"अंशु गुप्ता": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर") |
||
पंक्ति 22: | पंक्ति 22: | ||
|पुरस्कार-उपाधि='[[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]]' ([[2015]]) | |पुरस्कार-उपाधि='[[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]]' ([[2015]]) | ||
|प्रसिद्धि= | |प्रसिद्धि= | ||
|विशेष योगदान=अंशु गुप्ता ने अपनी कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर [[1999]] में 'गूंज' की स्थापना की। यह संस्था गरीबों की | |विशेष योगदान=अंशु गुप्ता ने अपनी कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर [[1999]] में 'गूंज' की स्थापना की। यह संस्था गरीबों की ज़रूरतें पूरी करती है। | ||
|नागरिकता=भारतीय | |नागरिकता=भारतीय | ||
|संबंधित लेख= | |संबंधित लेख= | ||
पंक्ति 35: | पंक्ति 35: | ||
|शीर्षक 5= | |शीर्षक 5= | ||
|पाठ 5= | |पाठ 5= | ||
|अन्य जानकारी='गूंज' का मक़सद था, पुराने कपड़ों को | |अन्य जानकारी='गूंज' का मक़सद था, पुराने कपड़ों को ज़रूरतमंदों तक पहुंचाना। यह काम अंशु और उनकी पत्नी मीनाक्षी गुप्ता ने अलमारी में रखे अपने पुराने 67 कपड़ों से शुरू किया। कभी 67 कपड़ों से शुरु हुआ 'गूंज' संगठन आज हर [[महीने]] करीब अस्सी से सौ टन कपड़े गरीबों को बांटता है। | ||
|बाहरी कड़ियाँ= | |बाहरी कड़ियाँ= | ||
|अद्यतन= | |अद्यतन= | ||
}} | }} | ||
'''अंशु गुप्ता''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Anshu Gupta'') [[भारत]] के जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे 'गूंज' नामक गैर सरकारी संस्था के संस्थापक हैं। उन्हें [[2015]] का '[[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]]' प्रदान किया गया है। अंशु गुप्ता ने अपने कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर [[1999]] में 'गूंज' की स्थापना की थी। यह संस्था गरीबों की | '''अंशु गुप्ता''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Anshu Gupta'') [[भारत]] के जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे 'गूंज' नामक गैर सरकारी संस्था के संस्थापक हैं। उन्हें [[2015]] का '[[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]]' प्रदान किया गया है। अंशु गुप्ता ने अपने कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर [[1999]] में 'गूंज' की स्थापना की थी। यह संस्था गरीबों की ज़रूरतें पूरी करती है। शहरों में अनुपयोगी समझे गए सामानों को गांवों में सदुपयोग के लिए पहुंचाना इस संस्था का कार्य है। आज भारत के 21 राज्यों में गू्ंज के संग्रहण केंद्र काम कर रहे हैं। | ||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
