"व्यक्तित्व और चरित्र -दिनेश सिंह": अवतरणों में अंतर

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<poem>मन के गहरे अंधकार में  
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तुम जीवन के सौन्दर्य सृष्टि हो  
तुम जीवन के सौन्दर्य सृष्टि हो  
कुदरत की आदर्श दृष्टि हो
कुदरत की आदर्श दृष्टि हो
न्योछावर तुझमे सकल सृष्टि है  
न्योछावर तुझमें सकल सृष्टि है  
अगणित सुषमावो से निर्मित हो
अगणित सुषमावों से निर्मित हो


प्रथम सृष्टि का कैसे आना  
प्रथम सृष्टि का कैसे आना  
ये मानव पहचान तुमने
ये मानव पहचान तुमने
विज्ञानं ज्ञान का समावेश
विज्ञान ज्ञान का समावेश
है बस तेरे मन मस्तिक में
है बस तेरे मन मस्तिक में


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अपने मन के अन्तः कण में
अपने मन के अन्तः कण में


क्यों खोज रहा है ज्योती तम में  
क्यों खोज रहा है ज्योति तम में  
फैल जा व्योम का विस्तार बनके
फैल जा व्योम का विस्तार बनके
नहीं देव अन्तः भेद फिर तुझमे है क्यों
नहीं देव अन्तः भेद फिर तुझमें है क्यों
बरस जा जलद से जल धार बनके  
बरस जा जलद से जल धार बनके  


जीत सको तुम त्रिभुवन को  
जीत सको तुम त्रिभुवन को  
कर सको पूर्ण अभिलाषा मन के  
कर सको पूर्ण अभिलाषा मन के  
कुछ भी दुर्लभ नहीं तुम्हे
कुछ भी दुर्लभ नहीं तुम्हें
यदि चलें सदा मानव बनके  
यदि चलें सदा मानव बनके  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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06:56, 8 अगस्त 2014 का अवतरण

यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं।

मन के गहरे अंधकार में
ज्वलित हुआ एक प्रश्न प्रबल
मानव हो तुम सबसे सुंदर
फिर क्यों करता है अति छलबल

तुम जीवन के सौन्दर्य सृष्टि हो
कुदरत की आदर्श दृष्टि हो
न्योछावर तुझमें सकल सृष्टि है
अगणित सुषमावों से निर्मित हो

प्रथम सृष्टि का कैसे आना
ये मानव पहचान तुमने
विज्ञान ज्ञान का समावेश
है बस तेरे मन मस्तिक में

हे अखिल विश्व के चिर रूपम
ये सब है बस तेरे उर अन्तः में
फिर क्यों भरता है राग देव्ष
अपने मन के अन्तः कण में

क्यों खोज रहा है ज्योति तम में
फैल जा व्योम का विस्तार बनके
नहीं देव अन्तः भेद फिर तुझमें है क्यों
बरस जा जलद से जल धार बनके

जीत सको तुम त्रिभुवन को
कर सको पूर्ण अभिलाषा मन के
कुछ भी दुर्लभ नहीं तुम्हें
यदि चलें सदा मानव बनके


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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