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'''गंधर्व विवाह''' [[हिन्दू विवाह]] के आठ [[विवाह संस्कार|विवाह प्रकारों]] में से एक है। इसे आधुनिक '''प्रेम विवाह''' का प्राचीन रूप भी कह सकते हैं। [[परिवार]] वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में [[विवाह]] कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है। राजा [[दुष्यंत]] ने [[शकुन्तला]] से 'गंधर्व विवाह' किया था। उनके पुत्र [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]] के नाम से ही देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा।  
'''गंधर्व विवाह''' [[हिन्दू विवाह]] के आठ [[विवाह संस्कार|विवाह प्रकारों]] में से एक है। इसे आधुनिक '''प्रेम विवाह''' का प्राचीन रूप भी कह सकते हैं। [[परिवार]] वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में [[विवाह]] कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है। राजा [[दुष्यंत]] ने [[शकुन्तला]] से 'गंधर्व विवाह' किया था। उनके पुत्र [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]] के नाम से ही देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा।  
==विवाह प्रक्रिया==
==विवाह प्रक्रिया==
इस विवाह में वर-वधू को अपने अभिभावकों की अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। युवक-युवती के परस्पर राजी होने पर किसी श्रोत्रिय के घर से लाई [[अग्नि]] से हवन करने के बाद हवन कुंड के तीन फेरे परस्पर गठबंधन के साथ कर लेने मात्र से इस प्रकार का विवाह संपन्न मान लिया जाता था। इसे आधुनिक प्रेम विवाह का प्राचीन रूप भी कह सकते हैं। इस प्रकार का विवाह करने के पश्चात् वर-वधू दोनों अपने अभिभावकों को अपने विवाह की निस्संकोच सूचना दे सकते थे क्योंकि अग्नि को साक्षी मान कर किया गया विवाह भंग नहीं किया जा सकता था। अभिभावक भी इस विवाह को स्वीकार कर लेते थे। किंतु इस प्रकार का विवाह जातिगत-पूर्वानुमति या 'लोकभावना' के विरूद्ध समझा जाता था, लोग इस प्रकार किए गए विवाह को उतावली में किया गया विवाह ही मानते थे। कुछ अर्थशास्त्रियों की धारणा थी कि इस प्रकार के विवाह का परिणाम अच्छा नहीं होता। भारतीय परिप्रेक्ष्य में [[शकुंतला दुष्यंत|शकुंतला-दुष्यंत]], [[पुरुरवा]]-[[उर्वशी]], वासवदत्ता-[[उदयन]] के विवाह गंधर्व-विवाह के प्रख्यात उदाहरण हैं।
इस विवाह में वर-वधू को अपने अभिभावकों की अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। युवक-युवती के परस्पर राजी होने पर किसी श्रोत्रिय के घर से लाई [[अग्नि]] से हवन करने के बाद हवन कुंड के तीन फेरे परस्पर गठबंधन के साथ कर लेने मात्र से इस प्रकार का विवाह संपन्न मान लिया जाता था। इसे आधुनिक प्रेम विवाह का प्राचीन रूप भी कह सकते हैं। इस प्रकार का विवाह करने के पश्चात् वर-वधू दोनों अपने अभिभावकों को अपने विवाह की निस्संकोच सूचना दे सकते थे क्योंकि अग्नि को साक्षी मान कर किया गया विवाह भंग नहीं किया जा सकता था। अभिभावक भी इस विवाह को स्वीकार कर लेते थे। किंतु इस प्रकार का विवाह जातिगत-पूर्वानुमति या 'लोकभावना' के विरुद्ध समझा जाता था, लोग इस प्रकार किए गए विवाह को उतावली में किया गया विवाह ही मानते थे। कुछ अर्थशास्त्रियों की धारणा थी कि इस प्रकार के विवाह का परिणाम अच्छा नहीं होता। भारतीय परिप्रेक्ष्य में [[शकुंतला दुष्यंत|शकुंतला-दुष्यंत]], [[पुरुरवा]]-[[उर्वशी]], वासवदत्ता-[[उदयन]] के विवाह गंधर्व-विवाह के प्रख्यात उदाहरण हैं।





15:25, 17 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

गंधर्व विवाह हिन्दू विवाह के आठ विवाह प्रकारों में से एक है। इसे आधुनिक प्रेम विवाह का प्राचीन रूप भी कह सकते हैं। परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है। राजा दुष्यंत ने शकुन्तला से 'गंधर्व विवाह' किया था। उनके पुत्र भरत के नाम से ही देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा।

विवाह प्रक्रिया

इस विवाह में वर-वधू को अपने अभिभावकों की अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। युवक-युवती के परस्पर राजी होने पर किसी श्रोत्रिय के घर से लाई अग्नि से हवन करने के बाद हवन कुंड के तीन फेरे परस्पर गठबंधन के साथ कर लेने मात्र से इस प्रकार का विवाह संपन्न मान लिया जाता था। इसे आधुनिक प्रेम विवाह का प्राचीन रूप भी कह सकते हैं। इस प्रकार का विवाह करने के पश्चात् वर-वधू दोनों अपने अभिभावकों को अपने विवाह की निस्संकोच सूचना दे सकते थे क्योंकि अग्नि को साक्षी मान कर किया गया विवाह भंग नहीं किया जा सकता था। अभिभावक भी इस विवाह को स्वीकार कर लेते थे। किंतु इस प्रकार का विवाह जातिगत-पूर्वानुमति या 'लोकभावना' के विरुद्ध समझा जाता था, लोग इस प्रकार किए गए विवाह को उतावली में किया गया विवाह ही मानते थे। कुछ अर्थशास्त्रियों की धारणा थी कि इस प्रकार के विवाह का परिणाम अच्छा नहीं होता। भारतीय परिप्रेक्ष्य में शकुंतला-दुष्यंत, पुरुरवा-उर्वशी, वासवदत्ता-उदयन के विवाह गंधर्व-विवाह के प्रख्यात उदाहरण हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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