजा भैया" हैं साथ ही साथ लगातार नौ बार जीत कर विश्व कीर्तिमान बनाने वाले कांग्रेस विधायक प्रमोद तिवारी हैं ।इस समय प्रतापगढ़ के सभी विधानसभा क्षेत्रों में से रामपुर खास और कुंडा को छोड़ सभी पर समाजवादी पार्टी का वर्चस्व है जो कुंडा विधायक राजा भैया के सपा समर्थन से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव -२०१२ में मिला है । रानीगंज विधानसभा सीट से सपा विधायक शिवाकांत ओझा हैं, पट्टी विधानसभा सीट से सपा विधायक राम सिंह पटेल हैं। बाबागंज विधानसभा सीट से सपा विधायक विनोद सरोज हैं इसके अलांवा विश्वनाथगंज, वीरापुर, गढ़वारा, सदर , विहार, प्रतापगढ़ सिटी से भी सपा के विधायक हैं ।इस समय प्रतापगढ़ में विकास नहीं बल्कि जाति-मजहब एवं बाहुबल के नाम की राजनीति है।
पुरातात्वित स्थल
सराय नाहरराय: सराय नाहरराय नामक मध्य पाषाणिक पुरास्थल उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर गोखुर झील के किनारे पर स्थित है। इस पुरास्थल की खोज के.सी.ओझा ने की थी। यह पुरास्थल लगभग 1800 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। सराय नाहर राय में कुल 11 मानव समाधियाँ तथा 8 गर्त चूल्हों का उत्खनन इलाहाबाद विश्वविद्यालय की ओर से किया गया था। यहाँ की क़ब्रें (समाधियाँ) आवास क्षेत्र के अन्दर स्थित थीं। क़ब्रें छिछली और अण्डाकार थीं।यहाँ संयुक्त रूप से 2 पुरुषों एवं 2 स्त्रियों को एक साथ दफ़नाये जाने के प्रमाण हमें सराय नाहर राय से मिले हैं।सराय नाहरराय से जो 15 मानव कंकाल मिले हैं, वे ह्रष्ट-पुष्ट तथा सुगठित शरीर वाले मानव समुदाय के प्रतीत होते हैं।
अजगरा : रानीगंज तहसील के अजगरा मे कई महत्वपूर्ण मध्यपाषाणयुगीन व गुप्तकालीन पुरावशेष प्राप्त है।यहाँ से पाए गए 48 पांडुलिपियाँ व महाभारतकालीन शिलालेख और मूर्तियाँ पुरातत्वविद निर्झर प्रतापगढ़ी द्वारा अजगरा संग्राहालय मे संरक्षित है।
स्वरूपपुर : मान्धाता विकासखंड के ग्राम सभा गौरा मे स्वरूपपुर ग्राम मे पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए सर्वेंक्षण मे प्राचीन शिलाखंड,बौद्धकालीन अवशेष तथा खंडित मुर्तियाँ प्राप्त हुए है,प्राप्त अवशेषो को पुरावशेष एंव बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम 1972 के तहत 28 जनवरी 2011 को पंजीकृत किया गया।
कटरा गुलाब सिंह : पांडवकालीन भयहरणनाथ धाम तथा कटरा गुलाब सिंह के निकटवर्ती क्षेत्रो के उत्खनन से प्राप्त पुरावशेष महाभारत कालीन व बौद्ध संस्कृति के प्रतीत होते है।प्राप्त भग्नावशेषो को पंजीकृत कर इलाहाबाद संग्राहालय मे संरक्षित रखा है।इस क्षेत्र के दो तीन कि0मी0 परिधि मे कम से कम आधे दर्जन से अधिक पुरातात्विक महत्व के स्थान है।
परसुरामपुर : रानीगंज तहसील के परसुरामपुर स्थित चौहर्जन धाम मे प्राप्त प्राचीन अवशेषो से कृष्ण लोहित मृदभाण्ड संस्कृति का पता चलता है।