[[देहरादून]] के मध्यम [[परिवार]] में जन्मे अंशु गुप्ता चार भाई बहनों में सबसे बड़े हैं। जब अंशु 14 साल के थे, तब उनके [[पिता]] को दिल का दौरा पड़ा, जिसके चलते घर का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर आ गया। अंशु ने [[देहरादून]] से स्नातक करने के बाद [[दिल्ली]] का रुख किया और 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्यूनिकेशन' से [[पत्रकारिता]] का कोर्स किया। उसके बाद उन्होंने बतौर कॉपी राइटर एक विज्ञापन एजेंसी में काम करना शुरू कर दिया, फिर कुछ समय बाद 'पावर गेट' नाम की एक कंपनी में दो साल काम किया। | [[देहरादून]] के मध्यम [[परिवार]] में जन्मे अंशु गुप्ता चार भाई बहनों में सबसे बड़े हैं। जब अंशु 14 साल के थे, तब उनके [[पिता]] को दिल का दौरा पड़ा, जिसके चलते घर का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर आ गया। अंशु ने [[देहरादून]] से स्नातक करने के बाद [[दिल्ली]] का रुख किया और 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्यूनिकेशन' से [[पत्रकारिता]] का कोर्स किया। उसके बाद उन्होंने बतौर कॉपी राइटर एक विज्ञापन एजेंसी में काम करना शुरू कर दिया, फिर कुछ समय बाद 'पावर गेट' नाम की एक कंपनी में दो साल काम किया। | ||
पंक्ति 45: | पंक्ति 45: | ||
एक स्नातक विद्यार्थी के तौर पर अंशु ने [[1991]] में [[उत्तरी भारत]] में [[उत्तरकाशी]] की यात्रा की और [[भूकंप]] प्रभावित क्षेत्र में पीड़ितों की सहायता भी की और यही ग्रामीण क्षेत्र की समस्याओं को लेकर अंशु की पहली पहल थी। अंशु ने पढ़ाई खत्म करके बतौर कॉपी राइटर एक विज्ञापन एजेंसी में काम करना शुरू किया। कुछ समय बाद 'पावर गेट' नाम की एक कंपनी में दो साल तक काम किया। आख़िरकार जब | एक स्नातक विद्यार्थी के तौर पर अंशु ने [[1991]] में [[उत्तरी भारत]] में [[उत्तरकाशी]] की यात्रा की और [[भूकंप]] प्रभावित क्षेत्र में पीड़ितों की सहायता भी की और यही ग्रामीण क्षेत्र की समस्याओं को लेकर अंशु की पहली पहल थी। अंशु ने पढ़ाई खत्म करके बतौर कॉपी राइटर एक विज्ञापन एजेंसी में काम करना शुरू किया। कुछ समय बाद 'पावर गेट' नाम की एक कंपनी में दो साल तक काम किया। आख़िरकार जब | ||
'गूंज' का मक़सद था, पुराने कपड़ों को | 'गूंज' का मक़सद था, पुराने कपड़ों को ज़रूरतमंदों तक पहुंचाना। यह काम अंशु और उनकी पत्नी मीनाक्षी गुप्ता ने आलमारी में रखे अपने पुराने 67 कपड़ों से शुरू किया। कभी 67 कपड़ों से शुरु हुआ 'गूंज' संगठन आज हर [[महीने]] करीब अस्सी से सौ टन कपड़े गरीबों को बांटता है। अंशु नौकरी से बोर हो गए तो उन्होंने एनजीओ की तरफ़ अपना क़दम बढ़ाया और ‘गूंज’ नामक एनजीओ की शुरुआत की। [[2012]] में गूंज को नासा और यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के द्वारा ‘गेम चेंजिंग इनोवेशन’ के रूप में चुना गया और इसी साल अंशु गुप्ता को [[भारत]] के मोस्ट पॉवरफुल ग्रामीण उद्यमी के तौर पर फोर्ब्स की लिस्ट में जगह मिली। अपने इन्हीं कार्यों की वजह से ‘गूंज’ को हाल ही में ‘मोस्ट इनोवेटिव डेवलेपमेंट’ प्रोजेक्ट के लिए जापानी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। | ||
[[1999]] में [[चमोली]] में आए भूकंप में अंशु गुप्ता ने [[रेडक्रॉस]] की सहायता से | [[1999]] में [[चमोली]] में आए भूकंप में अंशु गुप्ता ने [[रेडक्रॉस]] की सहायता से ज़रूरतमंदों के लिए काफ़ी सामान भेजा था। इतना ही नहीं अंशु ने [[तमिलनाडु]] सरकार के साथ एक समझौता किया ताकि वहां आई प्राकृतिक आपदा के दौरान जो कपड़े नहीं बांटे जा सके, उन्हें वह ज़रूरतमंदों तक पहुंचा सके। फिलहाल गूंज का वार्षिक बजट तीन करोड़ से अधिक पहुंच चुका है। गूंज के 21 राज्यों में संग्रहण केंद्र हैं और दस ऑफिस हैं। टीम में डेढ़ सौ से ज्यादा साथी हैं। इसके साथ ही गूंज ने 'क्लॉथ फ़ॉर वर्क कार्यक्रम' शुरू किया है। अंशु के प्रयासों से कुछ गांवों में छोटे पुल बने तो कुछ गांवों में कुएं खोदे गए। यह भी उल्लेखनीय है कि गूंज में कामकाज को देखने की जिम्मेदारी ज्यादातर महिलाओं के हाथ में है। | ||
