"सुचिन्द्रम": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
पंक्ति 23: पंक्ति 23:
*पौराणिक काल में इस स्थान पर 'ज्ञान अरण्य' नामक एक सघन वन था। इसी ज्ञान अरण्य में [[महर्षि अत्रि]] अपनी पत्नी [[अनुसूया]] के साथ रहते थे। अनुसूया महान पतिव्रता स्त्री थी और पति की [[पूजा]] करती थीं। उन्हें एक ऐसी शक्ति प्राप्त थी कि वह किसी भी व्यक्ति का रूप परिवर्तित कर सकती थीं। भगवान [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[महेश]] की पत्नियों को जब उनकी इस शक्ति के विषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने अपने पति से देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने को कहा। उस समय [[ऋषि]] अत्री [[हिमालय]] पर तप करने गए हुए थे। जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश साधु के वेश में ऋषि के [[आश्रम]] पहुँचे और भिक्षा माँगने के लिए आवाज़ लगाई। उस समय देवी अनुसूया [[स्नान]] कर रही थीं। तीनों ने उनसे उसी रूप में बाहर आकर भिक्षा देने को कहा। जहाँ ब्राह्मणों को भिक्षा दिए बिना लौटाना अधर्म था, वहीं ऐसी अवस्था में परपुरुष के सामने आने से पतिव्रत धर्म भंग होता। देवी अनुसूया को तो दोनों धर्मों का निर्वाह करना था। तब उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर तीनों ब्राह्मणों को शिशु रूप में परिवर्तित कर दिया और उसी अवस्था में आकर भिक्षा प्रदान की। जब त्रिमूर्ति के शिशु रूप में परिवर्तित होने का ज्ञान उनकी पत्नियों को हुआ तो वे व्याकुल हो गईं। उन्होंने आश्रम में आकर देवी से क्षमा मांगी। तब उन्होंने उन्हें प्रभावमुक्त किया, लेकिन प्रतीक रूप में उन्हे आश्रम में रहने को कहा। उस समय त्रिमूर्ति ने अपने प्रतीक की स्थापना की, जिसके आधार पर ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा ऊपर शिव हैं।<ref name="aa">{{cite web |url=http://www.jagran.com/festivals/suchindram-temple-in-tamilnadu-9619104.html|title=तमिलनाडु का सुचिन्द्रम मन्दिर|accessmonthday=07 जून|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
*पौराणिक काल में इस स्थान पर 'ज्ञान अरण्य' नामक एक सघन वन था। इसी ज्ञान अरण्य में [[महर्षि अत्रि]] अपनी पत्नी [[अनुसूया]] के साथ रहते थे। अनुसूया महान पतिव्रता स्त्री थी और पति की [[पूजा]] करती थीं। उन्हें एक ऐसी शक्ति प्राप्त थी कि वह किसी भी व्यक्ति का रूप परिवर्तित कर सकती थीं। भगवान [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[महेश]] की पत्नियों को जब उनकी इस शक्ति के विषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने अपने पति से देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने को कहा। उस समय [[ऋषि]] अत्री [[हिमालय]] पर तप करने गए हुए थे। जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश साधु के वेश में ऋषि के [[आश्रम]] पहुँचे और भिक्षा माँगने के लिए आवाज़ लगाई। उस समय देवी अनुसूया [[स्नान]] कर रही थीं। तीनों ने उनसे उसी रूप में बाहर आकर भिक्षा देने को कहा। जहाँ ब्राह्मणों को भिक्षा दिए बिना लौटाना अधर्म था, वहीं ऐसी अवस्था में परपुरुष के सामने आने से पतिव्रत धर्म भंग होता। देवी अनुसूया को तो दोनों धर्मों का निर्वाह करना था। तब उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर तीनों ब्राह्मणों को शिशु रूप में परिवर्तित कर दिया और उसी अवस्था में आकर भिक्षा प्रदान की। जब त्रिमूर्ति के शिशु रूप में परिवर्तित होने का ज्ञान उनकी पत्नियों को हुआ तो वे व्याकुल हो गईं। उन्होंने आश्रम में आकर देवी से क्षमा मांगी। तब उन्होंने उन्हें प्रभावमुक्त किया, लेकिन प्रतीक रूप में उन्हे आश्रम में रहने को कहा। उस समय त्रिमूर्ति ने अपने प्रतीक की स्थापना की, जिसके आधार पर ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा ऊपर शिव हैं।<ref name="aa">{{cite web |url=http://www.jagran.com/festivals/suchindram-temple-in-tamilnadu-9619104.html|title=तमिलनाडु का सुचिन्द्रम मन्दिर|accessmonthday=07 जून|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
