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'''बेडसा''' अथवा 'वेदसा' [[महाराष्ट्र]] का एक ऐतिहासिक [[ग्राम]] है। यह [[कार्ले चैत्यगृह|कार्ले]] से 10 मील दक्षिण की ओर स्थित है। बेडसा की गणना [[गुहा वास्तु]] के उल्लेखनीय केन्द्र के रूप में की जाती है। पहाड़ी पर कार्ले और [[भाजा]] के गुफ़ा मंदिरों के समान ही [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] गुफ़ा मंदिर है, जिनमें एक चैत्य गुफ़ा भी समिमलित है।
'''बेडसा अथवा वेदसा'''
*बेडसा एक ऐतिहासिक स्थल जो महाराष्ट्र में [[कार्ले चैत्यगृह|कार्ले]] से 10 मील दक्षिण की ओर स्थित है।  
* बेडसा की गणना [[गुहा वास्तु]] के उल्लेखनीय केन्द्र के रूप में की जाती है।  
*बेडसा की गुफ़ाओं से ज्ञात होता है कि यहाँ के कलाकार ने किस प्रकार काष्ठशिल्प से प्रस्तरशिल्प को अपनाया था। इन शिलाश्रयों में [[चैत्य गृह]] के सभी लक्षण विद्यमान हैं।
*बेडसा की इन गुफ़ाओं के मुखमण्डप में दो बड़े स्तम्भ हैं। इन्हें कार्ले की गुफ़ा के स्तम्भों की भाँति स्वतंत्र स्तम्भ नहीं माना जा सकता। इन स्तम्भों पर [[अशोक]] कालीन स्तम्भों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। ये स्तम्भ अठपहलु हैं। इन स्तम्भों के शीर्ष अत्यंत सुन्दर हैं तथा यह युगल आरोहियों से अलंकृत हैं।
*बेडसा में मानव एवं पशु दोनों की आकृतियों का सफल शिल्पांकन किया गया है। गुफ़ा के मुखमण्डप के ऊपर शायद संगीतशाला थी तथा पिछली दीवार पर एक प्रवेश द्वार था। गुहा के मुख्य द्वार का पूरा भाग वेदिका अलंकरण से सुसज्जित है। समस्त मुखपट्ट वास्तव में वास्तु एवं शिल्पकला का उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।
*बेडसा की मुख्य गुफ़ा का मुखमण्डप सौन्दर्य की दृष्टि से उच्चकोटि का है। इसकी तुलना कार्ले के अलंकृत मुखमण्डप से की जा सकती है। चैत्यशाला के अन्दर का मण्डप 45 फुट 6 इंच लम्बा एवं 21 फुट चौड़ा है। इस चैत्यशाला के समीप ही आयताकार विहार है। उसके चौकोर मण्डप का पिछला भाग वृत्ताकार है तथा तीनों ओर चौकोर कोठरियाँ बनी हैं।


