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13:02, 16 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

  • बाघाट रासो नामक रासो काव्य के रचयिता प्रधान आनन्दसिंह कुड़रा है।
  • इसमें ओरछा एवं दतिया राज्यों के सीमा सम्बन्धी तनाव के कारण हुए एक छोटे से युद्ध का वर्णन किया गया है।
  • इस रचना में पद्य के साथ बुन्देली गद्य की भी सुन्दर बानगी मिलती है।
  • बाघाट रासो में बुन्देली बोली का प्रचलित रुप पाया जाता है।
  • कवि द्वारा दिया गया समय बैसाख सुदि 15 संवत 1873 विक्रमी अमल संवत 1872 दिया गया है।
  • इसे श्री 'हरिमोहनलाल श्रीवास्तव' द्वारा सम्पादित किया गया तथा यह भारतीय साहित्य में मुद्रित है।
  • इसे 'बाघाइट कौ राइसो' के नाम से 'विंध्य शिक्षा' नाम की पत्रिका में भी प्रकाशित किया गया है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रासो काव्य : वीरगाथायें (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 मई, 2011।

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