*एक अन्य कथा के अनुसार [[गौतम ऋषि]] ने देवराज [[इन्द्र]] को शाप दे दिया था। उनके अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए देवराज इन्द्र ने यहीं सुचिन्द्रम में तपस्या की और उष्ण घृत से [[स्नान]] कर उन्होंने स्वयं को पाप से मुक्त किया और अ‌र्द्धरात्रि को [[पूजा]] आरंभ की। पूजा संपन्न कर वे पवित्र हुए और देवलोक को प्रस्थान किया। तब से इस स्थान का नाम 'सुचिन्द्रम' पड़ गया।
*एक अन्य कथा के अनुसार [[गौतम ऋषि]] ने देवराज [[इन्द्र]] को शाप दे दिया था। उनके अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए देवराज इन्द्र ने यहीं सुचिन्द्रम में तपस्या की और उष्ण घृत से [[स्नान]] कर उन्होंने स्वयं को पाप से मुक्त किया और अ‌र्द्धरात्रि को [[पूजा]] आरंभ की। पूजा संपन्न कर वे पवित्र हुए और देवलोक को प्रस्थान किया। तब से इस स्थान का नाम 'सुचिन्द्रम' पड़ गया।
===आस पास के अन्य तीर्थ===
1. '''नागर कोइल'''— शुचीन्द्रम से 3 मील। यह बड़ा नगर है। यहाँ से त्रिवेन्द्रम, [[तिरुनेल्वेली|तिन्नेवली]] तथा आसपास के स्थानों को बसें जाती हैं। नगर में शेषनाग तथा नागेश्वर शिव के मंदिर हैं।
2. '''तिरुबट्टार (आदिकेशव)'''— यह और आगे के तीर्थ भी त्रिवेन्द्रम के सीधे मार्ग में नहीं है; किंतु मोटर बसें यहाँ जाती हैं। नागर कोइल से 20 मील और त्रिवेन्द्रम से 12 मील है। यहाँ धर्मशाला है। ताम्रपर्णी के किनारे आदि केशव मंदिर है। यहाँ शेषशय्या पर लेटी नारायण की 16 फुट की मूर्ति है। एक द्वार में मुख, दूसरे से वक्ष तथा तीसरे से चरणों के दर्शन होते हैं। शेषशय्या के नीचे एक राक्षस दवा है।
'''कथा'''— तपो-निरत [[ब्रह्मा|ब्रह्माजी]] से एक [[राक्षस]] ने भोजन मांगा, ब्रह्मा ने उसे कदली बन भेजा। वहाँ वह [[ऋषि|ऋषियों]] को कष्ट देने लगा। ऋषियों की प्रार्थना पर [[नारायण]] ने उसे मारा तो उसने मरते समय वरदान माँगा ‘मेरे शरीर पर आप स्थित रहें।’ अतः राक्षस पर शेषजी को स्थापित करके भगवान स्थित हुए।
3. '''नियाटेकरा'''— तिरुबट्टा से 18 मील पर [[ताम्रपर्णी (नदी)|ताम्रपर्णी]] के किनारे यह बाजार है। यहाँ नदी के किनारे [[श्रीकृष्ण]] का भव्य मंदिर है।
4. '''कुमार कोइल'''— नियाटेकरा या तिरुबट्टार से यहाँ जा सकते हैं। यह सुब्रह्मण्य क्षेत्र है। बड़े घेरे के भीतर कुछ ऊँचाई पर [[कार्तिकेय|स्वामी कार्तिक]] का मंदिर है। मंदिर के समीप ही सरोवर है<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम= हिन्दूओं के तीर्थ स्थान|लेखक= सुदर्शन सिंह 'चक्र'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=|संकलन=|संपादन=|पृष्ठ संख्या=154|url=}}</ref>।
====आस्था का केन्द्र====
====आस्था का केन्द्र====
सुचिन्द्रम का 'स्थानुमलयन मंदिर' आज त्रिमूर्ति के प्रति आस्था का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। मंदिर में दो हज़ार वर्ष से भी अधिक पुराना एक वृक्ष है, जिसे [[तमिल भाषा]] में "कोनायडी वृक्ष" कहा जाता है। चमकदार पत्तियों वाले इस वृक्ष का तना खोखला है। इस खोखले भाग में ही त्रिमूर्ति स्थापित है। इस स्थान पर पहली बार मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ था। उस काल के [[शिलालेख]] आज भी यहाँ मौजूद हैं। सुचिन्द्रम [[कन्याकुमारी]] से मात्र 13 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह रास्ता [[नारियल]] के कुंचों से भरा हुआ है।<ref name="aa"/>
सुचिन्द्रम का 'स्थानुमलयन मंदिर' आज त्रिमूर्ति के प्रति आस्था का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। मंदिर में दो हज़ार वर्ष से भी अधिक पुराना एक वृक्ष है, जिसे [[तमिल भाषा]] में "कोनायडी वृक्ष" कहा जाता है। चमकदार पत्तियों वाले इस वृक्ष का तना खोखला है। इस खोखले भाग में ही त्रिमूर्ति स्थापित है। इस स्थान पर पहली बार मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ था। उस काल के [[शिलालेख]] आज भी यहाँ मौजूद हैं। सुचिन्द्रम [[कन्याकुमारी]] से मात्र 13 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह रास्ता [[नारियल]] के कुंचों से भरा हुआ है।<ref name="aa"/>