==रेमन मैग्सेसे पुरस्कार== | ==रेमन मैग्सेसे पुरस्कार== | ||
अंशु गुप्ता का प्रोजेक्ट ‘केवल कपड़े के एक टुकड़े के लिए नहीं’ गांवों में और झुग्गी बस्तियों में रहने वाले ऐसे लोगों के लिए है, जहां महिलाओं और लड़कियों के पास पर्याप्त कपड़े नहीं थे। ऐसे ही कार्यों की बदौलत अंशु गुप्ता की मेहनत रंग लाई और उन्हें साल [[2015]] के '[[एशिया]] के [[नोबल पुरस्कार]]' यानी '[[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]]' के लिए चुना गया। | अंशु गुप्ता का प्रोजेक्ट ‘केवल कपड़े के एक टुकड़े के लिए नहीं’ गांवों में और झुग्गी बस्तियों में रहने वाले ऐसे लोगों के लिए है, जहां महिलाओं और लड़कियों के पास पर्याप्त कपड़े नहीं थे। ऐसे ही कार्यों की बदौलत अंशु गुप्ता की मेहनत रंग लाई और उन्हें साल [[2015]] के '[[एशिया]] के [[नोबल पुरस्कार]]' यानी '[[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]]' के लिए चुना गया। |
10:48, 2 जनवरी 2018 का अवतरण
अंशु गुप्ता
| |
पूरा नाम | अंशु गुप्ता |
पति/पत्नी | मीनाक्षी गुप्ता |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | सामाजिक कार्यकर्ता |
शिक्षा | पत्रकारिता |
विद्यालय | 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्यूनिकेशन', दिल्ली |
पुरस्कार-उपाधि | 'रेमन मैग्सेसे पुरस्कार' (2015) |
विशेष योगदान | अंशु गुप्ता ने अपनी कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर 1999 में 'गूंज' की स्थापना की। यह संस्था गरीबों की ज़रूरतें पूरी करती है। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | 'गूंज' का मक़सद था, पुराने कपड़ों को ज़रूरतमंदों तक पहुंचाना। यह काम अंशु और उनकी पत्नी मीनाक्षी गुप्ता ने अलमारी में रखे अपने पुराने 67 कपड़ों से शुरू किया। कभी 67 कपड़ों से शुरु हुआ 'गूंज' संगठन आज हर महीने करीब अस्सी से सौ टन कपड़े गरीबों को बांटता है। |
अंशु गुप्ता (अंग्रेज़ी: Anshu Gupta) भारत के जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे 'गूंज' नामक गैर सरकारी संस्था के संस्थापक हैं। उन्हें 2015 का 'रेमन मैग्सेसे पुरस्कार' प्रदान किया गया है। अंशु गुप्ता ने अपने कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर 1999 में 'गूंज' की स्थापना की थी। यह संस्था गरीबों की ज़रूरतें पूरी करती है। शहरों में अनुपयोगी समझे गए सामानों को गांवों में सदुपयोग के लिए पहुंचाना इस संस्था का कार्य है। आज भारत के 21 राज्यों में गू्ंज के संग्रहण केंद्र काम कर रहे हैं।
परिचय
