"शरद ऋतु": अवतरणों में अंतर
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'''शरद ऋतु''' [[भारत]] की प्रमुख 4 ऋतुओं में से एक ऋतु है। [[मानसून]] के पीछे हटने या उसका प्रत्यावर्तन हो जाने से आसमान एकदम साफ़ हो जाता है और तापमान में पुनः वृद्धि होने लगती है। इस समय जलप्लावित भूमि तथा तीव्र तापमान के कारण वायु की आर्द्रता इतनी अधिक बढ़ जाती है कि लोगों को | {{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | ||
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'''शरद ऋतु''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Winter Season'') [[भारत]] की प्रमुख 4 ऋतुओं में से एक ऋतु है। [[मानसून]] के पीछे हटने या उसका प्रत्यावर्तन हो जाने से आसमान एकदम साफ़ हो जाता है और तापमान में पुनः वृद्धि होने लगती है। इस समय जलप्लावित भूमि तथा तीव्र तापमान के कारण वायु की आर्द्रता इतनी अधिक बढ़ जाती है कि लोगों को असहनीय उमस का सामना करना पड़ता है। भारत में यह स्थिति ‘क्वार की उमस’ अथवा ‘अक्टूबर की गर्मी’ के रूप में जानी जाती है। | |||
==समय== | ==समय== | ||
सामान्यतः भारत में [[15 सितम्बर]] से [[15 दिसम्बर]] तक शरद ऋतु पायी जाती है, जो कि मानसून पवनों के प्रत्यावर्तन का भी काल होता है। [[वर्षा ऋतु]] के पश्चात् जब मानूसन पवनें लौटती हैं तो देश के उत्तरी पश्चिमी भाग में [[तापमान]] तेजी से कम होने लगता है। उल्लेखनीय है कि [[अक्टूबर]] के अन्त का वर्षा की तीव्रता प्रायः कम हो जाती है और धीरे-धीरे दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पीछे हटते हुए मध्य [[सितम्बर]] तक [[पंजाब]], अक्टूबर के अन्त तक [[गंगा]] के डेल्टा क्षेत्र तथा [[नवम्बर]] के प्रारम्भ में [[दक्षिणी भारत]] को भी छोड़ देता है। | सामान्यतः भारत में [[15 सितम्बर]] से [[15 दिसम्बर]] तक शरद ऋतु पायी जाती है, जो कि मानसून पवनों के प्रत्यावर्तन का भी काल होता है। [[वर्षा ऋतु]] के पश्चात् जब मानूसन पवनें लौटती हैं तो देश के उत्तरी पश्चिमी भाग में [[तापमान]] तेजी से कम होने लगता है। उल्लेखनीय है कि [[अक्टूबर]] के अन्त का वर्षा की तीव्रता प्रायः कम हो जाती है और धीरे-धीरे दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पीछे हटते हुए मध्य [[सितम्बर]] तक [[पंजाब]], अक्टूबर के अन्त तक [[गंगा]] के डेल्टा क्षेत्र तथा [[नवम्बर]] के प्रारम्भ में [[दक्षिणी भारत]] को भी छोड़ देता है। | ||
==तापमान== | ==तापमान== | ||
इस स्थिति के पश्चात् [[उत्तरी भारत]] में तापमान तेजी से घटता है तथा [[दिसम्बर]] तक [[सूर्य]] के दक्षिणायन होने के कारण शीत ऋतु का आगमन हो जाता है। इस समय उत्तर का न्यून [[वायुदाब]] केन्द्र खिसक कर [[बंगाल की खाड़ी]] की ओर चला जाता है। यह अस्थिरता पुनः [[बंगाल की खाड़ी]] में [[चक्रवात|चक्रवातों]] की उत्पत्ति की लिए उत्तददायी होती है और ये चक्रवात [[कृष्णा नदी|कृष्णा]], [[कावेरी नदी|कावेरी]] एवं [[गोदावरी नदी]] के डेल्टाई भागों में तीव्रता से प्रवेश करके धन-जन को काफ़ी हानि पहुंचाते हैं। इस ऋतु में लौटते हुए [[मानसून]] के [[बंगाल की खाड़ी]] से गुजरने के कारण उसमें कुछ आर्द्रता आ जाती है और जब ये पवनें तमिलनाडु तट से टकराती हैं तो वहाँ [[वर्षा]] कर देती हैं। | इस स्थिति के पश्चात् [[उत्तरी भारत]] में तापमान तेजी से घटता है तथा [[दिसम्बर]] तक [[सूर्य]] के दक्षिणायन होने के कारण शीत ऋतु का आगमन हो जाता है। इस समय उत्तर का न्यून [[वायुदाब]] केन्द्र खिसक कर [[बंगाल की खाड़ी]] की ओर चला जाता है। यह अस्थिरता पुनः [[बंगाल की खाड़ी]] में [[चक्रवात|चक्रवातों]] की उत्पत्ति की लिए उत्तददायी होती है और ये चक्रवात [[कृष्णा नदी|कृष्णा]], [[कावेरी नदी|कावेरी]] एवं [[गोदावरी नदी]] के डेल्टाई भागों में तीव्रता से प्रवेश करके धन-जन को काफ़ी हानि पहुंचाते हैं। इस ऋतु में लौटते हुए [[मानसून]] के [[बंगाल की खाड़ी]] से गुजरने के कारण उसमें कुछ आर्द्रता आ जाती है और जब ये पवनें तमिलनाडु तट से टकराती हैं तो वहाँ [[वर्षा]] कर देती हैं। | ||
