"इंदिरा गाँधी नहर": अवतरणों में अंतर
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'''इंदिरा गाँधी नहर''' को 'राजस्थान नहर' के नाम से भी जाना जाता है। यह [[राजस्थान]] के उत्तर-पश्चिम भाग में बहती है। राजस्थान की महत्वाकांक्षी 'इंदिरा गाँधी नहर परियोजना' से मर्यस्थलीय क्षेत्र में चमत्कारिक बदलाव आ रहा है और इससे मरुभूमि में सिंचाई के साथ ही पेयजल और औद्योगिक कार्यों के लिए भी पानी मिलने लगा है। पहले इस नहर को 'राजस्थान नहर' के नाम से जाना जाता था। अब इसका नया नाम 'इंदिरा गाँधी नहर' है। इंदिरा गाँधी नहर के निर्माण से पूर्व लोगों को कई मील दूर से पीने का पानी लाना पडता था, लेकिन अब परियोजना के अंतर्गत 1200 क्यूसेक पानी केवल पेयजल उद्योग, सेना एवं ऊर्जा परियोजनाओं के लिए आरक्षित किया गया है। | '''इंदिरा गाँधी नहर''' को 'राजस्थान नहर' के नाम से भी जाना जाता है। यह [[राजस्थान]] के उत्तर-पश्चिम भाग में बहती है। राजस्थान की महत्वाकांक्षी 'इंदिरा गाँधी नहर परियोजना' से मर्यस्थलीय क्षेत्र में चमत्कारिक बदलाव आ रहा है और इससे मरुभूमि में सिंचाई के साथ ही पेयजल और औद्योगिक कार्यों के लिए भी पानी मिलने लगा है। पहले इस नहर को 'राजस्थान नहर' के नाम से जाना जाता था। अब इसका नया नाम 'इंदिरा गाँधी नहर' है। इंदिरा गाँधी नहर के निर्माण से पूर्व लोगों को कई मील दूर से पीने का पानी लाना पडता था, लेकिन अब परियोजना के अंतर्गत 1200 क्यूसेक पानी केवल पेयजल उद्योग, सेना एवं ऊर्जा परियोजनाओं के लिए आरक्षित किया गया है। | ||
==विश्व की सबसे बड़ी नहर== | ==विश्व की सबसे बड़ी नहर== | ||
विश्व की सबसे बड़ी 649 किलोमीटर लम्बी नहर ने [[राजस्थान]] के मरु प्रदेश में जिस हरित क्रांति को जन्म दिया, जिस औद्योगिक क्रांति से विकास किया और जिस समाजिक क्रांति से जन-चेतना को जाग्रत किया, उसका श्रेय इन्दिरा गाँधी नहर को है। यह वही विशाल नहर है, जो मरु गंगा के नाम से विख्यात है और जिसके कारण [[पर्यावरण]] में ऐसा सुधार हुआ है कि बालू के टीलों वाले प्रदेश के उस क्षेत्र का भूगोल ही बदल गया है। भूगोल बदलने से पश्चिमी राजस्थान के नए [[इतिहास]] की संरचना हो रही है। इस नहर की लम्बी जल-यात्रा सही अर्थों में जय यात्रा है। | विश्व की सबसे बड़ी 649 किलोमीटर लम्बी नहर ने [[राजस्थान]] के मरु प्रदेश में जिस हरित क्रांति को जन्म दिया, जिस औद्योगिक क्रांति से विकास किया और जिस समाजिक क्रांति से जन-चेतना को जाग्रत किया, उसका श्रेय इन्दिरा गाँधी नहर को है। यह वही विशाल नहर है, जो मरु गंगा के नाम से विख्यात है और जिसके कारण [[पर्यावरण]] में ऐसा सुधार हुआ है कि बालू के टीलों वाले प्रदेश के उस क्षेत्र का भूगोल ही बदल गया है। भूगोल बदलने से पश्चिमी राजस्थान के नए [[इतिहास]] की संरचना हो रही है। इस नहर की लम्बी जल-यात्रा सही अर्थों में जय यात्रा है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://hindi.indiawaterportal.org/Indira-Gandhi-Nahar-Rajasthan |title=इंदिरा गाँधी नहर और राजस्थान |accessmonthday=30 दिसम्बर |accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=इण्डिया वाटर पोर्टल |language=हिंदी }}</ref> | ||
==राजस्थान के लिए महत्त्व== | ==राजस्थान के लिए महत्त्व== | ||
