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स्वयं पर विजय -महात्मा गाँधी
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संपादक | अशोक कुमार शुक्ला |
प्रकाशक | भारतकोश प्रकाशन |
प्रकाशन तिथि | 2014 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 80 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | प्रेरक प्रसंग-भारतकोश |
पेशावर काण्ड के नायक चन्द्र सिंह गढ़वाली लम्बी क़ैद काटने के बाद गांधी जी के आश्रम में रहने गए . साथ में भार्या भी थी , जो शादी के बाद कभी भी पति के संसर्ग का लाभ न ले सकी थी . गांधी के आश्रम में ग्यारह व्रतों में से ब्रह्मचर्य का प्रमुख स्थान था . वह स्वयं भी पैंतीस साल की वय में ब्रह्मचर्य का संकल्प ले चुके थे , और अपनी पत्नी को बा ( माँ) कह कर पुकारते थे .
विवाहित आश्रम वासी भी वहां भाई - बहन की तरह रहते थे .
प्रयोग धर्मी महात्मा की यह अजब सनक थी . वह अपने मंझले पुत्र मणि लाल को ब्रह्मचर्य खंडन के अपराध में पैंतीस साल तक अविवाहित रहने की कड़ी सज़ा दे चुके थे . गढ़वाली दम्पति को आश्रम का नियम समझा दिया गया . भागीरथी देवी को कोठरी में सुलाया गया और चन्द्र सिंह की खटिया बाहर पेड़ के नीचे लगा दी गयी .
करना परमात्मा का ऐसा हुआ की रात में बारिश आई और गढ़वाली को अपनी खटिया बरामदे में ले जानी पड़ी . लेकिन जगद्नियन्ता को कुछ और ही मंज़ूर था . बारिश तिरछी होने लगी और बौछारों ने बरामदे को भी चपेट में ले लिया . खटिया भीतर ही ले जानी पड़ी . एक विवाहित ब्रह्मचारिणी यह सब देख रही थी . उसके पति के रात के पहरे की ड्यूटी थी और वह अकेले रह कर हलकान होती रहती थी . उसने गांधी जी तक शिकायत पंहुचायी . प्रकोप की आशंका से सब थर थर कामने लगे . ऋषि का क्रोध अनशन की परिणति तक पंहुचता था . महात्मा ने ब्रह्मचारिणी को लताड़ा -
तू रात के दो बजे इनकी कोठरी में क्यों झाँक रही थी ?
साथ ही फैसला सुनाया की --"अब से चन्द्र सिंह दम्पति एक साथ , एक ही कोठरी में , एक ही खाट पर रहेंगे".
उन्होंने स्वयं पर विजय प्राप्त की , जो सर्वाधिक दुर्लभ है .
- आगे पढ़ने के लिए महात्मा गाँधी -भारतकोश पर जाएँ
टीका टिप्पणी और संदर्भबाहरी कड़ियाँसंबंधित लेख |
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