देहरादून के मध्यम परिवार में जन्मे अंशु गुप्ता चार भाई बहनों में सबसे बड़े हैं। जब अंशु 14 साल के थे, तब उनके पिता को दिल का दौरा पड़ा, जिसके चलते घर का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर आ गया। अंशु ने देहरादून से स्नातक करने के बाद दिल्ली का रुख किया और 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्यूनिकेशन' से पत्रकारिता का कोर्स किया। उसके बाद उन्होंने बतौर कॉपी राइटर एक विज्ञापन एजेंसी में काम करना शुरू कर दिया, फिर कुछ समय बाद 'पावर गेट' नाम की एक कंपनी में दो साल काम किया।
'गूंज' की स्थापना
एक स्नातक विद्यार्थी के तौर पर अंशु ने 1991 में उत्तरी भारत में उत्तरकाशी की यात्रा की और भूकंप प्रभावित क्षेत्र में पीड़ितों की सहायता भी की और यही ग्रामीण क्षेत्र की समस्याओं को लेकर अंशु की पहली पहल थी। अंशु ने पढ़ाई खत्म करके बतौर कॉपी राइटर एक विज्ञापन एजेंसी में काम करना शुरू किया। कुछ समय बाद 'पावर गेट' नाम की एक कंपनी में दो साल तक काम किया। आख़िरकार जब
'गूंज' का मक़सद था, पुराने कपड़ों को ज़रूरतमंदों तक पहुंचाना। यह काम अंशु और उनकी पत्नी मीनाक्षी गुप्ता ने आलमारी में रखे अपने पुराने 67 कपड़ों से शुरू किया। कभी 67 कपड़ों से शुरु हुआ 'गूंज' संगठन आज हर महीने करीब अस्सी से सौ टन कपड़े गरीबों को बांटता है। अंशु नौकरी से बोर हो गए तो उन्होंने एनजीओ की तरफ़ अपना क़दम बढ़ाया और ‘गूंज’ नामक एनजीओ की शुरुआत की। 2012 में गूंज को नासा और यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के द्वारा ‘गेम चेंजिंग इनोवेशन’ के रूप में चुना गया और इसी साल अंशु गुप्ता को भारत के मोस्ट पॉवरफुल ग्रामीण उद्यमी के तौर पर फोर्ब्स की लिस्ट में जगह मिली। अपने इन्हीं कार्यों की वजह से ‘गूंज’ को हाल ही में ‘मोस्ट इनोवेटिव डेवलेपमेंट’ प्रोजेक्ट के लिए जापानी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
1999 में चमोली में आए भूकंप में अंशु गुप्ता ने रेडक्रॉस की सहायता से ज़रूरतमंदों के लिए काफ़ी सामान भेजा था। इतना ही नहीं अंशु ने तमिलनाडु सरकार के साथ एक समझौता किया ताकि वहां आई प्राकृतिक आपदा के दौरान जो कपड़े नहीं बांटे जा सके, उन्हें वह ज़रूरतमंदों तक पहुंचा सके। फिलहाल गूंज का वार्षिक बजट तीन करोड़ से अधिक पहुंच चुका है। गूंज के 21 राज्यों में संग्रहण केंद्र हैं और दस ऑफिस हैं। टीम में डेढ़ सौ से ज्यादा साथी हैं। इसके साथ ही गूंज ने 'क्लॉथ फ़ॉर वर्क कार्यक्रम' शुरू किया है। अंशु के प्रयासों से कुछ गांवों में छोटे पुल बने तो कुछ गांवों में कुएं खोदे गए। यह भी उल्लेखनीय है कि गूंज में कामकाज को देखने की जिम्मेदारी ज्यादातर महिलाओं के हाथ में है।
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार
अंशु गुप्ता का प्रोजेक्ट ‘केवल कपड़े के एक टुकड़े के लिए नहीं’ गांवों में और झुग्गी बस्तियों में रहने वाले ऐसे लोगों के लिए है, जहां महिलाओं और लड़कियों के पास पर्याप्त कपड़े नहीं थे। ऐसे ही कार्यों की बदौलत अंशु गुप्ता की मेहनत रंग लाई और उन्हें साल 2015 के 'एशिया के नोबल पुरस्कार' यानी 'रेमन मैग्सेसे पुरस्कार' के लिए चुना गया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- Gupta, Anshu
- आने कौन हैं रेमन मैग्सेसे पाने वाले अंशु गुप्ता
- 'गूंज' के संस्थापक अंशु गुप्ता की हर ओर है 'गूंज'
- नौकरी छोड़कर गरीबों के लिए काम करने वाले अंशु की 12 खास बातें
संबंधित लेख