"एक मौक़ा मृत्यु के बाद -वंदना गुप्ता": अवतरणों में अंतर
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शायद जाग जाता उसका विवेक | शायद जाग जाता उसका विवेक | ||
शायद समझ जाता ये भेद | शायद समझ जाता ये भेद | ||
ये | ये जगत् सिर्फ सपना है | ||
यहाँ कोई नहीं अपना है | यहाँ कोई नहीं अपना है | ||
क्योंकि | क्योंकि |
13:47, 30 जून 2017 का अवतरण
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चाहतों के आसमान कितने बुलंद होते हैं कि कभी बने बनाये रास्तों पर नहीं चला करते , हर बार परिपाटियाँ तोड़ने को आतुर होते हैं . सृष्टि का अपना नियम है उसी पर चलती है मगर मनुष्य की बुद्धि हमेशा अज्ञात के कठोर धरातल पर ही पाँव रखती है और खोजने चल देती है जबकि आदिकाल से चला आ रहा सत्य कैसे झुठलाया जा सकता है ये जानती है फिर भी एक जिद उसे उस ओर मोडती है जहाँ से आगे राह ही नहीं होती . |
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