"प्रयोग:रिंकू1": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
-कल्याण | -कल्याण | ||
-[[चोल]] | -[[चोल]] | ||
+[[ | +[[भरूच]] | ||
||[[भरूच]] [[गुजरात]] राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। भरूच प्राचीन काल में भरुकच्छ या भृगुकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था। भरुकच्छ एक [[संस्कृत]] शब्द है, जिसका तात्पर्य ऊँचा तट प्रदेश है। भड़ौच प्राक् [[मौर्य काल]] का एक महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह था, इसके बाद के कई सौ वर्षों तक महत्त्व बना रहा और आज भी है। [[जातक कथा|जातक कथाओं]] में भरुकच्छ के समुद्र व्यापारियों की साहसिक यात्राओं का विशद् वर्णन है। दिव्यावदान के अनुसार भरुकच्छ घना बसा हुआ एक सम्पन्न नगर था। यह नगर समुद्री व्यापार एवं वाणिज्य का ईसा पूर्व से ही महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा। टॉलमी के अनुसार यह पश्चिमी [[भारत]] में व्यापार का सबसे बड़ा केन्द्र था।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[भरूच]] | ||[[भरूच]] [[गुजरात]] राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। भरूच प्राचीन काल में भरुकच्छ या भृगुकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था। भरुकच्छ एक [[संस्कृत]] शब्द है, जिसका तात्पर्य ऊँचा तट प्रदेश है। भड़ौच प्राक् [[मौर्य काल]] का एक महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह था, इसके बाद के कई सौ वर्षों तक महत्त्व बना रहा और आज भी है। [[जातक कथा|जातक कथाओं]] में भरुकच्छ के समुद्र व्यापारियों की साहसिक यात्राओं का विशद् वर्णन है। दिव्यावदान के अनुसार भरुकच्छ घना बसा हुआ एक सम्पन्न नगर था। यह नगर समुद्री व्यापार एवं वाणिज्य का ईसा पूर्व से ही महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा। [[टॉलमी]] के अनुसार यह पश्चिमी [[भारत]] में व्यापार का सबसे बड़ा केन्द्र था।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[भरूच]] | ||
{[[गुप्त काल]] में [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] की काँस्य निर्मित प्रतिमा कहाँ से प्राप्त हुई है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-950 | {[[गुप्त काल]] में [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] की काँस्य निर्मित प्रतिमा कहाँ से प्राप्त हुई है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-950 | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[सोना]] और [[चाँदी]] | +[[सोना]] और [[चाँदी]] | ||
- | -मृद्भाण्ड एवं काँच के बर्तन | ||
-[[मदिरा]] एवं दासियाँ | -[[मदिरा]] एवं दासियाँ | ||
-[[घोड़ा|घोड़े]] | -[[घोड़ा|घोड़े]] | ||
पंक्ति 39: | पंक्ति 39: | ||
{[[गुप्त काल]] में प्रशासनिक इकाइयों का सही क्रमागत स्तर निम्न में से कौन व्यक्त करता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1008 | {[[गुप्त काल]] में प्रशासनिक इकाइयों का सही क्रमागत स्तर निम्न में से कौन व्यक्त करता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1008 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+भुक्ति, विषय, पेठ, ग्राम | +[[भुक्ति]], विषय, पेठ, ग्राम | ||
-विषय, भुक्ति, पेठ, ग्राम | -विषय, भुक्ति, पेठ, ग्राम | ||
-पेठ, विषय, भुक्ति, ग्राम | -पेठ, विषय, [[भुक्ति]], ग्राम | ||
-भुक्ति, पेठ, विषय, ग्राम | -भुक्ति, पेठ, विषय, ग्राम | ||
पंक्ति 51: | पंक्ति 51: | ||
+[[विष्टि]] | +[[विष्टि]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन चोल सेना में शामिल नहीं थे? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-243,प्रश्न-1132 | {निम्नलिखित में से कौन [[चोल साम्राज्य|चोल]] सेना में शामिल नहीं थे? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-243,प्रश्न-1132 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-पदाति | -पदाति | ||