दुर्गम व कठोर [[मरुस्थल]], असाधारण व असहनीय तापक्रम और विपरीत व भयानक भौगोलिक परिस्थितियों के बीच इस जल विहीन और निर्जन क्षेत्र में नहर का निर्माण कर [[हिमालय]] का हिम-जल पहुँचाना यथार्थ में प्रकृति के विरुद्ध एक साहसी कदम था। लेकिन राजस्थान ने इस चुनौती को स्वीकारा और कड़े परिश्रम से प्रकृति पर विजय प्राप्त की। इससे बालू के टीलों में नया कलरव आया है। हजारों श्रमिकों और इंजीनियरों ने अपने श्रम साहस लगन और कौशल से तीन दशक पूर्व सोचे गए सपने को साकार किया। रेत के टीलों से भरे क्षेत्र में [[वर्षा]] का अभाव और जल स्रोतों की कमी के कारण जहाँ लोग पानी-पानी को तरसते थे, वहाँ की अब काया पलट हो गई है और रेत के टीले हरे भरे खेतों में विकसित हो गए हैं। मरुस्थल की भयावहता की स्थिति में जिस प्रकार यह इन्दिरा गाँधी नहर एक नहर रूपी नदी के रूप में अवतरित हुई, उसका उदाहरण विश्व में अन्यत्र नहीं मिलता। [[पंजाब]] के हरे भरे क्षेत्र हरित बैराज से राजस्थान के सीमान्त क्षेत्र बाड़मेर ज़िले में गडरा रोड तक की नहर की कल्पना कैसे साकार हो रही है, यह आश्चर्य है। नहर प्रणाली की कुल लम्बाई 8,836 किलोमीटर है। इससे भूमि के मूल्य में पाँच हजार करोड़ [[रुपया|रुपये]] की वृद्धि हो गई है। इन्दिरा गाँधी नहर न मरु गंगा है और न [[सरस्वती नदी|सरस्वती]], यह तो वास्तव में बूँद-बूँद को सदियों से तरसते क्षेत्र के लिये ‘जीवन रेखा’ है या कहिए कि राजस्थान के चहुँमुखी विकास की ‘भाग्यश्री’ है। रेत के समुद्र और बालू रेत के पहाड़ जैसे टीलों का यह भाग कोई 2.34 लाख वर्ग किलोमीटर [[थार रेगिस्तान|थार के रेगिस्तान]] का अधिकांश भाग है। यहाँ के भूगोल, जलवायु और पर्यावरण में इतना बड़ा परिवर्तन आया है कि सुख, समृद्धि और कल्याण की परिभाषा यहाँ के नागरिक समझने ही नहीं लगे हैं वरन उन्होंने इस प्रकार के जीवन में जीना अब सीख लिया है। | दुर्गम व कठोर [[मरुस्थल]], असाधारण व असहनीय तापक्रम और विपरीत व भयानक भौगोलिक परिस्थितियों के बीच इस जल विहीन और निर्जन क्षेत्र में नहर का निर्माण कर [[हिमालय]] का हिम-जल पहुँचाना यथार्थ में प्रकृति के विरुद्ध एक साहसी कदम था। लेकिन राजस्थान ने इस चुनौती को स्वीकारा और कड़े परिश्रम से प्रकृति पर विजय प्राप्त की। इससे बालू के टीलों में नया कलरव आया है। हजारों श्रमिकों और इंजीनियरों ने अपने श्रम साहस लगन और कौशल से तीन दशक पूर्व सोचे गए सपने को साकार किया। रेत के टीलों से भरे क्षेत्र में [[वर्षा]] का अभाव और जल स्रोतों की कमी के कारण जहाँ लोग पानी-पानी को तरसते थे, वहाँ की अब काया पलट हो गई है और रेत के टीले हरे भरे खेतों में विकसित हो गए हैं। मरुस्थल की भयावहता की स्थिति में जिस प्रकार यह इन्दिरा गाँधी नहर एक नहर रूपी नदी के रूप में अवतरित हुई, उसका उदाहरण विश्व में अन्यत्र नहीं मिलता। [[पंजाब]] के हरे भरे क्षेत्र हरित बैराज से राजस्थान के सीमान्त क्षेत्र बाड़मेर ज़िले में गडरा रोड तक की नहर की कल्पना कैसे साकार हो रही है, यह आश्चर्य है। नहर प्रणाली की कुल लम्बाई 8,836 किलोमीटर है। इससे भूमि के मूल्य में पाँच हजार करोड़ [[रुपया|रुपये]] की वृद्धि हो गई है। इन्दिरा गाँधी नहर न मरु गंगा है और न [[सरस्वती नदी|सरस्वती]], यह तो वास्तव में बूँद-बूँद को सदियों से तरसते क्षेत्र के लिये ‘जीवन रेखा’ है या कहिए कि राजस्थान के चहुँमुखी विकास की ‘भाग्यश्री’ है। रेत के समुद्र और बालू रेत के पहाड़ जैसे टीलों का यह भाग कोई 2.34 लाख वर्ग किलोमीटर [[थार रेगिस्तान|थार के रेगिस्तान]] का अधिकांश भाग है। यहाँ के भूगोल, जलवायु और पर्यावरण में इतना बड़ा परिवर्तन आया है कि सुख, समृद्धि और कल्याण की परिभाषा यहाँ के नागरिक समझने ही नहीं लगे हैं वरन उन्होंने इस प्रकार के जीवन में जीना अब सीख लिया है। | ||
==नहर की कल्पना== | ==नहर की कल्पना== | ||
