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'''जामिनी रॉय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jamini Roy'' ; जन्म- [[11 अप्रैल]], [[1887]], [[बांकुड़ा ज़िला|बांकुड़ा ज़िला]], [[पश्चिम बंगाल]]; मृत्यु- [[24 अप्रैल]], [[1972]], [[कोलकाता]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध चित्रकारों में एक थे। वे 20वीं [[शताब्दी]] की [[भारतीय कला]] के प्रारंभिक और अति महत्‍वपूर्ण आधुनिकतावादी कलाकारों में से एक थे, जिन्‍होंने अपने समय की कला परम्‍पराओं से अलग एक नई [[शैली]] स्‍थापित करने में अपनी विशिष्‍ट भूमिका निभाई। लगभग 60 वर्षों के उनके कला-कार्य की अवधि में कई महत्‍वपूर्ण बदलाव आए, जिससे दृश्‍य भाषा की प्रस्‍तुति में उनकी प्रतिभा का पता चलता है।<ref>{{cite web |url= http://pib.nic.in/newsite/hindifeature.aspx?relid=22846|title= जैमिनी राय- एक प्रतिभाशाली प्रयोगधर्मी कलाकार|accessmonthday=11 जुलाई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= हिन्दी}}</ref> जामिनी रॉय अपनी निर्भीक रचनओं में चटकीली रेखाओं, सपाट [[रंग|रंगों]], जिसकी प्रेरणा परंपरागत कोलकला से मिली, के लिए विख्यात चित्रकार थे।  
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==जन्म तथा शिक्षा==
==जन्म तथा शिक्षा==
जामिनी रॉय का जन्म 11 अप्रैल, 1887 ई. में [[पश्चिम बंगाल]] के [[बांकुड़ा ज़िला|बांकुड़ा ज़िले]] में एक समृद्ध ज़मींदार परिवार में हुआ था। गांव में व्यतीत किये गए रॉय के आरंभिक वर्षों का उन पर गहरा असर पड़ा। संथाल और उनकी आदि कला, काम करते ग्रामीण हस्तशिल्पी, प्राचीन अल्पना (चावल की लेई से चित्रकारी) तथा पटुआ ने रूप एवं रेखा के प्रति उनकी प्रारंभिक रुचि जगाई। [[1903]] में 16 [[वर्ष]] की आयु में जामिनी रॉय ने कलकत्ता (आधुनिक [[कोलकाता]]) में 'गवर्नमेंट स्कूल ऑफ़ आर्ट्स' में दाख़िला लिया, जिसके प्रधानाचार्य पर्सी ब्राउन उनके प्रमुख प्रेरणा स्त्रोत थे। जामिनी रॉय के शैक्षणिक प्रशिक्षण ने उन्हें चित्रकारी की विभिन्न तकनीकों में पारंगत होने में मदद की, उन्होंने प्रतिकृति चित्रण एवं प्राकृतिक दृश्य चित्रण से शुरुआत की, जो तुरंत लोगों की नज़रों में आई।
जामिनी रॉय का जन्म 11 अप्रैल, 1887 ई. में [[पश्चिम बंगाल]] के [[बांकुड़ा ज़िला|बांकुड़ा ज़िले]] में 'बेलियातोर' नामक गाँव में एक समृद्ध ज़मींदार [[परिवार]] में हुआ था। गांव में व्यतीत किये गए रॉय के आरंभिक वर्षों का उन पर गहरा असर पड़ा। संथाल और उनकी आदि कला, काम करते ग्रामीण हस्तशिल्पी, प्राचीन अल्पना (चावल की लेई से चित्रकारी) तथा पटुआ ने रूप एवं रेखा के प्रति उनकी प्रारंभिक रुचि जगाई। [[1903]] में 16 [[वर्ष]] की आयु में जामिनी रॉय ने कलकत्ता (आधुनिक [[कोलकाता]]) में 'गवर्नमेंट स्कूल ऑफ़ आर्ट्स' में दाख़िला लिया, जिसके प्रधानाचार्य पर्सी ब्राउन उनके प्रमुख प्रेरणा स्त्रोत थे। जामिनी रॉय के शैक्षणिक प्रशिक्षण ने उन्हें चित्रकारी की विभिन्न तकनीकों में पारंगत होने में मदद की, उन्होंने प्रतिकृति चित्रण एवं प्राकृतिक दृश्य चित्रण से शुरुआत की, जो तुरंत लोगों की नज़रों में आई।
==सिद्धहस्‍त चित्रकार==
20वीं शताब्‍दी के शुरू के दशकों में चित्रकारी की ब्रिटिश शैली में प्रशिक्षित जामिनी रॉय प्रख्‍यात सिद्धहस्‍त चित्रकार बने। [[कोलकाता]] के 'गवर्नमेंट स्कूल ऑफ़ आर्ट्स' से ग्रेजुएशन के बाद उन्‍हें पोर्ट्रेट बनाने का काम नियमित रूप से मिलता रहा, लेकिन 20वीं शताब्‍दी के पहले तीन दशकों में [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] की सांस्‍कृतिक अभिव्‍यक्तियों में बहुत जबर्दस्‍त परिवर्तन आया। राष्‍ट्रवादी आंदोलन के प्रभाव से [[साहित्य]] और कलाओं में सभी तरह के प्रयोग होने लगे। [[अवनीन्द्रनाथ टैगोर]] ने यूरोपीय प्रकृतिवाद और कला के लिए तैल के माध्‍यम को छोड़कर 'बंगाल स्‍कूल' की स्‍थापना से दृश्‍य कलाओं में भी प्रयोग स्‍पष्‍ट दिखाई देने लगे थे।
==कला के नये रूप की तलाश==
जामिनी रॉय ने शिक्षा ग्रहण की अवधि में जो कला शैली सीखी थी, उसे उन्‍होंने छोड़ दिया। [[1920]] के बाद के कुछ वर्षों में उन्‍हें कला के ऐसे नये रूपों की तलाश थी, जो उनके दिल को छूते थे। इसके लिए उन्‍होंने विभिन्‍न प्रकार के स्रोतों, जैसे- पूर्व एशियाई लेखन शैली, पक्‍की [[मिट्टी]] से बने मंदिरों की कला वल्‍लरियों, लोक कलाओं की वस्‍तुओं और शिल्‍प परम्‍पराओं आदि से प्रेरणा ली। 1920 के बाद के वर्षों में जामिनी रॉय ने ग्रामीण दृश्‍यों और लोगों की खुशियों को प्रकट करने वाले चित्र बनाए, जिनमें ग्रामीण वातावरण में उनके बचपन के लालन-पालन के भोले और स्‍वच्‍छंद जीवन की झलक थी। वे वर्तमान [[पश्चिम बंगाल]] के [[बांकुड़ा ज़िला|बांकुड़ा ज़िले]] के बेलियातोर गांव में जन्‍मे थे, इसलिए यह एक प्रकार से उनके लिए स्‍वाभाविक प्रयास था। इसमें कोई शक नहीं कि इस काल के बाद उन्‍होंने अपनी जड़ों से नजदीकी को अभिव्‍यक्ति देने का प्रयास किया था।


