"तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवाक-5": अवतरणों में अंतर

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*समस्त देवगण विज्ञान को ब्रह्म-रूप में मानकर उसकी उपासना करते हैं।  
*समस्त देवगण विज्ञान को ब्रह्म-रूप में मानकर उसकी उपासना करते हैं।  
*विज्ञानमय शरीर में 'आत्मा' ही ब्रह्म-रूप है।  
*विज्ञानमय शरीर में 'आत्मा' ही ब्रह्म-रूप है।  
*'प्रेम' उस विज्ञानमय शरीर का सिर है, 'आमोद' दाहिना पंख है, 'प्रमोद' बायां पंख है, 'आनन्द' मध्य भाग है और 'ब्रह्म' ही उसकी पूंछ, अर्थात आधार है।  
*'प्रेम' उस विज्ञानमय शरीर का सिर है, 'आमोद' दाहिना पंख है, 'प्रमोद' बायां पंख है, 'आनन्द' मध्य भाग है और 'ब्रह्म' ही उसकी पूंछ, अर्थात् आधार है।  
*उसे जानने वाला समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
*उसे जानने वाला समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।



07:46, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

  • इस अनुवाक में शरीर के 'विज्ञानमय कोश' का वर्णन है।
  • विज्ञान के द्वारा ही यज्ञों और कर्मों की वृद्धि होती है।
  • समस्त देवगण विज्ञान को ब्रह्म-रूप में मानकर उसकी उपासना करते हैं।
  • विज्ञानमय शरीर में 'आत्मा' ही ब्रह्म-रूप है।
  • 'प्रेम' उस विज्ञानमय शरीर का सिर है, 'आमोद' दाहिना पंख है, 'प्रमोद' बायां पंख है, 'आनन्द' मध्य भाग है और 'ब्रह्म' ही उसकी पूंछ, अर्थात् आधार है।
  • उसे जानने वाला समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।


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