इस विशाल नहर की कल्पना सबसे पहले [[1948]] में तत्कालीन [[बीकानेर]] राज्य के सचिव एवं मुख्य अभियन्ता स्वर्गीय श्री कंवरसेन द्वारा की गई और उन्होंने इसकी योजना बनाई। पंजाब में [[व्यास नदी|व्यास]] और [[सतलुज नदी]] के [[संगम]] पर स्थित जब ‘हरिके बैराज’ तैयार हो गया तो इस योजना के आधार पर केन्द्रीय जल विद्युत आयोग द्वारा जो रूपरेखा बनी, उससे [[1955]] और [[1981]] में नदी 'जल वितरण समझौता' हुआ। इसी से इन्दिरा गाँधी नहर को 75.9 लाख एकड़ फुट पानी के उपयोग का प्रस्ताव मिला। | इस विशाल नहर की कल्पना सबसे पहले [[1948]] में तत्कालीन [[बीकानेर]] राज्य के सचिव एवं मुख्य अभियन्ता स्वर्गीय श्री कंवरसेन द्वारा की गई और उन्होंने इसकी योजना बनाई। पंजाब में [[व्यास नदी|व्यास]] और [[सतलुज नदी]] के [[संगम]] पर स्थित जब ‘हरिके बैराज’ तैयार हो गया तो इस योजना के आधार पर केन्द्रीय जल विद्युत आयोग द्वारा जो रूपरेखा बनी, उससे [[1955]] और [[1981]] में नदी 'जल वितरण समझौता' हुआ। इसी से इन्दिरा गाँधी नहर को 75.9 लाख एकड़ फुट पानी के उपयोग का प्रस्ताव मिला।<ref name="aa"/> | ||
====शाखाएँ व उप-शाखाएँ==== | ====शाखाएँ व उप-शाखाएँ==== | ||
सिंचाई के अतिरिक्त परियोजना में पेयजल व औद्योगिक कार्यों के लिये 1,200 क्यूसेक पानी पृथक से देने का निश्चय भी हुआ। हरिके बैराज से प्रभावित इस नहर के शीर्ष स्थल पर इसके तल व ऊपरी सतह की चौड़ाई क्रमशः 134 फुट व 218 फुट है और पानी की गहराई 21 फुट है। इसका जल प्रदाय विसर्जन 18,500 घनफुट प्रति सेकंड है। संशोधित योजना के अनुसार आरम्भ में लगभग 1,675 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत की इस परियोजना के अंतर्गत 204 किलोमीटर लम्बी फीडर नहर सहित 649 किलोमीटर लम्बी मुख्य नहर है। इसकी कोई 8,187 किलोमीटर लम्बी शाखाएं व उप-शाखाएं हैं। इन्हीं में इसकी जल-वितरिकाओं और सात जलोत्थान नहरों का निर्माण कर मरु क्षेत्र को 15.37 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई सुविधा एवं पेयजल उपलब्ध कराने का प्रस्ताव पूरा हो रहा है। इस नहर का लाभ आरम्भ में श्री गंगानगर ज़िले को मिला। इसके बाद चुरू ज़िले को भी इससे राहत मिली। फिर [[बीकानेर]] की ओर कार्य बढ़ा और अब [[जैसलमेर]] में भी नहर से [[हिमालय]] का पानी पहुँच गया है। अब आगे [[बाड़मेर]] के गडरा रोड की ओर कार्य चालू है। [[जोधपुर]] को भी इस नहर के माध्यम से हिमजल मिलेगा। [[नागौर|नागौर ज़िला]] भी इसके फल प्राप्त करेगा, यह आशा करना स्वाभाविक है। | सिंचाई के अतिरिक्त परियोजना में पेयजल व औद्योगिक कार्यों के लिये 1,200 क्यूसेक पानी पृथक से देने का निश्चय भी हुआ। हरिके बैराज से प्रभावित इस नहर के शीर्ष स्थल पर इसके तल व ऊपरी सतह की चौड़ाई क्रमशः 134 फुट व 218 फुट है और पानी की गहराई 21 फुट है। इसका जल प्रदाय विसर्जन 18,500 घनफुट प्रति सेकंड है। संशोधित योजना के अनुसार आरम्भ में लगभग 1,675 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत की इस परियोजना के अंतर्गत 204 किलोमीटर लम्बी फीडर नहर सहित 649 किलोमीटर लम्बी मुख्य नहर है। इसकी कोई 8,187 किलोमीटर लम्बी शाखाएं व उप-शाखाएं हैं। इन्हीं में इसकी जल-वितरिकाओं और सात जलोत्थान नहरों का निर्माण कर मरु क्षेत्र को 15.37 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई सुविधा एवं पेयजल उपलब्ध कराने का प्रस्ताव पूरा हो रहा है। इस नहर का लाभ आरम्भ में श्री गंगानगर ज़िले को मिला। इसके बाद चुरू ज़िले को भी इससे राहत मिली। फिर [[बीकानेर]] की ओर कार्य बढ़ा और अब [[जैसलमेर]] में भी नहर से [[हिमालय]] का पानी पहुँच गया है। अब आगे [[बाड़मेर]] के गडरा रोड की ओर कार्य चालू है। [[जोधपुर]] को भी इस नहर के माध्यम से हिमजल मिलेगा। [[नागौर|नागौर ज़िला]] भी इसके फल प्राप्त करेगा, यह आशा करना स्वाभाविक है। | ||
==व्यय राशि== | ==व्यय राशि== | ||
