"हे भारत उठो जागो -स्वामी विवेकानन्द": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Hey-Bharat-Utho-Jago-vivekanand.jpg |चित्र का ना...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 47: पंक्ति 47:
{{स्वामी विवेकानंद की रचनाएँ}}  
{{स्वामी विवेकानंद की रचनाएँ}}  
[[Category:स्वामी विवेकानन्द]]
[[Category:स्वामी विवेकानन्द]]
[[Category:हिन्दू दर्शन]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:दर्शन कोश]]
[[Category:हिन्दू दर्शन]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:दर्शन कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

12:17, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण

हे भारत उठो जागो -स्वामी विवेकानन्द
'हे भारत उठो जागो' पुस्तक का आवरण पृष्ठ
'हे भारत उठो जागो' पुस्तक का आवरण पृष्ठ
लेखक स्वामी विवेकानन्द
मूल शीर्षक हे भारत उठो जागो
प्रकाशक रामकृष्ण मठ
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 2004
देश भारत
भाषा हिंदी
मुखपृष्ठ रचना अजिल्द
विशेष इसमें स्वामी विवेकानन्द जी के भारत-सम्बन्धी कुछ विख्यात भाषण एवं लेख संकलित है।

हे भारत उठो जागो पुस्तक स्वाधीन भारत ! जय हो !’ पुस्तक का नवीन संस्करण है। इसमें स्वामी विवेकानन्द जी के भारत-सम्बन्धी कुछ विख्यात भाषण एवं लेख संकलित है। स्वामीजी केवल एक आत्मज्ञानी महापुरुष ही नहीं वरन् एक श्रेष्ठ और सच्चे देशभक्त भी थे। उन्होंने भारतवासियों के सम्बन्ध में एक छोर से दूसरे छोर तक भ्रमण किया था और भारतवासियों के सम्बन्ध में वास्तविक जानकारी प्राप्त की थी। इसीलिए भारत की प्रमुख समस्याओं पर अधिकारपूर्वक विवेचना करने के वे विशेष अधिकारी थे। इस पुस्तक में उन्होंने उन उपायों तथा साधनों का दिग्दर्शन कराया है, जिनके द्वारा आज हमारी वे समस्याएँ हल हो सकती हैं और फिर से हमारा भारत गतवैभव प्राप्त कर सकता है। स्वामीजी भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ थे।

स्वदेश-मंत्र

हे भारत ! तुम मत भूलना कि तुम्हारी स्त्रियों का आदर्श सीता, सावित्री, दमयन्ती है; मत भूलना कि तुम्हारे उपास्य सर्वत्यागी उमानाथ शंकर हैं; मत भूलना कि तुम्हारा विवाह, धन, और जीवन, इन्द्रिय-सुख के लिए, अपने व्यक्तिगत सुख के लिए, नहीं है, मत भूलना कि तुम जन्म से ही ‘माता’ के लिये बलिस्वरूप रखे गए हो; तुम मत भूलना कि तुम्हारा समा उस विराट महामाया की छाया मात्र है; मत भूलना कि नीच, अज्ञानी, दरिद्र, चमार और मेहतर तुम्हारे रक्त हैं, तुम्हारे भाई हैं। वे वीर ! साहस का आश्रय लो। गर्व से कहो कि मैं भारतवासी दरिदज्र भारतवासी, ब्राह्मण भारतवासी, चाण्डाल भारतवासी सब मेरे भाई हैं, भारतवासी मेरे प्राण हैं, भारत की देव-देवियाँ मेरे ईश्वर हैं, भारत का समाज मेरे बचपन का झूला, जवानी की फुलवारी और मेरे बुढ़ापे की काशी है। भाई, बोलो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है, भारत के कल्याण से मेरा कल्याण है; और रात-दिन कहते रहो, ‘‘हे गौरीनाथ ! हे जगदम्बे; मुझे मनुष्यत्व दो, माँ ! मेरी दुर्बलता और कामरूपता दूर कर दो। माँ मुझे मनुष्य बना दो।’’[1]

‘‘यह देखो, भारतमाता धीरे-धीरे आँखें खोल रही है। वह कुछ देर सोयी थी।

उठो, उसे जगाओ और पहले की अपेक्षा और भी गौरवमण्डित करके भक्तिभाव से उसे उसके चिरन्तन सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दो !’’ --स्वामी विवेकानन्द



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हे भारत उठो जागो (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 19 जनवरी, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख