"ज्येष्ठ पूर्णिमा": अवतरणों में अंतर
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==वट सावित्री व्रत== | ==वट सावित्री व्रत== |
08:53, 2 जून 2015 का अवतरण
ज्येष्ठ पूर्णिमा
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विवरण | 'ज्येष्ठ पूर्णिमा' हिन्दू धर्म की प्रमुख धार्मिक तिथियों में से एक है। यह तिथि व्रत, दान-दक्षिणा, पूजा-अर्चना तथा मनोरथ सिद्धि आदि के लिए पवित्र मानी गई है। |
देश | भारत |
अनुयायी | हिन्दू तथा प्रवासी हिन्दू भारतीय |
तिथि | ज्येष्ठ माह, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा |
विशेष | स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को 'वट सावित्री व्रत' करने का विधान है। |
अन्य जानकारी | भारतीय संस्कृति में ज्येष्ठ पूर्णिमा का काफ़ी महत्त्व है। इस दिन गंगा स्नान कर पूजा-अर्चना करने से अभीष्ठ मनोकामना की प्राप्ति होती है। आज से ही लोग गंगा जल लेकर अमरनाथ यात्रा के लिये निकलते हैं। |
ज्येष्ठ पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। इस दिन गंगा स्नान का भी महत्त्व है। गंगा में स्नान के बाद पूजा-अर्चना तथा दान-दक्षिणा आदि से व्यक्ति के मनोरथ पूर्ण होते हैं। ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन स्त्रियाँ वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
वट सावित्री व्रत
सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत "वट सावित्री व्रत" माना गया है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है। वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह वट सावित्री व्रत के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस व्रत को गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत की स्त्रियाँ ज्येष्ठ पूर्णिमा को करती हैं।[1]
कथा
सावित्री भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्री देवी ने प्रकट होकर वर दिया कि "राजन तम्हें शीघ्र ही एक तेजस्वी कन्या की प्राप्ति होगी।" सावित्री देवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।
बड़ी होने पर कन्या सावित्री बेहद सुंदरता से पूर्ण हुईं। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया। कहते हैं कि साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल के इर्द-गिर्द था। सत्यवान अल्पायु थे। वे वेद ज्ञाता थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी, परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए, तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी, जिसका फल उन्हें बाद में मिला था।[1]
महत्त्व
भारतीय संस्कृति में ज्येष्ठ पूर्णिमा का काफ़ी महत्त्व है। इस दिन गंगा स्नान कर पूजा-अर्चना करने से अभीष्ठ मनोकामना की प्राप्ति होती है। आज से ही लोग गंगा जल लेकर अमरनाथ यात्रा के लिये निकलते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का तीसरा मास ज्येष्ठ है। इस महीने में सूर्य देव अपने रौद्र रूप में होते हैं अर्थात इस महीने में गर्मी अपने चरम पर होती है। वैसे तो फाल्गुन माह की बिदाई के साथ ही गर्मी शुरू हो जाती है। चैत्र और वैशाख में अपने रंग बिखेरती है और ज्येष्ठ में चरम पर आ जाती है। गर्मी अधिक होने के कारण अन्य महीनों की अपेक्षा इस माह में जल का वाष्पीकरण अधिक होता है और कई नदी, तालाब आदि सूख जाते हैं। अत: इस माह में जल का महत्त्व दूसरे महीनों की तुलना में ओर बढ़ जाता है।
इस माह में आने वाले कुछ प्रमुख त्योहार हमें जल बचाने का संदेश भी देते हैं, जैसे- ज्येष्ठ शुक्ल दशमी पर आने वाला 'गंगा दशहरा' व 'निर्जला एकादशी'। इन त्योहारों के माध्यम से हमारे ऋषि-मुनियों ने संदेश दिया है कि जीवनदायिनी गंगा का पूजन करें और जल के महत्त्व को पहचानें। इस प्रकार ज्येष्ठ मास से जल का महत्व व उपयोगिता सीखनी चाहिए।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 ज्येष्ठ पूर्णिमा है जीवनदायिनी गंगा को पूजकर जल की कीमत जानने का संदेश (हिन्दी) जेएनआई.न्यूज, उत्तर प्रदेश। अभिगमन तिथि: 02 जून, 2015।
संबंधित लेख
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