वर्ष [[1919]]-[[1920]] ई. के आसपास जामिनी रॉय ने लोगों के पोर्ट्रेट चित्र बनाने बंद कर दिये। वे थोड़ा-सा पोर्ट्रेट बनाते थे और फिर उन्‍हें अंदर से कुछ ऐसा महसूस होता था कि यह ठीक नहीं है और वे उसे मिटा देते थे, ऐसा कुछ दिन तक चला और फिर अचानक वे अपने मन में उठने वाले दृश्‍य भावों को बिल्‍कुल नये रूप में प्रस्‍तुत करने लगे। अगले कुछ वर्षों में उन्‍होंने [[संथाल]] महिलाओं के कई चित्र बनाए। इन भावुकतापूर्ण चित्रों में महिलाएं ग्रामीण माहौल में रोजमर्रा के काम करते दिखाई देती थीं। अपनी ब्रुश से जामिनी रॉय ऐसी स्‍पष्‍ट कोणीय रेखाएं बनाते थे, जिनसे मोहक चित्र बन जाते थे, जो उनकी नयी उभरती [[शैली]] का प्रतीक थे। ये चित्र उनकी दृश्‍य भाषा में हो रहे और अधिक नाटकीय परिवर्तन को दर्शाते थे। [[1925]] के आसपास उनके चित्रों में लेखन शैली जैसी रेखाएं उभर कर आने लगीं, जिससे पता चलता था कि कलाकार का अपनी कूची पर कितना नियंत्रण था। उनके चित्रों में [[रंग]] उभरे दिखते थे और कई ऐसे एकवर्णी चित्रों की श्रृंखला बनी, जिससे संकेत मिलता था कि चित्रकार ने पूर्व एशियाई चित्र कला शैली और कालीघाट पाटों से प्रेरणा ली है। चित्र रोजमर्रा की जिन्‍दगी से जुड़े थे, जैसे मां और बच्‍चे के चित्र, महिलाओं के चित्र आदि।