यदि इस नहर योजना के व्यय की ओर ध्यान दें तो शुरू में [[1965]] तक 66.45 करोड़ रुपये का अनुमान था, फिर [[1970]] में यह 200 करोड़ रुपये की हो गई। यह रकम बढ़कर [[1977]] में 396 करोड़ रुपये तक पहुँच गई। [[1989]] में रकम की राशि 1,675 करोड़ रुपये और [[1990]] में एकदम बढ़कर 1,900 करोड़ रुपये हो गई। वास्तविक खर्च [[जनवरी]] [[1992]] तक 942 करोड़ का ही हुआ है। बताया गया है कि सन [[2000]] तक यह विश्व की सबसे बड़ी और महत्त्वपूर्ण नहर 2,900 करोड़ तक पहुँच जाएगी। इसका आशय यह है कि इसके व्यय का अनुमान 21 वीं सदी के प्रारंभ में 2,900 करोड़ हो जाएगा। यह भी अनुमान था कि नहर का पूरा कार्य सन [[2004]] तक पूर्ण हो जायेगा, जबकि इसके अतिरिक्त कार्य के सन [[2007]] तक पूरे होने की आशा थी। वैसे [[इतिहास]] में [[1 जनवरी]] [[1987]] का दिन स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा, जब इस जीवनदायिनी मरु गंगा की लम्बी यात्रा विशाल एवम दुर्गम रेतीले क्षेत्र को चीर कर 649 किलोमीटर तक पहुँची। यह जलयात्रा इसकी वास्तव में जय यात्रा है। इस यात्रा से [[जैसलमेर]] का मोहनगढ़ एक तीर्थ बन गया। | यदि इस नहर योजना के व्यय की ओर ध्यान दें तो शुरू में [[1965]] तक 66.45 करोड़ रुपये का अनुमान था, फिर [[1970]] में यह 200 करोड़ रुपये की हो गई। यह रकम बढ़कर [[1977]] में 396 करोड़ रुपये तक पहुँच गई। [[1989]] में रकम की राशि 1,675 करोड़ रुपये और [[1990]] में एकदम बढ़कर 1,900 करोड़ रुपये हो गई। वास्तविक खर्च [[जनवरी]] [[1992]] तक 942 करोड़ का ही हुआ है। बताया गया है कि सन [[2000]] तक यह विश्व की सबसे बड़ी और महत्त्वपूर्ण नहर 2,900 करोड़ तक पहुँच जाएगी। इसका आशय यह है कि इसके व्यय का अनुमान 21 वीं सदी के प्रारंभ में 2,900 करोड़ हो जाएगा। यह भी अनुमान था कि नहर का पूरा कार्य सन [[2004]] तक पूर्ण हो जायेगा, जबकि इसके अतिरिक्त कार्य के सन [[2007]] तक पूरे होने की आशा थी। वैसे [[इतिहास]] में [[1 जनवरी]] [[1987]] का दिन स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा, जब इस जीवनदायिनी मरु गंगा की लम्बी यात्रा विशाल एवम दुर्गम रेतीले क्षेत्र को चीर कर 649 किलोमीटर तक पहुँची। यह जलयात्रा इसकी वास्तव में जय यात्रा है। इस यात्रा से [[जैसलमेर]] का मोहनगढ़ एक तीर्थ बन गया।<ref name="aa"/> | ||
आरम्भ में यह कल्पनाशील नहर राजस्थान के नाम से थी परन्तु स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के देहान्त के बाद उनकी स्थाई स्मृति के लिये इसका नाम इन्दिरा गाँधी नहर कर दिया गया। इस नहर से पूरे मरु प्रदेश में चहुँमुखी प्रगति हुई है। प्रोजेक्ट पूरा होने पर इस क्षेत्र की जनसंख्या कोई एक करोड़ बढ़ जाएगी। लगभग 40 नए शहरों का निर्माण होगा। 6 हजार नए ग्राम विकासित हो जाएंगे। अभी 1,500 ग्रामों को पीने के पानी का लाभ मिल रहा है। बालू के टीलों के अंधड़ काफी कम हो गए हैं- उनकी तूफानी गति कम हो गई है और 1.46 लाख हेक्टेयर भूमि में वन विकास कार्य किया जा रहा है। अभी सिंचाई 7.10 लाख हेक्टेयर भूमि में होती है। नहर पूरा होने पर अब सिंचाई कार्य 15.37 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में करने का लक्ष्य है। इस प्रकार 8.50 हेक्टेयर नए क्षेत्र में सिंचाई क्षमता अर्जित की गई है। पशु पालन में वृद्धि, लाखों लोगों को अतिरिक्त रोजगार और दुग्ध विकास में बढ़ोत्तरी इस योजना के परिणाम हैं। | [[समाचार पत्र|समाचार पत्रों]] में और विधान सभा व संसद में कई बार यह आरोप लगाया गया है कि नहर पूरी होने की अवधि बढ़ रही है और बजट भी बढ़ रहा है। इसमें दोष पर्याप्त मात्रा में धन का न मिलना है। इसकी योजना हर बार संशोधित होती गई और धनराशि बढ़ती गई। आरम्भ में जो 400 किलोमीटर की नहर थी, वह अब 649 किलोमीटर की हो गई। समय के साथ मूल्य भी बढ़ गए, महँगाई भी बढ़ गई। इस नहर के पानी से [[हनुमानगढ़|हनुमानगढ़ क्षेत्र]] में ‘वाटर लोगिंग’ पानी के जमाव की समस्या अवश्य हो गई है, लेकिन उसका भी उपाय किया जा रहा है। | ||
