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| {"[[रावण]] मेरे पाँव को तुमने जिस प्रकार पकड़ा है, यदि ऐसे ही [[श्रीराम]] के चरण पकड़ते तो तुम्हारा कल्याण हो जाता।" रावण से यह कथन किसने कहा था?
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| -[[सुग्रीव]]
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| -[[हनुमान]]
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| -[[नील]]
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| +[[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]]
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| ||'अंगद' महाबली [[बालि]] के पुत्र थे। ये परम बुद्धिमान, अपने [[पिता]] के समान बलशाली तथा [[श्रीराम]] के [[भक्त]] थे। राम के दूत रूप में [[लंका]] जाकर [[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]] ने [[रावण]] को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रावण [[सीता]] को लौटाने को राजी नहीं हुआ। लंका से लौटने से पूर्व रावण के दरबार में अंगद ने अपना पाँव जमीन पर जमाया और रावण को ललकारा कि- "यदि उसके दरबार का कोई भी योद्धा जमीन से मेरा पाँव हिला दे तो हम हार स्वीकार कर लेंगे।" [[मेघनाद]] और [[कुंभकर्ण]] सहित रावण के कई योद्धाओं ने प्रयत्न किए, किंतु कोई भी अंगद का पाँव जमीन से नहीं हिला पाया। अंत में रावण स्वयं पाँव हिलाने के लिए आया और अंगद के पाँव पकड़े, किंतु अंगद ने पाँव छुड़ा लिए और रावण से कहा- "रावण मेरे पाँव को तुमने जिस प्रकार पकड़ा है, यदि ऐसे ही श्रीराम के चरण पकड़ते तो तुम्हारा कल्याण हो जाता।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]]
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| {निम्न में से किसे [[लंका]] का निर्माणकर्ता माना जाता है?
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| +[[विश्वकर्मा]]
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| -[[कुबेर]]
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| -[[कामदेव]]
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| -[[वरुण देवता|वरुण]]
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| ||[[चित्र:Vishvakarma.jpg|right|100px|विश्वकर्मा]]'विश्वकर्मा' को [[हिन्दू]] धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों के अनुसार निर्माण एवं सृजन का [[देवता]] माना जाता है। [[भारतीय संस्कृति]] और [[पुराण|पुराणों]] में [[विश्वकर्मा]] को यंत्रों का अधिष्ठाता और देवता माना गया है। उन्हें हिन्दू संस्कृति में [[यंत्र|यंत्रों]] का देव माना जाता है। विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएँ प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इनके द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता रहा है। प्राचीन शास्त्रों में वैमानकीय विद्या, नवविद्या, यंत्र निर्माण विद्या आदि का विश्वकर्मा ने उपदेश दिया है। माना जाता है कि प्राचीन समय में स्वर्ग लोक, [[लंका]], [[द्वारिका]] और [[हस्तिनापुर]] जैसे नगरों के निर्माणकर्ता भी विश्वकर्मा ही थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विश्वकर्मा]]
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| {[[रावण]] को नर व वानरों के अतिरिक्त किसी से भी अवध्य होने का वरदान किसने दिया था?
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| -[[शिव]]
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| -[[पार्वती]]
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| +[[ब्रह्मा]]
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| -[[विष्णु]]
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| ||[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-2.jpg|right|120px|रावण]]एक कथा के अनुसार तपस्या के बल पर [[कुबेर]] को देवताओं का कोषाध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त हुआ था। यह जानकर [[रावण]] की महत्वाकांक्षा जाग्रत हो गयी। उसने भी तपस्या करने की ठान ली। रावण के साथ [[कुंभकर्ण]] और [[विभीषण]] भी ब्रह्मा की तपस्या करने के लिए तैयार हो गये। तीनों ने अपनी कठोर तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने रावण से वरदान मांगने को कहा। इसके बाद रावण ने अपने लिये सदैव अजर, अमर होने का वरदान मांगा। इससे ब्रह्मा जी असमंजस में डूब गये। कारण यह था कि मृत्युलोक में जिसका जन्म हुआ है, उसका मरण सुनिश्चित है। इसके बाद उसने ब्रह्मा से यह वरदान मांगा कि वह केवल मनुष्य के हाथों से मारा जाये। जंगली जीव से उसकी मृत्यु न हो पाये। ब्रह्मा ने तथास्तु कह कर रावण को वरदान दे दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रावण]], [[ब्रह्मा]]
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| {[[हनुमान]] को कभी भी युद्ध में न थकने का वरदान किससे मिला था?
