"विजया एकादशी": अवतरणों में अंतर
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'''विजया एकादशी''' [[फाल्गुन|फाल्गुन मास]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[एकादशी]] को कहा जाता है। यह एकादशी विजय की प्राप्ति को सशक्त करने में सहायक बनती है। तभी तो प्रभु [[राम|श्रीराम]] ने भी इस व्रत को धारण करके अपनी विजय को पूर्ण रूप से प्राप्त किया था। एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के शुभ फलों में वृद्धि होती है तथा अशुभता का नाश होता है। विजया एकादशी व्रत करने से साधक व्रत से संबन्धित मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। सभी एकादशी अपने नाम के अनुरूप ही फल देती हैं। | '''विजया एकादशी''' [[फाल्गुन|फाल्गुन मास]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[एकादशी]] को कहा जाता है। यह एकादशी विजय की प्राप्ति को सशक्त करने में सहायक बनती है। तभी तो प्रभु [[राम|श्रीराम]] ने भी इस व्रत को धारण करके अपनी विजय को पूर्ण रूप से प्राप्त किया था। एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के शुभ फलों में वृद्धि होती है तथा अशुभता का नाश होता है। विजया एकादशी व्रत करने से साधक व्रत से संबन्धित मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। सभी एकादशी अपने नाम के अनुरूप ही फल देती हैं।<ref name="aa">{{cite web |url= http://astrobix.com/hindumarg/338-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%BE_%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B6%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF__Attain_Victory_on_the_Festivals_of_Vijaya_Ekadashi.html|title= विजया एकादशी पर करें विजया की प्राप्ति|accessmonthday= 11 फरवरी|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= हिन्दुमार्ग|language= हिन्दी}}</ref> | ||
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एक समय धर्मराज [[युधिष्ठर]] ने [[श्रीकृष्ण]] से कहा- "हे जनार्दन! [[फाल्गुन|फाल्गुन मास]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[एकादशी]] का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए। श्री भगवान बोले "हे राजन- फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम 'विजया एकादशी' है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजय प्राप्त होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। | |||
एक समय [[नारद|देवर्षि नारदजी]] ने जगत पिता [[ब्रह्मा]] से कहा "महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधान कहिए। ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस विजया एकादशी की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। [[त्रेता युग]] में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे [[लक्ष्मण]] तथा [[सीता]] सहित [[पंचवटी]] में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट [[रावण]] ने जब सीताजी का हरण किया, तब इस समाचार से रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए। | |||
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न [[जटायु]] के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी [[सुग्रीव]] से मित्रता हुई और [[बाली]] का वध किया। [[हनुमान]] ने [[लंका]] में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे रामचंद्रजी और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमान ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे। रामचंद्र ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी [[समुद्र]] के किनारे पहुँचे, तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मण से कहा कि "इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।" | |||
लक्ष्मण ने कहा "हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए।" लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए। [[मुनि]] ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि "हे राम! आपका आना कैसे हुआ?" रामचंद्रजी कहने लगे कि "हे ऋषे! मैं अपनी सेना सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूँ। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ।" वकदालभ्य ऋषि बोले कि "हे राम! फाल्गुन मास के [[कृष्ण पक्ष]] की [[एकादशी]] का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/ekadashi-vrat-katha/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B6%E0%A5%80-%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-112102600044_1.htm|title= विजया एकादशी ब्रत कथा|accessmonthday= 11 फरवरी|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= वेबदुनिया|language= हिन्दी}}</ref> | |||
व्रत के प्रभाव से समुद्र ने प्रभु राम को मार्ग प्रदान किया और यह व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में मददगार बना। तभी से इस व्रत की महिमा का गुणगान आज भी सर्वमान्य रहा है और विजय प्राप्ति के लिये जन साधारण द्वारा किया जाता है। | |||
==पूजा विधि== | ==पूजा विधि== | ||
विजया एकादशी व्रत के विषय में यह मान्यता है कि एकादशी व्रत करने से [[स्वर्ण]] दान, भूमि दान, अन्न दान और गौ दान से अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत के दिन भगवान नारायण की [[पूजा]] की जाती है। व्रत पूजन में [[धूपबत्ती|धूप]], [[दीपक|दीप]], नैवेध, [[नारियल]] का प्रयोग किया जाता है। विजया एकादशी व्रत में सात धान्य घट स्थापना की जाती है। सात धान्यों में [[गेहूँ]], उड़द, मूंग, [[चना]], [[जौ]], [[चावल]] और मसूर हैं। इसके ऊपर विष्णु जी की मूर्ति रखी जाती है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को पूरे दिन व्रत करने के बाद रात्रि में विष्णु पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए। | विजया एकादशी व्रत के विषय में यह मान्यता है कि एकादशी व्रत करने से [[स्वर्ण]] दान, भूमि दान, अन्न दान और गौ दान से अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत के दिन भगवान नारायण की [[पूजा]] की जाती है। व्रत पूजन में [[धूपबत्ती|धूप]], [[दीपक|दीप]], नैवेध, [[नारियल]] का प्रयोग किया जाता है। विजया एकादशी व्रत में सात धान्य घट स्थापना की जाती है। सात धान्यों में [[गेहूँ]], उड़द, मूंग, [[चना]], [[जौ]], [[चावल]] और मसूर हैं। इसके ऊपर [[विष्णु|विष्णु जी]] की मूर्ति रखी जाती है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को पूरे दिन व्रत करने के बाद रात्रि में विष्णु पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए। | ||
