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'''ज़रथुस्त्रवाद''' प्राचीन विद्वानों के अनुसार '[[ज़रथुस्त्र]]' या 'ज़ोरास्टर', जैसा कि प्राचीन [[ईरान]] के इस पैगंबर को [[यूनानी]] कहते थे, की शिक्षाओं को कहा जाता है। [[पारसी धर्म]] की उत्पत्ति प्राचीन [[फ़ारस]]<ref>वर्तमान [[ईरान]]</ref> में हुई थी। प्राचीन फ़ारसी लोग और [[भारत]] के उत्तरी [[आर्य]] आक्रमणकारियों के पूर्वज एक ही वंश के थे और पारसी धर्म से पहले ईरान के धर्म व [[वैदिक धर्म]] में उनके देवताओं और अनुष्ठानों के आधार पर महत्त्वपूर्ण समानताएं देखी जा सकती हैं। पारसी धर्म में जीवन और ज्ञान के [[देवता]] [[अहुर मज़्दा]] ज़रथुस्त्र-पूर्व ईरान के देवगणों में से एक थे।
'''ज़रथुस्त्रवाद''' प्राचीन विद्वानों के अनुसार '[[ज़रथुस्त्र]]' या 'ज़ोरास्टर', जैसा कि प्राचीन [[ईरान]] के इस पैगंबर को [[यूनानी]] कहते थे, की शिक्षाओं को कहा जाता है। [[पारसी धर्म]] की उत्पत्ति प्राचीन [[फ़ारस]]<ref>वर्तमान [[ईरान]]</ref> में हुई थी। प्राचीन फ़ारसी लोग और [[भारत]] के उत्तरी [[आर्य]] आक्रमणकारियों के पूर्वज एक ही वंश के थे और पारसी धर्म से पहले ईरान के धर्म व [[वैदिक धर्म]] में उनके देवताओं और अनुष्ठानों के आधार पर महत्त्वपूर्ण समानताएं देखी जा सकती हैं। पारसी धर्म में जीवन और ज्ञान के [[देवता]] [[अहुर मज़्दा]] ज़रथुस्त्र-पूर्व ईरान के देवगणों में से एक थे।
==मूल अवधारणा==
==मूल अवधारणा==
गाथाओं में [[ज़रथुस्त्र]] ने स्वयं को 'ज़ाओतर', यानी "अनुष्ठान का प्रधान [[पुरोहित]]" और मंत्रीय प्रार्थनाओं की रचना तथा उनके गायन में कुशल बताया है। उन्होंने शक्ति के पवित्र शब्द 'मंथ्राने-दुतिम' का संदेशवाहक होने का भी दावा किया है। उन्होंने स्वयं को 'एरेशी'<ref>[[संस्कृत]] में [[ऋषि]]</ref> भी कहा है, जिसे मालूम है, 'क्या होगा या नहीं होगा'। ज़रथुस्त्र ने 'रतू'<ref>संस्कृत में गुरु</ref>, अर्थात ज्ञानी मार्गदर्शन होने का भी दावा किया, जिसे दो विपरीत गुटों, 'आशावानों'<ref>सत्य के अनुयायी</ref> और 'द्रेगवंतों'<ref>असत्य के अनुयायी</ref> के बीच निर्णय करने के लिए [[अहुर मज़्दा]] ने नियुक्त किया है। मनुष्य आशावानों और द्रेगवंतों के बीच विभाजित है। इन दोनों ताक़तों के बीच युद्ध तब समाप्त होगा, जब काल की समाप्ति होगी और 'फ़्राशोकेरेती', यानी सृष्टि का नवीनीकरण होगा।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2|लेखक=इंदु रामचंदानी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=132|url=}}</ref>
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====अहुर मज़्दा की पूजा====
====अहुर मज़्दा की पूजा====
ज़रथुस्त्र संभवत: पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने एकेश्वर, जीवन ओर प्रज्ञा के स्वामी अहुर मज़्दा की [[पूजा]] विचारों, कार्यों और शब्दों से करने की शिक्षा दी। अहुर मज़्दा अपनी दैवी हस्तियों, [[अमेषा स्पेंता]]<ref>अनश्वर प्रकाशमय या परोपकारी अनश्वर</ref> के माध्यम से संसार पर शासन करते हैं।
ज़रथुस्त्र संभवत: पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने एकेश्वर, जीवन ओर प्रज्ञा के स्वामी अहुर मज़्दा की [[पूजा]] विचारों, कार्यों और शब्दों से करने की शिक्षा दी। अहुर मज़्दा अपनी दैवी हस्तियों, [[अमेषा स्पेंता]]<ref>अनश्वर प्रकाशमय या परोपकारी अनश्वर</ref> के माध्यम से संसार पर शासन करते हैं।