10:58, 23 सितम्बर 2016 का अवतरण

सुचिन्द्रम
सुचिन्द्रम तीर्थ
सुचिन्द्रम तीर्थ
विवरण 'सुचिन्द्रम' एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है, जो तमिलनाडु में स्थित है। यहाँ का 'स्थानुमलयन मन्दिर' हिन्दू धर्म में मान्य त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश को समर्पित है।
शहर कन्याकुमारी
राज्य तमिलनाडु
निर्माण काल नौवीं शताब्दी
पौराणिक मान्यता माना जाता है कि यहाँ पर 'ज्ञान अरण्य' नामक सघन वन था, जिसमें महर्षि अत्रि अपनी पत्नी अनुसूया के साथ रहते थे। यहीं पर देवी अनुसूया ने ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश को बालरूप में परिवर्तित कर दिया था।
विशेष मंदिर में दो हज़ार वर्ष से भी अधिक पुराना एक वृक्ष है, जिसे तमिल भाषा में "कोनायडी वृक्ष" कहा जाता है।
संबंधित लेख अनुसूया, महर्षि अत्रि
अन्य जानकारी मंदिर के अलंगर मंडप में चार संगीतमय स्तंभ हैं। ये अनोखे स्तंभ एक ही चट्टान से बने हैं, जिनसे संगीत उत्पन्न किया जाता था।

सुचिन्द्रम एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है, जो तमिलनाडु के कन्याकुमारी में स्थित है। इस तीर्थ स्थान की धार्मिक आस्था श्रद्धालुओं को सहज ही अपनी ओर खींच लाती है। इस स्थान पर भव्य 'स्थानुमलयन मंदिर' है। यह मंदिर हिन्दू धर्म में मान्य त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश को समर्पित है। यह त्रिदेव यहाँ एक लिंग के रूप में विराजमान हैं। मंदिर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। उस काल के कुछ शिलालेख मंदिर में अब भी मौजूद हैं। सत्रहवीं शताब्दी में इस मंदिर को नया रूप दिया गया था। मंदिर में भगवान विष्णु की एक अष्टधातु की प्रतिमा एवं पवनपुत्र हनुमान की 18 फुट ऊँची प्रतिमा विशेष रूप से दर्शनीय है।