उल्लेखनीय लोग
डा.हरिवंशराय बच्चन (राष्ट्रीय कवी व उपन्यसकार)
सुमित्रानंदन पंत (कवी)
बाबा भिखारीदास (कवी)
धर्म सम्राट स्वामी करपात्री (अध्यात्मिक गुरु)
राजा बजरंग बहादुर सिंह राज्यपाल, हिमांचल प्रदेश)
दिनेश सिंह (विदेश मंत्री व लोकसभा सदस्य)
क्रातिकारी बाबू गुलाब सिंह (स्वतंत्रता सेनानी व तालुकेदार)
शहीद बाबू मेदिनी सिंह (स्वतंत्रता सेनानी व कटरा मेदनीगंज के संस्थापक)
रघुराज प्रताप सिंह "राजा भैया" (मंत्री व विधायक )
जगदगुरू संत कृपालू महाराज (अध्यात्मिक गुरू)
श्वेता तिवारी (अभिनेत्री)
अनुपम श्याम ओझा (अभिनेता)
मनोज तिवारी (क्रिकेटर)
राजकुमारी रत्ना सिंह (सांसद)
प्रमोद तिवारी (काँग्रेसी नेता)
राजाराम पांडेय (खादी ग्रामोद्योग मंत्री)
रवी त्रिपाठी (गायक)
परिवहन
प्रतापगढ़ जिले में मुख्य रूप से रिक्शा, टैम्पो, साईकिल, मोटरसाईकिल, बस, ट्रक इत्यादि प्रमुख वाहन हैं।स्थानीय लोगों को एक जगह से दूसरे जगह तक जाने के लिये मानव चलित रिक्शा व टैम्पो,टाटा मैजिक हर चौराहे, नुक्कड़ और गली-मुहल्ले में मिल जाते हैं।गाँव-गाँव में पक्की सड़कों का निर्माण हो चुका है जिससे वाहन की व्यवस्था और आने-जाने की सुगमता, पहले से काफी बेहतर हो चुकी है।छोटा-मोटा सामान ढोने के लिये महिंद्रा पिकअप व छोटा हाथी के साथ ट्रेक्टर ट्राली,मिनीट्रक वाले भी जगह-जगह उपलब्ध हैं।एक जिले से दूसरे जिले तक जाने के लिये सरकारी बस व प्राइवेट बस कम खर्चीले साधन साबित होते हैं। स्थानीय लोग इन्हीं का इस्तेमाल प्रचुरता में करते हैं।लोकल ट्रेनों का भी प्रयोग काफी होता है।
प्रतापगढ़ से आपको निम्न जगह जाने के लिये सुगमता से वाहन उपलब्ध हो सकता है जैसे- इलाहाबाद, सुल्तानपुर, वाराणसी, रायबरेली, लखनऊ, फैजाबाद, चित्रकूट, कौशाम्बी, भदोही, गोण्डा, मिर्जापुर, बस्ती इत्यादि।
शैक्षणिक संस्थान
एम.डी .पी.जी. कॉलेज इलाहाबाद रोड प्रतापगढ़
हेमवती नंदन बहुगुणा पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री कालेज, लालगंज
सरकार पॉलिटेक्निक, सुल्तानपुर रोड, चिलबिला
अमर जनता इंटर मध्यस्थता कॉलेज, पुरे वैष्णव कटरा गुलाब सिंह
पी.बी.पी.जी. और इंटर कॉलेज प्रतापगढ़ सिटी
जी.आई.सी. प्रतापगढ़
कृषि विज्ञान केन्द्र, अवधेश्पुरम, लाला बाजार, कालाकांकर
अब्दुल कलाम इंटर कॉलेज
तिलक इंटर कॉलेज
के.पी. हिंदू इंटर कालेज प्रतापगढ़
आर पाल सिंह इंटर कॉलेज बीरापुर प्रतापगढ़
सीनियर बेसिक बाल विद्या पीथ नगर, छतौना,
कैसे पहुंचे
वायु मार्ग: यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा वाराणसी,प्रतापगढ़,इलाहाबाद एयरपोर्ट है।
रेल मार्ग: प्रतापगढ़ रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन प्रतापगढ़ जंक्शन है।
सड़क मार्ग: भारत के कई प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा प्रतापगढ़ आसानी से पहुंचा जा सकता है।