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09:42, 11 जुलाई 2014 का अवतरण

जामिनी रॉय (अंग्रेज़ी: Jamini Roy ; जन्म- 11 अप्रैल, 1887, बांकुड़ा ज़िला, पश्चिम बंगाल; मृत्यु- 24 अप्रैल, 1972, कोलकाता) भारत के प्रसिद्ध चित्रकारों में एक थे। वे 20वीं शताब्दी की भारतीय कला के प्रारंभिक और अति महत्‍वपूर्ण आधुनिकतावादी कलाकारों में से एक थे, जिन्‍होंने अपने समय की कला परम्‍पराओं से अलग एक नई शैली स्‍थापित करने में अपनी विशिष्‍ट भूमिका निभाई। लगभग 60 वर्षों के उनके कला-कार्य की अवधि में कई महत्‍वपूर्ण बदलाव आए, जिससे दृश्‍य भाषा की प्रस्‍तुति में उनकी प्रतिभा का पता चलता है।[1] जामिनी रॉय अपनी निर्भीक रचनओं में चटकीली रेखाओं, सपाट रंगों, जिसकी प्रेरणा परंपरागत कोलकला से मिली, के लिए विख्यात चित्रकार थे।

जन्म तथा शिक्षा

जामिनी रॉय का जन्म 11 अप्रैल, 1887 ई. में पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा ज़िले में 'बेलियातोर' नामक गाँव में एक समृद्ध ज़मींदार परिवार में हुआ था। गांव में व्यतीत किये गए रॉय के आरंभिक वर्षों का उन पर गहरा असर पड़ा। संथाल और उनकी आदि कला, काम करते ग्रामीण हस्तशिल्पी, प्राचीन अल्पना (चावल की लेई से चित्रकारी) तथा पटुआ ने रूप एवं रेखा के प्रति उनकी प्रारंभिक रुचि जगाई। 1903 में 16 वर्ष की आयु में जामिनी रॉय ने कलकत्ता (आधुनिक कोलकाता) में 'गवर्नमेंट स्कूल ऑफ़ आर्ट्स' में दाख़िला लिया, जिसके प्रधानाचार्य पर्सी ब्राउन उनके प्रमुख प्रेरणा स्त्रोत थे। जामिनी रॉय के शैक्षणिक प्रशिक्षण ने उन्हें चित्रकारी की विभिन्न तकनीकों में पारंगत होने में मदद की, उन्होंने प्रतिकृति चित्रण एवं प्राकृतिक दृश्य चित्रण से शुरुआत की, जो तुरंत लोगों की नज़रों में आई।

