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'''राढ़''' प्राचीन और [[मध्य काल]] में, विशेषकर [[सेन वंश|सेनवंशीय]] नरेंशों के शासन काल में, [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के चार प्रांतों में से एक था। ये प्रांत थे- 'वरेंद्र', 'बागरा', 'बंग' और 'राढ़'।
'''राढ़''' अथवा 'राढ़ी' प्राचीन और [[मध्य काल]] में, विशेषकर [[सेन वंश|सेनवंशीय]] नरेंशों के शासन काल में, [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के चार प्रांतों में से एक था। ये प्रांत थे- 'वरेंद्र', 'बागरा', 'बंग' और 'राढ़'।


*कुछ विद्वानों ने [[जैन धर्म|जैन]] ग्रंथ 'आयरंगसुत्त' में उल्लिखित 'लाढ़' नामक प्रदेश का अभिज्ञान राढ़ से किया है, किंतु यह सही नहीं जान पड़ता।<ref>भंडारकर, अशोक, पृ. 37</ref>
*कुछ विद्वानों ने [[जैन धर्म|जैन]] ग्रंथ 'आयरंगसुत्त' में उल्लिखित 'लाढ़' नामक प्रदेश का अभिज्ञान राढ़ से किया है, किंतु यह सही नहीं जान पड़ता।<ref>भंडारकर, अशोक, पृ. 37</ref>

12:28, 10 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

राढ़ अथवा 'राढ़ी' प्राचीन और मध्य काल में, विशेषकर सेनवंशीय नरेंशों के शासन काल में, बंगाल के चार प्रांतों में से एक था। ये प्रांत थे- 'वरेंद्र', 'बागरा', 'बंग' और 'राढ़'।

  • कुछ विद्वानों ने जैन ग्रंथ 'आयरंगसुत्त' में उल्लिखित 'लाढ़' नामक प्रदेश का अभिज्ञान राढ़ से किया है, किंतु यह सही नहीं जान पड़ता।[1]
  • सिंहल देश में सात सौ साथियों के सहित जाकर बस जाने वाला राजकुमार विजय, राढ़ देश का ही निवासी माना जाता है।
  • राढ़, पश्चिमी बंगाल का एक भाग, विशेषतः वर्दमान कमिश्नरी का परिवर्ती प्रदेश था।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भंडारकर, अशोक, पृ. 37
  2. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 785 |

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