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*लक्ष्मीबाई रासो नामक [[रासो काव्य]] के रचयिता पं. मदन मोहन द्विवेदी 'मदनेश' है।  
'''लक्ष्मीबाई रासो''' नामक [[रासो काव्य]] के रचयिता पं. मदन मोहन द्विवेदी 'मदनेश' है।  
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*कवि की जन्मभूमि [[झांसी]] है।  
*इस रचना का संपादन 'डॉ. भगवानदास माहौर' ने किया है।  
*इस रचना का संपादन 'डॉ. भगवानदास माहौर' ने किया है।  
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14:39, 29 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

लक्ष्मीबाई रासो नामक रासो काव्य के रचयिता पं. मदन मोहन द्विवेदी 'मदनेश' है।

  • कवि की जन्मभूमि झांसी है।
  • इस रचना का संपादन 'डॉ. भगवानदास माहौर' ने किया है।
  • यह रचना प्रयाग साहित्य सम्मेलन की 'साहित्य-महोपाध्याय' की उपाधि के लिए भी स्वीकृत हो चुकी है।
  • इस कृति का रचनाकाल 'डॉ. भगवानदास माहौर' ने सं. 1961 के पूर्व का माना है।
  • इसके एक भाग की समाप्ति 'पुष्पिका' में रचना तिथि सं. 1961 दी गई है।
  • रचना खण्डित उपलब्ध हुई है, जिसे ज्यों का त्यों प्रकाशित किया गया है।
  • विचित्रता यह है कि इसमें 'कल्याणसिंह कुड़रा कृत' झांसी कौ रायसो के कुछ छन्द ज्यों के त्यों कवि ने रख दिये हैं।
  • कुल उपलब्ध छन्द संख्या 349 हैं।
  • आठवें भाग में समाप्ति पुष्पिका नहीं दी गई है, जिससे स्पष्ट है कि रचना अभी पूर्ण नहीं है।
  • इसका शेष हिस्सा उपलब्ध नहीं हो सका है।
  • कल्याण सिंह कुड़रा कृत रासो और इस रासो की कथा लगभग एक सी ही है, पर मदनेश कृत रासो में रानी लक्ष्मीबाई के ऐतिहासिक एवं सामाजिक जीवन का विशद चित्रण मिलता है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रासो काव्य : वीरगाथायें (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 मई, 2011।

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