"राजगढ़ी": अवतरणों में अंतर
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'''राजगढ़ी''' [[उत्तरकाशी]] जनपद के रवाईं परगने का तहसील मुख्यालय है। यह गढ़ी किसी गढ़पति की नहीं थी। सीधे राजा गढ़वाल के पश्चिमी क्षेत्र की देखरेख करने वाला बड़ा अहलकार रहता था। [[यमुना नदी]] किनारे के बनाल व ठकराल पटट्टी के मध्य में राजगढ़ी एक ढालदार पहाड़ी है जो निकटवर्ती गांवों का गौचर भी है। राजगढ़ी से संपूर्ण यमुना घाटी पर नजर पड़ती है। नंदगांव के पास से यमुना के किनारे बढिय़ा सिंचित खेती है, यहीं से यमुना को पार राजगढ़ी पहुंचा जाता है, इस जगह का नाम राजतर है। राजगढ़ी के एक तरफ ठकराला पट्टी के फरीकोटि गंगताड़ी है। दूसरी तरफ डरव्याड़ गांव धराली मिंयाली गांव हैं। डरव्याड़ गांव में जियारा जाति के राजवंशीय राजपूत रहते हैं। बनाल व राम सराई तक में इस जियारा जाति के लोग रहते हैं। कंडियाल गांव में एक लाखीराम वडियारी जियारा था, उसकी कई गांवों में खेती थी। उसकी सात पत्नियों को लेखक ने स्वयं देखी हैं। वक्त पडऩे पर वह राजा को भी कर्ज देता था। टिहरी रियासत में लार्ज लैण्ड होल्डिंग टैक्स देने वाला काश्तकार था। राजगढ़ी खुली रमणीक जगह है। यहां पर सुदर्शन शाह के समय का बना भवन है। यह भवन रवाईं की शैली का है, जिस पर देवदार के साबुत पेड़ लगे हैं। एक बड़ा फाटक भी है। सन् 1960 के बाद इस भवन पर तहसील कार्यालय खुल गया था। | |||
राजगढ़ी [[उत्तरकाशी]] जनपद के रवाईं परगने का तहसील मुख्यालय | ==इतिहास== | ||
राजगढ़ी के ठीक सामने यमुना नदी के बाईं तरफ नंदगांव हैं। यह एक बड़ा राजस्व ग्राम है। इस गांव का गोविंद सिंह बिष्ट रवाईं का फौजदार था। इसी बिष्ट फौजदार ने सन् 1815 में गोरखों को सिगरोली की संधि के अनुरूप यहां से सुरक्षित टनकपुर के रास्ते नेपाल भिजवाया था। डोडड़ा क्वार में आराकोट की व्यवस्था यहीं फौजदार गोविंद सिंह देखता था। नन्य गांव के बिष्ट परिवार के लोग वरसाली से आए हैं। 30 मई 1930 को राजगढ़ी से 5 मील की दूरी तिलाड़ी ऐतिहासिक तिलाड़ी कांड हुआ था। जिसमें निर्दोष जनता पर रियासत के दीवान द्वारा गोली चलाई गई थी। राजगढ़ी से यमुना घाटी का हरा-भरा क्षेत्र दिखाई देता है। सन् [[1960]] में उत्तरकाशी जिला बनने पर राजगढ़ी को कोट तहसील मुख्यालय बन गया था। वैसे राजगढ़ी गढ़वाल के 52 गढ़ों की तरह एक गढ़पति की नहीं थी, लेकिन गढ़ों में शुमार है। राजगढ़ी के चारों तरफ कभी हरे देवदार के जंगल थे। राजगढ़ी से मियांली, जरवाली, जखाली, घौंसाली तक अभी भी [[देवदार]] के जंगल हैं। राजगढ़ी के पास फरीका का एक मकान भवन स्थापत्य कला के कारण भूपाल में शिफ्ट किया गया है। | |||
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13:04, 17 अक्टूबर 2014 का अवतरण
राजगढ़ी उत्तरकाशी जनपद के रवाईं परगने का तहसील मुख्यालय है। यह गढ़ी किसी गढ़पति की नहीं थी। सीधे राजा गढ़वाल के पश्चिमी क्षेत्र की देखरेख करने वाला बड़ा अहलकार रहता था। यमुना नदी किनारे के बनाल व ठकराल पटट्टी के मध्य में राजगढ़ी एक ढालदार पहाड़ी है जो निकटवर्ती गांवों का गौचर भी है। राजगढ़ी से संपूर्ण यमुना घाटी पर नजर पड़ती है। नंदगांव के पास से यमुना के किनारे बढिय़ा सिंचित खेती है, यहीं से यमुना को पार राजगढ़ी पहुंचा जाता है, इस जगह का नाम राजतर है। राजगढ़ी के एक तरफ ठकराला पट्टी के फरीकोटि गंगताड़ी है। दूसरी तरफ डरव्याड़ गांव धराली मिंयाली गांव हैं। डरव्याड़ गांव में जियारा जाति के राजवंशीय राजपूत रहते हैं। बनाल व राम सराई तक में इस जियारा जाति के लोग रहते हैं। कंडियाल गांव में एक लाखीराम वडियारी जियारा था, उसकी कई गांवों में खेती थी। उसकी सात पत्नियों को लेखक ने स्वयं देखी हैं। वक्त पडऩे पर वह राजा को भी कर्ज देता था। टिहरी रियासत में लार्ज लैण्ड होल्डिंग टैक्स देने वाला काश्तकार था। राजगढ़ी खुली रमणीक जगह है। यहां पर सुदर्शन शाह के समय का बना भवन है। यह भवन रवाईं की शैली का है, जिस पर देवदार के साबुत पेड़ लगे हैं। एक बड़ा फाटक भी है। सन् 1960 के बाद इस भवन पर तहसील कार्यालय खुल गया था।
इतिहास
राजगढ़ी के ठीक सामने यमुना नदी के बाईं तरफ नंदगांव हैं। यह एक बड़ा राजस्व ग्राम है। इस गांव का गोविंद सिंह बिष्ट रवाईं का फौजदार था। इसी बिष्ट फौजदार ने सन् 1815 में गोरखों को सिगरोली की संधि के अनुरूप यहां से सुरक्षित टनकपुर के रास्ते नेपाल भिजवाया था। डोडड़ा क्वार में आराकोट की व्यवस्था यहीं फौजदार गोविंद सिंह देखता था। नन्य गांव के बिष्ट परिवार के लोग वरसाली से आए हैं। 30 मई 1930 को राजगढ़ी से 5 मील की दूरी तिलाड़ी ऐतिहासिक तिलाड़ी कांड हुआ था। जिसमें निर्दोष जनता पर रियासत के दीवान द्वारा गोली चलाई गई थी। राजगढ़ी से यमुना घाटी का हरा-भरा क्षेत्र दिखाई देता है। सन् 1960 में उत्तरकाशी जिला बनने पर राजगढ़ी को कोट तहसील मुख्यालय बन गया था। वैसे राजगढ़ी गढ़वाल के 52 गढ़ों की तरह एक गढ़पति की नहीं थी, लेकिन गढ़ों में शुमार है। राजगढ़ी के चारों तरफ कभी हरे देवदार के जंगल थे। राजगढ़ी से मियांली, जरवाली, जखाली, घौंसाली तक अभी भी देवदार के जंगल हैं। राजगढ़ी के पास फरीका का एक मकान भवन स्थापत्य कला के कारण भूपाल में शिफ्ट किया गया है।
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