"अल-क़मर": अवतरणों में अंतर

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54:5- और इन्तेहा दर्जे की दानाई मगर (उनको तो) डराना कुछ फ़ायदा नहीं देता।<br />
54:5- और इन्तेहा दर्जे की दानाई मगर (उनको तो) डराना कुछ फ़ायदा नहीं देता।<br />
54:6- तो (ऐ रसूल) तुम भी उनसे किनाराकश रहो, जिस दिन एक बुलाने वाला (इसराफ़ील) एक अजनबी और नागवार चीज़ की तरफ़ बुलाएगा।<br />
54:6- तो (ऐ रसूल) तुम भी उनसे किनाराकश रहो, जिस दिन एक बुलाने वाला (इसराफ़ील) एक अजनबी और नागवार चीज़ की तरफ़ बुलाएगा।<br />
54:7- तो (निदामत से) ऑंखें नीचे किए हुए कब्रों से निकल पड़ेंगे गोया वह फैली हुई टिड्डियाँ हैं।<br />
54:7- तो (निदामत से) ऑंखें नीचे किए हुए क़ब्रों से निकल पड़ेंगे गोया वह फैली हुई टिड्डियाँ हैं।<br />
54:8- (और) बुलाने वाले की तरफ गर्दनें बढ़ाए दौड़ते जाते होंगे, कुफ्फ़ार कहेंगे ये तो बड़ा सख्त दिन है।<br />
54:8- (और) बुलाने वाले की तरफ गर्दनें बढ़ाए दौड़ते जाते होंगे, कुफ्फ़ार कहेंगे ये तो बड़ा सख्त दिन है।<br />
54:9- इनसे पहले नूह की क़ौम ने भी झुठलाया था, तो उन्होने हमारे (ख़ास) बन्दे (नूह) को झुठलाया, और कहने लगे ये तो दीवाना है।<br />
54:9- इनसे पहले नूह की क़ौम ने भी झुठलाया था, तो उन्होने हमारे (ख़ास) बन्दे (नूह) को झुठलाया, और कहने लगे ये तो दीवाना है।<br />