==योजना के परिणाम== | |||
आरम्भ में यह कल्पनाशील नहर राजस्थान के नाम से थी, परन्तु [[इंदिरा गाँधी|स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी]] के देहान्त के बाद उनकी स्थाई स्मृति के लिये इसका नाम इन्दिरा गाँधी नहर कर दिया गया। इस नहर से पूरे मरु प्रदेश में चहुँमुखी प्रगति हुई है। प्रोजेक्ट पूरा होने पर इस क्षेत्र की जनसंख्या कोई एक करोड़ बढ़ जाएगी। लगभग 40 नए शहरों का निर्माण होगा। 6 हजार नए ग्राम विकासित हो जाएंगे। अभी 1,500 ग्रामों को पीने के पानी का लाभ मिल रहा है। बालू के टीलों के अंधड़ काफी कम हो गए हैं- उनकी तूफानी गति कम हो गई है और 1.46 लाख हेक्टेयर भूमि में वन विकास कार्य किया जा रहा है। अभी सिंचाई 7.10 लाख हेक्टेयर भूमि में होती है। नहर पूरा होने पर अब सिंचाई कार्य 15.37 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में करने का लक्ष्य है। इस प्रकार 8.50 हेक्टेयर नए क्षेत्र में सिंचाई क्षमता अर्जित की गई है। पशु पालन में वृद्धि, लाखों लोगों को अतिरिक्त रोजगार और दुग्ध विकास में बढ़ोत्तरी इस योजना के परिणाम हैं। किसे मालूम नहीं है कि पूरे देश का [[चना]] अधिकांश में इसी नहर क्षेत्र में उत्पन्न होता है। [[कपास]] की खेती ने सभी आंकड़े तोड़ दिए है। [[मूँगफली]] सभी स्थानों पर यहाँ से पहुँचती है। यहाँ का माल्टा देश भर में [[रक्त]] की शक्ति ऊर्जा बढ़ा रहा है। [[गेहूँ]]-[[चावल]] आदि के अपूर्व भंडार हैं। सरसों के उत्पादन ने भी रिकॉर्ड बना लिया है। नए-नए उद्योग पनप गए हैं। यहाँ कोई 550 करोड़ रुपये का वार्षिक [[कृषि]] उत्पादन होता है। | |||
यह क्षेत्र केवल 8 हजार हेक्टेयर का है। जिस [[मरुस्थल|मरुभूमि]] में बच्चों को [[वर्षा]] का अनुभव नहीं था, जहाँ बूँद-बूँद पानी बटोर कर महीनों उसका उपयोग होता था और जहाँ पानी की जगह [[दूध]] या [[छाछ]] अतिथि को मजबूरी में पिलाई जाती थी, वहाँ अब पानी ही पानी, हरियाली ही हरियाली और अनाज ही अनाज उपलब्ध है। यह परिणाम है मानव कल्याण और मानव के कठोर श्रम का, जिसने देश की लम्बाई-चौड़ाई के जोड़ से दुगुनी लम्बी जल-यात्रा पूरी कर एक नया स्वप्न पूरा किया है। इस नहर के निर्माण के फलस्वरूप [[हिमालय]] का हिम-जल मरुस्थल में पहुँच गया है और इससे यहाँ के जन-जीवन में सुखी रहने की एक नई क्रांति आई है।<ref name="aa"/> | |||
==राष्ट्रीय हित की वृहद सिंचाई परियोजना== | |||
कल्पना कीजिए, इस नहर के विशाल निर्माण कार्य की, जहाँ 44 करोड़ घनमीटर क्षेत्र में कार्य हुआ है। [[एवरेस्ट]] की ऊँचाई और 350 मीटर गुणा 350 मीटर आधार के पिरामिड के निर्माण के बराबर का कार्य होगा, क्या कम आश्चर्यजनक है? इस नहर के निर्माण में 30 करोड़ मानव दिनों के बराबर कार्य हुआ है। परियोजना के लिये किए गए [[मिट्टी]] के कार्य से [[पृथ्वी]] के चारों ओर 6 मीटर चौड़े एवं 1.2 मीटर ऊँचे तटबंध का निर्माण किया जा सकता है। नहर को पक्का करने वाली टाइलों की ओर ध्यान दें तो उनसे पृथ्वी के चारों ओर चार मीटर चौड़ी सड़क का निर्माण हो सकता है। वास्तव में देखा जाए तो इसकी विशालता बारह महीनों बहने वाली एक नदी के समान है, इसीलिए कहा गया है कि इस क्षेत्र में प्राचीन समय में बहने वाली [[सरस्वती नदी]] का एक प्रकार से पुनः अवतरण हो गया है। इन्दिरा गाँधी नहर एक ऐसी राष्ट्रीय हित की वृहद सिंचाई परियोजना है, जो [[राजस्थान]] के लिये सार्थक व कल्याणकारी तो है ही, साथ ही पूरे देश की समृद्धि के लिये एक ठोस योजना सिद्ध हो चुकी है। | |||