==साहित्यिक उल्लेख== | |||
[[तुलसीदास|तुलसीदासजी]] ने [[रामचरितमानस]] में शरद ऋतु का गुणगान करते हुए लिखा है- | |||
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बरषा बिगत सरद ऋतु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई॥ | |||
फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥ | |||
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अर्थात हे लक्ष्मण! देखो वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने कास रूपी सफेद बालों के रूप में अपना वृद्घापकाल प्रकट किया है। वृद्घा वर्षा की ओट में आती शरद नायिका ने तुलसीदास के साथ कवि कुल गुरु [[कालिदास]] को भी इसी अदा में बाँधा था। | |||
[[ऋतुसंहार|ऋतु संहारम]] के अनुसार 'लो आ गई यह नव वधू-सी शोभती, शरद नायिका! कास के सफेद पुष्पों से ढँकी इस श्वेत वस्त्रा का मुख कमल पुष्पों से ही निर्मित है और मस्त राजहंसी की मधुर आवाज ही इसकी नुपूर ध्वनि है। पकी बालियों से नत, धान के पौधों की तरह तरंगायित इसकी तन-यष्टि किसका मन नहीं मोहती। | |||
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जानि सरद ऋतु खंजन आए। | |||
पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥ | |||
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अर्थात शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए। | |||
जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ जाते हैं अर्थात पुण्य प्रकट हो जाते हैं। | |||
[[बसंत ऋतु|बसंत]] के अपने झूमते-महकते सुमन, इठलाती-खिलती कलियाँ हो सकती हैं। गंधवाही मंद बयार, भौंरों की गुंजरित-उल्लासित पंक्तियाँ हो सकती हैं, पर शरद का नील धवल, स्फटिक-सा आकाश, अमृतवर्षिणी चाँदनी और कमल-कुमुदिनियों भरे ताल-तड़ाग उसके पास कहाँ? संपूर्ण धरती को श्वेत चादर में ढँकने को आकुल ये कास-जवास के सफेद-सफेद ऊर्ध्वमुखी फूल तो शरद संपदा है। पावस मेघों के अथक प्रयासों से धुले साफ आसमान में विरहता चाँद और उससे फूटती, धरती की ओर भागती निर्बाध, निष्कलंक चाँदनी शरद के ही एकाधिकार हैं। | |||
शरद में वृष्टि थम जाती है। मौसम सुहावना हो जाता हैं। दिन सामान्य तो रात्रि में ठंडक रहती है। शरद को मनोहारी और स्वस्थ ऋतु मानते हैं। प्रायः [[अश्विन]] मास में [[शरद पूर्णिमा]] के आसपास शरद ऋतु का सौंदर्य दिखाई देता है।<ref>{{cite web |url=http://anushactivity.blogspot.in/2015/05/blog-post.html |title= शरद ऋतु |accessmonthday=26 जनवरी|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=अनुष (ब्लॉग)|language=हिंदी }}</ref> | |||
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07:55, 26 जनवरी 2018 का अवतरण
शरद ऋतु
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विवरण | शरद ऋतु भारत की प्रमुख 4 ऋतुओं में से एक ऋतु है। वर्षा ऋतु के पश्चात् जब मानूसन पवनें लौटती हैं तो देश के उत्तरी पश्चिमी भाग में तापमान तेजी से कम होने लगता है। |
समय | अश्विन-कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) |
मौसम | इस समय जलप्लावित भूमि तथा तीव्र तापमान के कारण वायु की आर्द्रता इतनी अधिक बढ़ जाती है कि लोगों को असहनीय उमस का सामना करना पड़ता है। भारत में यह स्थिति ‘क्वार की उमस’ अथवा ‘अक्टूबर की गर्मी’ के रूप में जानी जाती है। |
अन्य जानकारी | इस ऋतु में लौटते हुए मानसून के बंगाल की खाड़ी से गुजरने के कारण उसमें कुछ आर्द्रता आ जाती है और जब ये पवनें तमिलनाडु तट से टकराती हैं तो वहाँ वर्षा कर देती हैं। |
