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-[[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु]] | -[[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु]] | ||
-[[पल्लव वंश|पल्लव]] | -[[पल्लव वंश|पल्लव]] | ||
||[[पाण्ड्य राजवंश]] का प्रारम्भिक उल्लेख [[पाणिनि]] की [[अष्टाध्यायी]] में मिलता है। इसके अतिरिक्त [[अशोक के अभिलेख]], [[महाभारत]] एवं [[रामायण]] में भी [[पाण्ड्य साम्राज्य]] के विषय में जानकारी मिलती है। [[मेगस्थनीज]] पाण्ड्य राज्य का उल्लेख ‘माबर‘ नाम से करता है। उसके विवरणानुसार [[पाण्ड्य साम्राज्य|पाण्ड्य राज्य]] पर ‘हैराक्ट‘ की पुत्री का शासन था, तथा वह राज्य मोतियों के लिए प्रसिद्ध था। पाण्ड्यों की राजधानी '[[मदुरा]]' ([[मदुरई]]) थी, जिसके विषय में [[कौटिल्य]] के अर्थशास्त्र से जानकारी मिलती है। मदुरा अपने कीमती मोतियों, उच्चकोटि के वस्त्रों एवं उन्नतिशील व्यापार के लिए प्रसिद्ध था।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[पाण्ड्य राजवंश]] | |||
{मेहरौली का स्तम्भ लेख किस शासक से संबंधित है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-923 | {मेहरौली का स्तम्भ लेख किस शासक से संबंधित है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-923 | ||
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-[[अशोक]] | -[[अशोक]] | ||
-[[समुद्रगुप्त]] | -[[समुद्रगुप्त]] | ||
||[[चन्द्रगुप्त]] द्वितीय]] अथवा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (शासन: 380-412 ईसवी) गुप्त राजवंश का राजा था। [[समुद्रगुप्त]] का पुत्र 'चन्द्रगुप्त द्वितीय' समस्त गुप्त राजाओं में सर्वाधिक शौर्य एवं वीरोचित गुणों से सम्पन्न था। [[शक|शकों]] पर विजय प्राप्त करके उसने '[[विक्रमादित्य]]' की उपाधि धारण की। वह 'शकारि' भी कहलाया। वह अपने वंश में बड़ा पराक्रमी शासक हुआ। [[मालवा]], [[काठियावाड़]], [[गुजरात]] और [[उज्जयिनी]] को अपने साम्राज्य में मिलाकर उसने अपने पिता के राज्य का और भी विस्तार किया। चीनी यात्री [[फ़ाह्यान]] उसके समय में 6 वर्षों तक [[भारत]] में रहा। महरौली के इसी स्तम्भलेख में यह भी लिखा है, कि [[बंगाल]] में प्रतिरोध करने के लिए इकट्ठे हुए अनेक राजाओं को भी चंद्रगुप्त ने परास्त किया था।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[चंद्रगुप्त विक्रमादित्य]] | |||
{[[गुप्तकाल]] में बड़े पैमाने पर जारी [[सोना|सोने]] के सिक्के का वास्तविक | {[[गुप्तकाल]] में बड़े पैमाने पर जारी [[सोना|सोने]] के सिक्के का वास्तविक स्रोत निम्न में से क्या था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1010 | ||
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-[[रोम]] के साथ जारी लाभदायक व्यापार | -[[रोम]] के साथ जारी लाभदायक व्यापार | ||
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+[[भुक्ति]] | +[[भुक्ति]] | ||
-[[उर]] | -[[उर]] | ||
||[[उत्तर भारत]] में 'प्राचीन भारतीय कृषिजन्य व्यवस्था एवं राजस्व संबंधी पारिभाषिक शब्दावली' के अनुसार [[भुक्ति]] ज़िलों के समूह या प्रांत को कहा जाता था। जैसे कि पुंड्रवर्धन भुक्ति, तिर-भुक्ति आदि। भुक्ति को कहीं-कहीं '''बिषय''' भी कहा जाता था। भुक्ति [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] का प्रयोग लद्यु प्रशासकीय इकाइयों को इंगित करने के लिए भी किया जाता था।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[भुक्ति]] | |||
{निम्नलिखित में से किस [[चोल]] शासक ने [[विष्णु]] की प्रतिमा [[समुद्र]] में फिकवा दी थी? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-243,प्रश्न-1133 | {निम्नलिखित में से किस [[चोल]] शासक ने [[विष्णु]] की प्रतिमा [[समुद्र]] में फिकवा दी थी? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-243,प्रश्न-1133 | ||
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-[[राजेन्द्र प्रथम]] | -[[राजेन्द्र प्रथम]] | ||
-[[राजराज प्रथम]] | -[[राजराज प्रथम]] | ||