*यह [[मुम्बई]]-[[पूना]] रेलमार्ग पर बड़गांव स्टेशन से 6 मील की दूरी पर स्थित है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=875|url=}}</ref>
*बेडसा की गुफ़ाओं से ज्ञात होता है कि यहाँ के कलाकार ने किस प्रकार काष्ठ शिल्प से प्रस्तर शिल्प को अपनाया था।
*इस ऐतिहासिक स्थान के शिलाश्रयों में [[चैत्य गृह]] के सभी लक्षण विद्यमान हैं।
*यहाँ की गुफ़ाओं के मुखमण्डप में दो बड़े स्तम्भ हैं। इन्हें [[कार्ले गुफ़ाएँ|कार्ले की गुफ़ा]] के स्तम्भों की भाँति स्वतंत्र स्तम्भ नहीं माना जा सकता। इन स्तम्भों पर [[अशोक]] कालीन स्तम्भों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। ये स्तम्भ अठपहलु हैं। इन स्तम्भों के शीर्ष अत्यंत सुन्दर हैं तथा यह युगल आरोहियों से अलंकृत हैं।
*बेडसा में मानव एवं पशु दोनों की आकृतियों का सफल शिल्पांकन किया गया है।
*गुफ़ा के मुखमण्डप के ऊपर शायद संगीतशाला थी तथा पिछली दीवार पर एक प्रवेश द्वार था।
*गुहा के मुख्य द्वार का पूरा भाग वेदिका अलंकरण से सुसज्जित है। समस्त मुखपट्ट वास्तव में वास्तु एवं शिल्पकला का उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।
*बेडसा की मुख्य गुफ़ा का मुखमण्डप सौन्दर्य की दृष्टि से उच्चकोटि का है। इसकी तुलना कार्ले के अलंकृत मुखमण्डप से की जा सकती है।
*चैत्यशाला के अन्दर का मण्डप 45 फुट 6 इंच लम्बा एवं 21 फुट चौड़ा है। इस चैत्यशाला के समीप ही आयताकार विहार है। उसके चौकोर मण्डप का पिछला भाग वृत्ताकार है तथा तीनों ओर चौकोर कोठरियाँ बनी हैं।


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11:38, 2 दिसम्बर 2014 का अवतरण

बेडसा अथवा 'वेदसा' महाराष्ट्र का एक ऐतिहासिक ग्राम है। यह कार्ले से 10 मील दक्षिण की ओर स्थित है। बेडसा की गणना गुहा वास्तु के उल्लेखनीय केन्द्र के रूप में की जाती है। पहाड़ी पर कार्ले और भाजा के गुफ़ा मंदिरों के समान ही बौद्ध गुफ़ा मंदिर है, जिनमें एक चैत्य गुफ़ा भी समिमलित है।

  • यह मुम्बई-पूना रेलमार्ग पर बड़गांव स्टेशन से 6 मील की दूरी पर स्थित है।[1]
  • बेडसा की गुफ़ाओं से ज्ञात होता है कि यहाँ के कलाकार ने किस प्रकार काष्ठ शिल्प से प्रस्तर शिल्प को अपनाया था।
  • इस ऐतिहासिक स्थान के शिलाश्रयों में चैत्य गृह के सभी लक्षण विद्यमान हैं।
  • यहाँ की गुफ़ाओं के मुखमण्डप में दो बड़े स्तम्भ हैं। इन्हें कार्ले की गुफ़ा के स्तम्भों की भाँति स्वतंत्र स्तम्भ नहीं माना जा सकता। इन स्तम्भों पर अशोक कालीन स्तम्भों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। ये स्तम्भ अठपहलु हैं। इन स्तम्भों के शीर्ष अत्यंत सुन्दर हैं तथा यह युगल आरोहियों से अलंकृत हैं।
  • बेडसा में मानव एवं पशु दोनों की आकृतियों का सफल शिल्पांकन किया गया है।
  • गुफ़ा के मुखमण्डप के ऊपर शायद संगीतशाला थी तथा पिछली दीवार पर एक प्रवेश द्वार था।
  • गुहा के मुख्य द्वार का पूरा भाग वेदिका अलंकरण से सुसज्जित है। समस्त मुखपट्ट वास्तव में वास्तु एवं शिल्पकला का उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।
  • बेडसा की मुख्य गुफ़ा का मुखमण्डप सौन्दर्य की दृष्टि से उच्चकोटि का है। इसकी तुलना कार्ले के अलंकृत मुखमण्डप से की जा सकती है।
  • चैत्यशाला के अन्दर का मण्डप 45 फुट 6 इंच लम्बा एवं 21 फुट चौड़ा है। इस चैत्यशाला के समीप ही आयताकार विहार है। उसके चौकोर मण्डप का पिछला भाग वृत्ताकार है तथा तीनों ओर चौकोर कोठरियाँ बनी हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 875 |

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