पौराणिक कथा

  • पौराणिक काल में इस स्थान पर 'ज्ञान अरण्य' नामक एक सघन वन था। इसी ज्ञान अरण्य में महर्षि अत्रि अपनी पत्नी अनुसूया के साथ रहते थे। अनुसूया महान पतिव्रता स्त्री थी और पति की पूजा करती थीं। उन्हें एक ऐसी शक्ति प्राप्त थी कि वह किसी भी व्यक्ति का रूप परिवर्तित कर सकती थीं। भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पत्नियों को जब उनकी इस शक्ति के विषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने अपने पति से देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने को कहा। उस समय ऋषि अत्री हिमालय पर तप करने गए हुए थे। जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश साधु के वेश में ऋषि के आश्रम पहुँचे और भिक्षा माँगने के लिए आवाज़ लगाई। उस समय देवी अनुसूया स्नान कर रही थीं। तीनों ने उनसे उसी रूप में बाहर आकर भिक्षा देने को कहा। जहाँ ब्राह्मणों को भिक्षा दिए बिना लौटाना अधर्म था, वहीं ऐसी अवस्था में परपुरुष के सामने आने से पतिव्रत धर्म भंग होता। देवी अनुसूया को तो दोनों धर्मों का निर्वाह करना था। तब उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर तीनों ब्राह्मणों को शिशु रूप में परिवर्तित कर दिया और उसी अवस्था में आकर भिक्षा प्रदान की। जब त्रिमूर्ति के शिशु रूप में परिवर्तित होने का ज्ञान उनकी पत्नियों को हुआ तो वे व्याकुल हो गईं। उन्होंने आश्रम में आकर देवी से क्षमा मांगी। तब उन्होंने उन्हें प्रभावमुक्त किया, लेकिन प्रतीक रूप में उन्हे आश्रम में रहने को कहा। उस समय त्रिमूर्ति ने अपने प्रतीक की स्थापना की, जिसके आधार पर ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा ऊपर शिव हैं।[1]
  • एक अन्य कथा के अनुसार गौतम ऋषि ने देवराज इन्द्र को शाप दे दिया था। उनके अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए देवराज इन्द्र ने यहीं सुचिन्द्रम में तपस्या की और उष्ण घृत से स्नान कर उन्होंने स्वयं को पाप से मुक्त किया और अ‌र्द्धरात्रि को पूजा आरंभ की। पूजा संपन्न कर वे पवित्र हुए और देवलोक को प्रस्थान किया। तब से इस स्थान का नाम 'सुचिन्द्रम' पड़ गया।

आस पास के अन्य तीर्थ

1. नागर कोइल— शुचीन्द्रम से 3 मील। यह बड़ा नगर है। यहाँ से त्रिवेन्द्रम, तिन्नेवली तथा आसपास के स्थानों को बसें जाती हैं। नगर में शेषनाग तथा नागेश्वर शिव के मंदिर हैं।

2. तिरुबट्टार (आदिकेशव)— यह और आगे के तीर्थ भी त्रिवेन्द्रम के सीधे मार्ग में नहीं है; किंतु मोटर बसें यहाँ जाती हैं। नागर कोइल से 20 मील और त्रिवेन्द्रम से 12 मील है। यहाँ धर्मशाला है। ताम्रपर्णी के किनारे आदि केशव मंदिर है। यहाँ शेषशय्या पर लेटी नारायण की 16 फुट की मूर्ति है। एक द्वार में मुख, दूसरे से वक्ष तथा तीसरे से चरणों के दर्शन होते हैं। शेषशय्या के नीचे एक राक्षस दवा है।