शरद ऋतु (अंग्रेज़ी: Winter Season) भारत की प्रमुख 4 ऋतुओं में से एक ऋतु है। मानसून के पीछे हटने या उसका प्रत्यावर्तन हो जाने से आसमान एकदम साफ़ हो जाता है और तापमान में पुनः वृद्धि होने लगती है। इस समय जलप्लावित भूमि तथा तीव्र तापमान के कारण वायु की आर्द्रता इतनी अधिक बढ़ जाती है कि लोगों को असहनीय उमस का सामना करना पड़ता है। भारत में यह स्थिति ‘क्वार की उमस’ अथवा ‘अक्टूबर की गर्मी’ के रूप में जानी जाती है।
समय
सामान्यतः भारत में 15 सितम्बर से 15 दिसम्बर तक शरद ऋतु पायी जाती है, जो कि मानसून पवनों के प्रत्यावर्तन का भी काल होता है। वर्षा ऋतु के पश्चात् जब मानूसन पवनें लौटती हैं तो देश के उत्तरी पश्चिमी भाग में तापमान तेजी से कम होने लगता है। उल्लेखनीय है कि अक्टूबर के अन्त का वर्षा की तीव्रता प्रायः कम हो जाती है और धीरे-धीरे दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पीछे हटते हुए मध्य सितम्बर तक पंजाब, अक्टूबर के अन्त तक गंगा के डेल्टा क्षेत्र तथा नवम्बर के प्रारम्भ में दक्षिणी भारत को भी छोड़ देता है।
तापमान
इस स्थिति के पश्चात् उत्तरी भारत में तापमान तेजी से घटता है तथा दिसम्बर तक सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण शीत ऋतु का आगमन हो जाता है। इस समय उत्तर का न्यून वायुदाब केन्द्र खिसक कर बंगाल की खाड़ी की ओर चला जाता है। यह अस्थिरता पुनः बंगाल की खाड़ी में चक्रवातों की उत्पत्ति की लिए उत्तददायी होती है और ये चक्रवात कृष्णा, कावेरी एवं गोदावरी नदी के डेल्टाई भागों में तीव्रता से प्रवेश करके धन-जन को काफ़ी हानि पहुंचाते हैं। इस ऋतु में लौटते हुए मानसून के बंगाल की खाड़ी से गुजरने के कारण उसमें कुछ आर्द्रता आ जाती है और जब ये पवनें तमिलनाडु तट से टकराती हैं तो वहाँ वर्षा कर देती हैं।
साहित्यिक उल्लेख
तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में शरद ऋतु का गुणगान करते हुए लिखा है-
बरषा बिगत सरद ऋतु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई॥
फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥
अर्थात हे लक्ष्मण! देखो वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने कास रूपी सफेद बालों के रूप में अपना वृद्घापकाल प्रकट किया है। वृद्घा वर्षा की ओट में आती शरद नायिका ने तुलसीदास के साथ कवि कुल गुरु कालिदास को भी इसी अदा में बाँधा था। ऋतु संहारम के अनुसार 'लो आ गई यह नव वधू-सी शोभती, शरद नायिका! कास के सफेद पुष्पों से ढँकी इस श्वेत वस्त्रा का मुख कमल पुष्पों से ही निर्मित है और मस्त राजहंसी की मधुर आवाज ही इसकी नुपूर ध्वनि है। पकी बालियों से नत, धान के पौधों की तरह तरंगायित इसकी तन-यष्टि किसका मन नहीं मोहती।
जानि सरद ऋतु खंजन आए।
पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥
अर्थात शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए। जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ जाते हैं अर्थात पुण्य प्रकट हो जाते हैं। बसंत के अपने झूमते-महकते सुमन, इठलाती-खिलती कलियाँ हो सकती हैं। गंधवाही मंद बयार, भौंरों की गुंजरित-उल्लासित पंक्तियाँ हो सकती हैं, पर शरद का नील धवल, स्फटिक-सा आकाश, अमृतवर्षिणी चाँदनी और कमल-कुमुदिनियों भरे ताल-तड़ाग उसके पास कहाँ? संपूर्ण धरती को श्वेत चादर में ढँकने को आकुल ये कास-जवास के सफेद-सफेद ऊर्ध्वमुखी फूल तो शरद संपदा है। पावस मेघों के अथक प्रयासों से धुले साफ आसमान में विरहता चाँद और उससे फूटती, धरती की ओर भागती निर्बाध, निष्कलंक चाँदनी शरद के ही एकाधिकार हैं। शरद में वृष्टि थम जाती है। मौसम सुहावना हो जाता हैं। दिन सामान्य तो रात्रि में ठंडक रहती है। शरद को मनोहारी और स्वस्थ ऋतु मानते हैं। प्रायः अश्विन मास में शरद पूर्णिमा के आसपास शरद ऋतु का सौंदर्य दिखाई देता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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