12:02, 5 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

अल-क़मर इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ क़ुरआन का 54वाँ सूरा (अध्याय) है जिसमें 55 आयतें होती हैं।
54:1- क़यामत क़रीब आ गयी और चाँद दो टुकड़े हो गया।
54:2- और अगर ये कुफ्फ़ार कोई मौजिज़ा देखते हैं, तो मुँह फेर लेते हैं, और कहते हैं कि ये तो बड़ा ज़बरदस्त जादू है।
54:3- और उन लोगों ने झुठलाया और अपनी नफ़सियानी ख्वाहिशों की पैरवी की, और हर काम का वक्त मुक़र्रर है।
54:4- और उनके पास तो वह हालात पहुँच चुके हैं जिनमें काफ़ी तम्बीह थीं।
54:5- और इन्तेहा दर्जे की दानाई मगर (उनको तो) डराना कुछ फ़ायदा नहीं देता।
54:6- तो (ऐ रसूल) तुम भी उनसे किनाराकश रहो, जिस दिन एक बुलाने वाला (इसराफ़ील) एक अजनबी और नागवार चीज़ की तरफ़ बुलाएगा।
54:7- तो (निदामत से) ऑंखें नीचे किए हुए क़ब्रों से निकल पड़ेंगे गोया वह फैली हुई टिड्डियाँ हैं।
54:8- (और) बुलाने वाले की तरफ गर्दनें बढ़ाए दौड़ते जाते होंगे, कुफ्फ़ार कहेंगे ये तो बड़ा सख्त दिन है।
54:9- इनसे पहले नूह की क़ौम ने भी झुठलाया था, तो उन्होने हमारे (ख़ास) बन्दे (नूह) को झुठलाया, और कहने लगे ये तो दीवाना है।
54:10- और उनको झिड़कियाँ भी दी गयीं, तो उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ की कि (बारे इलाहा मैं) इनके मुक़ाबले में कमज़ोर हूँ।
54:11- तो अब तू ही (इनसे) बदला ले तो हमने मूसलाधार पानी से आसमान के दरवाज़े खोल दिए।
54:12- और ज़मीन से चश्में जारी कर दिए, तो एक काम के लिए जो मुक़र्रर हो चुका था (दोनों) पानी मिलकर एक हो गया।
54:13- और हमने एक कश्ती पर जो तख्तों और कीलों से तैयार की गयी थी सवार किया।
54:14- और वह हमारी निगरानी में चल रही थी (ये) उस शख़्श (नूह) का बदला लेने के लिए जिसको लोग न मानते थे।
54:15- और हमने उसको एक इबरत बना कर छोड़ा तो कोई है जो इबरत हासिल करे।
54:16- तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था।
54:17- और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे।
54:18- आद (की क़ौम ने) (अपने पैग़म्बर) को झुठलाया तो (उनका) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था,
54:19- हमने उन पर बहुत सख्त मनहूस दिन में बड़े ज़न्नाटे की ऑंधी चलायी।
54:20- जो लोगों को (अपनी जगह से) इस तरह उखाड़ फेकती थी गोया वह उखड़े हुए खजूर के तने हैं।
54:21- तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था।
54:22- और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया, तो कोई है जो नसीहत हासिल करे।
54:23- (क़ौम) समूद ने डराने वाले (पैग़म्बरों) को झुठलाया।
54:24- तो कहने लगे कि भला एक आदमी की जो हम ही में से हो उसकी पैरवीं करें ऐसा करें तो गुमराही और दीवानगी में पड़ गए।
54:25- क्या हम सबमें बस उसी पर वही नाज़िल हुई है (नहीं) बल्कि ये तो बड़ा झूठा तअल्ली करने वाला है।
54:26- उनको अनक़रीब कल ही मालूम हो जाएगा कि कौन बड़ा झूठा तकब्बुर करने वाला है।
54:27- (ऐ सालेह) हम उनकी आज़माइश के लिए ऊँटनी भेजने वाले हैं तो तुम उनको देखते रहो और (थोड़ा) सब्र करो।
54:28- और उनको ख़बर कर दो कि उनमें पानी की बारी मुक़र्रर कर दी गयी है हर (बारी वाले को अपनी) बारी पर हाज़िर होना चाहिए।
54:29- तो उन लोगों ने अपने रफीक़ (क़ेदार) को बुलाया तो उसने पकड़ कर (ऊँटनी की) कूंचे काट डालीं।
54:30- तो (देखो) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था।
54:31- हमने उन पर एक सख्त चिंघाड़ (का अज़ाब) भेज दिया तो वह बाड़े वालो के सूखे हुए चूर चूर भूसे की तरह हो गए।
54:32- और हमने क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे।
54:33- लूत की क़ौम ने भी डराने वाले (पैग़म्बरों) को झुठलाया।
54:34- तो हमने उन पर कंकर भरी हवा चलाई मगर लूत के लड़के बाले को हमने उनको अपने फज़ल व करम से पिछले ही को बचा लिया।
54:35- हम शुक्र करने वालों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं।
54:36- और लूत ने उनको हमारी पकड़ से भी डराया था मगर उन लोगों ने डराते ही में शक़ किया।
54:37- और उनसे उनके मेहमान (फ़रिश्ते) के बारे में नाजायज़ मतलब की ख्वाहिश की तो हमने उनकी ऑंखें अन्धी कर दीं तो मेरे अज़ाब और डराने का मज़ा चखो।
54:38- और सुबह सवेरे ही उन पर अज़ाब आ गया जो किसी तरह टल ही नहीं सकता था।
54:39- तो मेरे अज़ाब और डराने के (पड़े) मज़े चखो।
54:40- और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया तो कोई है जो नसीहत हासिल करे।
54:41- और फिरऔन के पास भी डराने वाले (पैग़म्बर) आए।
54:42- तो उन लोगों ने हमारी कुल निशानियों को झुठलाया तो हमने उनको इस तरह सख्त पकड़ा जिस तरह एक ज़बरदस्त साहिबे क़ुदरत पकड़ा करता है।
54:43- (ऐ अहले मक्का) क्या उन लोगों से भी तुम्हारे कुफ्फार बढ़ कर हैं या तुम्हारे वास्ते (पहली) किताबों में माफी (लिखी हुई) है।
54:44- क्या ये लोग कहते हैं कि हम बहुत क़वी जमाअत हैं।
54:45- अनक़रीब ही ये जमाअत शिकस्त खाएगी और ये लोग पीठ फेर कर भाग जाएँगे।
54:46- बात ये है कि इनके वायदे का वक्त क़यामत है और क़यामत बड़ी सख्त और बड़ी तल्ख़ (चीज़) है।
54:47- बेशक गुनाहगार लोग गुमराही और दीवानगी में (मुब्तिला) हैं।
54:48- उस रोज़ ये लोग अपने अपने मुँह के बल (जहन्नुम की) आग में घसीटे जाएँगे (और उनसे कहा जाएगा) अब जहन्नुम की आग का मज़ा चखो।
54:49- बेशक हमने हर चीज़ एक मुक़र्रर अन्दाज़ से पैदा की है।
54:50- और हमारा हुक्म तो बस ऑंख के झपकने की तरह एक बात होती है।
54:51- और हम तुम्हारे हम मशरबो को हलाक कर चुके हैं तो कोई है जो नसीहत हासिल करे।
54:52- और अगर चे ये लोग जो कुछ कर चुके हैं (इनके) आमाल नामों में (दर्ज) है।
54:53- (यानि) हर छोटा और बड़ा काम लिख दिया गया है।
54:54- बेशक परहेज़गार लोग (बेहिश्त के) बाग़ों और नहरों में।
54:55- (यानि) पसन्दीदा मक़ाम में हर तरह की कुदरत रखने वाले बादशाह की बारगाह में (मुक़र्रिब) होंगे।


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