कथा— तपो-निरत ब्रह्माजी से एक राक्षस ने भोजन मांगा, ब्रह्मा ने उसे कदली बन भेजा। वहाँ वह ऋषियों को कष्ट देने लगा। ऋषियों की प्रार्थना पर नारायण ने उसे मारा तो उसने मरते समय वरदान माँगा ‘मेरे शरीर पर आप स्थित रहें।’ अतः राक्षस पर शेषजी को स्थापित करके भगवान स्थित हुए।

3. नियाटेकरा— तिरुबट्टा से 18 मील पर ताम्रपर्णी के किनारे यह बाजार है। यहाँ नदी के किनारे श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर है।

4. कुमार कोइल— नियाटेकरा या तिरुबट्टार से यहाँ जा सकते हैं। यह सुब्रह्मण्य क्षेत्र है। बड़े घेरे के भीतर कुछ ऊँचाई पर स्वामी कार्तिक का मंदिर है। मंदिर के समीप ही सरोवर है[2]

आस्था का केन्द्र

सुचिन्द्रम का 'स्थानुमलयन मंदिर' आज त्रिमूर्ति के प्रति आस्था का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। मंदिर में दो हज़ार वर्ष से भी अधिक पुराना एक वृक्ष है, जिसे तमिल भाषा में "कोनायडी वृक्ष" कहा जाता है। चमकदार पत्तियों वाले इस वृक्ष का तना खोखला है। इस खोखले भाग में ही त्रिमूर्ति स्थापित है। इस स्थान पर पहली बार मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ था। उस काल के शिलालेख आज भी यहाँ मौजूद हैं। सुचिन्द्रम कन्याकुमारी से मात्र 13 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह रास्ता नारियल के कुंचों से भरा हुआ है।[1]

स्थापत्य कला

17वीं शताब्दी में मंदिर को एक नया रूप प्रदान किया गया। मंदिर में क़रीब तीस पूजा स्थल हैं। इनमें से एक स्थान पर भगवान विष्णु की अष्टधातु प्रतिमा विराजमान है। मंदिर प्रवेश के दाई ओर सीता और भगवान श्रीराम की प्रतिमा स्थापित हैं। पास ही पवन पुत्र और राम भक्त हनुमान की एक 18 फुट ऊँची प्रतिमा है। ऐसी मान्यता है कि इसी विशाल रूप में हनुमान 'अशोक वाटिका' में सीता जी के सामने प्रकट हुए थे और उन्हें श्रीराम की मुद्रिका दिखाई थी। पास ही भगवान गणेश का मंदिर है, जिसके सामने नवग्रह मंडप है। इस मंडप में नौ ग्रहों की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की हुई हैं। मंदिर का सप्तसोपान गोपुरम भी भक्तों को प्रभावित करता है। मंदिर के निकट ही एक सरोवर है, जिसके मध्य में एक मंडप है।

अलंगर मंडप में चार संगीतमय स्तंभ हैं। ये अनोखे स्तंभ एक ही चट्टान से बने हैं, लेकिन इनसे मृदंग, सितार, जलतरंग तथा तंबूरे की अलग-अलग ध्वनि गुंजित होती है। पहले पूजा-अर्चना के समय इन्हीं स्तंभों से संगीत उत्पन्न किया जाता था। मंदिर में नटराज मंडप भी है। मंदिर में 800 वर्ष पुरानी भगवान शिव के सेवक नंदी की विशाल प्रतिमा भी दर्शनीय है। द्वार पर दो द्वारपाल प्रतिमाएँ हैं। मंदिर का गोपुरम 134 फुट ऊँचा है। यह सप्तसोपान गोपुरम मंदिर को अद्भुत भव्यता प्रदान करता है। इस पर बहुत-सी आकर्षक मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं। मंदिर के निकट ही एक सुंदर सरोवर है। इसके मध्य में एक छोटा-सा मंडप बना है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 तमिलनाडु का सुचिन्द्रम मन्दिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 07 जून, 2013।
  2. हिन्दूओं के तीर्थ स्थान |लेखक: सुदर्शन सिंह 'चक्र' |पृष्ठ संख्या: 154 |

संबंधित लेख