पंक्ति 72: | पंक्ति 72: | ||
-[[वर्धमान|वर्धमान महावीर]] | -[[वर्धमान|वर्धमान महावीर]] | ||
-त्रिरत्न दास | -त्रिरत्न दास | ||
||[[भद्रबाहु]] श्रुत केवली [[जैन]] [[मुनि|मुनियों]] में अन्तिम अंतिम आचार्य थे, जो सम्राट [[चंद्रगुप्त मौर्य]] के समकालीन थे। अपने शासनकाल में पड़े भीषण अकाल और प्रजा की द्रवित अवस्था से व्याकुल होकर चन्द्रगुप्त ने गद्दी त्याग दी थी और वह 'भद्रबाहु' के नेतृत्व में [[दक्षिण भारत]] चला गया था।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[भद्रबाहु]] | ||[[भद्रबाहु]] श्रुत केवली [[जैन]] [[मुनि|मुनियों]] में अन्तिम अंतिम आचार्य थे, जो सम्राट [[चंद्रगुप्त मौर्य]] के समकालीन थे। अपने शासनकाल में पड़े भीषण [[अकाल]] और प्रजा की द्रवित अवस्था से व्याकुल होकर चन्द्रगुप्त ने गद्दी त्याग दी थी और वह 'भद्रबाहु' के नेतृत्व में [[दक्षिण भारत]] चला गया था।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[भद्रबाहु]] | ||
{[[मौर्य वंश|मौर्यों]] के पश्चात [[भारत]] की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर किसका अधिकार था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-661 | {[[मौर्य वंश|मौर्यों]] के पश्चात [[भारत]] की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर किसका अधिकार था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-661 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ | +वैक्ट्रीयन ग्रीक | ||
-[[कुषाण साम्राज्य|कुषाण]] | -[[कुषाण साम्राज्य|कुषाण]] | ||
-[[शक |शक]] | -[[शक |शक]] | ||
पंक्ति 98: | पंक्ति 98: | ||
+[[एरण|एरण अभिलेख]] | +[[एरण|एरण अभिलेख]] | ||
-भितरी स्तंभलेख | -भितरी स्तंभलेख | ||
||[[सती प्रथा]] [[भारत]] में प्राचीन [[हिन्दू]] समाज की एक घिनौनी एवं ग़लत प्रथा है। इस प्रथा में जीवित विधवा पत्नी को मृत पति की चिता पर ज़िंदा ही जला दिया जाता था। 'सती' (सती, सत्य शब्द का स्त्रीलिंग रूप है) हिंदुओं के कुछ समुदायों की एक प्रथा थी, जिसमें हाल में ही विधवा हुई महिला अपने पति के अंतिम संस्कार के समय स्वंय भी उसकी जलती चिता में कूदकर आत्मदाह कर लेती थी। यह शब्द सती अब कभी-कभी एक पवित्र औरत की व्याख्या करने में प्रयुक्त होता है। यह प्राचीन [[हिन्दू धर्म|हिन्दू समाज]] की एक घिनौनी एवं ग़लत प्रथा है। भारतीय (मुख्यतः हिन्दू) समाज में सती प्रथा का उद्भव यद्यपि प्राचीन काल से माना जाता है, परन्तु इसका भीषण रूप आधुनिक काल में भी देखने को मिलता है। सती प्रथा का पहला अभिलेखीय साक्ष्य 510 ई. [[एरण|एरण अभिलेख]] में मिलता है।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[सती प्रथा]], [[एरण] | ||[[सती प्रथा]] [[भारत]] में प्राचीन [[हिन्दू]] समाज की एक घिनौनी एवं ग़लत प्रथा है। इस प्रथा में जीवित विधवा पत्नी को मृत पति की चिता पर ज़िंदा ही जला दिया जाता था। 'सती' (सती, सत्य शब्द का स्त्रीलिंग रूप है) हिंदुओं के कुछ समुदायों की एक प्रथा थी, जिसमें हाल में ही विधवा हुई महिला अपने पति के अंतिम संस्कार के समय स्वंय भी उसकी जलती चिता में कूदकर आत्मदाह कर लेती थी। यह शब्द सती अब कभी-कभी एक पवित्र औरत की व्याख्या करने में प्रयुक्त होता है। यह प्राचीन [[हिन्दू धर्म|हिन्दू समाज]] की एक घिनौनी एवं ग़लत प्रथा है। भारतीय (मुख्यतः हिन्दू) समाज में सती प्रथा का उद्भव यद्यपि प्राचीन काल से माना जाता है, परन्तु इसका भीषण रूप आधुनिक काल में भी देखने को मिलता है। सती प्रथा का पहला अभिलेखीय साक्ष्य 510 ई. [[एरण|एरण अभिलेख]] में मिलता है।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[सती प्रथा]], [[एरण]] | ||
{निम्नलिखित में कौन-सा राजवंश परवर्ती [[संगम युग]] में [[चेर वंश|चेर]] राजाओं के साथ निरंतर युद्ध में लगा रहा? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-868 | {निम्नलिखित में कौन-सा राजवंश परवर्ती [[संगम युग]] में [[चेर वंश|चेर]] राजाओं के साथ निरंतर युद्ध में लगा रहा? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-868 | ||