07:59, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

ज़रथुस्त्रवाद
पारसी धर्म का प्रतीक
पारसी धर्म का प्रतीक
विवरण 'ज़रथुस्त्रवाद' पारसी धर्म के प्रवर्तक 'ज़रथुस्त्र' की शिक्षाओं को कहा जाता है। ज़रथुस्त्र संभवत: पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने एकेश्वर, जीवन ओर प्रज्ञा के स्वामी अहुर मज़्दा की पूजा करने की शिक्षा दी।
प्रवर्तक ज़रथुस्त्र
विशेष गाथाओं में ज़रथुस्त्र ने स्वयं को 'ज़ाओतर', यानी "अनुष्ठान का प्रधान पुरोहित" और मंत्रीय प्रार्थनाओं की रचना तथा उनके गायन में कुशल बताया है।
संबंधित लेख अंग्र मैन्यु, अवेस्ता, स्पेंता मैन्यु, अहुर मज़्दा, जेंदावेस्ता, ज़रथुष्ट्र
अन्य जानकारी पारसी धर्म के पवित्र ग्रंथों को संयुक्त रूप से 'अवेस्ता' कहते हैं। कभी सासेनियाइयों के पास उपलब्ध रहे व्यापक साहित्य के अब कुछ हिस्से ही बचे हैं।

ज़रथुस्त्रवाद प्राचीन विद्वानों के अनुसार 'ज़रथुस्त्र' या 'ज़ोरास्टर', जैसा कि प्राचीन ईरान के इस पैगंबर को यूनानी कहते थे, की शिक्षाओं को कहा जाता है। पारसी धर्म की उत्पत्ति प्राचीन फ़ारस[1] में हुई थी। प्राचीन फ़ारसी लोग और भारत के उत्तरी आर्य आक्रमणकारियों के पूर्वज एक ही वंश के थे और पारसी धर्म से पहले ईरान के धर्म व वैदिक धर्म में उनके देवताओं और अनुष्ठानों के आधार पर महत्त्वपूर्ण समानताएं देखी जा सकती हैं। पारसी धर्म में जीवन और ज्ञान के देवता अहुर मज़्दा ज़रथुस्त्र-पूर्व ईरान के देवगणों में से एक थे।

मूल अवधारणा

गाथाओं में ज़रथुस्त्र ने स्वयं को 'ज़ाओतर', यानी "अनुष्ठान का प्रधान पुरोहित" और मंत्रीय प्रार्थनाओं की रचना तथा उनके गायन में कुशल बताया है। उन्होंने शक्ति के पवित्र शब्द 'मंथ्राने-दुतिम' का संदेशवाहक होने का भी दावा किया है। उन्होंने स्वयं को 'एरेशी'[2] भी कहा है, जिसे मालूम है, 'क्या होगा या नहीं होगा'। ज़रथुस्त्र ने 'रतू'[3], अर्थात् ज्ञानी मार्गदर्शन होने का भी दावा किया, जिसे दो विपरीत गुटों, 'आशावानों'[4] और 'द्रेगवंतों'[5] के बीच निर्णय करने के लिए अहुर मज़्दा ने नियुक्त किया है। मनुष्य आशावानों और द्रेगवंतों के बीच विभाजित है। इन दोनों ताक़तों के बीच युद्ध तब समाप्त होगा, जब काल की समाप्ति होगी और 'फ़्राशोकेरेती', यानी सृष्टि का नवीनीकरण होगा।[6]