||[[कुलोत्तुंग द्वितीय]] (1133-1150 ई.) [[विक्रम चोल]] का पुत्र था। वह अपने [[पिता]] के बाद [[चोल राजवंश]] का अगला राजा नियुक्त हुआ था। इसने चिदम्बरम मंदिर के विस्तार एवं प्रदक्षिणापथ को स्वर्णमंडित कराने के कार्य को जारी रखा। चोल राजवंश के इस शासक ने चिदम्बरम मंदिर में स्थित गोविन्दराज की मूर्ति को [[समुद्र]] में फिंकवा दिया था। इस शासक की कोई भी राजनीतिक उपलब्धि नहीं थी। कुलोत्तंग द्वितीय और उसके सामन्तों ने 'ओट्टाकुट्टन', 'शेक्किलर' और 'कंबल' को संरक्षण दिया था। इसने [[कुंभकोणम]] के निकट 'तिरुभुवन' में 'कम्पोरेश्वर मंदिर' का निर्माण करवाया था। | |||
{प्रसिद्ध अरब यात्री [[सुलेमान]] निम्नलिखित में से किसके समय में [[भारत]] आया? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1176 | {प्रसिद्ध अरब यात्री [[सुलेमान]] निम्नलिखित में से किसके समय में [[भारत]] आया? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1176 | ||
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-[[महिपाल ]] | -[[महिपाल ]] | ||
-[[दंतिदुर्ग]] | -[[दंतिदुर्ग]] | ||
+[[देवपाल]] | +[[देवपाल (पाल वंश)|देवपाल]] | ||
||[[देवपाल (पाल वंश)|देवपाल]] धर्मपाल का पुत्र एवं [[पाल वंश]] का उत्तराधिकारी था। इसे 810 ई. के लगभग पाल वंश की गद्दी पर बैठाया गया था। देवपाल ने लगभग 810 से 850 ई. तक सफलतापूर्वक राज्य किया। उसने 'प्राग्यज्योतिषपुर' ([[असम]]), [[उड़ीसा]] एवं [[नेपाल]] के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया था। | |||
देवपाल की प्रमुख विजयों में गुर्जर [[प्रतिहार साम्राज्य|प्रतिहार]] शासक [[मिहिर भोज]] पर प्राप्त विजय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[देवपाल (पाल वंश)]] | |||
{अंतिम जैन आराम वाचन किस नगर में आयोजित की गई थी? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-202,प्रश्न-493 | {अंतिम जैन आराम वाचन किस नगर में आयोजित की गई थी? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-202,प्रश्न-493 | ||
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-सुपर्वत विजय चक्र | -सुपर्वत विजय चक्र | ||
+[[बल्लभी]] | +[[बल्लभी]] | ||
||[बल्लभीपुर गुजरात]] ज्ञान का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। यहाँ कई पाठशालाएँ और [[बौद्ध मठ]] भी थे। यहाँ सातवीं [[सदी]] के मध्य में चीनी यात्री [[ह्वेन त्सांग]] और अन्त में आईचिन आए थे, जिन्होंने इसकी तुलना [[बिहार]] के [[नालन्दा]] से की थी। एक [[जैन]] परम्परा के अनुसार पाँचवीं या छठी शताब्दी में दूसरी जैन परिषद वल्लभी में आयोजित की गई थी। इसी परिषद में [[जैन]] ग्रन्थों ने वर्तमान स्वरूप ग्रहण किया था। यह नगर अब लुप्त हो चुका है, लेकिन 'वल' नामक गाँव से इसकी पहचान की गई है, जहाँ मैत्रकों के ताँबे के अभिलेख और मुद्राएँ पाई गई हैं।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[बल्लभीपुर गुजरात]] | |||
{[[सम्राट अशोक]] का नाम किस [[शिलालेख]] में प्राप्त होता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-662 | {[[सम्राट अशोक]] का नाम किस [[शिलालेख]] में प्राप्त होता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-662 | ||
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+[[ | +[[मास्की]] का लघु शिलालेख | ||
-[[जौगढ़]] | -[[जौगढ़]] | ||
-दिल्ली टोपरा | -दिल्ली टोपरा | ||
-लौरिया अरराज | -लौरिया अरराज | ||
||[[अशोक]] अथवा 'असोक' (काल ईसा पूर्व 269-232) प्राचीन [[भारत]] में [[मौर्य राजवंश]] का राजा था। अशोक का '''देवानाम्प्रिय''' एवं '''प्रियदर्शी''' आदि नामों से भी उल्लेख किया जाता है। उसके समय [[मौर्य साम्राज्य|मौर्य राज्य]] उत्तर में [[हिन्दुकुश]] की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में [[गोदावरी नदी]] के दक्षिण तथा [[मैसूर]], [[कर्नाटक]] तक तथा पूर्व में [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] से पश्चिम में [[अफ़ग़ानिस्तान]] तक पहुँच गया था। यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था। सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य के बेहतर कुशल प्रशासन तथा [[बौद्ध धर्म]] के प्रचार के लिए जाना जाता है।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[अशोक]] | |||
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12:35, 19 नवम्बर 2017 का अवतरण
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