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| +[[यमराज|यम]]
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| -[[वरुण देवता|वरुण]]
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| -[[सूर्य देव|सूर्य]]
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| -[[इन्द्र]]
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| ||[[चित्र:Yama.jpg|right|100px|यमराज]]'यम' या '[[यमराज]]' भारतीय पौराणिक कथाओं में मृत्यु के [[देवता]] को कहा गया है। देवों के शिल्पी [[विश्वकर्मा]] की पुत्री [[संज्ञा (सूर्य की पत्नी)|संज्ञा]] से भगवान [[सूर्य देव|सूर्य]] के पुत्र यमराज, श्राद्धदेव [[मनु]] और पुत्री [[यमुना]] हुईं। यमराज परम भागवत, द्वादश भागवताचार्यों में से एक हैं। ये जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं। दक्षिण दिशा के इन लोकपाल की संयमनीपुरी समस्त प्राणियों के लिये, जो अशुभकर्मा और बड़ी भयप्रद है। '[[दीपावली]]' से एक दिन पूर्व यमदीप देकर तथा दूसरे पर्वों पर [[यमराज]] की आराधना करके मनुष्य उनकी कृपा का सम्पादन करता है। यमराज सदा हम से शुभकर्म की आशा करते हैं। दण्ड के द्वारा जीव को शुद्ध करना ही इनके लोक का मुख्य कार्य है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[यमराज]]
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| {[[सुमाली]] नामक [[राक्षस]] को अजेयता और चिर जीवन का वरदान किसने दिया था?
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| -[[इन्द्र]]
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| -[[कुबेर]]
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| -[[शिव]]
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| +[[ब्रह्मा]]
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| ||[[चित्र:God-Brahma.jpg|right|100px|ब्रह्मा]]सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की गणना होती है। इनमें 'ब्रह्मा' का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार [[क्षीरसागर]] में शेषशायी [[विष्णु]] के नाभिकमल से ब्रह्मा की स्वयं उत्पत्ति हुई थी, इसलिए ये 'स्वयंभू' कहलाते हैं। सभी [[देवता]] ब्रह्माजी के पौत्र माने गये हैं, अत: वे पितामह के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। यूँ तो ब्रह्मा देवता, दानव तथा सभी जीवों के पितामह हैं, फिर भी वे विशेष रूप से [[धर्म]] के पक्षपाती हैं। इसलिये जब देवासुर संग्राम में पराजित होकर देवता ब्रह्मा के पास जाते हैं, तब वे धर्म की स्थापना के लिये विष्णु को [[अवतार]] लेने के लिये प्रेरित करते हैं। अत: भगवान विष्णु के प्राय: चौबीस अवतारों में ये ही निमित्त बनते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ब्रह्मा]]
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| {"[[रावण]] यदि रसातल में भी छुप जाये अथवा [[ब्रह्मा|पितामह ब्रह्मा]] के पास भी चला जाये, तो भी अब वह मेरे हाथों से बच नहीं सकेगा।" ये उद्गार किसके थे? | | {"[[रावण]] यदि रसातल में भी छुप जाये अथवा [[ब्रह्मा|पितामह ब्रह्मा]] के पास भी चला जाये, तो भी अब वह मेरे हाथों से बच नहीं सकेगा।" ये उद्गार किसके थे? |
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