अहुर मज़्दा की पूजा

ज़रथुस्त्र संभवत: पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने एकेश्वर, जीवन ओर प्रज्ञा के स्वामी अहुर मज़्दा की पूजा विचारों, कार्यों और शब्दों से करने की शिक्षा दी। अहुर मज़्दा अपनी दैवी हस्तियों, अमेषा स्पेंता[7] के माध्यम से संसार पर शासन करते हैं।

ज़रथुस्त्र के अनुसार- "एक अविनाशी जीवन 'अहु' हमेशा रहता है, जो शाश्वत प्रकार अनग्र राओचाओं में अभिव्यक्त होता है। प्रकाश और जीवन को जोड़ना 'मज़्दा' यानी ज्ञान है। यह यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्मों से अलग है, जो कहते हैं कि मूल रूप से अंधकार व्याप्त था और प्रकाश नया था।" जो भी अच्छा है, स्पेंता मैन्यु[8], पवित्र आत्मा से मिलता है और यह अहुर मज़्दा का एक हिस्सा है। प्रतिकूल या विनाशकारी आत्मा 'अंग्रा मैन्यु'[9] या अर्हिमन है, जिसका मूल स्वरूप उसकी मुख्य विशेषता, द्रज या असत्य से अभिव्यक्त होता है। ज़रथुस्त्र ने इन दो आत्माओं की नीति कथा का उपयोग करके बुराई की उत्पत्ति की व्याख्या की। यह एक अनुश्रुति थी, जिससे प्राचीन फ़ारसी लोग पहले से ही परिचित थे। ये युग्म आत्माएं, अच्छी और बुरी, एक-दूसरे की विरोधी हैं। दुष्ट मानसिकता निकृष्टतम काम करती हैं, जबकि अच्छी आत्मा सत्य को चुनती हैं।

मानवीय-चयन प्रधान सिद्धांत

इस प्रकार पारसी धर्म में मानवीय-चयन प्रधान सिद्धांत हैं। फिर भी धार्मिक व्यक्ति को बुराई के चयन से बचने के प्रयास में अकेला नहीं छोड़ा जाता है। अहुर मज़्दा इस व्यक्ति के पास अमेषा स्पेंता- 'अश'[10], 'वोहु मानिक'[11], 'क्षहत्र वैर्य'[12], 'एर्मेती'[13], 'हौर्वातात'[14] और 'ऐमेरतात'[15] को भेजता है, जो प्रत्येक व्यक्ति को सत्य चुनने और इस पर क़ायम रहने में मदद करते हैं। मृत्यु के बाद प्रत्येक आत्मा को न्याय के पुल, चिंवत पुल, को पार करना पड़ता है। अच्छी और प्रेममयी आत्मा के लिए पुल चौड़ा हो जाता है, ताकि गीत गृह गारो देमन में जाना आसान हो जाए। दुष्ट के लिए पुल संकरा होकर उस्तरे की धार जैसा बन जाता है और आत्मा अंतिम फ़ैसले की प्रतीक्षा करते हुए रसातल में गिर जाती है। गारो देमन की आनंददायी स्थिति में प्रवेश का विशेषाधिकार प्राप्त करने के लिए मनुष्य को अपने अच्छे मन और सत्य का अनुसरण करना अनिवार्य है। 'द्रुजो देमन' या असत्य का घर मानसिक यातना की स्थिति है, जिसमें दृष्ट आत्मा मृत्यु के बाद रहती है।[6]