व्रत से पहले की रात्रि में सात्विक भोजन करना चाहिए और रात्रि भोजन के बाद कुछ नहीं लेना चाहिए। एकादशी व्रत 24 घंटों के लिये किया जाता है। व्रत का समापन [[द्वादशी]] [[तिथि]] के प्रात:काल में अन्न से भरा घड़ा [[ब्राह्मण]] को दान करके किया जाता है। यह व्रत करने से दु:ख दूरे होते हैं। अपने नाम के अनुसार विजया एकादशी व्यक्ति को जीवन की कठिन परिस्थितियों में विजय दिलाती है।<ref name="aa"/> | व्रत से पहले की रात्रि में सात्विक भोजन करना चाहिए और रात्रि भोजन के बाद कुछ नहीं लेना चाहिए। एकादशी व्रत 24 घंटों के लिये किया जाता है। व्रत का समापन [[द्वादशी]] [[तिथि]] के प्रात:काल में अन्न से भरा घड़ा [[ब्राह्मण]] को दान करके किया जाता है। यह व्रत करने से दु:ख दूरे होते हैं। अपने नाम के अनुसार विजया एकादशी व्यक्ति को जीवन की कठिन परिस्थितियों में विजय दिलाती है।<ref name="aa"/> |
06:17, 11 फ़रवरी 2015 का अवतरण
विजया एकादशी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। यह एकादशी विजय की प्राप्ति को सशक्त करने में सहायक बनती है। तभी तो प्रभु श्रीराम ने भी इस व्रत को धारण करके अपनी विजय को पूर्ण रूप से प्राप्त किया था। एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के शुभ फलों में वृद्धि होती है तथा अशुभता का नाश होता है। विजया एकादशी व्रत करने से साधक व्रत से संबन्धित मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। सभी एकादशी अपने नाम के अनुरूप ही फल देती हैं।[1]
पौराणिक महत्त्व
एक समय धर्मराज युधिष्ठर ने श्रीकृष्ण से कहा- "हे जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए। श्री भगवान बोले "हे राजन- फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम 'विजया एकादशी' है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजय प्राप्त होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं।
एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत पिता ब्रह्मा से कहा "महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधान कहिए। ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस विजया एकादशी की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे लक्ष्मण तथा सीता सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण किया, तब इस समाचार से रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए।
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमान ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे रामचंद्रजी और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमान ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे। रामचंद्र ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र के किनारे पहुँचे, तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मण से कहा कि "इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।"
लक्ष्मण ने कहा "हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए।" लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए। मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि "हे राम! आपका आना कैसे हुआ?" रामचंद्रजी कहने लगे कि "हे ऋषे! मैं अपनी सेना सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूँ। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ।" वकदालभ्य ऋषि बोले कि "हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।[2]
व्रत के प्रभाव से समुद्र ने प्रभु राम को मार्ग प्रदान किया और यह व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में मददगार बना। तभी से इस व्रत की महिमा का गुणगान आज भी सर्वमान्य रहा है और विजय प्राप्ति के लिये जन साधारण द्वारा किया जाता है।
पूजा विधि
विजया एकादशी व्रत के विषय में यह मान्यता है कि एकादशी व्रत करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्न दान और गौ दान से अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत के दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है। व्रत पूजन में धूप, दीप, नैवेध, नारियल का प्रयोग किया जाता है। विजया एकादशी व्रत में सात धान्य घट स्थापना की जाती है। सात धान्यों में गेहूँ, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर हैं। इसके ऊपर विष्णु जी की मूर्ति रखी जाती है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को पूरे दिन व्रत करने के बाद रात्रि में विष्णु पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए।
व्रत से पहले की रात्रि में सात्विक भोजन करना चाहिए और रात्रि भोजन के बाद कुछ नहीं लेना चाहिए। एकादशी व्रत 24 घंटों के लिये किया जाता है। व्रत का समापन द्वादशी तिथि के प्रात:काल में अन्न से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान करके किया जाता है। यह व्रत करने से दु:ख दूरे होते हैं। अपने नाम के अनुसार विजया एकादशी व्यक्ति को जीवन की कठिन परिस्थितियों में विजय दिलाती है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 विजया एकादशी पर करें विजया की प्राप्ति (हिन्दी) हिन्दुमार्ग। अभिगमन तिथि: 11 फरवरी, 2015।
- ↑ विजया एकादशी ब्रत कथा (हिन्दी) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 11 फरवरी, 2015।
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