जिस मरुभूमि में बच्चों को वर्षा का अनुभव नहीं था, जहाँ बूँद-बूँद पानी बटोर कर महीनों उसका उपयोग होता था और जहाँ पानी की जगह दूध या छाछ अतिथि को मजबूरी में पिलाई जाती थी, वहाँ अब पानी ही पानी, हरियाली ही हरियाली और अनाज ही अनाज उपलब्ध है। यह परिणाम है मानव कल्याण और मानव के कठोर श्रम का जिसने देश की लम्बाई-चौड़ाई के जोड़ से दुगुनी लम्बी जल-यात्रा पूरी कर एक नया स्वप्न पूरा किया है। इस नहर के निर्माण के फलस्वरूप हिमालय का हिम-जल | |||
कल्पना कीजिए, इस नहर के विशाल निर्माण कार्य की जहाँ 44 करोड़ घनमीटर क्षेत्र में कार्य हुआ है। एवरेस्ट की ऊँचाई और 350 मीटर | |||
वास्तव में देखा जाए तो इसकी विशालता बारह महीनों बहने वाली एक नदी के समान है, इसीलिए कहा गया है कि इस क्षेत्र में प्राचीन समय में बहने वाली | |||
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05:59, 30 दिसम्बर 2016 का अवतरण
इंदिरा गाँधी नहर को 'राजस्थान नहर' के नाम से भी जाना जाता है। यह राजस्थान के उत्तर-पश्चिम भाग में बहती है। राजस्थान की महत्वाकांक्षी 'इंदिरा गाँधी नहर परियोजना' से मर्यस्थलीय क्षेत्र में चमत्कारिक बदलाव आ रहा है और इससे मरुभूमि में सिंचाई के साथ ही पेयजल और औद्योगिक कार्यों के लिए भी पानी मिलने लगा है। पहले इस नहर को 'राजस्थान नहर' के नाम से जाना जाता था। अब इसका नया नाम 'इंदिरा गाँधी नहर' है। इंदिरा गाँधी नहर के निर्माण से पूर्व लोगों को कई मील दूर से पीने का पानी लाना पडता था, लेकिन अब परियोजना के अंतर्गत 1200 क्यूसेक पानी केवल पेयजल उद्योग, सेना एवं ऊर्जा परियोजनाओं के लिए आरक्षित किया गया है।
विश्व की सबसे बड़ी नहर
विश्व की सबसे बड़ी 649 किलोमीटर लम्बी नहर ने राजस्थान के मरु प्रदेश में जिस हरित क्रांति को जन्म दिया, जिस औद्योगिक क्रांति से विकास किया और जिस समाजिक क्रांति से जन-चेतना को जाग्रत किया, उसका श्रेय इन्दिरा गाँधी नहर को है। यह वही विशाल नहर है, जो मरु गंगा के नाम से विख्यात है और जिसके कारण पर्यावरण में ऐसा सुधार हुआ है कि बालू के टीलों वाले प्रदेश के उस क्षेत्र का भूगोल ही बदल गया है। भूगोल बदलने से पश्चिमी राजस्थान के नए इतिहास की संरचना हो रही है। इस नहर की लम्बी जल-यात्रा सही अर्थों में जय यात्रा है।[1]
राजस्थान के लिए महत्त्व
दुर्गम व कठोर मरुस्थल, असाधारण व असहनीय तापक्रम और विपरीत व भयानक भौगोलिक परिस्थितियों के बीच इस जल विहीन और निर्जन क्षेत्र में नहर का निर्माण कर हिमालय का हिम-जल पहुँचाना यथार्थ में प्रकृति के विरुद्ध एक साहसी कदम था। लेकिन राजस्थान ने इस चुनौती को स्वीकारा और कड़े परिश्रम से प्रकृति पर विजय प्राप्त की। इससे बालू के टीलों में नया कलरव आया है। हजारों श्रमिकों और इंजीनियरों ने अपने श्रम साहस लगन और कौशल से तीन दशक पूर्व सोचे गए सपने को साकार किया। रेत के टीलों से भरे क्षेत्र में वर्षा का अभाव और जल स्रोतों की कमी के कारण जहाँ लोग पानी-पानी को तरसते थे, वहाँ की अब काया पलट हो गई है और रेत के टीले हरे भरे खेतों में विकसित हो गए हैं। मरुस्थल की भयावहता की स्थिति में जिस प्रकार यह इन्दिरा गाँधी नहर एक नहर रूपी नदी के रूप में अवतरित हुई, उसका उदाहरण विश्व में अन्यत्र नहीं मिलता। पंजाब के हरे भरे क्षेत्र हरित बैराज से राजस्थान के सीमान्त क्षेत्र बाड़मेर ज़िले में गडरा रोड तक की नहर की कल्पना कैसे साकार हो रही है, यह आश्चर्य है। नहर प्रणाली की कुल लम्बाई 8,836 किलोमीटर है। इससे भूमि के मूल्य में पाँच हजार करोड़ रुपये की वृद्धि हो गई है। इन्दिरा गाँधी नहर न मरु गंगा है और न सरस्वती, यह तो वास्तव में बूँद-बूँद को सदियों से तरसते क्षेत्र के लिये ‘जीवन रेखा’ है या कहिए कि राजस्थान के चहुँमुखी विकास की ‘भाग्यश्री’ है। रेत के समुद्र और बालू रेत के पहाड़ जैसे टीलों का यह भाग कोई 2.34 लाख वर्ग किलोमीटर थार के रेगिस्तान का अधिकांश भाग है। यहाँ के भूगोल, जलवायु और पर्यावरण में इतना बड़ा परिवर्तन आया है कि सुख, समृद्धि और कल्याण की परिभाषा यहाँ के नागरिक समझने ही नहीं लगे हैं वरन उन्होंने इस प्रकार के जीवन में जीना अब सीख लिया है।
