"भीष्म अष्टमी": अवतरणों में अंतर
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'''भीष्म अष्टमी''' अथवा '''भीमाष्टमी व्रत''' [[माघ|माघ मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[अष्टमी|अष्टमी तिथि]] को किया जाता है। इस दिन [[महाभारत]] के पौराणिक पात्र [[भीष्म|भीष्म पितामह]] को अपनी इच्छा अनुसार मृ्त्यु प्राप्त हुई थी। भीष्म पितामह को बाल ब्रह्मचारी और [[कौरव|कौरवों]] के पूर्वजों के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भीष्म के नाम से पूजन और [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] करने से वीर और सत्यवादी संतान की प्राप्ति होती है। | |||
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[[शांतनु|महाराज शांतनु]] तथा [[गंगा|देवी गंगा]] के पुत्र [[भीष्म|भीष्म पितामह]] ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की अखंड प्रतिज्ञा ली थी। उनका पूरा जीवन सत्य और न्याय का पक्ष लेते हुए व्यतीत हुआ। यही कारण है कि [[महाभारत]] के सभी पात्रों में भीष्म पितामह अपना एक विशिष्ट स्थान रखते है। इनका जन्म का नाम 'देवव्रत' था, परन्तु अपने [[पिता]] के लिये इन्होंने आजीवन [[विवाह संस्कार|विवाह]] न करने का प्रण लिया था, इसी कारण से इनका नाम 'भीष्म' पड़ा। | [[शांतनु|महाराज शांतनु]] तथा [[गंगा|देवी गंगा]] के पुत्र [[भीष्म|भीष्म पितामह]] ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की अखंड प्रतिज्ञा ली थी। उनका पूरा जीवन सत्य और न्याय का पक्ष लेते हुए व्यतीत हुआ। यही कारण है कि [[महाभारत]] के सभी पात्रों में भीष्म पितामह अपना एक विशिष्ट स्थान रखते है। इनका जन्म का नाम 'देवव्रत' था, परन्तु अपने [[पिता]] के लिये इन्होंने आजीवन [[विवाह संस्कार|विवाह]] न करने का प्रण लिया था, इसी कारण से इनका नाम 'भीष्म' पड़ा। | ||
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माना जाता है कि भीष्म अष्टमी के दिन भीष्म पितामह की स्मृति के निमित्त जो श्रद्धालु कुश, [[तिल]], [[जल]] के साथ [[श्राद्ध]], [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] करता है, उसे संतान तथा मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है और पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को करने से पितृ्दोष से मुक्ति मिलती है और संतान की कामना भी पूरी होती है। व्रत करने वाले व्यक्ति को चाहिए, कि इस व्रत को करने के साथ-साथ इस दिन भीष्म पितामह की [[आत्मा]] की शान्ति के लिये तर्पण भी करे। पितामह के आशिर्वाद से उपवासक को पितामह समान सुसंस्कार युक्त संतान की प्राप्ति होती है। | माना जाता है कि भीष्म अष्टमी के दिन भीष्म पितामह की स्मृति के निमित्त जो श्रद्धालु कुश, [[तिल]], [[जल]] के साथ [[श्राद्ध]], [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] करता है, उसे संतान तथा मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है और पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को करने से पितृ्दोष से मुक्ति मिलती है और संतान की कामना भी पूरी होती है। व्रत करने वाले व्यक्ति को चाहिए, कि इस व्रत को करने के साथ-साथ इस दिन भीष्म पितामह की [[आत्मा]] की शान्ति के लिये तर्पण भी करे। पितामह के आशिर्वाद से उपवासक को पितामह समान सुसंस्कार युक्त संतान की प्राप्ति होती है। |
06:09, 4 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
भीष्म अष्टमी अथवा भीमाष्टमी व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस दिन महाभारत के पौराणिक पात्र भीष्म पितामह को अपनी इच्छा अनुसार मृ्त्यु प्राप्त हुई थी। भीष्म पितामह को बाल ब्रह्मचारी और कौरवों के पूर्वजों के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भीष्म के नाम से पूजन और तर्पण करने से वीर और सत्यवादी संतान की प्राप्ति होती है।
भीष्म
महाराज शांतनु तथा देवी गंगा के पुत्र भीष्म पितामह ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की अखंड प्रतिज्ञा ली थी। उनका पूरा जीवन सत्य और न्याय का पक्ष लेते हुए व्यतीत हुआ। यही कारण है कि महाभारत के सभी पात्रों में भीष्म पितामह अपना एक विशिष्ट स्थान रखते है। इनका जन्म का नाम 'देवव्रत' था, परन्तु अपने पिता के लिये इन्होंने आजीवन विवाह न करने का प्रण लिया था, इसी कारण से इनका नाम 'भीष्म' पड़ा।
व्रत महत्त्व
माना जाता है कि भीष्म अष्टमी के दिन भीष्म पितामह की स्मृति के निमित्त जो श्रद्धालु कुश, तिल, जल के साथ श्राद्ध, तर्पण करता है, उसे संतान तथा मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है और पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को करने से पितृ्दोष से मुक्ति मिलती है और संतान की कामना भी पूरी होती है। व्रत करने वाले व्यक्ति को चाहिए, कि इस व्रत को करने के साथ-साथ इस दिन भीष्म पितामह की आत्मा की शान्ति के लिये तर्पण भी करे। पितामह के आशिर्वाद से उपवासक को पितामह समान सुसंस्कार युक्त संतान की प्राप्ति होती है।
इन्हें भी देखें: हस्तिनापुर, शांतनु, गंगा, भीष्म, महाभारत, पाण्डव एवं कौरव
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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