पंक्ति 114: | पंक्ति 114: | ||
-[[अशोक]] | -[[अशोक]] | ||
-[[समुद्रगुप्त]] | -[[समुद्रगुप्त]] | ||
||[[चन्द्रगुप्त | ||[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] अथवा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (शासन: 380-412 ईसवी) गुप्त राजवंश का राजा था। [[समुद्रगुप्त]] का पुत्र 'चन्द्रगुप्त द्वितीय' समस्त गुप्त राजाओं में सर्वाधिक शौर्य एवं वीरोचित गुणों से सम्पन्न था। [[शक|शकों]] पर विजय प्राप्त करके उसने '[[विक्रमादित्य]]' की उपाधि धारण की। वह 'शकारि' भी कहलाया। वह अपने वंश में बड़ा पराक्रमी शासक हुआ। [[मालवा]], [[काठियावाड़]], [[गुजरात]] और [[उज्जयिनी]] को अपने साम्राज्य में मिलाकर उसने अपने पिता के राज्य का और भी विस्तार किया। चीनी यात्री [[फ़ाह्यान]] उसके समय में 6 वर्षों तक [[भारत]] में रहा। महरौली के इसी स्तम्भलेख में यह भी लिखा है, कि [[बंगाल]] में प्रतिरोध करने के लिए इकट्ठे हुए अनेक राजाओं को भी चंद्रगुप्त ने परास्त किया था।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[चंद्रगुप्त विक्रमादित्य]] | ||
{[[गुप्तकाल]] में बड़े पैमाने पर जारी [[सोना|सोने]] के सिक्के का वास्तविक स्रोत निम्न में से क्या था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1010 | {[[गुप्तकाल]] में बड़े पैमाने पर जारी [[सोना|सोने]] के सिक्के का वास्तविक स्रोत निम्न में से क्या था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1010 | ||
पंक्ति 123: | पंक्ति 123: | ||
-[[शक|शकों]] से छीना गया मुद्रा भण्डार | -[[शक|शकों]] से छीना गया मुद्रा भण्डार | ||
{निम्नलिखित में से एक की अन्य तीन से | {निम्नलिखित में से एक की अन्य तीन से भिन्न गुणार्थकता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-239,प्रश्न-1081 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-सभा | -सभा | ||
पंक्ति 154: | पंक्ति 154: | ||
-सुपर्वत विजय चक्र | -सुपर्वत विजय चक्र | ||
+[[बल्लभी]] | +[[बल्लभी]] | ||
||[बल्लभीपुर गुजरात]] ज्ञान का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। यहाँ कई पाठशालाएँ और [[बौद्ध मठ]] भी थे। यहाँ सातवीं [[सदी]] के मध्य में चीनी यात्री [[ह्वेन त्सांग]] और अन्त में आईचिन आए थे, जिन्होंने इसकी तुलना [[बिहार]] के [[नालन्दा]] से की थी। एक [[जैन]] परम्परा के अनुसार पाँचवीं या छठी शताब्दी में दूसरी जैन परिषद वल्लभी में आयोजित की गई थी। इसी परिषद में [[जैन]] ग्रन्थों ने वर्तमान स्वरूप ग्रहण किया था। यह नगर अब लुप्त हो चुका है, लेकिन 'वल' नामक गाँव से इसकी पहचान की गई है, जहाँ मैत्रकों के ताँबे के अभिलेख और मुद्राएँ पाई गई हैं।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[बल्लभीपुर गुजरात]] | ||[[बल्लभीपुर गुजरात]] ज्ञान का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। यहाँ कई पाठशालाएँ और [[बौद्ध मठ]] भी थे। यहाँ सातवीं [[सदी]] के मध्य में चीनी यात्री [[ह्वेन त्सांग]] और अन्त में आईचिन आए थे, जिन्होंने इसकी तुलना [[बिहार]] के [[नालन्दा]] से की थी। एक [[जैन]] परम्परा के अनुसार पाँचवीं या छठी शताब्दी में दूसरी जैन परिषद वल्लभी में आयोजित की गई थी। इसी परिषद में [[जैन]] ग्रन्थों ने वर्तमान स्वरूप ग्रहण किया था। यह नगर अब लुप्त हो चुका है, लेकिन 'वल' नामक गाँव से इसकी पहचान की गई है, जहाँ मैत्रकों के ताँबे के अभिलेख और मुद्राएँ पाई गई हैं।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[बल्लभीपुर गुजरात]] | ||
{[[सम्राट अशोक]] का नाम किस [[शिलालेख]] में प्राप्त होता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-662 | {[[सम्राट अशोक]] का नाम किस [[शिलालेख]] में प्राप्त होता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-662 |
12:13, 21 नवम्बर 2017 का अवतरण
|