नहर की कल्पना
इस विशाल नहर की कल्पना सबसे पहले 1948 में तत्कालीन बीकानेर राज्य के सचिव एवं मुख्य अभियन्ता स्वर्गीय श्री कंवरसेन द्वारा की गई और उन्होंने इसकी योजना बनाई। पंजाब में व्यास और सतलुज नदी के संगम पर स्थित जब ‘हरिके बैराज’ तैयार हो गया तो इस योजना के आधार पर केन्द्रीय जल विद्युत आयोग द्वारा जो रूपरेखा बनी, उससे 1955 और 1981 में नदी 'जल वितरण समझौता' हुआ। इसी से इन्दिरा गाँधी नहर को 75.9 लाख एकड़ फुट पानी के उपयोग का प्रस्ताव मिला।[1]
शाखाएँ व उप-शाखाएँ
सिंचाई के अतिरिक्त परियोजना में पेयजल व औद्योगिक कार्यों के लिये 1,200 क्यूसेक पानी पृथक से देने का निश्चय भी हुआ। हरिके बैराज से प्रभावित इस नहर के शीर्ष स्थल पर इसके तल व ऊपरी सतह की चौड़ाई क्रमशः 134 फुट व 218 फुट है और पानी की गहराई 21 फुट है। इसका जल प्रदाय विसर्जन 18,500 घनफुट प्रति सेकंड है। संशोधित योजना के अनुसार आरम्भ में लगभग 1,675 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत की इस परियोजना के अंतर्गत 204 किलोमीटर लम्बी फीडर नहर सहित 649 किलोमीटर लम्बी मुख्य नहर है। इसकी कोई 8,187 किलोमीटर लम्बी शाखाएं व उप-शाखाएं हैं। इन्हीं में इसकी जल-वितरिकाओं और सात जलोत्थान नहरों का निर्माण कर मरु क्षेत्र को 15.37 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई सुविधा एवं पेयजल उपलब्ध कराने का प्रस्ताव पूरा हो रहा है। इस नहर का लाभ आरम्भ में श्री गंगानगर ज़िले को मिला। इसके बाद चुरू ज़िले को भी इससे राहत मिली। फिर बीकानेर की ओर कार्य बढ़ा और अब जैसलमेर में भी नहर से हिमालय का पानी पहुँच गया है। अब आगे बाड़मेर के गडरा रोड की ओर कार्य चालू है। जोधपुर को भी इस नहर के माध्यम से हिमजल मिलेगा। नागौर ज़िला भी इसके फल प्राप्त करेगा, यह आशा करना स्वाभाविक है।
व्यय राशि
यदि इस नहर योजना के व्यय की ओर ध्यान दें तो शुरू में 1965 तक 66.45 करोड़ रुपये का अनुमान था, फिर 1970 में यह 200 करोड़ रुपये की हो गई। यह रकम बढ़कर 1977 में 396 करोड़ रुपये तक पहुँच गई। 1989 में रकम की राशि 1,675 करोड़ रुपये और 1990 में एकदम बढ़कर 1,900 करोड़ रुपये हो गई। वास्तविक खर्च जनवरी 1992 तक 942 करोड़ का ही हुआ है। बताया गया है कि सन 2000 तक यह विश्व की सबसे बड़ी और महत्त्वपूर्ण नहर 2,900 करोड़ तक पहुँच जाएगी। इसका आशय यह है कि इसके व्यय का अनुमान 21 वीं सदी के प्रारंभ में 2,900 करोड़ हो जाएगा। यह भी अनुमान था कि नहर का पूरा कार्य सन 2004 तक पूर्ण हो जायेगा, जबकि इसके अतिरिक्त कार्य के सन 2007 तक पूरे होने की आशा थी। वैसे इतिहास में 1 जनवरी 1987 का दिन स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा, जब इस जीवनदायिनी मरु गंगा की लम्बी यात्रा विशाल एवम दुर्गम रेतीले क्षेत्र को चीर कर 649 किलोमीटर तक पहुँची। यह जलयात्रा इसकी वास्तव में जय यात्रा है। इस यात्रा से जैसलमेर का मोहनगढ़ एक तीर्थ बन गया।[1]
समाचार पत्रों में और विधान सभा व संसद में कई बार यह आरोप लगाया गया है कि नहर पूरी होने की अवधि बढ़ रही है और बजट भी बढ़ रहा है। इसमें दोष पर्याप्त मात्रा में धन का न मिलना है। इसकी योजना हर बार संशोधित होती गई और धनराशि बढ़ती गई। आरम्भ में जो 400 किलोमीटर की नहर थी, वह अब 649 किलोमीटर की हो गई। समय के साथ मूल्य भी बढ़ गए, महँगाई भी बढ़ गई। इस नहर के पानी से हनुमानगढ़ क्षेत्र में ‘वाटर लोगिंग’ पानी के जमाव की समस्या अवश्य हो गई है, लेकिन उसका भी उपाय किया जा रहा है।
