"अल-मुज़्ज़म्मिल": अवतरणों में अंतर

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73:11- और मुझे उन झुठलाने वालों से जो दौलतमन्द हैं समझ लेने दो और उनको थोड़ी सी मोहलत दे दो।<br />
73:11- और मुझे उन झुठलाने वालों से जो दौलतमन्द हैं समझ लेने दो और उनको थोड़ी सी मोहलत दे दो।<br />
73:12- बेशक हमारे पास बेड़ियाँ (भी) हैं और जलाने वाली आग (भी)।<br />
73:12- बेशक हमारे पास बेड़ियाँ (भी) हैं और जलाने वाली आग (भी)।<br />
73:13- और गले में फँसने वाला खाना (भी) और दुख देने वाला अज़ाब (भी)।<br />
73:13- और गले में फँसने वाला खाना (भी) और दु:ख देने वाला अज़ाब (भी)।<br />
73:14- जिस दिन ज़मीन और पहाड़ लरज़ने लगेंगे और पहाड़ रेत के टीले से भुर भुरे हो जाएँगे।<br />
73:14- जिस दिन ज़मीन और पहाड़ लरज़ने लगेंगे और पहाड़ रेत के टीले से भुर भुरे हो जाएँगे।<br />
73:15- (ऐ मक्का वालों) हमने तुम्हारे पास (उसी तरह) एक रसूल (मोहम्मद) को भेजा जो तुम्हारे मामले में गवाही दे जिस तरह फिरऔन के पास एक रसूल (मूसा) को भेजा था।<br />
73:15- (ऐ मक्का वालों) हमने तुम्हारे पास (उसी तरह) एक रसूल (मोहम्मद) को भेजा जो तुम्हारे मामले में गवाही दे जिस तरह फिरऔन के पास एक रसूल (मूसा) को भेजा था।<br />

14:04, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

अल-मुज़्ज़म्मिल इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ क़ुरआन का 73वाँ सूरा (अध्याय) है जिसमें 20 आयतें होती हैं।
73:1- ऐ (मेरे) चादर लपेटे रसूल।
73:2- रात को (नमाज़ के वास्ते) खड़े रहो मगर (पूरी रात नहीं)।
73:3- थोड़ी रात या आधी रात या इससे भी कुछ कम कर दो या उससे कुछ बढ़ा दो।
73:4- और क़ुरान को बाक़ायदा ठहर ठहर कर पढ़ा करो।
73:5- हम अनक़रीब तुम पर एक भारी हुक्म नाज़िल करेंगे इसमें शक़ नहीं कि रात को उठना।
73:6- ख़ूब (नफ्स का) पामाल करना और बहुत ठिकाने से ज़िक्र का वक्त है।
73:7- दिन को तो तुम्हारे बहुत बड़े बड़े अशग़ाल हैं।
73:8- तो तुम अपने परवरदिगार के नाम का ज़िक्र करो और सबसे टूट कर उसी के हो रहो।
73:9- (वही) मशरिक और मग़रिब का मालिक है उसके सिवा कोई माबूद नहीं तो तुम उसी को कारसाज़ बनाओ।
73:10- और जो कुछ लोग बका करते हैं उस पर सब्र करो और उनसे बा उनवाने शाएस्ता अलग थलग रहो।
73:11- और मुझे उन झुठलाने वालों से जो दौलतमन्द हैं समझ लेने दो और उनको थोड़ी सी मोहलत दे दो।
73:12- बेशक हमारे पास बेड़ियाँ (भी) हैं और जलाने वाली आग (भी)।
73:13- और गले में फँसने वाला खाना (भी) और दु:ख देने वाला अज़ाब (भी)।
73:14- जिस दिन ज़मीन और पहाड़ लरज़ने लगेंगे और पहाड़ रेत के टीले से भुर भुरे हो जाएँगे।
73:15- (ऐ मक्का वालों) हमने तुम्हारे पास (उसी तरह) एक रसूल (मोहम्मद) को भेजा जो तुम्हारे मामले में गवाही दे जिस तरह फिरऔन के पास एक रसूल (मूसा) को भेजा था।
73:16- तो फिरऔन ने उस रसूल की नाफ़रमानी की तो हमने भी (उसकी सज़ा में) उसको बहुत सख्त पकड़ा।
73:17- तो अगर तुम भी न मानोगे तो उस दिन (के अज़ाब) से क्यों कर बचोगे जो बच्चों को बूढ़ा बना देगा।
73:18- जिस दिन आसमान फट पड़ेगा (ये) उसका वायदा पूरा होकर रहेगा।
73:19- बेशक ये नसीहत है तो जो शख़्श चाहे अपने परवरदिगार की राह एख्तेयार करे।
73:20- (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार चाहता है कि तुम और तुम्हारे चन्द साथ के लोग (कभी) दो तिहाई रात के करीब और (कभी) आधी रात और (कभी) तिहाई रात (नमाज़ में) खड़े रहते हो और ख़ुदा ही रात और दिन का अच्छी तरह अन्दाज़ा कर सकता है उसे मालूम है कि तुम लोग उस पर पूरी तरह से हावी नहीं हो सकते तो उसने तुम पर मेहरबानी की तो जितना आसानी से हो सके उतना (नमाज़ में) क़ुरान पढ़ लिया करो और वह जानता है कि अनक़रीब तुममें से बाज़ बीमार हो जाएँगे और बाज़ ख़ुदा के फ़ज़ल की तलाश में रूए ज़मीन पर सफर एख्तेयार करेंगे और कुछ लोग ख़ुदा की राह में जेहाद करेंगे तो जितना तुम आसानी से हो सके पढ़ लिया करो और नमाज़ पाबन्दी से पढ़ो और ज़कात देते रहो और ख़ुदा को कर्ज़े हसना दो और जो नेक अमल अपने वास्ते (ख़ुदा के सामने) पेश करोगे उसको ख़ुदा के हाँ बेहतर और सिले में बुर्ज़ुग तर पाओगे और ख़ुदा से मग़फेरत की दुआ माँगो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।


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