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||सुदूर [[दक्षिण भारत]] में [[कृष्णा नदी|कृष्णा]] एवं [[तुंगभद्रा नदी|तुंगभद्रा]] नदियों के बीच के क्षेत्र को '[[तमिल नाडु|तमिल प्रदेश]]' कहा जाता था। इस प्रदेश में अनेक छोटे-छोटे राज्यों का अस्तित्व था, जिनमें [[चेर वंश|चेर]], [[चोल साम्राज्य|चोल]] और [[पांड्य साम्राज्य|पांड्य]] प्रमुख थे। [[दक्षिण भारत]] के इस प्रदेश में [[तमिल भाषा|तमिल]] कवियों द्वारा सभाओं तथा गोष्ठियों का आयोजन किया जाता था। इन गोष्ठियों में विद्वानों के मध्य विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श किया जाता था, इसे ही 'संगम' के नाम से जाना जाता है। 100 ई. से 250 ई. के मध्य दक्षिण भारत में तीन संगमों को आयोजित किया गया। इस युग को ही [[इतिहास]] में "संगम युग" के नाम से जाना जाता है।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[संगम युग]] | |||
{[[संगम युग]] में संगम ग्रंथों में वर्णित नगर 'वसव समुद्र' किससे सम्बंधित है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-917 | {[[संगम युग]] में संगम ग्रंथों में वर्णित नगर 'वसव समुद्र' किससे सम्बंधित है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-917 | ||
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-कावेरीपट्टनम | -कावेरीपट्टनम | ||
-मुसिरी | -मुसिरी | ||
||[[मद्रास]] अथवा '''मद्रास प्रेसीडेंसी''' जिसे आधिकारिक तौर पर फोर्ट सेंट जॉर्ज की प्रेसीडेंसी तथा मद्रास प्रोविंस के रूप में भी जाना जाता है। मद्रास, ब्रिटिश भारत का एक प्रशासनिक अनुमंडल था। अपनी सबसे विस्तृत सीमा तक प्रेसीडेंसी में [[दक्षिण भारत]] के अधिकांश हिस्सों सहित वर्तमान भारतीय राज्य [[तमिल नाडु]], उत्तरी [[केरल]] का मालाबार क्षेत्र, [[लक्षद्वीप|लक्षद्वीप द्वीपसमूह]], तटीय [[आंध्र प्रदेश]] और आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र, गंजाम, मल्कानगिरी, कोरापुट, रायगढ़, नवरंगपुर और दक्षिणी [[उड़ीसा]] के गजपति जिले और बेल्लारी, दक्षिण कन्नड़ और [[कर्नाटक]] के उडुपी जिले शामिल थे। मद्रास का वर्तमान नाम [[चेन्नई]] है। सन् 1639 ई. में [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के कर्मचारी [[फ़्रांसिस डे]] ने विजयनगर के राजा से कुछ भूमि लेकर इस नगर की स्थापना की थी। उस समय का बना हुआ क़िला अभी तक विद्यमान है।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[मद्रास]] | |||
{[[गुप्तकाल|गुप्तकालीन]] [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में प्रयुक्त "आभ्यांतर सिद्ध" से ध्वनित होता है- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1004 | {[[गुप्तकाल|गुप्तकालीन]] [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में प्रयुक्त "आभ्यांतर सिद्ध" से ध्वनित होता है- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1004 | ||
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+[[राजाधिराज प्रथम]] | +[[राजाधिराज प्रथम]] | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||[[राजाधिराज]] (1044-1052 ई.), [[राजेन्द्र प्रथम]] का पुत्र था और उसके बाद राज्य का वास्तविक उत्तराधिकारी था। उसकी शक्ति का उपयोग प्रधानतया उन विद्रोहों को शान्त करने में हुआ, जो उसके विशाल साम्राज्य में समय-समय पर होते रहते थे। विशेषतया, [[पांड्य|पाड्य]], [[चेर वंश]] और सिंहल ([[श्रीलंका]]) के राज्यों ने राजाधिराज के शासन काल में स्वतंत्र होने का प्रयत्न किया, पर चोलराज ने उन्हें बुरी तरह से कुचल डाला।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[राजाधिराज]] | |||
{[[कश्मीर]] का वह कौन प्रसिद्ध शासक था जिसे [[मार्तंड सूर्य मंदिर|मार्तण्ड मन्दिर]] के निर्माण का श्रेय है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1171 | {[[कश्मीर]] का वह कौन प्रसिद्ध शासक था, जिसे [[मार्तंड सूर्य मंदिर|मार्तण्ड मन्दिर]] के निर्माण का श्रेय है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1171 | ||
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-जयपीड विनयादित्य | -जयपीड विनयादित्य | ||
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-[[अवन्ति वर्मन]] | -[[अवन्ति वर्मन]] | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||ललितादित्य [[कर्कोटक वंश]] का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। उसने तिब्बतियों, कम्बोजों एवं तुर्को को पराजित किया। उसकी श्रेष्ठ उपलब्धि थी - कन्नौज नरेश यशोवर्मन की पराजय। 733 ई. में ललितादित्य ने [[चीन]] में अपना दूत मण्डल भेजा। विजेता होने के साथ ही ललितादित्य एक महान् निर्माता भी था।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[ललितादित्य मुक्तापीड]] | |||
{निम्नलिखित में से किस ग्रंथ में [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] का जीवन-चरित्र या जीवनी वर्णित नहीं है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-202,प्रश्न-488 | {निम्नलिखित में से किस ग्रंथ में [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] का जीवन-चरित्र या जीवनी वर्णित नहीं है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-202,प्रश्न-488 |
12:30, 14 नवम्बर 2017 का अवतरण
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