सिद्धहस्‍त चित्रकार

20वीं शताब्‍दी के शुरू के दशकों में चित्रकारी की ब्रिटिश शैली में प्रशिक्षित जामिनी रॉय प्रख्‍यात सिद्धहस्‍त चित्रकार बने। कोलकाता के 'गवर्नमेंट स्कूल ऑफ़ आर्ट्स' से ग्रेजुएशन के बाद उन्‍हें पोर्ट्रेट बनाने का काम नियमित रूप से मिलता रहा, लेकिन 20वीं शताब्‍दी के पहले तीन दशकों में बंगाल की सांस्‍कृतिक अभिव्‍यक्तियों में बहुत जबर्दस्‍त परिवर्तन आया। राष्‍ट्रवादी आंदोलन के प्रभाव से साहित्य और कलाओं में सभी तरह के प्रयोग होने लगे। अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने यूरोपीय प्रकृतिवाद और कला के लिए तैल के माध्‍यम को छोड़कर 'बंगाल स्‍कूल' की स्‍थापना से दृश्‍य कलाओं में भी प्रयोग स्‍पष्‍ट दिखाई देने लगे थे।

कला के नये रूप की तलाश

जामिनी रॉय ने शिक्षा ग्रहण की अवधि में जो कला शैली सीखी थी, उसे उन्‍होंने छोड़ दिया। 1920 के बाद के कुछ वर्षों में उन्‍हें कला के ऐसे नये रूपों की तलाश थी, जो उनके दिल को छूते थे। इसके लिए उन्‍होंने विभिन्‍न प्रकार के स्रोतों, जैसे- पूर्व एशियाई लेखन शैली, पक्‍की मिट्टी से बने मंदिरों की कला वल्‍लरियों, लोक कलाओं की वस्‍तुओं और शिल्‍प परम्‍पराओं आदि से प्रेरणा ली। 1920 के बाद के वर्षों में जामिनी रॉय ने ग्रामीण दृश्‍यों और लोगों की खुशियों को प्रकट करने वाले चित्र बनाए, जिनमें ग्रामीण वातावरण में उनके बचपन के लालन-पालन के भोले और स्‍वच्‍छंद जीवन की झलक थी। वे वर्तमान पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा ज़िले के बेलियातोर गांव में जन्‍मे थे, इसलिए यह एक प्रकार से उनके लिए स्‍वाभाविक प्रयास था। इसमें कोई शक नहीं कि इस काल के बाद उन्‍होंने अपनी जड़ों से नजदीकी को अभिव्‍यक्ति देने का प्रयास किया था।

वर्ष 1919-1920 ई. के आसपास जामिनी रॉय ने लोगों के पोर्ट्रेट चित्र बनाने बंद कर दिये। वे थोड़ा-सा पोर्ट्रेट बनाते थे और फिर उन्‍हें अंदर से कुछ ऐसा महसूस होता था कि यह ठीक नहीं है और वे उसे मिटा देते थे, ऐसा कुछ दिन तक चला और फिर अचानक वे अपने मन में उठने वाले दृश्‍य भावों को बिल्‍कुल नये रूप में प्रस्‍तुत करने लगे। अगले कुछ वर्षों में उन्‍होंने संथाल महिलाओं के कई चित्र बनाए। इन भावुकतापूर्ण चित्रों में महिलाएं ग्रामीण माहौल में रोजमर्रा के काम करते दिखाई देती थीं। अपनी ब्रुश से जामिनी रॉय ऐसी स्‍पष्‍ट कोणीय रेखाएं बनाते थे, जिनसे मोहक चित्र बन जाते थे, जो उनकी नयी उभरती शैली का प्रतीक थे। ये चित्र उनकी दृश्‍य भाषा में हो रहे और अधिक नाटकीय परिवर्तन को दर्शाते थे। 1925 के आसपास उनके चित्रों में लेखन शैली जैसी रेखाएं उभर कर आने लगीं, जिससे पता चलता था कि कलाकार का अपनी कूची पर कितना नियंत्रण था। उनके चित्रों में रंग उभरे दिखते थे और कई ऐसे एकवर्णी चित्रों की श्रृंखला बनी, जिससे संकेत मिलता था कि चित्रकार ने पूर्व एशियाई चित्र कला शैली और कालीघाट पाटों से प्रेरणा ली है। चित्र रोजमर्रा की जिन्‍दगी से जुड़े थे, जैसे मां और बच्‍चे के चित्र, महिलाओं के चित्र आदि।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जैमिनी राय- एक प्रतिभाशाली प्रयोगधर्मी कलाकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 11 जुलाई, 2014।

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