"आँख खुलना": अवतरणों में अंतर
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*फिर पत्रों में स्त्रियों के अधिकारों की चर्चा पढ़ पढ़कर उसकी आँखें खुलने लगीं। - ([[प्रेमचंद]]) | *फिर पत्रों में स्त्रियों के अधिकारों की चर्चा पढ़ पढ़कर उसकी आँखें खुलने लगीं। - ([[प्रेमचंद]]) | ||
* जैसे- खुल पड़ी कि [[आग]] बुझी हुई नहीं है, बस दबी हुई थी। - (राजा राधिका प्रसाद सिंह) | * जैसे- खुल पड़ी कि [[आग]] बुझी हुई नहीं है, बस दबी हुई थी। - (राजा राधिका प्रसाद सिंह) | ||
*जब | *जब मीर साहब की आँखें खुलीं, [[पानी]] सिर से ऊँचा निकल चुका था।- ([[भूषण]]) | ||
10:29, 25 अक्टूबर 2015 का अवतरण
आँख खुलना एक प्रचलित लोकोक्ति अथवा हिन्दी मुहावरा है।
अर्थ-
- सोने के बाद जागना।
- रहस्य या कुचक्र का पता चलना।
- वस्तु स्थिति समझ में आ जाना।
- इस देश की जिंदा लाशों में यह स्पंदन क्या आया, अंग्रेजों के दातों तले उँगली आई और दुनिया की आँखें भी।
प्रयोग-
- कभी-कभी आँख खुलती तो देखती तो दोनों बिस्तर से नदारद। - (शिवानी)
- फिर पत्रों में स्त्रियों के अधिकारों की चर्चा पढ़ पढ़कर उसकी आँखें खुलने लगीं। - (प्रेमचंद)
- जैसे- खुल पड़ी कि आग बुझी हुई नहीं है, बस दबी हुई थी। - (राजा राधिका प्रसाद सिंह)
- जब मीर साहब की आँखें खुलीं, पानी सिर से ऊँचा निकल चुका था।- (भूषण)