अग्नि का महत्त्व

पारसी धर्म में अग्नि प्रमुख भूमिका निभाती है। प्रतिष्ठित होने के बाद यह दैवी प्रतीक बन जाती है। इसलिए पारसी मंदिरों में आग को कभी बुझाया नहीं जाता, क्योंकि अग्नि सत्य की गवाह है।

पवित्र ग्रंथ

पारसी धर्म के पवित्र ग्रंथों को संयुक्त रूप से 'अवेस्ता' कहते हैं। कभी सासेनियाइयों के पास उपलब्ध रहे व्यापक साहित्य के अब कुछ हिस्से ही बचे हैं। इन रचनाओं में 21 'नस्क' या संकलन शामिल हैं, जिनमें धर्म, औषधि और शासन कला प्रत्येक पर सात-सात संकलन हैं। ज़रथुस्त्र द्वारा रचित एकमात्र रचना गाथाओं या प्रार्थनाओं की ही जानकारी उपलब्ध है। ये जटिल पद्य की पुरातन शैली में लिखे गए हैं, जिन्हें आज समझ पाना कठिन है। यूनानी इतिहासकार प्लिनी ने 'हर्मिप्पस' (220 ई. पू.) के हवाले से बताया कि ज़रथुस्त्र ने 'पद्य की 10 लाख पंक्तियां' लिखीं; इनमें से 5 गाथाओं में विभाजित केवल 17 प्रार्थनाएं विद्यमान हैं। गाथाएं 'यस्ना'[16] का हिस्सा हैं, जो अवेस्ताई में 72 अध्यायों वाली पूजा पद्धति संबंधी रचना है।

गाथाएं

जिस भाषा में गाथाएं लिखी गई हैं, वह अज्ञात हैं। कुछ विद्वान् इसे 'गेथिक अवेस्तन' कहते हैं, ताकि बाद में लिखी रचनाओं की भाषाओं 'मानक अवेस्ताई', 'पहलवी' और 'पज़ेंद' से उसका भेद किया जा सके। पारसियों की दैनिक प्रार्थना की पुस्तक 'खोर्द' या 'खोर्देह अवेस्ता' (लद्यु अवेस्ता) कहलाती है। खोर्दा में तीन 'नाइएश' या प्रशंसा की प्रार्थनाएं हैं- सूर्य के लिए, 'मिथ्र'[17] के लिए और अग्नि के लिए। इसके अतिरिक्त लंबे भजन 'यश्त' भी हैं, जिनमें से कुछ प्रतिदिन और कुछ विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं। आज भी प्रयोग में आने वाली दो महत्त्वपूर्व रचनाएं है-

  1. 'वेंदिदाद'
  2. 'विस्पेरद'

वेंदिदाद में मिथक, शुद्धिकरण संहिता और धार्मिक प्रथाओं का वर्णन है। यह अनुष्ठानों और नियमों की संहिता है और 19वां 'नस्त' कहलाती है। विस्पेरद अहुर मज़्दा और आध्यात्मिक व भौतिक, दोनों जगतों के गुरुओं को समर्पित पूजा पद्धति का विस्तार है।[6]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वर्तमान ईरान
  2. संस्कृत में ऋषि
  3. संस्कृत में गुरु
  4. सत्य के अनुयायी
  5. असत्य के अनुयायी
  6. 6.0 6.1 6.2 भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 132 |
  7. अनश्वर प्रकाशमय या परोपकारी अनश्वर
  8. उदार आत्मा
  9. विनाशक आत्मा
  10. सत्य, न्याय, ब्रह्मांडीय नियम और व्यवस्था
  11. धर्मनिष्ठ चिंतन या अच्छा मन
  12. वांछित प्रभुत्व या संप्रभुता, सत्ता और राज्य
  13. प्रेममय भक्ति
  14. संपूर्णता
  15. अमरत्व
  16. वैदिक शब्द यज्ञ
  17. न्यायी नायायाधीश

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