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| {गुरु अर्जुन देव [[सिक्ख|सिक्खों]] के कौन-से गुरु थे?
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| -दूसरे
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| +पाँचवें
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| -छठे
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| -सातवें
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| ||[[सिक्ख|सिक्खों]] के चौथे गुरु रामदास अत्यन्त [[साधु]] प्रकृति के व्यक्ति थे, इसलिए बादशाह [[अकबर]] भी उनका आदर करता था। अकबर ने [[अमृतसर]] में एक जलाशय से युक्त भू-भाग उन्हें दान दिया, जिस पर आगे चलकर सिक्ख [[स्वर्ण मंदिर अमृतसर|स्वर्णमन्दिर]] का निर्माण हुआ। पाँचवें गुरु अर्जुन ने सिक्खों के आदि ग्रन्थ नामक धर्म [[ग्रन्थ]] का संकलन किया, जिसमें उनके पूर्व के चारों गुरुओं तथा कुछ [[हिन्दू]] और [[मुसलमान]] [[संत|संतों]] की वाणी संकलित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिक्ख]]
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| {सर्वप्रथम [[शूद्र]] की चर्चा किस धार्मिक ग्रंथ में मिली है?
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| +[[ऋग्वेद]]
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| -[[यजुर्वेद]]
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| -[[सामवेद]]
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| -[[अथर्ववेद]]
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| ||[[चित्र:Rigveda.jpg|ऋग्वेद|100px|right]][[ऋग्वेद]] के कुल [[मंत्र|मंत्रों]] की संख्या लगभग 10600 है। बाद में जोड़ गये दशम मंडल, जिसे ‘पुरुषसूक्त‘ के नाम से जाना जाता है, में सर्वप्रथम [[शूद्र|शूद्रों]] का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त 'नासदीयसूक्त' (सृष्टि विषयक जानकारी), 'विवाहसूक्त' (ऋषि दीर्घमाह द्वारा रचित), 'नदिसूक्त' और 'देवीसूक्त' आदि का वर्णन इसी मण्डल में है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋग्वेद]]
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| {[[सोलह महाजनपद|सोलह महाजनपदों]] का उल्लेख किस [[बौद्ध]] धर्म-ग्रंथ में मिलता है?
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| -[[दीपवंश]]
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| -[[महावंश]]
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| -[[दिव्यावदान]]
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| +[[अंगुत्तरनिकाय]]
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| ||[[चित्र:Buddhism-Symbol.jpg|100px|right|बौद्ध धर्म का प्रतीक]]अंगुत्तरनिकाय महत्त्वपूर्ण [[बौद्ध]] [[ग्रंथ]] है। इसके लेखक 'महंत आनंद कौसलायन' हैं। महाबोधि सभा, [[कलकत्ता]] द्वारा इसको वर्तमान समय में प्रकाशित किया गया है। 11 निपातों से युक्त इस निकाय में [[बुद्ध|महात्मा बुद्ध]] द्वारा भिक्षुओं को उपदेश में दी जाने वाली बातों का वर्णन है। इस निकाय में छठी शताब्दी ई.पू. के [[सोलह महाजनपद|सोलह महाजनपदों]] का उल्लेख मिलता हैं|{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अंगुत्तरनिकाय]]
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| {[[पैगम्बर मुहम्मद]] की कही गई बातें तथा उनकी स्मृतियाँ किस [[ग्रंथ]] में संकलित हैं?
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| +[[हदीस]]
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| -[[क़ुरान]]
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| -तोराह
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| -[[जेंदावेस्ता]]
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| {[[दक्षिण भारत]] से उत्तर भारत में [[भक्ति आन्दोलन]] किसने चलाया?
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| +[[रामानन्द]]
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| -[[शंकराचार्य]]
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| -[[विवेकानन्द]]
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| -[[कबीर]]
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| ||स्वामी रामानन्द का केन्द्र मठ [[काशी]] के 'पंच गंगाघाट' पर स्थित था। एक किंवदन्ती के अनुसार छुआ-छूत मतभेद के कारण गुरु [[राघवानन्द]] ने उन्हें नया सम्प्रदाय चलाने की अनुमति दी थी। दूसरा वर्ग एक प्राचीन रामावत सम्प्रदाय की कल्पना करता है और [[रामानन्द]] को उसका एक प्रमुख आचार्य मानता है। डॉ. फर्कुहर के अनुसार यह रामावत सम्प्रदाय दक्षिण [[भारत]] में था और उसके प्रमुख [[ग्रन्थ]] '[[वाल्मीकि रामायण]]' तथा '[[अध्यात्म रामायण]]' थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रामानन्द]]
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| {[[भारत]] में [[ब्रह्मा]] का एकमात्र मन्दिर कहाँ पर अवस्थित है? | | {[[भारत]] में [[ब्रह्मा]] का एकमात्र मन्दिर कहाँ पर अवस्थित है? |
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