"अखंडानंद": अवतरणों में अंतर
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'''अखंडानंद''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Akhandananda'', जन्म- [[1874]], [[गुजरात]]; मृत्यु- [[1942]]) एक संन्यासी थे और जिन्होंने कम मूल्य पर उच्च स्तर की पुस्तकों को प्रकाशित करना अपने जीवन का ध्येय बनाया था। वे [[स्वामी रामतीर्थ]] के साथ भी कुछ समय तक रहे थे। | {{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व | ||
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'''अखंडानंद''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Akhandananda'', जन्म- [[1874]], ज़िला खेड़ा, [[गुजरात]]; मृत्यु- [[1942]]) एक संन्यासी थे और जिन्होंने कम मूल्य पर उच्च स्तर की पुस्तकों को प्रकाशित करना अपने जीवन का ध्येय बनाया था। वे [[स्वामी रामतीर्थ]] के साथ भी कुछ समय तक रहे थे। | |||
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12:09, 8 अप्रैल 2018 का अवतरण
अखंडानंद
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पूरा नाम | अखंडानंद |
जन्म | 1874 |
जन्म भूमि | ज़िला खेड़ा, गुजरात |
मृत्यु | 1942 |
कर्म भूमि | भारत |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | अखंडानंद केवल गुजराती भाषा जानते थे, इसीलिए गांधीजी और जमनालाल बजाज का हिंदी में भी अल्प मूल्य की पुस्तकें प्रकाशित करने का सुझाव क्रियान्वित ना कर सके। |
अखंडानंद (अंग्रेज़ी: Akhandananda, जन्म- 1874, ज़िला खेड़ा, गुजरात; मृत्यु- 1942) एक संन्यासी थे और जिन्होंने कम मूल्य पर उच्च स्तर की पुस्तकों को प्रकाशित करना अपने जीवन का ध्येय बनाया था। वे स्वामी रामतीर्थ के साथ भी कुछ समय तक रहे थे।
परिचय
अखंडानंद का जन्म सन 1874 में गुजरात के खेड़ा ज़िले में हुआ था। पिता व्यवसाई थे और माता बड़ी धर्म परायण और धार्मिक संगति की अनुरागी महिला थीं। घर पर साधु संत आते रहते थे। अखंडानंद का बचपन का नाम 'लालू भाई ठक्कर' था। माता के पूरे संस्कार उन्होंने ग्रहण किए। औपचारिक शिक्षा अधिक नहीं हो पाई, पर स्वाध्याय से यथेष्ट ज्ञान प्राप्त कर लिया था।[1]
संन्यास
उस समय के चलन के अनुसार लालू भाई का विवाह 7-8 वर्ष की उम्र में ही हो गया था। पर 1904 में उन्होंने संन्यास ले लिया और 'भिक्षु अखंडानंद' के नाम से प्रसिद्ध हुए। संन्यास लेने के बाद उन्होंने अनेक तीर्थों की यात्रा की और कुछ समय तक स्वामी रामतीर्थ के साथ भी रहे।
पुस्तकों का प्रकाशन
1908 की बात है, वे मुंबई में एक पुस्तक खरीदने के लिए गए। पुस्तक की महंगी कीमत देखकर वह समझ गए कि ऐसी स्थिति में पठन सामग्री सदा गरीबों की पहुंच से बाहर रहेगी। इसके बाद अपनी सारी प्रवृतियों को समेट कर उन्होंने कम मूल्य पर उच्च स्तर की पुस्तकें प्रकाशित करना अपने जीवन का ध्येय बना लिया। 34 वर्ष की अवधि में उन्होंने लगभग 300 पुस्तकें प्रकाशित कीं। उनकी प्रकाशित की हुईं 1500 पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य एक रुपया पचास पैसे हुआ करता था।
अखंडानंद केवल गुजराती भाषा जानते थे, इसीलिए गांधीजी और जमनालाल बजाज का हिंदी में भी अल्प मूल्य की पुस्तकें प्रकाशित करने का सुझाव क्रियान्वित ना कर सके।
मृत्यु
सन 1942 में भिक्षु अखंडानंद का देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 09 |