योजना के परिणाम
आरम्भ में यह कल्पनाशील नहर राजस्थान के नाम से थी, परन्तु स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के देहान्त के बाद उनकी स्थाई स्मृति के लिये इसका नाम इन्दिरा गाँधी नहर कर दिया गया। इस नहर से पूरे मरु प्रदेश में चहुँमुखी प्रगति हुई है। प्रोजेक्ट पूरा होने पर इस क्षेत्र की जनसंख्या कोई एक करोड़ बढ़ जाएगी। लगभग 40 नए शहरों का निर्माण होगा। 6 हजार नए ग्राम विकासित हो जाएंगे। अभी 1,500 ग्रामों को पीने के पानी का लाभ मिल रहा है। बालू के टीलों के अंधड़ काफी कम हो गए हैं- उनकी तूफानी गति कम हो गई है और 1.46 लाख हेक्टेयर भूमि में वन विकास कार्य किया जा रहा है। अभी सिंचाई 7.10 लाख हेक्टेयर भूमि में होती है। नहर पूरा होने पर अब सिंचाई कार्य 15.37 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में करने का लक्ष्य है। इस प्रकार 8.50 हेक्टेयर नए क्षेत्र में सिंचाई क्षमता अर्जित की गई है। पशु पालन में वृद्धि, लाखों लोगों को अतिरिक्त रोजगार और दुग्ध विकास में बढ़ोत्तरी इस योजना के परिणाम हैं। किसे मालूम नहीं है कि पूरे देश का चना अधिकांश में इसी नहर क्षेत्र में उत्पन्न होता है। कपास की खेती ने सभी आंकड़े तोड़ दिए है। मूँगफली सभी स्थानों पर यहाँ से पहुँचती है। यहाँ का माल्टा देश भर में रक्त की शक्ति ऊर्जा बढ़ा रहा है। गेहूँ-चावल आदि के अपूर्व भंडार हैं। सरसों के उत्पादन ने भी रिकॉर्ड बना लिया है। नए-नए उद्योग पनप गए हैं। यहाँ कोई 550 करोड़ रुपये का वार्षिक कृषि उत्पादन होता है।
यह क्षेत्र केवल 8 हजार हेक्टेयर का है। जिस मरुभूमि में बच्चों को वर्षा का अनुभव नहीं था, जहाँ बूँद-बूँद पानी बटोर कर महीनों उसका उपयोग होता था और जहाँ पानी की जगह दूध या छाछ अतिथि को मजबूरी में पिलाई जाती थी, वहाँ अब पानी ही पानी, हरियाली ही हरियाली और अनाज ही अनाज उपलब्ध है। यह परिणाम है मानव कल्याण और मानव के कठोर श्रम का, जिसने देश की लम्बाई-चौड़ाई के जोड़ से दुगुनी लम्बी जल-यात्रा पूरी कर एक नया स्वप्न पूरा किया है। इस नहर के निर्माण के फलस्वरूप हिमालय का हिम-जल मरुस्थल में पहुँच गया है और इससे यहाँ के जन-जीवन में सुखी रहने की एक नई क्रांति आई है।[1]
राष्ट्रीय हित की वृहद सिंचाई परियोजना
कल्पना कीजिए, इस नहर के विशाल निर्माण कार्य की, जहाँ 44 करोड़ घनमीटर क्षेत्र में कार्य हुआ है। एवरेस्ट की ऊँचाई और 350 मीटर गुणा 350 मीटर आधार के पिरामिड के निर्माण के बराबर का कार्य होगा, क्या कम आश्चर्यजनक है? इस नहर के निर्माण में 30 करोड़ मानव दिनों के बराबर कार्य हुआ है। परियोजना के लिये किए गए मिट्टी के कार्य से पृथ्वी के चारों ओर 6 मीटर चौड़े एवं 1.2 मीटर ऊँचे तटबंध का निर्माण किया जा सकता है। नहर को पक्का करने वाली टाइलों की ओर ध्यान दें तो उनसे पृथ्वी के चारों ओर चार मीटर चौड़ी सड़क का निर्माण हो सकता है। वास्तव में देखा जाए तो इसकी विशालता बारह महीनों बहने वाली एक नदी के समान है, इसीलिए कहा गया है कि इस क्षेत्र में प्राचीन समय में बहने वाली सरस्वती नदी का एक प्रकार से पुनः अवतरण हो गया है। इन्दिरा गाँधी नहर एक ऐसी राष्ट्रीय हित की वृहद सिंचाई परियोजना है, जो राजस्थान के लिये सार्थक व कल्याणकारी तो है ही, साथ ही पूरे देश की समृद्धि के लिये एक ठोस योजना सिद्ध हो चुकी है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 इंदिरा गाँधी नहर और राजस्थान (हिंदी) इण्डिया वाटर पोर्टल। अभिगमन तिथि: 30 दिसम्बर, 2016।